पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार अगले महीने बांग्लादेश के दौरे पर जाएंगे.
पाकिस्तानी मीडिया में कहा जा रहा है कि पिछले साल अगस्त महीने में बांग्लादेश से भारत समर्थक सरकार के हटने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश की क़रीबी बढ़ रही है.
2012 के बाद बांग्लादेश में किसी भी पाकिस्तानी विदेशी मंत्री का यह पहला दौरा होगा. पिछले गुरुवार को डार ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि बांग्लादेश के विदेश मंत्री के आमंत्रण पर वह अगले महीने फ़रवरी में दौरा करेंगे.
डार ने इस बात की भी पुष्टि की थी कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद युनूस ने पाकिस्तान आने का न्योता स्वीकार कर लिया है और दोनों देशों की सहमति से दौरे की तारीख़ की घोषणा की जाएगी.
हिना रब्बानी खार पाकिस्तान की आख़िरी विदेश मंत्री थीं, जो नवंबर 2012 में डी-8 समिट में हिस्सा लेने ढाका गई थीं. हिना रब्बानी खार का यह दौरा सिर्फ़ पाँच घंटे का था.
डार ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में यह भी कहा था कि पाकिस्तान बांग्लादेश को हर संभव मदद करेगा. हालांकि बांग्लादेश ने पाकिस्तान से किसी तरह की मदद मांगी नहीं थी. इसके बावजूद डार ने बांग्लादेश को मदद की पेशकश की है.
डार की पेशकश पर सवाल उठ रहे हैं. लोग कह रहे हैं कि पाकिस्तान की तुलना में बांग्लादेश के पास विदेशी मुद्रा भंडार ज़्यादा है, आर्थिक वृद्धि दर ज़्यादा है, निर्यात ज़्यादा है तो मदद क्या मिलेगी?
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल एबीएन से बात करते हुए कहा, ”मुझे लगता है कि पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान वाली ग़लती बांग्लादेश में ना करे. इसहाक़ डार ने बांग्लादेश को लेकर जो कहा, उस पर मुझे सख़्त आपत्ति है.”
“डार ने बांग्लादेश का ज़िक्र करते हुए कहा कि वह उसे तरह की मदद करने के लिए तैयार हैं. ‘मदद करने के लिए तैयार हैं’ जैसी भाषा को डिप्लोमैसी में ख़ुद को सुपरियर दिखाने के रूप में देखा जाता है. पहले तो यही बताना चाहिए क्या बांग्लादेश ने हमसे मदद मांगी है?”
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने क्या कहा?
अब्दुल बासित ने कहा, ”पाकिस्तान से बांग्लादेश कई मोर्चों पर आगे है. बांग्लादेश की जीडीपी पाकिस्तान से बेहतर है. प्रति व्यक्ति आय पाकिस्तान से बेहतर है. सबसे अहम बात तो यह है कि बांग्लादेश ने कोई मदद मांगी ही नहीं है. ऐसे में आप मदद की पेशकश क्यों कर रहे हैं?”
बासित ने कहा, ”इसी चीज़ को बेहतर भाषा में कहा जा सकता था कि पाकिस्तान बांग्लादेश के साथ हर मोर्चे पर साथ मिलकर काम करना चाहता है. डिप्लोमैसी में बात ऐसे होती है. मुझे नहीं मालूम कि उन्हें कौन ऐसी स्क्रिप्ट लिखकर दे रहा है. इन्हें जानना चाहिए कि बांग्लादेश के लोग बहुत ही ग़ैरतमंद हैं. बांग्लादेश के लोगों ने पाकिस्तान बनाया था. मुझे लगता है कि पाकिस्तान को बांग्लादेश के मामले में थोड़ा एहतियात से काम लेना चाहिए.”
अब्दुल बासित ने कहा, ”अफ़ग़ानिस्तान को हमने जिस तरह से हैंडल किया है, उस पर शर्म आती है. ऐसी ग़लती हमें बांग्लादेश के साथ नहीं करनी चाहिए. पाकिस्तान के बांग्लादेश से संबंध अच्छे हो रहे हैं, इसमें पाकिस्तान की कोई मेहनत नहीं है. शेख़ हसीना को वहाँ के लोगों ने हटा दिया, इसलिए पाकिस्तान को बढ़त मिल गई है.
बासित ने कहा, “अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने पर हमने जश्न मनाया था लेकिन इसका क्या हुआ?इसीलिए बांग्लादेश के मामले में हमें बहुत ख़ुश होने की ज़रूरत नहीं है. हमें बांग्लादेश के साथ ताल्लुकात को भारत के लेंस से नहीं देखना चाहिए. सार्क को लेकर बांग्लादेश उत्साहित है. लेकिन भारत के बिना सार्क को सक्रिय नहीं किया जा सकता है.”
अब्दुल बासित ने कहा, ”बांग्लादेश के मामले में हमें धीरे-धीरे और संभलकर आगे बढ़ना चाहिए. संभव है कि बांग्लादेश की सरकार जनभावना के कारण भारत को लेकर आक्रामक हो. इसलिए हमें बहुत जल्दीबाज़ी में नहीं रहना चाहिए. लेकिन पाकिस्तान को अवसर मिला है और इस अवसर को अफ़ग़ानिस्तान की तरह गँवाए ना.”
पाकिस्तान में बांग्लादेश की विदेश नीति पर बहस
पाकिस्तानी मीडिया में बांग्लादेश को लेकर ख़ासा उत्साह देखने को मिल रहा है. इस उत्साह की सबसे बड़ी वजह ये है कि भारत और बांग्लादेश के संबंधों में कड़वाहट आई है.
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार नजम सेठी ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल समा टीवी से कहा, ”बांग्लादेश की विदेश नीति को लेकर बहस हो रही है. इसमें बात की जा रही है कि नई नीति में भारत की क्या भूमिका होगी और पाकिस्तान का क्या रोल होगा. मोहम्मद युनूस ने सार्क को ज़िंदा करने के लिए कहा है. मोहम्मद युनूस को लगता है कि सार्क को ज़िंदा कर दक्षिण एशिया में पाकिस्तान और बाक़ी देशों के साथ भारत को अलग-थलग किया जा सकता है. ये पहली दफ़ा है कि पाकिस्तान तो भारत विरोधी था ही लेकिन बाक़ी के पड़ोसियों में भी ये भावना बढ़ी है.”
नजम सेठी ने कहा, ”ज़ाहिर है, भारत को तकलीफ़ हो रही है. पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच व्यापार शुरू हो रहा है. पाकिस्तान व्यापार समुद्र या हवाई मार्ग से ही कर सकता है. हवाई मार्ग से करने के लिए भारत के एयर स्पेस का इस्तेमाल करना होगा. दोनों देशों के बीच हवाई सेवा भी शुरू हो रही है लेकिन इसके लिए पैसेंजर भी तो होने चाहिए. ज़ाहिर है कि इसमें वक़्त लगेगा. बांग्लादेश में एक सोच बन रही है कि भारत तमाम तनाव के बावजूद पाकिस्तान से एक अरब डॉलर से ज़्यादा का कारोबार कर रहा है तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं. अब ये सारे तथ्य सामने आ रहे हैं.”
नजम सेठी ने कहा, ”पाकिस्तान के लोग टेक्सटाइल उद्योगपति बांग्लादेश में अपना प्लांट लगाना चाह रहे हैं. बांग्लादेश में पाकिस्तान के कारोबारियों को आधारभूत संरचना मिलेगी और अपना कारोबार बढ़ा सकते हैं. यहाँ बिजली और श्रम दोनों सस्ते हैं. दूसरी तरफ़ बांग्लादेश चाहता है कि पाकिस्तानी आर्मी बांग्लादेश की आर्मी को ट्रेनिंग दे. ऐसे में भारत बहुत डरा हुआ है. बांग्लादेश की आर्मी पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेगी तो भारत विरोधी होगी. ज़ाहिर है कि ट्रेनिंग से विचार भी बदलेगा. पाकिस्तान की सोच है कि अब उसे बांग्लादेश के ज़रिए भारत को निशाना बनाने का मौक़ा मिलेगा. इसहाक़ डार इन्हीं चीज़ों पर मुहर लगाने जा रहे हैं.”
