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इस्तांबुल से क़रीब ढाई घंटे की दूरी पर छोटा सा शहर इज़्निक पहली नज़र में ऐसा कोई संकेत नहीं देता कि कभी यहां इतिहास ने बड़ा मोड़ लिया होगा.
आधा घंटा पैदल चलकर पैंतालीस हज़ार की आबादी वाले इस शहर को घूमा जा सकता है. यहां ख़ूबसूरत पतली तंग गलियों में बने मकानों की बालकनियों से लटकती ग़ुलाब और आइवी की लताएं दिलक़श नज़ारा पेश करती हैं.
आप दूसरे छोर पर स्थित इज़्निक झील तक इस शहर के बीज़ान्टिन साम्राज्य या ओस्मानिया सल्तनत की राजधानी होने का कोई सबूत देखने पहुंच जाते हैं.
कभी इस शहर का नाम नाइसिया था.
लेकिन अब कैथोलिक चर्च के शीर्ष पादरी पोप लियो14वें मई में पोप बनने के बाद से अपनी पहली विदेश यात्रा पर यहां पहुंचे रहे हैं.
पोप की इस यात्रा का सबसे अहम पड़ाव एक सेरेमनी है जिसमें पोप के अलावा ग्रीक ऑर्थोडॉक्स पैट्रिआर्क बार्थोलोम्यू और दूसरे ईसाई नेता शामिल होंगे.
यह कार्यक्रम नाइसिया की 325 ईसवीं में हुई पहली काउंसिल बैठक की 1700वीं सालगिरह के मौक़े पर आयोजित किया गया है.
दिवगंत पोप फ़्रांसिस को इस यात्रा पर आना था. अप्रैल में उनकी मौत के बाद इसे टाल दिया गया था.
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सितंबर में प्रकाशित हुए एक साक्षात्कार में पोप लियो14वें ने कहा था, “आज चर्च के जीवन का सबसे ग़हरा घाव यह तथ्य है कि ईसाइयों के रूप में हम विभाजित हैं.”
उन्होंने इस साक्षात्कार में यह भी कहा था कि काउंसिल ऑफ़ नाइसिया को याद रखना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ईसाई धर्म के अलग-अलग पंथों का मिलन स्थल है.
लियो ऐसे पांचवें पोप हैं जो तुर्की की यात्रा कर रहे हैं. तुर्की में कितने ईसाई हैं इसका कोई अधिकारिक आंकड़ा नहीं है लेकिन 2023 में अमेरिका के विदेश विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि तुर्की में क़रीब डेढ़ लाख ईसाई हैं. यह आंकड़ा तुर्की के ईसाई समुदायों की रिपोर्टों पर आधारित हैं.
पोप गुरुवार को राजधानी अंकारा में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयेप अर्दोआन से मिलेंगे और शुक्रवार को इज़्निक पहुंचेंगे.
लेकिन इज़्निक ईसाइयों के लिए इतना अहम क्यों है?
वो ऐतिहासिक पल
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ये समझने के लिए हमें चौथी शताब्दी में जाना होगा, जब नाइसिया की पहली काउंसिल बैठक बुलाई गई थी.
उस दौर में रोमन साम्राज्य स्कॉटलैंड से लेकर लाल सागर तक और मोरक्को से लेकर आज के सीरिया, जॉर्डन और इराक़ तक फैला था.
और साम्राज्य की कमान कोंसटेंटाइन प्रथम के हाथ में थी जो पहले ईसाई सम्राट थे.
तीन सदी पहले ईसा मसीह की मौत के बाद से पहली बार उन्होंने ईसाइयों को क़ानूनी अधिकार दिए थे और उन्हें अपने धर्म का खुलेआम पालन करने की अनुमति दी थी.
सम्राट कोंसटेंटाइन ने नाइसिया में काउंसिल चर्च और साम्राज्य को एकजुट करने के उद्देश्य से बुलाई थी. वो धर्मगुरुओं से मिलना चाहते थे ताकि धार्मिक मामलों पर मतभेदों को दूर कर सकें. 325 ईसवीं की वह काउंसिल रोमन और ईसाई इतिहास में एक अहम मोड़ साबित हुई.
सदियों तक ये शहर ईसाइयों के लिए यरूशलम, रोम या कॉन्स्टेंटिनोपल की तरह अहम बना रहा.
मुगला सित्की कोचमान यूनिवर्सिटी के इतिहासकार तुरहान काकर ने बीबीसी टर्किश सेवा को बताया कि धर्मगुरु पहले आज के अंकारा शहर में मिलना चाहते थे, लेकिन सम्राट ने उन्हें पत्र लिखकर नाइसिया पहुंचने के लिए कहा.
काकर के मुताबिक़, कोंसटेंटाइन व्यक्तिगत रूप से इस काउंसिल का नेतृत्व करना चाहते थे. काकर कहते हैं, “वो चर्च से जुड़ी पिछली बैठकों के अनुभवों से जानते थे कि अगर बिशप को उनके हाल पर छोड़ दिया गया तो वह विरोध करेंगे.”
“जब बिशप नाइसिया पहुंचे तब वो अपने समुदायों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे लेकिन जब वो काउंसिल के बाद लौटे तब बह राज्य के प्रतिनिधि थे.”
ईसाई धर्म के मूल सिद्धांत
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इंस्तांबुल के सेंट स्टीफ़ंस कैथोलिक चर्च के मठाधीश पाउलो राफ़ेल इस बात से सहमत हैं कि इस काउंसिल में चर्च ने सरकार के साथ मिलकर काम करना शुरू किया था.
