पाकिस्तान ने साल 2025 के पहले दिन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर काम शुरू कर दिया है.
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम ने कहा कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर ‘सक्रिय और सकारात्मक’ भूमिका निभाएगा. उन्होंंने कहा,” सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान की मौजूदगी महसूस की जाएगी.”
पाकिस्तान दो साल तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर काम करेगा. 15 सदस्यीय अस्थायी सदस्यों की परिषद में पाकिस्तान आठवीं बार ये भूमिका निभाएगा.
भारत 2021 और 2022 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर काम कर चुका है.
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आइए समझते हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्यों का चुनाव कैसे होता है.
किसी देश के लिए इस सदस्यता की कितनी अहमियत है और पाकिस्तान इसका कैसे इस्तेमाल कर सकता है.
क्या पाकिस्तान इस मंच पर भारत को परेशान करने वाले मुद्दे उठा सकता है?
क्या है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देश हैं- अमेरिका, रूसी गणराज्य, फ़्रांस, ब्रिटेन और चीन. इसके अलावा दस अस्थायी सदस्य देश होते हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा चुनती है.
अस्थायी सदस्य देश दो साल के लिए चुने जाते हैं. हर साल संयुक्त राष्ट्र महासभा पांच अस्थायी सदस्यों देशों को चुनती है.
दस अस्थायी सदस्यों को दुनिया के अलग-अलग हिस्सोंं को प्रतिनिधित्व देने के हिसाब से चुना जाता है.
अफ़्रीकी और एशियाई देशों के लिए पांच सीटें तय है. एक सीट पूर्वी यूरोपीय देशों को मिलती है.
दो सीटें लातिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों के लिए निर्धारित हैं और एक-एक सीट पश्चिमी यूरोपीय और किसी अन्य क्षेत्र के देश को दी जाती है.
कैसे हुआ पाकिस्तान का चुनाव
जून 2024 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषदों के सदस्यों के लिए हुए चुनाव में पाकिस्तान को ज़बरदस्त समर्थन मिला था. संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्य देशों में 182 ने पाकिस्तान के पक्ष में वोट दिया था.
पाकिस्तान अब एशियाई देशों के प्रतिनिधि के तौर पर जापान की जगह लेगा.
पाकिस्तान आठवीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बना है.
इससे पहले वो साल 1952-53, 1968-69, 1976-77, 1983-84, 1993-94, 2003-04 और 2012-13 में अस्थायी सदस्य के तौर पर काम कर चुका है.
जून 2024 में पाकिस्तान के साथ डेनमार्क, ग्रीस, पनामा और सोमालिया भी अस्थायी सदस्यों के तौर पर चुने गए थे.
ये देश क्रमश: जापान, इक्वाडोर, माल्टा, मोज़ाम्बिक और स्विट्जरलैंड की जगह लेंगे जिनका कार्यकाल 31 दिसंबर 2024 को ख़त्म हो गया है.
नए सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के साथ काम करेंगे, जिनके पास वीटो पावर है.
इसके साथ ही उन्हें पिछले साल चुने गए अल्जीरिया, गुयाना, सिएरा लियोन और स्लोवेनिया के साथ भी काम करना होगा.
पाकिस्तान ने क्या कहा?
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर पाकिस्तान की पारी की शुरुआत पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.
उन्होंंने कहा, ”हम ऐसे वक़्त अस्थायी सदस्य के तौर पर परिषद में अपनी पारी की शुरुआत कर रहे हैं जब पूरी दुनिया में भारी भू-राजनैतिक उथल-पुथल मची है. दो सबसे बड़ी ताकतों में ज़बरदस्त प्रतिस्पर्द्धा चल रही है. कई जगह युद्ध चल रहा है और मध्य पूर्व, अफ़्रीका और अन्य जगहों पर कई स्तरों पर हथियारों की होड़ चल रही है”
”ऐसे में पाकिस्तान यूएन चार्टर के मुताबिक़ पाकिस्तान सक्रिय और सकारात्मक भूमिका निभाएगा. पाकिस्तान युद्ध रोकने और विवादों को सुलझाने के साथ शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में भी अपनी भूमिका निभाएगा ताकि दुनिया दो बड़ी ताकतों की प्रतिस्पर्द्धा के नकारात्मक असर से बच सके. साथ ही ये हथियारों की होड़ और आतंकवाद के फैलने से भी बच सके.”
