दसवीं क्लास की छात्रा आयज़ा अली को आज भी वह दिन याद है जब उनके पिता ने सबको नींद से यह कहते हुए जगाया था, “उठो, सैलाब आ गया है.”
पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत के इलाक़े चित्राल से संबंध रखने वाली आयज़ा के पिता स्थानीय किसान थे जिनके पास अपने बाग़, खेत और जंगल थे.
यह परिवार चित्राल नदी के संगम पर पहाड़ों के बीच ख़ूबसूरत गांव ग्रीन लश्ट में अपने दो मंज़िला घर में ख़ुशहाल ज़िंदगी बिता रहा था. पास ही पहाड़ों की चोटियों पर जमी सफ़ेद बर्फ़ और इर्द-गिर्द ग्लेशियर के नज़ारे इस गांव को और भी हसीन बना देते थे.
लेकिन फिर अचानक मौसम में ऐसे बदलाव आने शुरू हुए कि वही ख़ूबसूरत ग्लेशियर पिघलने लगे और नदियों में पानी की सतह ऊपर होने लगी. कहीं नदी फैलना शुरू हुई तो कहीं पानी ने अपना रुख़ बदल लिया.
इस साल आने वाली बाढ़ को याद करते हुए आयज़ा बताती हैं, “हम हड़बड़ा कर उठे. कुछ पता नहीं था कि क्या हो रहा है. हमारे हाथ में जो सामान आया वह उठाया और घर से निकलकर मामू के घर चले गए.”
फिर आठ लोगों वाला मोहम्मद अली का परिवार अपना घर छोड़कर एक छोटे से दो कमरों के क्वॉर्टर में आ गया. आयज़ा कहती हैं कि उनके लिए ऐसे रहना मुश्किल है और “मुझे तो अपना घर बहुत याद आता है.”
वह बताती हैं, “अब्बू पर क़र्ज़ है, इसलिए हमें प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में डाल दिया है.”
मोहम्मद अली और उनके परिवार के लिए यह छोटा सा गांव किसी जन्नत से कम नहीं था. लेकिन इस बाढ़ के बाद वह क़र्ज़दार हो चुके हैं और अब अपने बेटों के साथ मज़दूरी करने पर मजबूर हैं.
पहले बेघर हुआ और फिर क़र्ज़दार
मोहम्मद अली के दो बेटे और चार बेटियां हैं. एक बेटी की शादी हो चुकी है जबकि बाक़ी परिवार एक साथ रह रहा है.
इन दिनों उनकी ज़िंदगी किसी बड़े इम्तिहान से कम नहीं है. इस गांव में केवल मोहम्मद अली ही नहीं बल्कि सोलह से ज़्यादा ऐसे परिवार हैं जो कुछ अरसे पहले तक तो ख़ुशहाल थे लेकिन फिर उनकी ज़िंदगी रातों रात बदल गई.
इस गांव में नदी ने कुछ समय पहले ज़मीन को काटना शुरू कर दिया था. यह सिलसिला 2010 से शुरू हुआ और धीरे-धीरे बढ़ता गया.
मोहम्मद अली ने बताया कि 2015 में उनके गांव के सामने नदी की दूसरी तरफ़ एक छोटे से देहात में कटाव से सारे मकान पानी में बह गए थे, “लेकिन फिर इससे अगले साल कुछ नहीं हुआ. हम समझे कि बस अब ठीक हो गया है.”
लेकिन एक डर ज़रूर था कि कहीं यह नदी उनकी तरफ़ ना आ जाए. साल 2020 तक नदी का कटाव जारी रहा और फिर अचानक एक रात वही हुआ जिसका डर था. नदी का रुख़ उनके गांव की तरफ़ हो गया. उफ़नाई हुई नदी अपने साथ सबकुछ बहाकर ले गई.
मोहम्मद अली ने बताया कि इसके बाद ना तो उनके बाग़ रहे, ना मवेशी और ना ही उनके खेत और जंगल बचे. सब कुछ एक बंजर मैदान में बदल चुका था.
