रूस में पाकिस्तान के राजदूत मोहम्मद ख़ालिद जमाली ने पिछले साल नवंबर में ब्रिक्स में शामिल होने के लिए आवेदन किया था.
पाकिस्तान को चीन का समर्थन हासिल था. रूस ने भी पाकिस्तान के आवेदन का समर्थन कर दिया था.
रूस के उपप्रधानमंत्री अलेक्सई ओवरचुक ने पिछले महीने पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार के साथ प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था, ”हमें ख़ुशी है कि पाकिस्तान ने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आवेदन किया है. ब्रिक्स और शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन मैत्रीपूर्ण संगठन हैं. हम पाकिस्तान की सदस्यता का समर्थन करेंगे.”
ओवरचुक ने कहा था, ”पिछले कुछ सालों में ब्रिक्स का विस्तार हुआ है. दुनिया भर के देश इसमें शामिल होने के लिए दिलचस्पी दिखा रहे हैं. पाकिस्तान के साथ हमारा बहुत अच्छा संबंध है.”
ब्रिक्स की स्थापना 2006 में ब्राज़ील, रूस, इंडिया और चीन ने की थी. 2011 में इस गुट में दक्षिण अफ़्रीका शामिल हुआ था.
जनवरी 2024 में मिस्र, ईरान, इथियोपिया और यूएई को ब्रिक्स का सदस्य बनाया गया. हालांकि सऊदी अरब को भी शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन अभी हो नहीं पाया है.
पाकिस्तान को मिली नाकामी
पाकिस्तान को शायद पहले से अंदाज़ा था कि भारत उसकी सदस्यता को लेकर सहमत नहीं होगा. बुधवार को पीएम मोदी ने रूस के कज़ान में ब्रिक्स के 16वें समिट के समापन सत्र में जो कुछ भी कहा, उससे ये स्पष्ट भी हो गया. पीएम मोदी ने कहा कि भारत ब्रिक्स में नए सदस्यों का स्वागत करता है, लेकिन इससे जुड़े हर फ़ैसले सर्वसम्मति से होने चाहिए.
भारत ब्रिक्स का संस्थापक देश है और किसी भी नए सदस्य को शामिल करने में भारत की सहमति ज़रूरी है. पीएम मोदी ने ब्रिक्स के विस्तार को लेकर भारत के रुख़ को स्पष्ट कर दिया है. पीएम मोदी ने कहा, ”जोहानिसबर्ग में हमने जिस प्रक्रिया और सिद्धांत को स्वीकार किया था, उसका पालन होना चाहिए.”
30 से ज़्यादा देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने के लिए दिलचस्पी दिखाई है. इनमें पाकिस्तान, श्रीलंका, तुर्की, मलेशिया, अज़रबैजान और कोलंबिया भी शामिल हैं. पाकिस्तान से भारत के संबंध ऐतिहासिक रूप से ख़राब हैं. यहाँ तक कि दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध भी नहीं हैं.
दूसरी अहम बात यह है कि भारत ब्रिक्स में ऐसे देशों को शामिल करने से परहेज करेगा, जिनकी वफ़ादारी चीन से है. पाकिस्तान और चीन के संबंध किसी से छुपे नहीं हैं. भारत नहीं चाहता है कि ब्रिक्स एक ऐसा मंच बने जहाँ चीन का दबदबा हो.
पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार डॉन ने लिखा है कि चीन और भारत के बीच सीमा पर तनाव कम हो रहा है, ऐसे में पाकिस्तान के लिए ब्रिक्स की राह आसान हो सकती है. पाकिस्तान को उम्मीद है कि चीन और भारत के संबंध अच्छे होंगे तो भारत को पाकिस्तान के मामले में सहमत कराया जा सकता है.
पाकिस्तान को किसने रोका?
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज़ ज़हरा बलोच ने इस्लामाबाद में प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में कहा था, ”हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान के अनुरोध पर विचार किया जाएगा और ब्रिक्स को समावेशी बनाना है तो यह ज़रूरी है.”
कज़ान समिट में ब्रिक्स के पार्टनर देशों की भी घोषणा की गई है और पाकिस्तान का नाम इसमें भी नहीं है. ब्रिक्स पार्टनर देशों के रूप में अल्जीरिया, बेलारूस, बोलिविया, क्यूबा, इंडोनेशिया, कज़ाख़स्तान, मलेशिया, नाइजीरिया, थाईलैंड, तुर्की, युगांडा, उज़्बेकिस्तान और वियतनाम को शामिल किया गया है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की टीम के राना अहसान अफ़ज़ल ख़ान ने ब्रिक्स की सदस्यता नहीं मिलने पर कहा, ”पाकिस्तान ब्रिक्स में शामिल होने को लेकर आशावादी है. मेरा मानना है कि पाकिस्तान निकट भविष्य में ब्रिक्स का हिस्सा होगा. ज़ाहिर है कि ब्रिक्स दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का मंच है. पाकिस्तान रूस से तेल आयात बढ़ाने जा रहा है.”