पाकिस्तान के लिए आतंकवाद के मुद्दे पर बयान को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि लंबे समय से उस पर चरमपंथियों को बढ़ावा देने के आरोप लगाए जाते रहे हैं.
क्या करते हैं अस्थायी सदस्य
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की संयुक्त राष्ट्र की कोशिशों में अहम भूमिका निभाते हैं.
अस्थायी सदस्यों का आतंकवाद से जुड़ी प्रतिबंध कमिटियों में काफी प्रभाव होता है. हालांकि यहां पहले से तय मापदंडों के तहत फैसले सर्वसम्मति से ही लिए जाते हैं.
अस्थायी सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ख़ास मुद्दों पर अपनी विशेषज्ञता का इस्तेमाल कर सकते हैं.
वो विभिन्न देशों के बीच मध्यस्थता में भी अपनी भूमिका निभा सकते हैं.
ये सदस्य सुरक्षा से जुड़े उन मुद्दों को उठा सकते हैं जो उनके इलाके के लिए अहम हैं.
वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के काम और इसके परिणामों पर असर डालने के लिए न्यायिक तरीकों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
अस्थायी सदस्य देश अगर बेहतरीन ढंग से काम करते हैं तो इससे विवादित मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की भूमिका काफी असरदार हो जाती है.
सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत स्थापित संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है.
अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना इसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है.
पाकिस्तान क्या कर सकता है?
पाकिस्तानी अख़बार डॉन के मुताबिक़ पाकिस्तान में कुछ राजनीतिक दलों ने इस मौके का इस्तेमाल कश्मीर मुद्दा उठाने की अपील की है.
इससे ये अनुमान लगाया जा रहा है कि पाकिस्तान ऐसा कर सकता है. वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर मुद्दे को उठाने के लिए इस मंच का इस्तेमाल कर सकता है.
ख़बर है कि पाकिस्तान को इस्लामिक स्टेट और अल क़ायदा पर प्रतिबंध से जुड़ी कमिटी में एक सीट मिल सकती है. इस कमिटी पर दोनों संगठनों से जुड़े लोगों और समूहों को आतंकवादी घोषित करने और उन पर प्रतिबंध से जुड़े फैसलों पर चर्चा करने का अधिकार है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर अपने पहले के कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान फ़लस्तीन का समर्थन कर चुका है और कश्मीर में लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार की मांग को उठा चुका है. इसलिए वो इस बार भी कश्मीर का मुद्दा उठा सकता है.
इससे पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन से होने वाले चरमपंथी हमलों के आरोपों को जोर-शोर से सामने रखने में मदद मिलेगी. पाकिस्तान का दावा है कि कथित इस्लामिक स्टेट और अल क़ायदा से लंबे समय से संबंध रखने वाले समूहों की मदद से अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय कुछ संगठन उस पर हमला कर रहे हैं.
वैसे तो वीटो पावर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के पास है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर पाकिस्तान अपनी कूटनीतिक प्राथमिकताओं को और मज़बूती दे पाएगा.
भारत ने क्या किया था?
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा उठाता रहा है. वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है. स्थायी सदस्यों के पास वीटो पावर है.
साथ ही उसने अपने पिछले कार्यकालों में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई मुद्दों पर अहम भूमिका निभाई है. भारत ने कई बार दुनिया भर में आतंकवाद के बढ़ते असर का मुद्दा उठाता रहा है.
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रहीं रुचिरा कंबोज ने कहा था कि ‘यदि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को संयुक्त राष्ट्र की निर्णय लेने वाली संस्था सुरक्षा परिषद से बाहर रखा जा रहा है तो उसकी इसमें बड़ा सुधार करने मांग बिल्कुल जायज़ है.’
भारत द्वारा उसमें ‘बड़ा सुधार करने’ की मांग करना बिल्कुल ठीक है.
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने की मांग करता रहा है. लेकिन इस दिशा में चीन बड़ी अड़चन है, जो भारत की कोशिशों को वीटो करता रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित