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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अगले महीने भारत के दौरे पर आने वाले हैं.
इस दौरे से पहले भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर रूस का दौरा कर चुके हैं.
फ़रवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से रूस और भारत के संबंधों पर पश्चिम का ख़ासा दबाव है. ख़ासकर ये कि भारत रूस से तेल आयात बंद करे. पश्चिम के दबाव का अब असर भी होता दिख रहा है.
भारत पर 50 फ़ीसदी अमेरिकी टैरिफ़ लगने के बाद से ही कहा जा रहा था कि रूस से तेल आयात करना आसान नहीं होगा.
पुतिन के भारत दौरे से ठीक पहले रूस से भारत के तेल आयात में गिरावट आई है. ऐसा तब है, जब दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों में ऊर्जा की हिस्सेदारी सबसे बड़ी है.
दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के प्रमुख अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि रूस से तेल ख़रीदारी लगातार कम हो रही है.
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, ” भारतीय कंपनियों ने पहले ही रूस से कच्चे तेल की ख़रीद कम कर दी है. आधिकारिक व्यापार आंकड़ों से पता चलता है कि अक्तूबर 2025 में रूस से कुल आयात साल-दर-साल 27.7 फ़ीसदी से घट गया, जो अक्टूबर 2024 के 6.7 अरब डॉलर से गिरकर इस साल 4.8 अरब डॉलर रह गया. चूंकि इन आयातों का ज़्यादातर हिस्सा कच्चा तेल होता है, इसलिए यह रूसी तेल ख़रीद में 30 फ़ीसदी से अधिक की गिरावट दिखाता है.”
श्रीवास्तव कहते हैं, ”भारतीय रिफाइनरी कंपनियां अमेरिका के उन प्रतिबंधों का पालन कर रही हैं, जो रोसनेफ्ट और लुकोइल जैसी कंपनियों को निशाना बना रही हैं. ये कंपनियां रूस के 57 फ़ीसदी तेल का उत्पादन करती हैं. इन कंपनियों से ख़रीद में तेज़ गिरावट आई है. अब आयात केवल उन रूसी कंपनियों से जारी हैं जो प्रतिबंध सूची में शामिल नहीं हैं, जो यह दिखाता है कि भारत अमेरिका की अपेक्षाओं के मुताबिक़ क़दम उठा रहा है.”
इससे पहले कहा जा रहा था कि भारत रूस के मामले में पश्चिम के दबाव में नहीं झुकेगा.
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में इंटनेशनल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर राजन कुमार को लगता है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत और रूस के संबंधों में बहुत बदलाव नहीं होगा.
प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं, ”भारत और रूस के बीच संबंधों में व्यापार अहम पहलू नहीं था. भले ही यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से ज़्यादा तेल ख़रीदना शुरू किया है लेकिन दोनों के रिश्ते आपसी व्यापार पर नहीं टिके थे. तेल ख़रीदारी की वजह से भले ही दोनों के बीच ट्रेड 67 अरब डॉलर तक पहुंच गया हो लेकिन इससे पहले दस अरब डॉलर से भी कम के आसपास का व्यापार होता था.”
प्रोफ़ेसर राजन कहते हैं, ”भारत और रूस के बीच दोस्ती में रक्षा समझौतों ने ज़्यादा अहम भूमिका निभाई है. भारत ने भले ही अब दूसरे देशों से हथियार ख़रीदने शुरू किए हैं. लेकिन इस समय की जियोपॉलिटिक्स को देखते हुए रूस भारत को जो हथियार और टेक्नोलॉजी देगा, वो दूसरे देश नहीं देंगे.”
भारत ने रूस से तेल ख़रीदना कम किया
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दिसंबर में होने वाली तेल डिलीवरी के आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि भारतीय तेल कंपनियों ने रूसी कंपनियों से तेल ख़रीदना काफ़ी कम कर दिया है.
ब्लूमबर्ग के मुताबिक़ भारत की पांच बड़ी रिफाइनरी कंपनियों ने दिसंबर महीने के लिए तेल ख़रीद का कोई ऑर्डर नहीं दिया है.
इस साल अगस्त में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय निर्यात पर 50 फ़ीसदी का टैरिफ़ लगा दिया था.
इसके तुरंत बाद रूस से भारत की तेल ख़रीद बहुत ज्यादा नहीं घटी थी.
लेकिन नवंबर में रूसी तेल कंपनियों रोजनेफ़्ट और लुकोइल पर अमेरिकी प्रतिबंध के बाद भारत की ज्यादातर तेल रिफ़ाइनरियों ने रूस से तेल ख़रीदना लगभग रोक दिया है.
तेल ख़रीद पर रियल टाइम डेटा देने वाली फर्म केपलर के मुताबिक़ भारत ने एक से 17 नवंबर के बीच रूस से हर दिन 6,72,000 बैरल तेल ख़रीदा.
ये अक्तूबर महीने में ख़रीदे गए 18 लाख बैरल प्रति दिन से काफ़ी कम है.
