अफ़ग़ानिस्तान में 15 अगस्त 2021 को जब तालिबान ने अशरफ़ ग़नी की सरकार को सत्ता से बेदख़ल कर कमान अपने हाथ में ली थी तो पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान के लोगों ने ग़ुलामी की जंजीर को तोड़ दिया है.
इमरान ख़ान ने तालिबान की जीत के एक दिन बाद ही यह बयान दिया था. पाकिस्तान की सरकार और सेना में जश्न का माहौल था.
पाकिस्तान में अशरफ़ ग़नी को भारत और अमेरिका समर्थक बताया जा रहा था. लेकिन अब पाकिस्तान की ख़ुशी पीछे छूट गई है और वह तालिबान शासित अफ़ग़ानिस्तान में हवाई हमले कर रहा है.
जिस तालिबान को पाकिस्तान से वर्षों तक मदद मिली, उसे लेकर अब हालात क्यों बदल गए?
पाकिस्तान की तालिबान नीति क्या नाकाम हो रही है? तालिबान क्या पाकिस्तान विरोधी हो गया है?
पिछले कुछ दिनों से यही बहस पाकिस्तानी मीडिया में जमकर हो रही है. पाकिस्तान के पत्रकार और पूर्व राजनयिक पाकिस्तान की तालिबान नीति पर सवाल उठ रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान से रिश्ते ख़राब होने की वजह
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक़्क़ानी ने पाकिस्तान के न्यूज़ चैनल समा टीवी से कहा, ” जो रिटार्यड अधिकारी हैं, उनको मैं सलाह दूंगा कि वो गोल्फ़ खेलें और अपना रिटायरमेंट अच्छे से गुजारें. देखिए अगर इन लोगों को विदेश नीति समझ में आती तो पाकिस्तान को पिछले कुछ सालों में जिन चीज़ों का सामना करना पड़ा है, वो नहीं हुआ होता.”
उन्होंने कहा, “ये तो काबुल फ़तह कर सोच रहे थे कि तालिबान वहाँ आएगा और पाकिस्तान का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा लेकिन वो तो हमारे ही गले पड़ गए हैं. विदेश नीति को समझने वालों के नज़रिया ही देखना चाहिए. आप कभी किसी ब्रिगेड के कमांडर थे तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपको सब कुछ समझ में आ रहा होगा.”
भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की नीति बुरी तरह विफल रही है. इस बारे में कोई स्पष्ट नीति नहीं है.
वो कहते हैं कि एक ही समय पर दोनों देशों के बीच कारोबार और संबंध बढ़ाने की बात होती है और ठीक उसी समय पर हमले भी हो रहे होते हैं.
अब्दुल बासित अफ़ग़ानिस्तान से संबंध बिगड़ने के केंद्र में पाकिस्तान तालिबान (टीटीपी) को देखते हैं. उनका कहना है कि पाकिस्तान में आतंकवादी हमले बढ़े हैं और पाकिस्तान सरकार टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है लेकिन टीटीपी के सुरक्षित पनाहगाह अफ़ग़ानिस्तान में हैं. इस तरह से ये पूरा मामला बेहद संवेदनशील हो जाता है.
अब्दुल बासित ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल एबीएन न्यूज़ से कहा, ” ये बड़ा संवेदनशील मामला है. अफ़ग़ान तालिबान और पाकिस्तान तालिबान पूर्व में सहयोग करते रहे हैं. पाकिस्तान ये भी चाहता है कि काबुल के साथ उसके संबंध अच्छे हों, लेकिन ये हमले भी मजबूरी बन जाते हैं क्योंकि तालिबान सरकार पाकिस्तान तालिबान के ख़िलाफ़ क़दम नहीं उठा रही है.”
वो कहते हैं, “इन तमाम चीज़ों के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान नीति नाकाम हो गई है. इस हमले से एक दिन पहले हमारे विशेष प्रतिनिधि काबुल में मौजूद थे, ट्रेड बढ़ाने की बात कर रहे थे और दूसरी तरफ़ हमले हो रहे थे. इसका मतलब है कि शीर्ष स्तर पर आपस में कोई सामंजस्य नहीं है. अगर हो भी तो वो दिख नहीं रहा है.”
अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार ने कहा है कि 24 दिसंबर की रात पकतीका के बरमल ज़िले में पाकिस्तानी हवाई हमले में 46 लोग मारे गए हैं. इनमें ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे थे.
पाकिस्तान की सरकार या सेना ने आधिकारिक तौर पर हमलों के बारे में कुछ नहीं कहा है, लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर संवाददाताओं से कहा कि उनकी सेना ने बरमल ज़िले में “आतंकवादियों” पर हमला किया.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार ने 28 दिसंबर को कहा कि उसने जवाबी कार्रवाई के तौर पर पाकिस्तानी इलाक़े में हमले किए हैं.
उसने दावा किया है कि इस हमले में पाकिस्तानी अर्द्धसैनिक बल के कम से कम एक जवान मारा गया है और सात घायल हो गए हैं.
अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान सीमा विवाद
पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच सीमा विवाद भी है. अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा को डूरंड लाइन नाम से जाना जाता है. अफ़ग़ानिस्तान इसे अपनी सरहद के तौर पर स्वीकार नहीं करता.
ब्रिटिश इंडिया में उत्तर-पश्चिमी हिस्सों पर नियंत्रण मज़बूत करने के लिए 1893 में अफ़ग़ानिस्तान के साथ 2640 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची थी.
ये समझौता काबुल में ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश सचिव सर मॉर्टिमर डूरंड और अमीर अब्दुर रहमान ख़ान के बीच हुआ था. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान की किसी भी सरकार ने डूरंड लाइन की मान्यता नहीं दी.