बांग्लादेश के लोगों में पाकिस्तान को लेकर भावना स्थायी या अस्थायी?
एज़ाज़ अहम चौधरी पाकिस्तान के पूर्व डिप्लोमैट हैं और उन्होंने हाल ही में बांग्लादेश का दौरा किया था.
पाकिस्तान के डॉन टीवी से अपना अनुभव साझा करते हुए एज़ाज़ अहमद ने बताया, ”दो साल पहले जब मैं ढाका गया था तो एयरपोर्ट से निकलते ही शेख़ मुजीब-उर रहमान हर जगह दिखते थे लेकिन इस बार उनका नामोनिशान नहीं था. यानी शेख़ हसीना को लेकर बहुत ग़ुस्सा था. दूसरी तरफ़ हिन्दुस्तान को लेकर भी मुझे भारी नाराज़गी वहां दिखी. मैं बे ऑफ बंगाल कन्वर्सेशन में गया था. उस सेशन के दौरान हॉल में एक युवा बांग्लादेशी लड़की ने कहा कि आप ट्रंप की नीति की बात न करें बल्कि मोदी की नीति की बात करें, जिन्होंने हमारी जनसंहारक प्रधानमंत्री को जगह दे रखी है.”
एज़ाज़ चौधरी ने कहा, ”तीसरा रूझान मुझे दिखा कि बांग्लादेश में पाकिस्तान को लेकर बहुत सकारात्मक माहौल था. 1971 को लेकर कोई नाराज़गी नहीं दिखी. दो साल पहले भी लोग पाकिस्तान से प्रेम दिखाते थे लेकिन शेख़ हसीना सरकार से डरते थे. लेकिन अब लोग खुलकर बोल रहे हैं. बांग्लादेश के लोग कहते थे कि पाकिस्तान जाने का ठप्पा पासपोर्ट पर लगता था तो फिर हिन्दुस्तान का वीज़ा नहीं मिलता था.”
एज़ाज़ अहमद से पूछा गया कि बांग्लादेश के लोगों में पाकिस्तान को लेकर जो अभी जज़्बा दिख रहा है वो अस्थायी है या स्थायी है?
इस सवाल के जवाब में एज़ाज़ चौधरी ने कहा, ”ये सवाल बहुत वाजिब है. ढाका ट्रिब्यून में एक लेख पढ़ रहा था कि जिसमें लिखा था कि बांग्लादेश में हिन्दू 9 प्रतिशत हैं लेकिन सरकारी नौकरी में वे 15 फ़ीसदी हैं. हम अभी से ये नहीं कह सकते हैं कि शेख़ हसीना की अवामी लीग़ ख़त्म हो गई है. अब भी है. बांग्लादेश तीन तरफ़ से भारत से घिरा है. ऐसे में उसे भारत के प्रभाव से निकलना आसान नहीं होगा. मेरा भी मानना है कि पाकिस्तान को लेकर यह जज़्बा अभी अस्थायी है.”
बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन मानती हैं कि शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद बांग्लादेश में पाकिस्तान को लेकर उत्साह बढ़ा है.
तसलीमा नसरीन ने लिखा है, ”कुछ महीने पहले बांग्लादेश में बांग्ला बोलने वाले पाकिस्तान समर्थकों ने मोहम्मद अली जिन्ना की पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि दी थी. उसके बाद जिन्ना की जयंती मनाई गई. बांग्लादेश में अचानक जिन्ना प्रेम क्यों बढ़ा है? सच यह है कि जिन्ना प्रेम कोई नया नहीं है बल्कि शुरू से ही था.”
“बांग्ला बोलने वाले ये मुसलमान व्यापक इस्लामी दुनिया की सोच से संचालित होते हैं. मैं जानबूझकर इन्हें बांग्ला बोलने वाला कहती हूं, न कि बंगाली क्योंकि हर बांग्ला बोलने वाला व्यक्ति बंगाली नहीं हो सकता है. जो सच्चा बंगाली होगा, वह बंगाली संस्कृति से प्रेम करेगा.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.