हालांकि दो रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध के बाद बाक़ी जगहों पर होने वाला रूस का तेल निर्यात 28 फ़ीसदी तक कम हो गया था.
कहा जा रहा है कि भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर हो रही बातचीत ने इसमें अहम भूमिका निभाई है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि भारत और अमेरिका डील के काफ़ी करीब है.
ब्लूमबर्ग ने कहा है कि भारत ने इस ट्रेड डील के तहत अमेरिका से भी कच्चा तेल ख़रीदने का वादा किया है.
हाल ही में भारतीय तेल कंपनियों अमेरिकी एलपीजी सप्लायरों से एलपीजी ख़रीदने का समझौता कर लिया है.
अब भारत की एलपीजी ज़रूरत का 10 फ़ीसदी हिस्सा अमेरिका से ख़रीदा जाएगा.
ऊर्जा सुरक्षा पर क्या होगा असर
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अक्तूबर महीने में ट्रंप ने दावा किया था कि भारत रूस से तेल ख़रीदना बंद करने पर सहमत हो गया है.
भारत ने इस साल अपनी ज़रूरत का 36 फ़ीसदी कच्चा तेल रूस से ख़रीदा है.
अमेरिका की ओर से दो रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध के बाद अजय श्रीवास्तव ने बीबीसी से कहा था कि ट्रंप ने भले ही दो कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह सभी रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध है.
अजय श्रीवास्तव ने कहा था, “अमेरिका ने भारत के निर्यात पर अतिरिक्त 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया है. रूस ने आरोप लगाया है कि वह रूसी तेल का इस्तेमाल करके ‘युद्ध को बढ़ावा’ दे रहा है. यह जुर्माना सिर्फ़ रोसनेफ़्ट या लुकोइल जैसी प्रतिबंधित कंपनियों से तेल ख़रीदने पर ही नहीं बल्कि किसी भी रूसी कच्चे तेल पर लागू होता है- चाहे वह वैध तरीक़े से ही ख़रीदा गया क्यों ना हो.”
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, “भारत के सामने स्पष्ट विकल्प हैं- सस्ता रूसी तेल लेकर अमेरिका की नाराज़गी झेलना, या मध्य-पूर्व और अमेरिका से महंगा तेल ख़रीदने का विकल्प चुनकर घरेलू स्तर पर क़ीमतें बढ़ने का जोखिम उठाना.”
क्या अमेरिकी ट्रेड डील रूस से दोस्ती पर असर डालेगी
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प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं कि हथियारों और आधुनिक सैन्य टेक्नोलॉजी के मामले में भारत की 60 से 70 फ़ीसदी निर्भरता अभी भी रूस पर ही है.
वह कहते हैं, ”दुनिया में इस समय रियल और ट्रेड वॉर दोनों हो रहे हैं. दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रुख़ काफी अनिश्चित है. इसलिए भारत अमेरिका से अपने संबंध अच्छे करने की कोशिश में तो है लेकिन वो ट्रंप पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर सकता.”
पिछले सात दशकों से भारत और रूस के संबंध मज़बूत और स्थिर रहे हैं. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा था कि पिछले 50 सालों की वैश्विक राजनीति में दोनों देशों के संबंध स्थिर रहे हैं.
शीत युद्ध के ज़माने में भारत ख़ुद को गुटनिरपेक्ष बताता था लेकिन जब अमेरिका ने 1971 के गृह युद्ध में पाकिस्तान का साथ दिया तो भारत की क़रीबी यूएसएसआर से बढ़ गई थी.
पिछले तीन दशकों में रूस से भारत का सहयोग अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में बढ़ा है. लेकिन हाल के दशकों में अमेरिका के साथ भी भारत के संबंध सुधरे थे. इस वजह से भारत की रक्षा मामलों में निर्भरता रूस पर कम हुई थी.
भारत और रूस के बीच व्यापार 31 मार्च को ख़त्म हुए पिछले वित्त वर्ष में रिकॉर्ड 68.7 अरब डॉलर तक पहुँच गया था. ज़ाहिर है कि भारत ने आयात ज़्यादा किया है. 68.7 अरब डॉलर में भारत का निर्यात महज 4.9 अरब डॉलर का ही है.
भारत में रूस का निवेश तेल, गैस के अलावा फार्मा, बैंकिंग, रेलवे और स्टील में है. भारत का भी रूस में निवेश तेल, गैस और फार्मा सेक्टर में है. रूस से भारत को तेल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की तुलना में सस्ता मिल रहा है. लेकिन क़ीमत का अंतर लगातार कम हो रहा है.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, 15 अक्तूबर तक भारत को रूस से तेल बेंचमार्क क्रूड की तुलना में दो से ढाई डॉलर प्रति बैरल सस्ता मिल रहा था. लेकिन 2023 में यह अंतर प्रति बैरल 23 डॉलर से ज़्यादा था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.