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बात दिसंबर, 1995 की है. 17 दिसंबर की रात क़रीब चार टन वज़न के ख़तरनाक हथियार लाद कर एक रूसी एंटोनोव एएन 26 विमान ने कराची से ढाका के लिए टेकऑफ़ किया.
उस विमान में आठ यात्री सवार थे. एक डेनिश शख़्स किम पीटर डेवी, एक ब्रिटिश हथियार विक्रेता पीटर ब्लीच, सिंगापुर का रहने वाला भारतीय मूल का एक व्यक्ति दीपक मणिकान और चालक दल के पाँच सदस्य.
ये पाँचों रूसी बोलते थे और लातविया के नागरिक थे. विमान ने वाराणसी के बाबतपुर हवाई अड्डे पर ईंधन भरवाया. वहीं पर तीन पैराशूटों को जहाज़ में लदे हथियारों से जोड़ा गया.
पीटर ब्लीच ने सीबीआई को दिए अपने बयान में इन बातों को स्वीकार किया था और यह भी माना था कि कराची आने से पहले बुल्गारिया के बर्गास में सारे हथियार इस विमान पर लादे गए थे.
वरिष्ठ पत्रकार चंदन नंदी अपनी बहुचर्चित किताब ‘द नाइट इट रेन्ड गन्स’ में लिखते हैं, “वाराणसी से टेक ऑफ़ करने के बाद जहाज़ ने गया के ऊपर अपना रास्ता बदल दिया. जैसे ही वह पश्चिम बंगाल के एक बहुत पिछड़े हुए ज़िले पुरुलिया के ऊपर पहुँचा, तो वह बहुत नीचे उड़ने लगा. वहीं पर पैराशूट से जुड़े हुए लकड़ी के तीन बड़े बक्से नीचे गिराए गए, जिनमें सैकड़ों एके 47 राइफ़लें भरी हुई थीं.”
“ये सामान झालदा गाँव के नज़दीक गिराया गया, जो आनंद मार्ग के मुख्यालय के बहुत नज़दीक था. सामान गिराते ही विमान अपने पूर्व निर्धारित रास्ते पर फिर से उड़ने लगा. उसने कलकत्ता में लैंड कर फिर ईंधन भरवाया और थाइलैंड के फ़ुकेत के लिए उड़ गया.”
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पीटर ब्लीच की आशंका
चंदन नंदी और ब्रिटिश पत्रकार पीटर पॉफ़ेम के अनुसार, विमान में सवार हथियार व्यापारी पीटर ब्लीच का संबंध ब्रिटिश ख़ुफ़िया एजेंसी एमआई 6 से था. वह कभी-कभी उनके जासूसी मिशन में मदद किया करते थे.
जब विमान ने वाराणसी से टेक ऑफ़ किया, तो उसे डर था कि उसके विमान को गिरा दिया जाएगा.
ब्रिटेन के मशहूर अख़बार ‘द इंडिपेंडेंट’ के 6 मार्च 2011 के अंक में ‘अप इन आर्म्स: द बिज़ार केस ऑफ़ द ब्रिटिश गन रनर, द इंडियन रेबेल्स एंड द मिसिंग डेन’ शीर्षक लेख में पीटर पॉफ़ेम ने लिखा था, “पीटर ब्लीच ने मुझे बताया था कि उड़ान से तीन महीने पहले एक डेनिश ग्राहक को बड़ी मात्रा में हथियार उपलब्ध कराने के लिए उससे संपर्क किया गया था. जब उसे पता चला कि ये हथियार किसी देश के लिए नहीं बल्कि एक चरमपंथी संगठन के लिए हैं, तो उसने इसकी सूचना ब्रिटिश खुफ़िया विभाग को पहुँचा दी थी.”
“ब्रिटिश खुफ़िया विभाग ने उसे सलाह दी थी कि वह अपना काम जारी रखे. वह इस विश्वास में इस ऑपरेशन में शामिल हुआ कि वह एक चरमपंथी विरोधी स्टिंग ऑपरेशन में हिस्सा ले रहा है और हथियारों के गिराए जाने से पहले भारतीय एजेंसियाँ इसे रोक देंगी और वह इससे बाहर आ जाएगा.”