मोहम्मद अली ने बताया कि उनके बाग़ों में सेब, अनार और नाशपाती होते थे जबकि खेत में गेहूं, मक्का और चावल की फ़सल होती थी.
ख़ूबसूरत वादी और तबाही
अपर चित्राल की विलेज काउंसिल के एक छोटे देहात ग्रीन लश्ट में सड़क किनारे एक मकान पर ताला लगा हुआ था. स्थानीय लोगों ने बताया कि यह मकान तीन बार पानी के कटाव से गिर चुका है और मकान मालिक ने तीन बार नदी से थोड़ा हटकर कमरे बनाए.
“लेकिन वह फिर गिरते चले गए. इसलिए अब वह यह मकान छोड़कर दूसरी जगह चले गए हैं. चाबी पास के दुकानदार को दे दी है ताकि वह रखवाली कर सके.”
मकान के अंदर लकड़ी और मलबा पड़ा था और कमरों में दरारें भी साफ़ नज़र आ रही थीं.
जब हम मकान से बाहर निकले तो लोगों ने बताया कि यहां दुकानें थीं लेकिन अब केवल उनकी कुछ निशानियां बची हैं. यहां एक पेट्रोल पंप भी था लेकिन अब उसका नामोनिशान नहीं है.
इस गांव में आश्चर्यजनक रूप से जहां मकान या खेत थे, उनके साथ गहरी खाई और नीचे बह रही नदी थी. ऐसा लग रहा था जैसे मकान के कमरे इस खाई में गिर रहे हैं. लोग उसके पास जाने से भी बच रहे थे.
शहादत बीबी एक बेवा हैं जिनका मकान कुछ साल पहले पानी में बह गया था. अब वह अपनी बहू और बेटी के साथ एक तंबू में रहती हैं.
वह बीबीसी को बताती हैं कि उनकी ज़िंदगी बहुत मुश्किल है, “रहने के लिए घर नहीं और खाने पीने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती है.”
शहादत बीबी के दो बेटे हैं और अब वह इस कोशिश में हैं कि अपने मकान पर एक छत डाल दें.
युवा मोहिउद्दीन नदी में घर बह जाने के बाद वहां से हट चुके हैं. उनकी पैतृक ज़मीन भी नहीं रही. शायद इसीलिए चित्राल में ज़मीन के कटाव को ‘ज़मीन की मौत’ भी समझा जाता है.
ग्रीन लश्ट के इस इलाक़े में अब स्थानीय लोग अपने ही देहात में बेघर हैं. किसी के पास कच्चा मकान है तो कोई तंबू में रह रहा है और कोई यहां से दूसरी जगह जा चुका है.
‘बड़े ग्लेशियर पिघलने लगे तो बढ़ेगा ख़तरा’
पाकिस्तान जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है और ऐसे में पाकिस्तान के ऊपरी पहाड़ी क्षेत्रों में गांव के गांव तबाह हो रहे हैं.
चित्राल और दूसरे ऊपरी क्षेत्रों में ग्लेशियर के पिघलने से नदियों में कहीं पानी की सतह ऊपर हो रही है तो कहीं नदियां फैल रही हैं और कहीं नदियां अपना रास्ता बदल रही हैं.
जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाली एक ग़ैर सरकारी संस्था के प्रमुख शाहिद इक़बाल के अनुसार 2010 से अब तक अपर चित्राल की विलेज काउंसिल में 111 मकान पूरी तरह तबाह हो चुके हैं. अगर सितंबर 2019 से अब तक का विश्लेषण करें तो इस दौरान 47 मकान बर्बाद हुए हैं.
चित्राल में भूमि एवं जल संरक्षण विभाग के प्रभारी मुजीबुर्रहमान ने बताया कि ग्लेशियरों के पिघलने से नदी में पानी का स्तर ऊपर हो रहा है और अब भी ऐसे ग्लेशियर हैं जिनमें दरारें पाई जाती हैं.
