अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचे भारतीय अंतरिक्ष यात्री कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ बातचीत में अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि स्पेस स्टेशन में तिरंगा लगाना गर्व की बात है और भारत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने भी उनके उत्साहवर्धन किया। शुभांशु ने अंतरिक्ष यात्रा को देश की यात्रा बताया और कहा कि यह भारत के सपनों को साकार करने का अवसर है।
पीएम मोदी ने पूछा कुशल-क्षेम
इस पर शुभांशु अभिभूत हो गए। बोले- पृथ्वी से ऑरबिट तक की 400 किलोमीटर की छोटी सी यात्रा सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि मेरे देश की भी यात्रा है। मैं छोटा था तो कभी सोच नहीं पाया कि मैं अंतरिक्ष यात्री बन सकता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि आपके नेतृत्व में आज का भारत यह मौका देता है और उन सपनों को साकार करने का मौका भी देता है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है मेरे लिए और मैं बहुत गर्व महसूस कर रहा हूं कि मैं यहां पर अपने देश का प्रतिनिधित्व कर पा रहा हूं।
शुभांशु बोले- हमें और आगे जाना है
- उन्होंने यह भी बताया कि उनकी यात्रा की गति 28 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की है। इसे भारत के मान से जोड़ते हुए कहा कि यह दिखाता है कि हमारा देश कितनी तेज गति से आगे बढ़ रहा है। यहां से हमें और आगे जाना है। यह सुनते ही प्रधानमंत्री से मुंह से निकला- वाह! फिर पूछा- अंतरिक्ष की विशालता देखकर सबसे पहला विचार आपको क्या आया? इस पर शुभांशु ने बताया कि जब पहली बार हम अंतरिक्ष में पहुंचे तो पहला दृश्य पृथ्वी का था।
- उन्होंने कहा कि पृथ्वी को बाहर से देखकर मन में पहला ख्याल आया कि पृथ्वी बिल्कुल एक दिखती है। बाहर से कोई सीमा रेखा दिखाई नहीं देती। दूसरी चीज, हम भारत को मैप पर देखते-पढ़ते हैं कि बाकी देशों का आकार कितना बड़ा है और भारत का कितना? वह सही नहीं होता, क्योंकि हम थ्री-डी ऑब्जेक्ट को टू-डी पेपर पर उतारते हैं। भारत सच में बहुत भव्य और बड़ा दिखता है। जितना हम मैप पर देखते हैं, उससे कहीं ज्यादा बड़ा। अनेकता में एकता का भाव साकार होता दिखता है।
शुभांशु ने सोने की समस्या का जिक्र किया
पीएम ने उल्लेख किया कि स्पेस स्टेशन पर जाने वाले आप पहले भारतीय हैं। आपने जबर्दस्त मेहनत की है, लंबी ट्रेनिंग करके गए हैं। अब आप अंतरिक्ष में हैं। वहां की परिस्थितियां कितनी अलग हैं? कैसे तालमेल बैठा रहे हैं? इस पर उन्होंने अनुभव साझा किया कि यहां सबकुछ अलग है। एक साल ट्रेनिंग की, सारे सिस्टम और प्रक्रिया के बारे में पता था, लेकिन यहां आते ही अचानक सब बदल गया। हमारे शरीर को ग्रेविटी में रहने की आदत हो जाती है। हर एक चीज उसी से तय होती है, लेकिन यहां पर छोटी-छोटी चीजें भी बहुत मुश्किल हो जाती हैं। आपसे बात करते समय पैरों को बांध रखा है, नहीं तो ऊपर चला जाऊंगा। सोना बहुत बड़ी चुनौती है। आप छत, दीवार या जमीन कहीं भी सो सकते हैं।
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