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पुरुलिया में हथियार गिराए गए
लेकिन मिशन शुरू होने से पहले इस बात के कोई संकेत नहीं मिले थे कि भारतीय प्रशासन इसे रोकने की कोशिश कर रहा है.
पीटर पॉफ़ेम लिखते हैं, “ब्लीच ने कहा था कि जब उन्होंने वाराणसी से टेक ऑफ़ किया, तो उन्हें चिंता सताने लगी. उन्हें लगा कि भारतीयों ने विमान को गिरा देने का फ़ैसला कर लिया है. उनको डर था कि उनका अंत नज़दीक है.”
लेकिन विमान ने रात के अंधेरे में हथियार गिरा दिए और कुछ भी नहीं हुआ. ब्लीच की नज़र में उनकी मुसीबत समाप्त हो गई थी, लेकिन यहां से उनकी मुसीबत शुरू हो रही थी.
सैकड़ों एके-47 राइफ़लें और हथियार ज़मीन पर बिखरे मिले.
18 दिसंबर की सुबह पुरुलिया ज़िले के गनुडीह गांव के सुभाष तंतुबाई अपने मवेशियों को चराने बाहर निकले.
अचानक उनकी नज़र एक टीले के सामने घास के मैदान पर पड़ी, जहां एक चीज़ चमक रही थी.
झालदा पुलिस स्टेशन की केस डायरी में लिखा गया था कि जब सुभाष पास गए तो उनकी नज़र एक ऐसी बंदूक़ पर टिक गई जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था. वहां चारों तरफ़ क़रीब 35 बंदूकें बिखरी पड़ी थीं. ये देखते ही वह झालदा पुलिस थाने की ओर भागे.
थाने के इंचार्ज प्रणव कुमार मित्र ने चंदन नंदी को बताया था, “ख़बर सुनते ही मैं अपनी वर्दी पहनकर चितमू गाँव की तरफ़ रवाना हो गया. जब मैं वहाँ पहुँचा, तो मैंने पाया कि वहाँ ज़मीन पर गिरे जैतूनी रंग के लकड़ी के क्रेट तोड़ दिए गए थे और उनमें रखे हथियार नदारद थे.”
“मेरा एक साथी भारतीय सेना के एक सैनिक को बुला लाया था. मेरे कहने पर उसने नज़दीक के तालाब में गोता लगाया. जब वह बाहर निकला, तो उसके हाथ में एक टैंक नाशक ग्रेनेड था. तब मुझे पहली बार अंदाज़ा हुआ कि यह एक गंभीर मामला है.”
इसके बाद वहाँ लाउड स्पीकर से ऐलान करवाया गया कि जिनके पास हथियार हों, वे उन्हें पुलिस को वापस कर दें.
बाद में नज़दीक के गाँव खटंगा, बेलामू, मारामू, पागड़ो और बेराडीह में कई एके 47 राइफ़लें पड़ी पाई गईं.
एक शख़्स ने आकर बताया कि खेत में नाइलॉन का एक बड़ा पैराशूट पड़ा हुआ है, जिसके नीचे कई राइफ़लें पड़ी हुई हैं.
कलकत्ता की अदालत की ओर से ब्रिटेन, बुल्गारिया, लातविया और दक्षिण अफ़्रीका के संबंधित अधिकारियों को भेजे अनुरोध पत्र में कहा गया, “पुरुलिया और उसके आसपास के इलाक़ों से कुल मिलाकर 300 एके-47 राइफ़लें, 25 9 एमएम पिस्टल, दो 7.62 स्नाइपर राइफ़लें, 2 नाइट विज़न दूरबीन, 100 ग्रेनेड्स और 16000 राउंड गोलियाँ बरामद हुईं. इन सबका कुल वज़न था 4375 किलोग्राम.”
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विमान को ज़बरदस्ती मुंबई में उतारा गया
हथियार गिराने वालों के लिए चीज़ें तब बिगड़नी शुरू हुईं, जब उन्हें यह पता चला कि उनके गिराए हथियार भारतीय सुरक्षा बलों के हाथ लग गए हैं.