वो कहते हैं, “अगर अगले साल गर्मियों में तापमान में इसी तरह इज़ाफ़ा होता गया तो इससे तबाही कहीं ज़्यादा हो सकती है.”
उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से नदी के कटाव से 50 के लगभग गांव तबाह हुए हैं जबकि 100 ऐसे गांव हैं जिन्हें कम नुक़सान पहुंचा है.
दुनिया में अंटार्कटिका के बाद सबसे ज़्यादा ग्लेशियर पाकिस्तान में पाए जाते हैं और इनमें 550 बड़े ग्लेशियर चित्राल में हैं जो इस इलाक़े का 13 फ़ीसदी है.
अब्दुल वली ख़ान यूनिवर्सिटी, मरदान के पर्यावरण विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर शम्स अली बेग के अनुसार चित्राल का एक तिहाई हिस्सा उन ग्लेशियरों और इससे जुड़े नदियों के आसपास है.
वह कहते हैं कि अगर हालात ऐसे ही रहे और तापमान बढ़ता गया और जलवायु परिवर्तन जारी रहा तो अगले कुछ सालों में यह एक तिहाई हिस्सा अपनी इस मौजूदा हालत में नहीं रह सकेगा.
उनका कहना था कि इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में ग्लेशियर हैं और अब तक छोटे ग्लेशियर पिघल रहे हैं, “कहीं यह हालत बड़े ग्लेशियरों की हुई तो पूरे चित्राल को ख़तरा हो सकता है.”
सरकार की ओर से इस बारे में उपाय किए जा रहे हैं लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि अब भी कई ऐसे गांव हैं जिन्हें इस नदी और इस कटाव से लगातार ख़तरा है.
अपर चित्राल में विलेज काउंसिल के दौरे के दौरान ग्रीन लश्ट गांव की तबाही के असर साफ़ नज़र आते हैं जहां मकान, दुकान, बाग़ और फ़सलों के अलावा दूसरी संपत्तियां भी तबाह हो चुकी हैं.
ग्रीन लश्ट गांव में पानी दो बार पूरी सड़क बहाकर ले गया जिसकी वजह से पास के दो गांव की तरफ़ जाने के लिए दूसरा रास्ता बनाना पड़ा.
स्थानीय विलेज काउंसिल के चेयरमैन अशफ़ाक़ अहमद अफ़ज़ल ने बीबीसी को बताया, “सड़क किनारे यहां मकान थे, दुकानें थीं और जिस सड़क पर हम जा रहे हैं यहां मकान थे. यह तो अब बदला हुआ रास्ता है.”
उनका कहना था कि सरकार की तरफ़ से यहां सुरक्षात्मक दीवार बनाई गई थी जिसका बड़ा हिस्सा अब गिर चुका है. उनके अनुसार, वह इस बारे में अधिकारियों से बात कर रहे हैं लेकिन अब तक कोई कारगर उपाय नहीं किया गया है. विलेज काउंसिल में लोग इन हालात की वजह से प्रदर्शन भी कर रहे हैं.
स्थानीय निवासी मंसूर का कहना था कि आमतौर पर सरकारी काम का स्तर सही नहीं होता जिसकी वजह से यह तबाही हो जाती है. उनकी मांग थी कि कंक्रीट की दीवार बनाई जाए और चित्राल में मौसम का ध्यान रखना भी ज़रूरी होता है. उनके अनुसार, इसके लिए सबसे अच्छा समय सितंबर से दिसंबर तक होता है.
“लेकिन यहां जब तक बजट में दी गई रक़म जारी होती है तब तक मौसम बदल चुका होता है.”
सरकार क्या कर रही है?
हालांकि लोअर चित्राल से अपर चित्राल की ओर जाएं तो नदी के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी के बाद टूटे हुए या बर्बाद हो चुके मकान के अवशेष नज़र आते हैं. ऐसे अवशेष पास के दूसरे गांव में भी देखे जा सकते हैं.
