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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारतीय दौरे पर चीन की भी नज़र है.
चीन की मीडिया और विशेषज्ञ पुतिन की इस यात्रा को भारत पर ‘अमेरिकी दबाव’ से जोड़कर देख रहे हैं.
चीनी मीडिया में कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति पुतिन की 4-5 दिसंबर की भारत यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका और भारत के बीच तनाव बढ़ा है. साथ ही ऊर्जा संबंधों और बड़े रक्षा समझौतों जैसे संभावित मुद्दों की भी चर्चा की गई है.
यह पुतिन की चार साल में पहली भारत यात्रा है और भारत-रूस संबंधों की 25वीं सालगिरह के मौके पर हो रही है.
चीन की सरकारी ‘शिन्हुआ’ न्यूज़ एजेंसी ने 2 दिसंबर को यात्रा का प्रिव्यू देते हुए कहा कि यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका रूसी तेल खरीदने को लेकर भारत पर टैरिफ़ लगाकर ‘भारत से बदला ले रहा है.’
इसके अलावा यह यात्रा उसी समय हो रही है जब रूस, यूक्रेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच अमेरिका के प्रस्तावित ‘पीस प्लान’ को लेकर अहम बातचीत हो रही है.
‘शिन्हुआ’ ने अनाम विशेषज्ञों का हवाला देते हुए कहा कि रूस और भारत के बीच तेल व्यापार, दोनों नेताओं की बातचीत का मुख्य मुद्दा होगा.
उसके अनुसार, “अमेरिका-भारत संबंधों में तनाव आने की स्थिति में भारत, रूस के साथ अपने सहयोग को और गहरा कर सकता है और कई क्षेत्रों में अपनी विविध साझेदारी का विस्तार कर सकता है.”
‘ऊर्जा साझेदारी तोड़ना मुश्किल’
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चीन सरकार से जुड़ी एक न्यूज़ वेबसाइट ‘द पेपर’ ने 4 दिसंबर को लिखा, “अमेरिका के दबाव के बावजूद, भारत का आर्थिक विकास ऊर्जा की ज़रूरतों से अलग नहीं है, इसलिए रूस के साथ उसकी ऊर्जा साझेदारी को तोड़ना मुश्किल है.”
अमेरिका ने इस साल भारत पर 50% टैरिफ लगाए, जिसमें रूसी तेल खरीदने पर 25% की पेनल्टी भी शामिल है और यूरोपीय संघ ने भी दिल्ली को मॉस्को के साथ क़रीबी संबंधों को लेकर चेतावनी दी है.
एक अन्य सरकार समर्थित न्यूज़ वेबसाइट ‘गुआनचा’ की 4 दिसंबर की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘हथियारों की बिक्री निस्संदेह मुख्य मुद्दा है’ और ब्लूमबर्ग का हवाला देते हुए बताया गया है कि दोनों देशों में सुखोई-57 फ़ाइटर जेट और एस-500 एयर डिफ़ेंस और एंटी-मिसाइल सिस्टम की खरीद पर बातचीत हो सकती है.
‘गुआनचा’ के अनुसार, तेल सहयोग के मामले में भारत रूस के सुदूर पूर्व में ‘सख़ालिन-1 तेल और गैस परियोजना’ में ओएनजीसी 20% हिस्सेदारी बहाल करने की कोशिश कर सकता है, जबकि विश्लेषकों ने कहा कि दोनों पक्ष सिविलियन न्यूक्लियर ऊर्जा क्षेत्र में भी सहयोग के विस्तार की संभावनाएं देख रहे हैं.
ख़ास बात यह है कि नवंबर में भारतीय मीडिया में बड़े पैमाने पर रिपोर्ट छपी कि रूस ने भारत में सुखोई-57 जेट की पूर्ण लाइसेंस्ड उत्पादन सुविधा और अनलिमिटेड टेक्नोलॉजी ट्रांसफ़र की पेशकश की है.
‘भारत सुखोई-57 के ऑर्डर पर फ़ैसले लेने में हिचक रहा है’
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सरकारी ग्लोबल टाइम्स से संबद्ध ब्लॉग शुमियुआन शिहाओ (‘प्रिवी काउंसिल नंबर 10’) ने तीन दिसंबर को कहा कि भले ही क्रेमलिन प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि पुतिन की यात्रा में सुखोई-57 और एस-500 जैसे उन्नत हथियारों को पेश करने की योजना शामिल है, लेकिन ‘भारत की प्रतिक्रिया अजीब रही है. वो हिचकिचाहट और अनिश्चितता से भरी रही जिसमें ऑर्डर देने से इंकार कर दिया गया.”
ब्लॉग ने लिखा, “भारत को सचमुच स्टेल्थ फ़ाइटर जेट की तत्काल ज़रूरत है. लेकिन चाहे वह सुखोई-57 हो या (अमेरिका का) एफ़-35, यह सिर्फ़ एक बड़ा सैन्य सौदा नहीं है बल्कि भारत को अमेरिका और रूस के बीच ‘पक्ष चुनने’ के लिए भी मजबूर करता है.”
ब्लॉग ने कहा कि भारतीय मीडिया ने यात्रा से पहले इस खरीद पर ‘ठंडा पानी डाल दिया’ है और सुखोई-57 पर किसी समझौते की संभावना कम दिख रही है.
रूस के साथ संबंध बढ़ाने की भारत की इच्छा पर सवाल
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सरकार समर्थित ऑनलाइन न्यूज़ आउटलेट ‘शंघाई ऑब्ज़र्वर’ की चार दिसंबर की रिपोर्ट के अनुसार, फ़ुदान यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के वाइस-डीन और दक्षिण एशिया विशेषज्ञ लिन मिनवांग ने कहा कि भारत की यात्राएं ‘कभी पुतिन की प्राथमिकता’ हुआ करती थीं और ‘रूस और भारत की मौजूदा बातचीत शायद उतनी गर्मजोशी भरी नहीं है जितनी दिखती है.’
लिन ने कहा कि यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद रूस ने अमेरिका के अलग-थलग करने के प्रयासों को तोड़ने के लिए भारत के साथ सालाना वार्ता तंत्र को जारी रखने की कोशिश की, लेकिन दिल्ली ने इस तंत्र को अस्थायी रूप से रोक दिया ताकि वह अमेरिका और रूस के बीच ‘संतुलन’ साध सके.
उन्होंने कहा कि पुतिन की भारत यात्रा साल की शुरुआत से अगस्त और फिर दिसंबर तक टलती रही और यह यात्रा ‘कुछ हद तक जल्दबाज़ी’ में लगती है क्योंकि इसमें 48 घंटों से भी कम समय मिलेगा.
लिन ने ‘गुआनचा’ पर भी चार दिसंबर को लिखा कि भारत ने रूस से अपने तेल आयात को ‘काफ़ी हद तक कम’ कर दिया है और अमेरिका से ऊर्जा आयात बढ़ाया है ताकि वॉशिंगटन के साथ संबंध सुधर सकें.
भारतीय मीडिया ने उसी दिन वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए रिपोर्ट किया कि भारत ने अक्तूबर 2025 में रूस से तेल आयात को मूल्य के हिसाब से 38% और मात्रा के हिसाब से 31% कम कर दिया है.
लिन ने कहा कि पुतिन की यात्रा का ‘प्रतीकात्मक’ महत्व है. साथ ही उन्होंने कहा कि 2022 के बाद रूस भारत के साथ उच्च-स्तरीय संपर्क बढ़ाना चाहता था, जबकि दिल्ली ने अपने संपर्क ‘लो प्रोफ़ाइल’ ही रखे.
उन्होंने कहा, “रूस भारत की विदेश नीति में एक ‘रणनीतिक सुरक्षा नेटवर्क’ की तरह रहा है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में बड़े बदलावों के बीच भारत रूस के साथ संबंधों को कितनी दूर तक बढ़ाना चाहता है, यह बहुत अनिश्चित है.”
उन्होंने पेस्कोव का हवाला देते हुए कहा कि रूस भारत के साथ उतनी ही गहराई से संबंध विकसित करने को तैयार है जितना चीन के साथ, लेकिन दिल्ली ने इस तरह की ‘अनलिमिटेड’ साझेदारी के लिए अपनी तैयारी का कोई संकेत नहीं दिया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.