छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर हाल ही में सीआरपीएफ के लिए काम कर रही बेल्जियम शेफर्ड रोलो की मौत हो गई थी। रोलो पर करीब 200 मधुमक्खियों ने हमला कर दिया था। रोलो से मधुमक्खियों का छत्ता हिल गया था। तभी अचानक सैकड़ों मधुमक्खियों ने रोलो पर डंक मार दिए। अस्पताल ले जाते समय ही उसकी मौत हो गई।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। हाल ही में खबर आई थी कि छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा स्थित कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों में चल रहे नक्सल विरोधी अभियान के दौरान सीआरपीएफ के एक मादा स्वान रोलो की मधुमक्खियों के आक्रमण से मौत हो गई। मधुमक्खियों की यह आक्रामकता दर्शाती है कि उनकी रक्षा प्रणाली किसी प्रशिक्षित कमांडो फोर्स की भांति होती है। वे अपनी ओर से किसी को छेड़ती नहीं है, लेकिन छेड़े जाने पर किसी को छोड़ती भी नहीं हैं।
मधुमक्खियों के हमले में CRPF की डॉग की मौतसीआरपीएफ के लिए काम कर रही दो वर्षीया रोलो बेल्जियम शेफर्ड नस्ल की मादा श्वान थी। नक्सल विरोधी अभियान में लगे सीआरपीएफ के जवान उसका उपयोग नक्सलियों द्वारा छुपाए गए खतरनाक विस्फोटकों को ढूंढने के लिए करते थे। रोलो कई बार घनी झाड़ियों में घुसकर छिपाए गए विस्फोटक भी खोज निकालती थी।
200 मधुमक्खियों ने मारे डंकइसी क्रम में पिछले माह 27 अप्रैल को रोलो की किसी खोज प्रक्रिया के दौरान वहां लगा मधुमक्खियों का छत्ता हिल गया, और करीब 200 मधुमक्खियों ने उसे घेरकर डंक मारने शुरू कर दिए। अचानक हुए इस हमले से रोलो को भागने का अवसर भी नहीं मिला। घायल अवस्था में उसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन मधुमक्खियों के विष से रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई।
मधुमक्खियां वैसे तो शांत भाव से अपने काम में व्यस्त रहती हैं। किसी को परेशान नहीं करती हैं, लेकिन यदि कहीं से उनपर मंडराता दिखाई देता है, तो वे अपने शत्रु पर आक्रमण भी ऐसा करती हैं कि फिर उसे संभलने का मौका नहीं देतीं। मधुमक्खियां अपने छत्ते एवं मकरंद इकट्ठा करने के मार्ग में किसी का आना भी बर्दाश्त नहीं करती हैं।
साठे के अनुसार किसी को भी एक बार काटने के बाद मधुमक्खी स्वयं भी जीवित नहीं रहती। उसका यह गुण किसी ‘फिदायीन दस्ते’ की भांति होता है। इसके बावजूद मधुमक्खियां अपने छत्ते एवं समूह की रक्षा के लिए त्याग करने से पीछे नहीं हटतीं।
फसलों से लेकर सीमाओं पर भी हो रहा इस्तेमालमधुमक्खियों के इस रक्षात्मक एवं आक्रामक गुण का उपयोग देश एवं विदेश में फसलों से लेकर सीमाओं की रक्षा तक में किया जाने लगा है। पूर्वी अफ्रीका में पाई जानेवाली एपिस मेलीफेरा स्कुटेल्टा नामक मधुमक्खी का उपयोग वहां हाथियों से मक्के की फसल का बचाव करने के लिए किया जाता है। वहां किसान अपने खेतों की कंटीली बाड़ों पर मधुमक्खी पालनेवाले लकड़ी के बॉक्स लटकाकर रखते हैं। जब हाथी उनके खेतों के निकट आते हैं, तो तार की बाड़ हिलने से आक्रामक स्वभाव की ये मधुमक्खियां अपने छत्तों से बाहर आकर हाथियों की सूंड के अंदरूनी हिस्से में काटना शुरू कर देती हैं। इससे परेशान होकर हाथी जैसे विशाल जीव को भी वहां भागना पड़ता है, और वे फिर उस खेत की ओर रुख नहीं करते।
घुसपैठ रोकने में काम आ रहीं मधुमक्खियांभारत में ऐसा ही प्रयोग अब सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों द्वारा कुछ भारतीय सीमाओं पर घुसपैठ रोकने के लिए भी किया जा रहा है। पिछले वर्ष भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित नादिया जिले में बीएसएफ ने सीमा पार से हो रही घुसपैठ और तस्करी रोकने के लिए सीमा पर लगे कंटीले बाड़ों पर मधुमक्खी पालन के बॉक्स लटकाने का तरीका अपनाया है। इससे एक ओर सीमा पर बसे किसानों के लिए रोजगार की संभावनाएं बढ़ती हैं, तो दूसरी ओर घुसपैठियों द्वारा तार काटे जाने की स्थिति में मधुमक्खियां उन्हें सबक सिखाने के लिए भी तैयार रहती हैं।
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