इमेज कैप्शन, पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान सरहदी इलाकों में मौजूद चरमपंथियों की मदद कर रहा है. ….में
पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा पर शनिवार रात भीषण संघर्ष देखने को मिला, दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर रात भर हमले करने का आरोप लगाया है.
पाकिस्तानी सेना का कहना है कि अफ़ग़ान तालिबान लड़ाकों और सहयोगी ‘आतंकवादी’ गुटों ने शनिवार देर रात पाकिस्तान की सीमा पर मौजूद कई चौकियों को निशाना बनाते हुए ‘बिना उकसावे के हमला’ किया.
पाकिस्तानी सेना ने कहा कि इस हमले को नाकाम करने के लिए उसने तोपों और हवाई हमले के ज़रिए ‘ठोस जवाब’ दिया.
पाकिस्तानी अधिकारियों ने दावा किया है कि उनकी सेना ने कुछ समय के लिए 21 अफ़ग़ान चौकियों पर कब्ज़ा किया और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हमले की योजना बनाने वाले ‘आतंकी प्रशिक्षण केंद्रों’ को नष्ट कर दिया.
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पाकिस्तानी सेना की ओर से बताया गया कि उसके 23 सैनिकों की मौत हुई है और 29 घायल हुए हैं, जबकि पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई में ‘200 से ज़्यादा तालिबान से जुड़े लड़ाके’ मारे गए.
वहीं, तालिबान के एक प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान के 58 सैनिक मारे गए हैं.
प्रवक्ता ने इसे ‘बदले की कार्रवाई’ बताया और पाकिस्तान पर अफ़ग़ान हवाई सीमा का उल्लंघन करने और गुरुवार को काबुल के पास एक बाज़ार पर बमबारी करने का आरोप लगाया है.
पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता लेफ़्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ़ चौधरी ने कथित हवाई हमलों के बारे में पूछे गए सवालों का सीधे तौर पर जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा, “पाकिस्तान के लोगों की जान बचाने के लिए, जो भी ज़रूरी है, हम कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे.”
उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान से अपील की कि वह अपनी ज़मीन का इस्तेमाल पाकिस्तान के ख़िलाफ़ होने वाली ‘आतंकवादी गतिविधियों’ के लिए होने से रोके.
क्यों बिगड़ते जा रहे हैं पाकिस्तान-तालिबान के रिश्ते?
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तालिबान के 2021 में सत्ता में लौटने के बाद से यह ताज़ा तनाव दोनों पड़ोसियों के बीच सबसे गंभीर संघर्षों में से एक है.
दोनों के रिश्ते इसलिए बिगड़ते जा रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान तालिबान पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के सदस्यों को पनाह देने का आरोप लगाता है. टीटीपी ने पाकिस्तान में घातक हमले किए हैं.
वहीं, तालिबान पाकिस्तान के इस आरोप से इनकार करता है.
बीबीसी से बात करते हुए, सुरक्षा विश्लेषक आमिर ज़िया ने इस टकराव को ‘एक अनावश्यक संघर्ष’ और ‘दोनों पक्षों की कूटनीतिक विफलता’ बताया.
उन्होंने कहा कि तालिबान सरकार ने पाकिस्तान की जायज़ सुरक्षा चिंताओं का समाधान नहीं किया है, लेकिन यह भी कहा कि पाकिस्तान बहुत लंबे समय तक ‘एक-सूत्रीय एजेंडे’ पर निर्भर रहा है.
आमिर ज़िया ने कहा, “दशकों से पाकिस्तान, अफ़ग़ान तालिबान को समर्थन देना राष्ट्रीय हित का मामला मानता रहा है. अब हमें पूछना होगा कि हमने कहां गलती की, चाहे अतीत में या अब. उन्हें एहसान-फ़रामोश कहने जैसी कठोर भाषा के इस्तेमाल से मतभेद और गहरा कर देता है.”
अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच दो हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा लंबी सीमा है, जिसे डूरंड रेखा के नाम से जाना जाता है.
महीनों के कूटनीतिक तनाव के बाद हुई हालिया लड़ाई ये दिखाती है कि दोनों पड़ोसियों के बीच तनावपूर्ण रिश्ते कैसे फिर से नए संघर्ष के कगार पर पहुंच चुके हैं.
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इमेज कैप्शन, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की सीमा को डूरंड रेखा कहा जाता है
अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद से पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच तनाव कई बार भड़का है.
पाकिस्तान ने शुरुआत में तालिबान की वापसी का स्वागत किया था. पाकिस्तान को उम्मीद थी कि इससे उसकी पश्चिमी सीमा स्थिर होगी और वैचारिक रूप से अफ़ग़ान तालिबान से जुड़े समूह टीटीपी के हमलों पर अंकुश लगेगा.
इसके बजाय, हिंसा बढ़ गई. पाकिस्तान का कहना है कि सीमा पार से किए गए टीटीपी हमलों में उसके सैकड़ों सैनिक मारे गए हैं.
अफ़ग़ान अधिकारी इससे इनकार करते हैं और पाकिस्तान के आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हैं.
हाल के वर्षों में, दोनों पक्षों के बीच डूरंड रेखा पर बाड़ लगाने को लेकर भी टकराव हुआ. यह एक औपनिवेशिक काल की सीमा है जिसे अफ़ग़ानिस्तान ने कभी औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी.
चमन, कुर्रम और बाजौर जैसे इलाक़ों में सीमा पार से गोलीबारी की घटनाएं बढ़ गई हैं, जिसके कारण कई बार प्रमुख व्यापारिक मार्ग बंद करने पड़े हैं.
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
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विश्लेषकों का कहना है कि दोनों पक्षों के बीच भरोसे की कमी, आर्थिक तनाव और एक प्रभावी सुरक्षा तंत्र न होने के कारण कभी प्रभाव दिखाने के लिए होने वाला गुप्त संघर्ष खुली दुश्मनी में तब्दील हो गया है.
इस्लामाबाद के सुरक्षा विश्लेषक इम्तियाज़ गुल ने हालिया हिंसा को ‘महीनों के तनाव का नतीजा’ बताया है.
वह कहते हैं, “अफ़ग़ान शासन का टीटीपी, जो पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों का नेतृत्व कर रहा है, के ख़िलाफ़ निर्णायक कार्रवाई करने से इनकार किए जाने के कारण पाकिस्तान के पास सीमित विकल्प बचे हैं.”
आमिर ज़िया कहते हैं, “पाकिस्तान को चीन, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात सहित तालिबान पर प्रभाव रखने वाले देशों से कूटनीतिक मदद लेनी चाहिए ताकि उस पर टीटीपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का दबाव बनाया जा सके.”
पाकिस्तान और सऊदी अरब ने हाल ही में एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें कहा गया है कि किसी भी देश के ख़िलाफ़ किसी भी आक्रामकता को दोनों देशों के ख़िलाफ़ आक्रामकता मानी जाएगी.
दक्षिण एशिया की जियोपॉलिटिक्स पर गहरी नज़र रखने वाले माइकल कुगलमैन ने कहा कि इस संकट ने ‘हालात और ख़राब’ कर दिए हैं.
वह कहते हैं, “तालिबान में पाकिस्तानी सेना से सीधे लड़ने की क्षमता नहीं है और एक बार जवाबी कार्रवाई से जनता का गुस्सा शांत हो जाए, तो उनके पीछे हटने की संभावना है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित