रूस और सीरिया सालों तक एकदूसरे के अहम साझेदार रहे. दोनों के लिए ये फायदे का सौदा था, लेकिन अब सीरिया में सत्ता बदलने के बाद हालात बदल रहे हैं.
इस साझेदारी में रूस को भूमध्यसागर क्षेत्र में हवाई और समुद्री ठिकानों तक पहुंच मिली. वहीं सीरिया की बशर अल-असद सरकार को विद्रोही गुटों के ख़िलाफ़ रूस से सैन्य सहायता हासिल हुई.
अब, सीरिया में बशर अल-असद की सत्ता का पतन हो गया है, जिसके बाद कई सीरियाई नागरिक अब रूसी सेना को वहां से वापस जाते हुए देखना चाहते हैं.
सीरिया में अब विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व वाला प्रशासन है. और यहां की अंतरिम सरकार ने कहा है कि आगे भी रूस के साथ सहयोग के लिए उनके दरवाज़े खुले हैं.
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गृह युद्ध में दौमा शहर बर्बाद हो गया
दमिश्क से छह मील उत्तर-पूर्व में स्थित दौमा में एक प्रमुख विद्रोही कमांडर अहमद ताहा कहते हैं, “रूस ने यहां जो अपराध किए हैं उन्हें बयां नहीं किया जा सकता.”
वो कहते हैं कि यह एक समय तक खुशहाल जगह थी. दौमा इस क्षेत्र का प्रमुख शहर था जिसे ‘सीरिया के लिए रोटी का टोकरा’ कहा जाता था.
लेकिन मौजूदा वक्त में दौमा शहर लगभग 14 साल के गृह युद्ध में सबसे भीषण लड़ाई का गवाह बना. ये शहर अब खंडहर बन चुका है.
ये पूरा शहर, यहां के घर और स्कूल मलबे में तबदील हो गए हैं. स्वतंत्र निगरानी समूहों के अनुसार, इस तबाही की सबसे बड़ी वजह रूसी हवाई हमले हैं.
वहीं रूस ने इस दावे पर ज़ोर देकर कहा है कि “उसने अपने हमलों में केवल आतंकवादियों को ही निशाना बनाया है.”
सीरिया में रूस की एंट्री साल 2015 में हुई. वहां की बशर अल-असद शासन का समर्थन करने के लिए रूस ने यहां कदम रखा.
अहमद ताहा साल 2011 तक एक सामान्य नागरिक थे. वो कहते हैं कि वो एक ठेकेदार और कारीगर के तौर पर काम कर रहे थे.
वो कहते हैं कि उन्होंने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों के क्रूर दमन के बाद असद शासन के ख़िलाफ़ हथियार उठा लिए थे.
जल्द ही अहमद ताहा दौमा में सशस्त्र विरोधी गुटों के नेता भी बन गए.
साल 2018 में सीरियाई सेना की पांच सालों की क्रूर घेराबंदी के बाद, विद्रोही इदलिब के लिए सुरक्षित रास्ता मिलने के बदले हथियार डालने के लिए तैयार हो गए.
रूसी सैन्य पुलिस को इस समझौते के गारंटर के तौर पर दौमा में तैनात किया गया था.
उस समय तक दौमा का 40 फ़ीसदी से भी ज़्यादा हिस्सा बर्बाद हो चुका था और कई लोग भुखमरी से जूझ रहे थे.
अहमद ताहा कहते हैं, “हम रूसी सेना और असद शासन का समर्थन करने वालों की मौजूदगी के बावजूद अपने-अपने घर लौटने में कामयाब रहे.”
ताहा दिसंबर में इस्लामी समूह हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) और उसके नेता अहमद अल-शरा (जिन्हें अल जूलानी के नाम से भी जाना जाता है) के नेतृत्व में हुए एक विद्रोही अभियान के दौरान दौमा लौटे.
ताहा कहते हैं, “इसमें कोई शक नहीं है कि सभी रूसी सैनिकों को सीरिया से चले जाना चाहिए. हमारे लिए रूस एक दुश्मन है.”
सीरिया में हमने जिनसे भी बात की उनमें से अधिकतर लोग रूस के लिए ऐसी ही भावना रखते हैं.
रूसी सेना के बारे में क्या है सीरियाई लोगों की राय
दमिश्क की एक सड़क पर हमारी मुलाक़ात मध्य सीरिया के हमा के रहने वाले अबु हिश्मन से हुई.
वह अपने दोस्त के साथ असद शासन के पतन के बाद मनाए जा रहे जश्न में हिस्सा लेने के लिए राजधानी आए थे.
उन्होंने कहा, “रूसी इस देश में आए और उन्होंने तानाशाहों, ज़ालिमों और घुसपैठियों की मदद की.”
यहां तक कि सीरिया के ईसाई समुदाय के नेता भी यह कह रहे हैं कि उन्हें रूस से बहुत कम मदद मिली है. रूस ने सीरिया में ईसाई समुदाय की सुरक्षा का भरोसा दिया था.
दमिश्क के एक प्राचीन ईसाई हिस्से, बाब तौमा में हमें परंपरागत चर्च के पादरी इग्नाटियस अफ्रेम द्वितीय के इंटरव्यू का मौक़ा मिला.
उन्होंने कहा, “न तो रूस ने और न ही दुनिया में किसी अन्य ने हमारी हिफ़ाज़त की. रूसी अपने फ़ायदे और मक़सद के लिए यहां आए थे.”
हमें वहां एक और सीरियाई ईसाई मिले, असद. उन्होंने बताया कि “शुरुआत में जब रूसी यहां आए थे तो उन्होंने कहा था कि हम यहां आपकी सहायता करने आए हैं. लेकिन हमारी सहायता करने की बजाय उन्होंने सीरिया को और बर्बाद कर दिया.”
सीरिया में साल 2011 में गृह युद्ध की शुरुआत के समय ईसाई आबादी 15 लाख थी. ईसाई संगठन अब यहां उनकी आबादी तीन लाख मानते हैं.
अहमद अल-शरा ने रूस पर क्या कहा था
दौमा में विद्रोही दल के कमांडर अहमद ताहा कहते हैं कि वो ये समझते हैं कि सीरिया की अंतरिम सरकार और अहमद अल-शरा रणनीतिक रूप से (रूस के बारे में) सोचना चाहते हैं.
सीरिया के पूर्व शासक बशर अल-असद के नेतृत्व वाली सीरियाई सरकार ने रूस के साथ समझौता कर भूमध्य सागर के तट पर दो सैन्य ठिकाने रूस को 49 साल के लिए दिए थे.
पिछले साल दिसंबर की शुरुआत में सीरिया में असद शासन के पतन के बाद रूस ने ही बशर अल-असद और उनके परिवार को शरण दी थी.
सीरिया की अंतरिम सरकार के प्रमुख अहमद अल-शरा ने बीते दिनों बीबीसी न्यूज़ इंटरनेशनल के संपादक जेरेमी बॉवेन को एक इंटरव्यू दिया था.
इसमें उन्होंने कहा था, “वह सीरिया में रूसी सैनिकों को रहने की मंज़ूरी देने से इनकार नहीं करेंगे.” शरा ने दोनों देशों के संबंधों को दीर्घकालिक और रणनीतिक तौर पर अहम करार दिया था.
इस वक्त रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने तुरंत ही अहमद अल-शरा की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दी थी.
उन्होंने कहा था, “मुझे ध्यान देना चाहिए था कि सीरियाई सरकार के प्रमुख अहमद अल-शरा ने हाल ही में बीबीसी से बात की है. अपने इंटरव्यू में उन्होंने रूस के साथ संबंधों को दीर्घकालिक और रणनीतिक बताया है.”
सर्गेई लावरोव ने कहा था, “हम भी उनकी तरह ऐसा ही नज़रिया रखते हैं. सीरियाई मित्रों के साथ हमारी बहुत सी समानताएं हैं.”
वहीं रक्षा विश्लेषक और सीरियाई सेना के रिटायर हो चुके जनरल तुर्की अल-हसन का कहना है कि रूस के साथ सीरिया का सैन्य सहयोग असद शासन से पहले का है.
उन्होंने कहा, “अपनी स्थापना के समय से ही सीरियाई सेना पूर्वी देशों के हथियारों से लैस रही है. ख़ास तौर पर सोवियत संघ और अब रूस की मदद से.”
हसन का कहना है कि वास्तव में आज सीरियाई सेना के पास मौजूद लगभग सभी उपकरण सोवियत संघ या रूस के बनाए हुए हैं. सीरियाई सेना के पास पहले से ही रूसी हथियार हैं.
रूस से सीरिया को हथियारों की आपूर्ति जारी
रूसी अनुमान के मुताबिक़, साल 1956 से 1991 के बीच सीरिया को रूस से लगभग 5,000 टैंक, 1,200 लड़ाकू विमान, 70 जहाज समेत कई दूसरे उपकरण और हथियार मिले. इनकी क़ीमत 2,600 करोड़ डॉलर से ज़्यादा बताई जाती है.
साल 1991 तक सोवियत संघ के विघटन के समय तक सीरिया ने इन उपकरणों के लिए आधी से भी ज़्यादा रकम का भुगतान नहीं किया था.
लेकिन 2005 में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सीरिया के कर्ज़ को 73 फ़ीसदी तक माफ़ भी कर दिया था. इसके बाद रूस ने हथियारों की आपूर्ति जारी रखी.
अब नई सारियाई सरकार को सेना के पुननिर्माण के लिए या तो सेना को पूरी तरह फिर से हथियार उपलब्ध कराने होंगे. या उनको हथियारों के लिए रूस पर निर्भर रहना पड़ेगा.
अल-हसन कहते हैं कि इसके लिए दोनों देशों के बीच किसी तरह के संबंध स्थापित करने की ज़रूरत होगी.
वहीं रूस के लिए, उसका टार्टस नौसैनिक अड्डा और ह्मीमिम हवाई अड्डा अफ़्रीका भर में अपनी मौजूदगी को बनाए रखने के लिए अहम है.
रूस के लिए यह हवाई अड्डे, लीबिया, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, माली और बुर्किना फासो में मौजूदगी के लिए अहम है.
आम सीरियाई लोग अब युद्ध के दौर के ख़त्म होने की उम्मीद कर रहे हैं. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि रूस की मौजूदगी उनके देश में शांति बनाए रखने में मदद कर सकती है.
सीरियाई पारंपरिक चर्च के पादरी इग्नाटियस अफ्रेम द्वितीय कहते हैं, “हम अपने देश को और सेना को मज़बूत रखने के लिए रूसियों का स्वागत करते हैं.”
वो कहते हैं, “सवाल ये है कि रूस सारिया की नई सरकार को क्या दे सकता है? और सीरिया की नई सरकार राजनीतिक और सैन्य सहयोग के मामले में रूस के लिए क्या कर सकती है?
इस सवाल के जवाब में तुर्की अल-हसन कहते हैं, “भविष्य में दोनों देशों के रिश्ते इन सवालों के जवाब पर ही टिके रहेंगे.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.