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- Author, सैयद मोज़िज़ इमाम
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा है कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स को छूना और पायजामी की डोरी तोड़ने को बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के मामले में नहीं गिना जा सकता है.
हालाँकि कोर्ट ने ये कहा कि ये मामला गंभीर यौन हमले के तहत आता है.
ये मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज इलाके का है. घटना साल 2021 में एक नाबालिग लड़की के साथ हुई थी.
कासगंज की विशेष जज की अदालत में इस नाबालिग लड़की की मां ने पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया था, लेकिन अभियुक्तों ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की.
बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के बाद ये फ़ैसला सुनाया.
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फ़ैसले पर उठ रहे हैं सवाल
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कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इस फ़ैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, ”जो क़ानून एक औरत की सुरक्षा के लिए बना है, इस देश की आधी आबादी उससे क्या उम्मीद रखे. जानकारी के लिए बता दूं भारत महिलाओं के लिए असुरक्षित देश है.”
लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा का कहना है, ”कम से कम यह कहा जा सकता है कि यह निर्णय निराशाजनक, अपमानजनक और शर्मनाक है. महिला की सुरक्षा और गरिमा के मामले में तैयारी और प्रयास के बीच का सूक्ष्म अंतर बहुत ही अकादमिक है.”
एडवोकेट सायमा ख़ान कहती हैं, ”भारतीय क़ानून में किसी भी आपराधिक प्रयास को पूर्ण अपराध की श्रेणी में ही देखा जाता है, बशर्ते कि इरादा स्पष्ट हो और अपराध की दिशा में ठोस कदम उठाया गया हो. पायजामी की डोरी तोड़ना या शरीर को जबरन छूना साफ तौर पर बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में आ सकता है, क्योंकि इसका मकसद पीड़िता की शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन करना है.”
क्या है ये मामला?
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इस मामले में लड़की की मां ने आरोप लगाया था कि 10 नंवबर 2021 को शाम पांच बजे जब वो अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ देवरानी के गांव से लौट रही थी तो अभियुक्त पवन, आकाश और अशोक मोटरसाइकिल पर उन्हें रास्ते में मिले.
मां का कहना था कि पवन ने उनकी बेटी को घर छोड़ने का भरोसा दिलाया और इसी विश्वास के तहत उन्होंने अपनी बेटी को जाने दिया.
लेकिन रास्ते में मोटरसाइकिल रोककर इन तीनों लोगों ने लड़की से बदतमीज़ी की और उसके प्राइवेट पार्ट्स को छुआ. उसे पुल के नीचे घसीटा और उसके पायजामी का नाड़ा तोड़ दिया.
लेकिन तभी वहां से ट्रैक्टर से गुजर रहे दो व्यक्तियों सतीश और भूरे ने लड़की का रोना सुना. अभियुक्तों ने उन्हें तमंचा दिखाया और फिर वहां से भाग गए.
जब नाबालिग की मां ने पवन के पिता अशोक से शिकायत की तो उन्हें जान की धमकी दी गई जिसके बाद वे थाने गई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
ये मामला कासगंज की विशेष कोर्ट में पहुंचा जहां पवन और आकाश पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), पॉक्सो एक्ट की धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) और अशोक के ख़िलाफ़ धारा 504 और 506 लगाई गईं.
इस मामले में सतीश और भूरे गवाह बने, लेकिन इस मामले को अभियुक्तों की तरफ से इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या कहा?
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जस्टिस राममनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने ये फ़ैसला उत्तर प्रदेश के कासगंज ज़िले के पटियाली थाना क्षेत्र से जुड़े एक मामले में दिया है.
जस्टिस राममनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों और मामले के तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध करना कि बलात्कार का प्रयास हुआ, संभव नहीं था.
इसके लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना ज़रूरी है कि अभियुक्तों का कृत्य अपराध करने की तैयारी करने के लिए था.
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बलात्कार करने की कोशिश और अपराध की तैयारी के बीच के अंतर को सही तरीके से समझना चाहिए.
हाई कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 354 (बी) (कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 और 10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही मामले में क्या कहा था
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हालांकि ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के फ़ैसले को पलट दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में कहा कि किसी बच्चे के यौन अंगों को यौन इरादे से छूना पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन हिंसा माना जाएगा. इसमें चाहे त्वचा का संपर्क नहीं हुआ हो लेकिन इरादा महत्वपूर्ण है.
इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की एडीशनल जज पुष्पा गनेडिवाला के अभियु्क्त को बरी करने का फ़ैसला लिया था. हाईकोर्ट ने त्वचा से त्वचा का संपर्क न होने के आधार पर फैसला सुनाया था.