इसके बावजूद उन्होंने कराची के लिए वापसी की उड़ान भरी. फ़ुकेत से वापसी की उड़ान में उन्होंने कलकत्ता के बजाय चेन्नई में ईंधन भरवाया और वहाँ से उड़ान भरी.
अभी उनका विमान मुंबई से 15-20 मिनट की दूरी पर था कि कॉकपिट के रेडियो पर आवाज़ गूंजी और भारतीय वायु सेना के मिग 21 विमान ने रूसी विमान को मुंबई हवाई अड्डे पर उतरने का आदेश दिया.
चंदन नंदी लिखते हैं, “जब विमान उतरने लगा, तो किम के चेहरे पर चिंता की लकीरें बढ़ गईं. उसने अपने ब्रीफ़केस से कुछ कागज़ निकालकर उनके छोटे-छोटे टुकड़े कर उनको जला दिए. इसके बाद उसने उन्हें टॉयलेट में ले जाकर फ़्लश कर दिया.”
“फिर उसने अपने ब्रीफ़केस से चार फ़्लॉपी डिस्क निकाल कर उनके टुकड़े भी कर दिए. फिर उसने ब्लीच का लाइटर लेकर उनमें आग लगा दी. जब तक उसने ये काम पूरा किया, विमान के पहिए मुंबई हवाई अड्डे के रनवे को छू रहे थे.”
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किम डेवी निकल भागने में कामयाब हुआ
जब विमान ने सहार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (मुंबई) पर लैंड किया, उस समय रात के एक बजकर 40 मिनट हुए थे. लेकिन वहाँ पर विमान के लिए एक भी शख़्स मौजूद नहीं था.
पीटर ब्लीच ने सीबीआई को दिए अपने बयान में बताया था कि 10 मिनट बाद हवाई अड्डे की एक जीप वहाँ पहुँची, जिस पर दो लोग सवार थे.
उन्होंने उनसे सवाल किया कि वे लोग वहाँ क्या कर रहे हैं और जहाज़ ने बिना अनुमति के वहाँ क्यों लैंड किया है?
चंदन नंदी लिखते हैं, “डेवी और ब्लीच उन दोनों अधिकारियों से बातचीत करते रहे. भारतीय अधिकारियों की मूर्खता और अक्षमता अपने चरम पर थी. जब डेवी ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें लैंडिंग फ़ीस देनी पड़ेगी, तो अधिकारी का उत्तर था- हाँ.”
“विमान लैंड होने के क़रीब 45 मिनट बाद एक और जीप वहाँ पहुँची, जिसमें सादे कपड़ों में छह-सात लोग सवार थे. उन्होंने अपना परिचय कस्टम अधिकारियों के तौर पर दिया और कहा कि वे विमान की तलाशी लेना चाहते हैं.”
“कस्टम अधिकारियों के जहाज़ में घुसने के बाद डेवी विमान में घुसा. उसने काग़ज़ों का एक फ़ोल्डर उठाया और चुपचाप विमान से नीचे उतर गया. इसके बाद डेवी को किसी ने नहीं देखा. थोड़ी देर बाद विमान को 50 से 70 सशस्त्र सुरक्षाकर्मियों ने घेर लिया.”
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विमान के चालक दल को आजीवन कारावास
पीटर ब्लीच और विमान चालक दल के पांच सदस्यों को गिरफ़्तार कर लिया गया. उन सब पर भारत के ख़िलाफ़ युद्ध का मुक़दमा चलाया गया.
दो साल तक चले इस मुक़दमे के बाद सबको आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई.
क़रीब 10 साल बाद किम डेवी फिर दिखे. डेवी ने पूरे डेनमार्क में घूमकर अपने काम के क़सीदे पढ़े.
भारत ने डेवी के प्रत्यर्पण की भरपूर कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली.
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डेवी का सनसनीखेज़ दावा
डेवी ने 27 अप्रैल, 2011 को एक टीवी इंटरव्यू में दावा किया, “इस पूरे प्रकरण में भारतीय खुफ़िया एजेंसी रॉ की भूमिका थी और हथियार गिराए जाने के बारे में भारत सरकार को पहले से जानकारी थी. ये ऑपरेशन रॉ और ब्रिटिश ख़ुफ़िया एजेंसी एमआई6 का संयुक्त ऑपरेशन था.”