थिंक टैंक विल्सन सेंटर के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट डायरेक्टर माइकल कुगलमैन कहते हैं कि दरअसल पाकिस्तान का ये मानना कि तालिबान की अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता वापसी से उन्हें टीटीपी को रोकने में मदद मिलेगी, ये एक बड़ी विफलता है.
वो कहते हैं कि अगर ख़बरों की मानें तो पाकिस्तान के हालिया हमले में नागरिकों ख़ास तौर पर बच्चों और महिलाओं की मौत हुई और पाकिस्तान टीटीपी के शीर्ष नेताओं को ख़त्म करने में विफल रहा . अगर ये सही है तो ये निश्चित तौर पर ये सामरिक और रणनीतिक विफलता होगी.
वो कहते हैं कि पाकिस्तान की स्थिति कठिन है.
इसकी मुख्य वजह है कि अगस्त, 2021 में जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी हुई तो पाकिस्तान को लगा कि इससे उन्हें टीटीपी को रोकने में मदद मिलेगी जबकि सच्चाई यह है कि तालिबान ने कभी अपने मिलिटेंट सहयोगियों (अलकायदा) को पीठ नहीं दिखाई है, ख़ास तौर पर जब वो टीटीपी जैसे क़रीबी हों तो और भी नहीं.
पाकिस्तान को अपनी नीतियों को लेकर स्पष्ट होना होगा
भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित का कहना है कि पाकिस्तान को लगा था कि तालिबान के आने के बाद भारत को वो स्पेस नहीं मिलेगी अफ़ग़ानिस्तान में जो अशरफ़ ग़नी के समय मिल रही थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
उन्होंने कहा, “अब भी पाकिस्तान ने पूरी तरह अफ़ग़ानिस्तान के साथ राजनयिक संबंध बहाल नहीं किए हैं. पाकिस्तान एक तरह से दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है, तो बात ये है कि आप तालिबान पर दबाव नहीं बना सकते. इस मामले में सही कोशिश होनी चाहिए.”
वो कहते हैं कि जो कुछ भी अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच हो रहा है वो चिंता का विषय है और पाकिस्तान के साथ तालिबान भी इसके लिए ज़िम्मेदार है. वो कहते हैं कि ऐसा लगता है कि भारत की तरह ही अफ़ग़ानिस्तान से भी दुश्मनी सी हो गई है. भारत के साथ भी सीमा के मसले रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं रहा है.
पाकिस्तान मामलों के रक्षा विशेषज्ञ एजाज़ हैदर कहते हैं, “दहशतगर्दी पर काबू पाना मुश्किल काम है. अफ़ग़ानिस्तान अंतरराष्ट्रीय मान्य सीमा को मानता नहीं है. वहीं, वो टीटीपी को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर रहे हैं. तालिबान पख़्तून या अफ़गान राष्ट्रवाद की वजह से कर रहे हैं और ये टीटीपी को लेवरेज़ के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. एक मांग ये भी थी कि जो क़बाइली ज़िले हैं, उनका स्टेट्स पहले वाला बहाल करें.”
“अफ़ग़ानिस्तान की अंतरिम सरकार चाहती है कि ये इलाका बफ़र ज़ोन के रूप में हो और टीटीपी के लोग इसके अंदर हों और पाकिस्तान की रियासत का यहां कोई दखल न हो और फिर ये इलाक़ा विचारधारा और धर्म के आधार पर धीरे-धीरे उनके पास आ जाएं.”
वो कहते हैं कि पाकिस्तान को नीतियां तैयार करते समय इन सारी बातों का ख़्याल रखना होगा. अपनी नीतियों को लेकर स्पष्ट होना होगा. इसमें पारदर्शिता होनी चाहिए.
पाकिस्तान के हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान ने जवाबी हमले किए थे. इस पर विश्लेषक साजिद तरार कहते हैं, “अफ़ग़ानिस्तान ने पाकिस्तान पर जो हमला किया, वो कोई आम हमला नहीं था. इसमें जो हथियार इस्तेमाल हुआ है, वो आधुनिक हैं. ये अफ़ग़ानिस्तान का पाकिस्तान पर हमला है, ये व्यक्तिगत हमला नहीं है. उन्होंने ये समझ लिया है कि पाकिस्तान कितना कमज़ोर है.”
पाकिस्तान के दूसरे देशों के साथ बिगड़ते रिश्ते
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार नजम सेठी कहते हैं कि पाकिस्तान का रिश्ता दूसरे देशों के साथ अच्छे नहीं हो रहे हैं. उनका कहना है कि पड़ोसी देश भारत के साथ पहले से ही रिश्ते तनावपूर्ण हैं और अफ़ग़ानिस्तान के साथ भी रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, “आपके (पाकिस्तान) संबंध इस क्षेत्र में सिर्फ़ बांग्लादेश के साथ ही थोड़े ठीक हुए हैं, वो भी आपकी कोशिश की वजह से नहीं बल्कि उनके बांग्लादेश में आंतरिक घटनाक्रम की वजह से. बांग्लादेश में एंटी इंडिया भावनाओं की वजह से. पाकिस्तान के लिए ये एक बहुत अच्छी चीज़ हुई है. मगर बाक़ी जगह नकारात्मकता ही है.
नजम सेठी कहते हैं, “भारत के साथ रत्ती भर आपके ताल्लुकात अच्छे नहीं हुए हैं. अफ़ग़ानिस्तान के साथ संबंध और भी ख़राब हो गए हैं. बात ये है कि ईरान के साथ रिश्ते तो बेहतर हो नहीं रहे हैं, ईरान आप पर विश्वास ही नहीं करता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.