फ़ैसले पर कैसी प्रतिक्रिया
सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा मानती हैं कि ये फ़ैसला सही नज़ीर पेश नहीं करेगा और इससे अपराधियों के हौसले बढ़ जाएंगे.
वह कहती हैं, ”यह देखना भयावह है कि न्यायाधीश समाज के सबसे बुरे तत्वों की रक्षा के लिए इस तरह के बहुत ही सूक्ष्म अंतर का उपयोग करते हैं. अफ़सोस की बात है कि आज महिलाओं के लिए न्याय के दरवाजे बहुत कठिन होते जा रहे हैं. ऐसा लगता है कि उन्हें सार्वजनिक स्थानों से दूर करना और उनके संवैधानिक अधिकारों से गंभीर रूप से समझौता करना है.”
एडवोकेट सायमा ख़ान का कहना है कि ये फ़ैसला न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनहीनता को दर्शाता है.
उन्होंने कहा, ”हाई कोर्ट ने बलात्कार के प्रयास को सिद्ध करने के लिए यह तर्क दिया कि जब तक यौन संपर्क या प्रत्यक्ष बलात्कार की कोशिश नहीं होती, तब तक इसे बलात्कार का प्रयास नहीं माना जा सकता. यह संकीर्ण दृष्टिकोण, अपराध की मंशा और परिस्थितियों की अनदेखी करता है.”
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में वकील दिव्या राय का कहना है कि अदालत ने इस तथ्य की अनदेखी की कि यौन उत्पीड़न और शारीरिक छेड़छाड़ का पीड़िता पर गंभीर मानसिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है.
उन्होंने कहा , ”कानून केवल शारीरिक क्षति पर आधारित नहीं होता, बल्कि यह भी देखता है कि पीड़िता की गरिमा और आत्मसम्मान को कितना नुकसान पहुंचा है. ऐसा फैसला न केवल पीड़िता के दर्द को नकारने जैसा है, बल्कि यह भविष्य में अपराधियों को प्रोत्साहित करने वाला भी साबित हो सकता है.”
क़ानून क्या कहता है?
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हालांकि ये मामला भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के अमल में आने से पहले का है. इसलिए फ़ैसला आईपीसी की धारा 376 के तहत दिया गया है और इसके प्रावधान अलग हैं.
धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है जिसके मुताबिक जब तक मुंह, या प्राइवेट पार्ट्स मे लिंग या किसी वस्तु का प्रवेश ना हो, वो बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है.
जस्टिस मिश्रा ने इस केस में साफ किया कि सेक्शन 376, 511 आईपीसी या 376 आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 18 का मामला नहीं बनता है.
वकील दीपिका देशवाल का कहना है महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे अपराध कहीं न कहीं क़ानून में कमी को बताते हैं.
देशवाल का कहना है, ”जब रेपिस्ट की मंशा रेप करने की है और उसके लिए प्रयास भी किया गया है तो ऐसे में (अदालत की तरफ़ से) सख़्त रुख़ की और आवश्यकता है.”
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इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में वकील फ़लक़ क़ौसर का कहना है, ”पॉक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं में यौन अपराधों के सबंध में स्पष्ट प्रावधान मौजूद हैं, जिनका इस मामले में सही तरीके से उपयोग नहीं किया गया. हाई कोर्ट को इन धाराओं का उपयोग करके पीड़िता को न्याय दिलाना चाहिए था. भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में बेहतर प्रावधान मौजूद हैं.”
उनका कहना है कि बीएनएस में इस तरह के अपराधों को लेकर अधिक स्पष्टता है. धारा 63 (बलात्कार के प्रयास) बलात्कार करने का इरादा और उसकी दिशा में किया गया कोई भी कार्य इस धारा के तहत अपराध माना जाएगा.
कौसर बताती हैं, ”धारा 75 (लैंगिक उत्पीड़न) यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की लज्जा भंग करने या उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से छेड़छाड़ करता है, तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा.धारा 79 के तहत यदि किसी महिला के कपड़े उतारने या उसे अपमानित करने का प्रयास किया जाता है, तो इसे गंभीर अपराध माना जाएगा .”
बीएनएस के ये प्रावधान स्पष्ट रूप से ऐसे मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान करते हैं और पीड़ितों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं.
हालांकि इस फैसले से कई सवाल पैदा हो गए हैं. अगर मामला सुप्रीम कोर्ट में जाता है, तो फैसला क्या होता है इस पर सबकी नज़र रहेगी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.