पाउलो राफ़ेल ने बीबीसी टर्किश को बताया, इस काउंसिल ने ईसाई धर्म की मूल मान्यताओं को भी परिभाषित किया था. नाइसिया में ही ईसा मसीह के स्वभाव पर आम सहमति बनी थी.
इस काउंसिल के बाद ही यह स्पष्ट रूप से बताया गया कि ईसाई धर्म में दिव्य माने जाने वाले- पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा में एक हमेशा रहने वाला ईश्वर है. ईसाई धर्म के इन बुनियादी मूल्यों को पक्का करने के लिए एक पंथ बनाया गया.
ईसा मसीह को भगवान मानना उन तथाकथित “एरियन हरसे” यानी अफ़वाहों के ख़िलाफ़ अहम पल था जिनकी मान्यता थी की ईसा मसीह ईश्वर नहीं हैं.
पोप लियो 14वें ने काउंसिल के महत्व को और मज़बूती से बताते हुए समझाया है कि कैसे इन विचारों को लेकर विवाद “चर्च के पहले हज़ार साल के दौरान सबसे बड़ा संकट थे.”
काउंसिल के फ़ैसलों पर टिप्पणी करते हुए पाउलो राफ़ेल ने कहा, “ईसाइयों के लिए हमारी आस्था का केंद्र यही है.”
ग्रीक ऑर्थोडॉक्स मेट्रोपॉलिटन मैक्सिमोस वेगेनोपोलोस बताते हैं कि नाइसिया की उस काउंसिल में तय की गई शिक्षाओं का महत्व आज भी है.
उन्होंने कहा कि इज़्निक को दुनियाभर के ईसाइयों के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है.
सभी चर्चों का साझा आधार
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काउंसिल की 1700वीं बरसी पर आयोजित समारोह ईसाइयों को चर्च की वैश्विक पहचान के महत्व का जश्न मनाने का मौक़ा देता है.
प्रोफ़ेसर काकर कहते हैं कि जब नाइसिया की काउंसिल का आयोजन हुआ था तब चर्च कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स में विभाजित नहीं था. इसलिए आज के दौर के ईसाई नेता इस पल को “एकजुटता का प्लेटफ़ॉर्म” मानते हैं.
वेगेनोपोलोस नाइसिया की पहली काउंसिल को “पहले की तरह आज भी अपने विश्वासों को ज़ाहिर करने वाले सभी ईसाई चर्चों का कॉमन डिनॉमिनेटर (साझा आधार)” कहते हैं.
वो इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि पोप का दौरा और यादगार समारोह इस क्षेत्र और तुर्की की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को भी रेखांकित करेंगे.
इज़्निक में यादगार समारोह झील के तट के पास स्थित सेंट नियोफ़ाइट के बेसिलिका के पुरातत्व स्थल पर होगा.
इज़्निक में पुरातत्व खुदाई का नेतृत्व कर रहे बुरसा यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मुस्तफ़ा शाहीन कहते हैं कि ये इमारत वो चर्च हो सकती है जिसे धार्मिक सूत्र “चर्च ऑफ़ द होली फॉदर्स” कहते हैं.
इस चर्च का नाम पहली काउंसिल की याद में रखा गया था.
वो कहते हैं कि संभवतः यही वो स्थान हो सकता है जहां 1700 साल पहले नाइसिया की काउंसिल ने बैठक की गई होगी.
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ये आम मान्यता है कि पहली काउंसिल शहर की दीवारों के बाहर और झील के पास हुई थी. लेकिन अभी तक पुरातत्व शोध ऐसा कोई प्रमाण हासिल नहीं कर सके हैं जो इस मान्यता को साबित करे.
प्रोफ़ेसर शाहीन ने बीबीसी से कहा कि उनका मानना है कि बेसिलिका का निर्माण बाद में हुआ होगा, संभवतः चौथी शताब्दी के अंत में. ये संभावना भी है कि इसका निर्माण उस स्थान पर हुआ हो जहां चौथी सदी की शुरुआत में सेंट नियोफ़ाइट की ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने के दौरान रोमन लोगों ने हत्या की थी.
प्रोफ़ेसर शाहीन ये संभावना भी ज़ाहिर करते हैं कि हो सकता है कि काउंसिल किसी ऐसे महल में आयोजित हुई है जिसे अभी तक खोजा नहीं जा सका है.
अपनी यात्रा के बारे में बोलते हुए पोप लियो ने इतिहास और वर्तमान में इज़्निक के महत्व पर ज़ोर दिया.
उन्होंने कहा, “कुछ लोगों ने शुरू में कॉन्स्टेंटिनोपल के पैट्रिआर्क बार्थोलोम्यू और मेरे बीच एक बैठक की योजना बनाई थी. मैंने गुज़ारिश की कि इज़्निक में यह मुलाक़ात अलग-अलग ईसाई संप्रदायों और समुदायों के नेताओं को बुलाने का मौक़ा है.”
“क्योंकि नाइसिया एक पंथ है, यह एक ऐसा समय है जब हम सब मिलकर, मतभेद खड़े होने से पहले, धर्म को लेकर साझा बयान दे सकें.”
रविवार को लेबनान के लिए प्रस्थान करने से पहले पोप लियो 14वें शनिवार को 6000 लोगों की एक धार्मिक सभा करेंगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.