सरकार की तरफ़ से इसका खंडन किया गया और सीबीआई ने बयान दिया कि इस घटना में किसी भी सरकारी एजेंसी का हाथ नहीं था. बाद में किम डेवी ने एक किताब लिखी ‘दे कॉल्ड मी टेररिस्ट’.
इसमें किम डेवी ने दावा किया, “भारत से भागने में उसकी बिहार के एक राजनेता ने मदद की थी. उसकी मदद से ही वायु सेना के रडारों को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया ताकि हथियारों को बिना किसी रुकावट के नीचे गिराया जा सके. इन हथियारों का उद्देश्य आनंद मार्गियों के ज़रिए पश्चिम बंगाल में हिंसा फैलाना था ताकि उसका बहाना बनाकर ज्योति बसु के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को बर्ख़ास्त किया जा सके.”
आनंद मार्ग ने पहले और किम डेवी के दावों के बाद भी सभी आरोपों से इनकार किया था और यह कहा था कि कुछ लोग उनकी संस्था को बदनाम करना चाहते हैं. पुलिस ने हथियार गिराए जाने के बाद छानबीन की थी. आनंद मार्ग का दावा था कि पुलिस को वहाँ कोई हथियार नहीं मिले थे.
जब भारतीय संसद की ओर से बनाई गई पुरुलिया आर्म्स ड्रॉपिंग कमेटी के कुछ सांसदों ने सवाल पूछा कि क्या भारतीय वायु सेना के रडार 24 घंटे काम करते हैं, तो भारतीय वायु सेना के प्रतिनिधि एयर वाइस मार्शल एम मैकमोहन ने जवाब दिया था, “रडारों को 24 घंटे सक्रिय रखना संभव नहीं है क्योंकि इससे उनके जल जाने का ख़तरा बन जाता है.”
(पुरुलिया आर्म्स ड्रॉपिंग कमेटी की तीसरी रिपोर्ट, पृष्ठ 7)
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ब्रिटेन के गृह मंत्री ने कहा- भारत को थी इसकी पूर्व जानकारी
किम डेवी ने यह भी दावा किया कि भारतीय प्रशासन को उसकी फ़्लाइट प्लान की पूर्व सूचना थी, उसको यह भी पता था कि विमान में कितने लोग सवार हैं, विमान पर कितने हथियार हैं और उन्हें कहाँ गिराया जाना है.
डेवी ने सवाल किया कि कोई भी समझदार शख़्स बिना सरकार की जानकारी के एक दुश्मन देश से हथियारों से भरा जहाज़ भारत की सीमा के अंदर क्यों लाएगा?
रॉ के एक पूर्व अधिकारी आरके यादव ने अपनी किताब ‘मिशन रॉ’ में लिखा, “डेवी के इन दावों की तब पुष्टि हुई, जब भारत की यात्रा पर आए ब्रिटेन के गृह मंत्री माइकल हावर्ड ने एक संवाददाता सम्मेलन में साफ़ कहा कि ब्रिटिश सरकार ने हथियार गिराए जाने के बारे में भारत को पहले से सूचित कर दिया था.”
“इस सबके बावजूद नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने विमान को कलकत्ता में उतरने की अनुमति क्यों दी? अगर रॉ को इसके बारे में पूर्व सूचना थी, तो सरकार की दूसरी एजेंसियों जैसे इंटेलिजेंस ब्यूरो, स्थानीय पुलिस या कस्टम विभाग ने वाराणसी में ही जहाज़ की तलाशी क्यों नहीं ली?”
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पीटर ब्लीच और चालक दल की रिहाई
आरके यादव ने अपनी किताब में लिखा, “रूस के विमान को जानबूझकर एयरपोर्ट इमारत से छह किलोमीटर दूर पार्क किया गया. जब सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियों के लोग वहाँ पहुँचे तो विमान का दरवाज़ा खुला हुआ था और डेवी को हवाई अड्डे के सरकारी वाहन में वहाँ से ले जाया गया और बिना किसी कस्टम और इमिग्रेशन जांच के उसे वहां से भाग जाने दिया गया.”
ये बात कल्पना से परे दिखती है कि एक विदेशी विमान भारतीय वायु सीमा का उल्लंघन करता है और पैराशूट की मदद से उसके इलाक़े में हथियार गिराता है.
चंदन नंदी लिखते हैं, “ये भी न समझ में आने वाली बात है कि जहाज़ को ज़बरदस्ती उतरवाने के बावजूद इस पूरे ऑपरेशन का सर्वेसर्वा किम डेवी उर्फ़ नील नील्सन भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के हाथ से फिसलकर रहस्यमय परिस्थितियों में मुंबई के सहार अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से बच निकला.”
किम डेवी के साथी पीटर ब्लीच ने गिरफ़्तार होने के बाद इस उम्मीद में पूरी घटना का भंडा फोड़ा कि उसे बख़्श दिया जाएगा.
लेकिन उस पर मुक़दमा चलाया गया और उम्र क़ैद की सज़ा भी सुनाई गई.
ये अलग बात है कि वर्ष 2004 में टोनी ब्लेयर की लेबर सरकार के अनुरोध के बाद भारत के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उसे माफ़ी दे दी और उसे रिहा कर दिया गया. उस समय अटल बिहारी वाजपेई भारत के प्रधानमंत्री थे.
उससे चार साल पहले 22 जुलाई, 2000 को रूसी सरकार के अनुरोध पर चालक दल के बाक़ी सदस्यों को छोड़ दिया गया था. उस वर्ष राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा से पहले सद्भावना के तौर पर ये क़दम उठाया गया था. उस समय भी वाजपेई भारत के प्रधानमंत्री थे.
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डेनमार्क ने डेवी के भारत प्रत्यर्पण से किया इनकार
सीबीआई ने इस केस की जाँच की. पहले पाँच साल के बाद उसकी गति धीमी पड़ गई और एक समय ऐसा आया कि वह पूरी तरह से ठप हो गई. चंदन नंदी का मानना है कि ‘इसे ठप हो जाने दिया गया’.
उनके शब्दों में, “सीबीआई निदेशक पीसी शर्मा के जाने के बाद किसी भी सीबीआई प्रमुख ने इस केस में दिलचस्पी नहीं ली. वर्ष 2001 से 2011 के बीच का समय पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया. हालाँकि अप्रैल, 2011 में पीटर डेवी को कोपेनहेगन में एक दिन के लिए गिरफ़्तार ज़रूर किया गया, लेकिन एक दिन बाद डेनिश पुलिस ने उसे रिहा कर दिया. डेनमार्क की पुलिस ने इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस होने के बावजूद उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की.”
डेनमार्क की न्यायपालिका ने इस आधार पर डेवी के भारत प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया कि उसे डर था कि उसे भारत में यातनाएं दी जाएंगी और उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा.
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कई सवालों के जवाब नहीं मिले
चंदन नंदी लिखते हैं, “पूरी जाँच के बाद ये बात भी सामने आई कि इस कांड की योजना कम से कम तीन साल पहले बनाई गई थी. किम के पास दो जाली पासपोर्ट थे. एक पासपोर्ट में उसका नाम था किम पालग्रेव डेवी और दूसरे पासपोर्ट में उसका नाम था किम पीटर डेवी.”
ये दोनों पासपोर्ट 1991 और 1992 में न्यूज़ीलैंड की राजधानी वेलिंगटन से जारी हुए थे.
इस घटना के लगभग 30 वर्ष बीत जाने के बाद भी कुछ सवालों के स्पष्ट जवाब अभी तक नहीं मिले हैं, मसलन इन हथियारों को किसके लिए नीचे गिराया गया था? उन्हें किसने गिरवाया था और उसके लिए पैसे किसने दिए थे?
भारतीय वायु सीमा में घुसते ही उस विमान को रोका क्यों नहीं गया? क्या रॉ को इन हथियारों के गिराए जाने के बारे में पहले से पता था और अगर हाँ तो इसकी पूर्व सूचना होने के बावजूद उसने दूसरी एजेंसियों को इसके बारे में क्यों नहीं बताया?
मुंबई हवाई अड्डे से किम डेवी को बाहर कैसे निकलने दिया गया और वह अपने देश से डेनमार्क वापस कैसे पहुँचा?
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