पिछले साल सितंबर में जब रूस ने पाकिस्तान की सदस्यता का समर्थन किया था तब थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में इंडो-पैसिफिक के एनलिस्ट डेरेक ग्रॉसमैन ने लिखा था, ”जब रूस ने एससीओ में भारत को जोड़ा था तब चीन ने पाकिस्तान को इसमें शामिल किया था. अब रूस ब्रिक्स में भारत की क़ीमत पर पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है और ज़ाहिर है कि पाकिस्तान के ब्रिक्स में आने से चीन को फ़ायदा होगा.”
जब यूएई, मिस्र, इथियोपिया, ईरान और सऊदी अरब को ब्रिक्स में शामिल करने की बात हो रही थी तब भी कहा जा रहा था कि चीन अपने हिसाब से नए सदस्यों को शामिल करवा रहा है.
मोदी के भाषण से कौन असहज
अगस्त 2023 में सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने लिखा था, ”ऐसा लगता है कि नए सदस्यों को शामिल करने के मामले में चीन की छाप है, जो रूस के समर्थन से ब्रिक्स को आक्रामक तरीक़े से विस्तार दे रहा है. जिस तरह चीन ने एससीओ में भारत को सिर्फ़ पाकिस्तान के साथ ही आने दिया, उसी तरह अब ब्रिक्स में प्रतिद्वंद्वियों की जोड़ी में भारत और चीन के अलावा, दो नए भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी होंगे: ईरान और सऊदी अरब.”
चेलानी का मानना था कि भारत को यूएई से दिक़्क़त नहीं है लेकिन ईरान और सऊदी अरब परीक्षा की घड़ी में भारत नहीं बल्कि चीन के साथ होंगे.
थिंक टैंक ब्रूकिंग्स इंस्टिट्यूट की सीनियर फेलो तन्वी मदान मानती हैं कि कज़ान में ब्रिक्स समिट के समापन भाषण में पीएम मोदी ने जो बातें कहीं वो रूस और चीन को ख़ुश करने वाली नहीं थी.
तन्वी मदान ने पीएम मोदी के समापन भाषण को शेयर करते हुए लिखा है, ”मोदी-शी बैठक को तवज्जो मिलना लाजिमी है, लेकिन पीएम मोदी ने ब्रिक्स के समापन भाषण में जो कुछ कहा, वो काफ़ी दिलचस्प है. पीएम मोदी ने अपने भाषण में रेखांकित किया है कि भारत ब्रिक्स से क्या चाहता है लेकिन साथ में ही चीन और रूस जो करना चाहते हैं, उसे लेकर अपनी चिंताएं भी बता दीं.”
पीएम मोदी ने समापन भाषण में कई ऐसी बातें कहीं, जो पुतिन और शी जिनपिंग के लिए असहज करने वाली रही होंगी.
पीएम मोदी ने कहा कि ब्रिक्स को अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधार के लिए आवाज़ उठानी चाहिए. ज़ाहिर है कि भारत यूएनएससी में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है, लेकिन चीन समर्थन नहीं करता है.
पीएम मोदी ने कहा कि भारत संवाद और डिप्लोमैसी का समर्थन करता है न कि युद्ध का. ज़ाहिर है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है और 2020 में चीनी सैनिकों की भी गलवान में भारतीय सैनिकों से हिंसक झड़प हुई थी.
पीएम मोदी ने कहा कि आतंकवाद विरोधी लड़ाई और आतंकवाद के वित्त पोषण में हमें एक आवाज़ में बोलना चाहिए. ऐसे मुद्दों पर दोहरा मानदंड नहीं होना चाहिए. ज़ाहिर है कि भारत ने कई बार यूएन में 26/11 मुंबई हमले से जुड़े लश्कर के साजिद मीर को संयुक्त राष्ट्र में आतंकवादी घोषित कराने की कोशिश की तो चीन ने रोक दिया था.
पीएम मोदी ने कहा कि ब्रिक्स से साफ़ संदेश जाना चाहिए कि ब्रिक्स कोई बाँटने वाला संगठन नहीं है बल्कि मानवता के हित में काम करने वाला संगठन है. नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि ब्रिक्स वैश्विक संस्थानों की जगह हासिल करने के लिए नहीं है बल्कि उसमें सुधार की वकालत करता है.
ज़ाहिर है कि संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक जैसे वैश्विक संस्थानों को रूस और चीन पश्चिम परस्त संगठन कहते हैं. ऐसे में ब्रिक्स के मंच से मोदी का यह कहना शी जिनपिंग और पुतिन के लिए सुखद नहीं रहा होगा.
पीएम मोदी ने कहा कि सभी फ़ैसले सर्वसम्मति से होने चाहिए और ब्रिक्स के संस्थापक सदस्यों का सम्मान होना चाहिए. ज़ाहिर है कि चीन और रूस पाकिस्तान को ब्रिक्स में शामिल करना चाहते थे लेकिन भारत नहीं चाहता था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित