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पाकिस्तान और लीबिया के बीच 4 अरब डॉलर से अधिक के हथियार सौदे की काफ़ी चर्चा है.
बताया जा रहा है कि इसके तहत लीबियाई नेशनल आर्मी (एलएनए) को पाकिस्तान हथियारों और दूसरे सैन्य साजो-सामान की सप्लाई करेगा.
पाकिस्तान सरकार ने इस पर चुप्पी साध रखी है. हालांकि पाकिस्तान के मीडिया में इसकी चर्चा है.
कुछ पाकिस्तानी मीडिया आउटलेट्स इसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पाकिस्तान की ‘भरोसेमंद भूमिका’ के तौर पर देख रहे हैं.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, इस समझौते के तहत लीबिया को 16 जेएफ-17 थंडर लड़ाकू विमान और 12 सुपर मुशाक ट्रेनर विमान की सप्लाई होगी.
जेएफ-17 थंडर लड़ाकू विमान पाकिस्तान और चीन ने मिलकर बनाए हैं.
मुशाक ट्रेनर विमान पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स में बनाए जाते हैं.
सौदे के मुताबिक़ आर्मी, नेवी और एयर फोर्स से जुड़े दूसरे सैन्य साजो-सामान की भी सप्लाई होनी है.
‘पाकिस्तान की अहम उपलब्धि’
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पाकिस्तान के उर्दू दैनिक ‘जंग’ ने 23 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट में अज्ञात पाकिस्तानी रक्षा अधिकारियों के हवाले से कहा कि इस समझौते को पाकिस्तान के चीफ़ ऑफ डिफेंस फोर्सेज फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और लीबियन नेशनल आर्मी के डिप्टी कमांडर सद्दाम ख़लीफ़ा हफ़्तार के बीच बेनगाज़ी में हुई उच्चस्तरीय बैठक के दौरान अंतिम रूप दिया गया.
आसिम मुनीर ने 17 दिसंबर को लीबिया का दौरा किया था, जहां उन्होंने लीबियाई सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल खलीफ़ा बेलकासिम हफ़्तार और डिप्टी कमांडर-इन-चीफ़ से मुलाक़ात की थी.
हालांकि अब तक पाकिस्तानी अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन ख़बरों में यह भी कहा गया है कि यह सौदा लीबिया पर लंबे समय से लागू संयुक्त राष्ट्र के हथियार प्रतिबंध के बावजूद किया गया है.
‘डेली टाइम्स’ अख़बार की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह समझौता पाकिस्तान के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा रक्षा निर्यात सौदा माना जा रहा है.
24 दिसंबर के अपने संपादकीय में, सेना समर्थक दैनिक ‘पाकिस्तान ऑब्ज़र्वर’ ने इस समझौते को देश की रणनीतिक और आर्थिक दिशा में एक ‘ऐतिहासिक मील का पत्थर’ बताया.
अख़बार ने कहा कि ये सौदा अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पाकिस्तान के रक्षा उद्योग की मैच्योरिटी दिखाएगा.
इसी तरह, ‘डेली टाइम्स’ ने 24 दिसंबर को प्रकाशित एक लेख में इस समझौते को ‘रणनीतिक पुनर्जागरण का प्रतीक’ बताया.
लेख में प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को श्रेय देते हुए कहा गया कि उन्होंने पाकिस्तान को निर्यात-आधारित और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ाया है.
उर्दू दैनिक नवा-ए-वक़्त ने कहा कि इस ‘ऐतिहासिक’ समझौते को कर पाकिस्तान ने अपने इतिहास में एक अहम उपलब्धि दर्ज़ की है.
अख़बार ने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र के हथियार प्रतिबंध के बावजूद लीबिया को लंबे समय से बड़ी ताकतों से हथियार मिलते रहे हैं, जिससे यह प्रतिबंध काफी हद तक प्रतीकात्मक बन गया है.
लीबिया के मीडिया में क्या कहा जा रहा है?
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लीबियाई मीडिया में भी इस सैन्य समझौते की काफ़ी चर्चा रही.
22 दिसंबर को प्रकाशित रॉयटर्स की रिपोर्ट ( जिसे लीबियाई मीडिया ने काफ़ी कोट किया है) में कहा गया कि यह सौदा पाकिस्तान के ‘अब तक के सबसे बड़े’ हथियार निर्यात में शामिल है.
संतुलित माने जाने वाले अल-वसत वेबसाइट ने लीबियन नेशनल आर्मी के मीडिया दफ़्तर के हवाले से बताया कि 18 दिसंबर को दोनों पक्षों की ओर से दस्तख़त किए गए समझौते में ‘हथियारों की बिक्री और संयुक्त ट्रेनिंग’ शामिल है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि यह कदम संयुक्त राष्ट्र के हथियार प्रतिबंध के बावजूद उठाया गया है, जिसके तहत किसी भी हथियार हस्तांतरण के लिए यूएन की मंजूरी जरूरी होती है.
अल-वसत ने एक पाकिस्तानी अख़बार के हवाले से यह भी लिखा कि तुर्की को पाकिस्तान और लीबियन नेशनल आर्मी के बढ़ते संबंधों को लेकर ‘चिंता’ होनी चाहिए.
अल-वसत ने यह भी बताया कि इस सौदे से लीबिया में पाकिस्तानी नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर बन सकते हैं.
‘द लीबिया ऑब्ज़र्वर’, (ये अपनी कवरेज में ‘लीबियन नेशनल आर्मी की आलोचना करता रहा है) ने एक पाकिस्तानी रिपोर्ट के हवाले से कहा कि लीबिया “राजनीतिक शर्तों की बाधा के बिना भरोसेमंद साझेदार” तलाश रहा था. इससे लगता है पूर्वी प्राधिकरण अपने पारंपरिक सहयोगी रूस से दूरी बना सकता है.
पूर्वी प्राधिकरण की बढ़ती वैधता?
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पूर्वी प्राधिकरण से जुड़े मीडिया ने इस समझौते की सराहना की और तर्क दिया कि इससे एलएनए की अंतरराष्ट्रीय मान्यता मजबूत होगी.
एलएनए समर्थक लीबिया अल-हदाथ टीवी ने 22 दिसंबर को अपनी कवरेज में इस सौदे को बलों के लिए ‘नई सफलता’ बताया और कहा कि यह समझौता ‘एलएनए को बड़ी शक्तियों के बीच उसका उचित स्थान दिलाने’ में योगदान देगा.
चैनल से बात करते हुए एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा ”लीबियाई स्टेट की विशेषताएं उभर रही हैं” क्योंकि एलएनए अपनी क्षमताओं और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को विकसित कर रही है.
लीबिया अल-हदाथ ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया की कवरेज का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि एलएनए “प्रभावी पक्षों के साथ संबंध मजबूत” करना और भूमध्यसागर व मध्य पूर्व में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है.
इसी तरह, पूर्वी प्राधिकरण समर्थक अल-मसार टीवी ने सवाल उठाया कि क्या यह कदम लीबियाई संघर्ष में गैर-पश्चिमी शक्तियों की पुनर्स्थापना का संकेत है, या वैधता और सुरक्षा की अवधारणा को नए सिरे से परिभाषित करने की एक सोची-समझी रणनीति.
चैनल ने पाकिस्तानी सेना को “दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामी सेनाओं में से एक” बताया और चीनी सेना के साथ उसके सहयोग को रेखांकित किया.
एक पैनलिस्ट ने कहा कि एलएनए की राजनीतिक रणनीति “संबंधों को डाइवर्सिफाई” करने की रही है और यह नया कदम पूर्वी प्राधिकरण की ”वैधता” को बढ़ाएगा.
दूसरे विश्लेषक ने कहा कि इस सौदे ने कई देशों में यह “वास्तविक धारणा” बनाई है कि एलएनए लीबियाइयों का प्रतिनिधित्व करती है.
लेबनान के पैन-अरब अख़बार अन्नहार ने भी टिप्पणी की कि पाकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग ने “लीबियाई समीकरण में हफ़्तार की स्थिति को मजबूत किया है”.
अख़बार ने लिखा, “(हफ़्तार) ने पिछले एक वर्ष में अपनी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मौजूदगी मजबूत की है और वर्षों की अंतरराष्ट्रीय अलगाव स्थिति को पीछे छोड़ा है.”
लीबिया में पूर्वी प्राधिकरण का मतलब देश के पूर्वी हिस्से में स्थित उस प्रतिद्वंद्वी प्रशासन से है, जिसे मुख्य रूप से गवर्नमेंट ऑफ नेशनल स्टैबिलिटी कहा जाता है. इस सरकार का नेतृत्व ओसामा हमाद कर रहे हैं और इसे हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव्स और जनरल खलीफ़ा हफ़्तार की शक्तिशाली लीबियाई नेशनल आर्मी का समर्थन प्राप्त है.
एलएनए का पूर्वी लीबिया और देश के दक्षिणी हिस्सों के बड़े हिस्से पर नियंत्रण है.
यह प्रशासन त्रिपोली स्थित संयुक्त राष्ट्र की ओर से मान्यता प्राप्त गवर्नमेंट ऑफ नेशनल यूनिटी के विरोध में है.
हालांकि जीएनएस अपनी वैधता का दावा करती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि क्षेत्र में खलीफ़ा हफ़्तार की सैन्य ताकत ही प्रभावी रूप से शासन चलाती है.
इसके परिणामस्वरूप लीबिया में एक विभाजित शासन व्यवस्था बनी हुई है, जहां युद्धग्रस्त देश के अलग-अलग हिस्सों पर अलग-अलग सरकारों का नियंत्रण है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.