चित्राल के स्थानीय पत्रकार सैफ़ुर्रहमान अज़ीज़ का कहना है कि अपर चित्राल में मस्तूज के साथ बर्प का इलाक़ा बहुत अधिक प्रभावित हुआ है जहां बड़ी संख्या में मकानों को नुक़सान पहुंचा है.
इस बारे में चित्राल में ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के भूमि एवं जल संरक्षण विभाग के प्रभारी मुजीबुर्रहमान ने बताया कि कई जगहों पर नदी के कटाव से बचाव और प्रभावितों की मदद के लिए उपाय किए गए हैं, लेकिन यहां असल समस्या जलवायु परिवर्तन का भी है. उन्होंने बताया कि इस साल जनवरी और फ़रवरी में बर्फ़ नहीं पड़ी लेकिन अप्रैल में बर्फ़बारी हुई है.
उनके अनुसार सुरक्षा के लिए निर्माण का काम मौसम की वजह से नहीं हो पाता और कुछ समस्या बजट की मंज़ूरी के बाद फ़ंड रिलीज़ होने में देरी से भी होती है.
विलेज काउंसिल के चेयरमैन अशफ़ाक़ अहमद अफ़ज़ल ने बीबीसी को बताया कि सरकार की ओर से छह करोड़ पाकिस्तानी रुपये जारी किए गए थे. इससे यहां ग्रीन लश्ट और आसपास के गांवों में काम हुआ है जिसमें एक जगह 400 फ़ीट कंक्रीट की दीवार बनाई गई है और एक जगह 700 फ़ीट लंबी सुरक्षात्मक दीवार बनाई गई है.
“लेकिन ये दीवारें बहुत मज़बूत नहीं थीं. इस वजह से उनसे फ़ायदा नहीं हो सका.”
वह बताते हैं कि आग़ा ख़ान एजेंसी ने एक दीवार बनाई है जो काफ़ी बेहतर है.
इस बारे में अधिकारियों का कहना है कि सरकार के पास बड़ा इलाक़ा होता है और ज़्यादा जगह पर काम करना होता है. उनका कहना है कि नदी के किनारे की ज़मीन अलग तरह की होती है.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के मुख्यमंत्री के पर्यावरण सलाहकार पीर मुसव्विर से इस बारे में बातचीत के लिए कई बार कोशिश की गई लेकिन उनकी तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिला.
जब राज्य सरकार के प्रवक्ता बैरिस्टर सैफ़ से संपर्क किया गया तो उन्होंने पर्यावरण विभाग के अधिकारियों से मिली जानकारी दी.
उनमें कहा गया है कि ग्लेशियरों से आने वाले पानी से बचाव के लिए सुरक्षात्मक दीवारें इंजीनियरिंग के डिज़ाइन के अनुसार बनाई जाती हैं. इसके लिए स्थानीय लोगों की सलाहों को भी ध्यान में रखा जाता है.
इस जानकारी में कहा गया है कि ये दीवारें प्राकृतिक आपदाओं का पूरी तरह से मुक़ाबला नहीं कर सकतीं लेकिन यह ख़तरों को कम कर सकती हैं और काफ़ी हद तक सुरक्षा देने में मददगार होती हैं.
उनके अनुसार, अब तक इन दीवारों के निर्माण में किसी तरह की संरचनात्मक ख़ामी की जानकारी नहीं मिली है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले प्रदूषण और कार्बन के उत्सर्जन में पाकिस्तान का हिस्सा एक फ़ीसदी से भी कम है लेकिन जलवायु परिवर्तन के ख़तरनाक प्रभाव और तबाही को झेलने वालों में पाकिस्तान पहले पांच देशों में शामिल है.
पाकिस्तान के अलग-अलग क्षेत्र में विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन से तबाही के साफ़ असर नज़र आ रहे हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी रोकथाम के लिए उपाय न होने के बराबर हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित