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बहराइच के सेशन कोर्ट ने अक्तूबर 2024 में हुई हिंसा में एक युवक की हत्या के मुख्य अभियुक्त सरफ़राज़ को फांसी की सज़ा सुनाई है.
11 दिसंबर को सुनाए गए फ़ैसले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (प्रथम) पवन कुमार शर्मा ने नौ अन्य अभियुक्तों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई और सबूतों के अभाव में तीन को बरी कर दिया.
13 अक्तूबर 2024 को दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान महसी तहसील क्षेत्र के महराजगंज इलाके में हिंसा भड़क गई थी. भीड़ के बीच राम गोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
आरोप है कि राम गोपाल मिश्रा अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के मकान की छत पर चढ़कर झंडा बदलने की कोशिश कर रहे थे, जिसके बाद विवाद शुरू हुआ था.
इस मामले में जिन नौ अभियुक्तों को उम्रक़ैद दी गई है, उन्हें भारतीय न्याय संहिता की धारा 103(2) (हत्या), 191(2) (दंगा), 191(3) (हथियारों के साथ दंगा), आर्म्स एक्ट और अन्य धाराओं के तहत दोषी पाया गया.
अदालत ने फ़ैसले में क्या कहा
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अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस अपराध से पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गई थी, आवश्यक सेवाएं बाधित हुईं और हालात कर्फ़्यू जैसे बन गए.
आदेश में मृतक राम गोपाल की पत्नी रोली मिश्रा का उल्लेख करते हुए कहा गया, “वह विवाह के चार महीने के भीतर ही विधवा हो गईं, जो परिवार के लिए आजीवन त्रासदी है.”
अदालत ने कई गंभीर परिस्थितियों का ज़िक्र किया. न्यायाधीश ने कहा, “हत्या अत्यंत क्रूर, नृशंस और समाज की अंतरात्मा को झकझोरने वाली थी.”
पुलिस ने घटना के दिन 13 अक्तूबर, 2024 को ही छह नामजद अभियुक्तों के खिलाफ केस दर्ज किया था और बाद में सात और नाम जोड़े गए. 10 जनवरी, 2025 को सभी 13 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की गई थी.
हालांकि सज़ा के पहले अभियुक्तों ने मीडिया से कहा, “हमने कुछ नहीं किया था. लेकिन हमारी बात नहीं सुनी गई. हमारी दुकान जलाई गई. उसका कोई मुक़दमा नहीं लिखा गया है.”
फ़ैसले में राम गोपाल मिश्रा के शरीर की चोटों का ज़िक्र किया गया है.
अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया, “मिश्रा की हत्या अत्यंत क्रूरता और बर्बरता से की गई थी. अभियोजन ने कहा कि अभियुक्तों ने मिश्रा पर आठ राउंड फायर किए. पोस्टमॉर्टम में 29 एंट्री वुंड और 2 एग्ज़िट वुंड मिले. उनके पैर के अंगूठे जलाए गए, नाखून उखाड़े गए और भौंह पर चोट पहुंचाई गई. शरीर का ऊपरी हिस्सा छलनी जैसा दिख रहा था.”
लेकिन उस वक्त पुलिस ने ऐसी किसी घटना होने से इनकार किया था. बहराइच पुलिस ने सिर्फ़ यह बताया था कि शरीर में गोली लगने की रिपोर्ट है.
अभियोजन ने तर्क दिया कि अपराध में स्पष्ट आपराधिक मनोभाव और हत्या की मंशा थी.
उन्होंने इसे ‘ठंडे दिमाग से की गई, नृशंस हत्या’ बताया, जिसका उद्देश्य समाज में दहशत फैलाना था. अभियोजन के अनुसार, अभियुक्त दुर्गा विसर्जन जुलूस में शामिल व्यक्ति को निशाना बनाकर धार्मिक वर्चस्व का संदेश देना चाहते थे.
अभियुक्त और पीड़ित पक्ष ने क्या कहा
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अदालत के फ़ैसले के बाद मृतक की पत्नी रोली मिश्रा ने कहा, “अदालत के फ़ैसले से संतुष्ट हूं. जैसी उम्मीद थी वैसा ही फ़ैसला है.”
अदालत ने जिन 9 लोगों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है, उनमें अब्दुल हमीद, फ़हीम, सैफ़ अली, जावेद ख़ान, ज़ीशान उर्फ राजा उर्फ साहिर, ननकऊ, मारूफ़ अली, शोएब ख़ान और तालिब उर्फ़ सबलू शामिल हैं. अदालत ने अफज़ल, शकील और ख़ुर्शीद को बरी कर दिया है.
हालांकि ननकऊ की बेटी ने दावा किया कि उनके पिता घटना के दिन नेपाल में थे. उन्होंने कहा, “प्रधानी की रंजिश की वजह से उन्हें फंसाया गया है. वह तो नेपाल में थे. हमें न्याय नहीं मिला है.”
अभियोजन पक्ष के वकील एसपी सिंह ने कहा कि पुलिस ने सबूतों के साथ मज़बूत केस तैयार किया और बरामद हथियार का फ़ोरेंसिक टेस्ट भी कराया गया था.
उन्होंने कहा, “इससे पुष्टि हुई कि राम गोपाल मिश्रा पर गोली चलाने के लिए सरफ़राज़ ने वही हथियार इस्तेमाल किया था.”
आठ गवाहों के बयान अदालत में पेश किए गए थे.
हालांकि अभियुक्त पक्ष के वकील मुख़्तार आलम ने बीबीसी से कहा, “अदालत के फ़ैसले का हम सम्मान करते हैं. लेकिन यह मामला राजनैतिक ज़्यादा था, हम लोग इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करने की तैयारी कर रहे हैं.”
मनु स्मृति को किया कोट
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अपर ज़िला जज पवन कुमार शर्मा ने अपने फ़ैसले में पेज नंबर 135 पर मनु स्मृति को कोट किया.
उन्होंने लिखा, “इस प्रकार दंड दिया जाना चाहिए जिससे समाज में पनप रहे हैवानों के अंदर भय उत्पन्न हो और समाज में न्यायिक व्यवस्था के प्रति विश्वास उत्पन्न हो.”
फिर उसी श्लोक को कोट करते हुए आगे लिखते हैं. “मनु स्मृति के अनुसार प्रजा द्वारा राज धर्म का पालन किया जाए इसलिए दंड विधान का होना नितांत आवश्यक माना गया है.”
इस पहलू पर सवाल पूछे जाने पर महसी के बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह ने कहा, “अदालत के फ़ैसले पर सिर्फ़ ऊपरी अदालतें फ़ैसला कर सकती है. जहां तक मनु स्मृति की बात है, अदालत चाहे तो बाइबिल, क़ुरान और गीता को भी कोट कर सकती हैं. यह उनके विवेक पर है. इस पर कोई टिप्पणी नहीं है.”
हालांकि अदालत के मनु स्मृति को कोट करने पर टिप्पणी करते हुए बीएसपी के ज़िला अध्यक्ष अजय गौतम ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है.”
कानून के जानकर इस फ़ैसले को अलग नज़र से देख रहे हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकील सानिया कहती हैं, “सत्र न्यायालय द्वारा अभियुक्त को मृत्यु-दंड और अन्य अभियुक्तों को आजीवन कारावास सुनाया जाना भारतीय आपराधिक न्यायशास्त्र में महत्वपूर्ण है.”
उन्होंने कहा कि ज़्यादातर मामलों में दंगों को सामूहिक हिंसा के मामलों की तरह देखा जाता है और अदालतें अपराध को अचानक उत्तेजना या भीड़ की मनोवैज्ञानिक स्थिति के चलते “सडन मिटिगेशन” की स्थिति मानकर ग़ैर इरादातन हत्या की श्रेणी में रखती रही हैं.
वैसे बहराइच हिंसा के फ़ैसले में कई वकील सानिया से अलग राय रखते हैं.
इलाहाबाद हाइकोर्ट में वकील अभिषेक दीक्षित ने कहा, “हत्या की साज़िश पहले रची गई थी, यह तो पुलिस की थ्योरी है लेकिन अदालत ने माना है. इस पर ऊपरी अदालतें परीक्षण करेंगी.”
अभिषेक दीक्षित कहते हैं, “हालांकि अदालत ने इरादा स्पष्ट और लक्षित बताया है. जिससे कठोर दंड न्यायिक रूप से उचित ठहरता है लेकिन दंगों में अचानक परिस्थिति उत्पन्न होती है.”
13 अक्तूबर को क्या हुआ था
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13 अक्तूबर को 2024 को दुर्गा प्रतिमा विसर्जन को लेकर जुलूस निकला था, जिसके महराजगंज कस्बे में पहुंचने के बाद विवाद शुरू हुआ.
मुख़्तार आलम बचाव पक्ष के वकील हैं, उनका कहना है, “मृतक के कई वीडियो वायरल हुए, जिसमें वह अभियुक्त की छत पर चढ़कर भगवा झंडा लगा रहे थे. इस दौरान उनके ऊपर गोली चली लेकिन किधर से चली, यह नहीं मालूम. इसलिए इस फ़ैसले को ऊपरी अदालत में ले जाया जाएगा.”
मृतक राम गोपाल मिश्रा की हत्या के अगले दिन, अंतिम संस्कार के दौरान, भीड़ उग्र हो गई थी.
कई वाहनों, नर्सिंग होम और ऑटोमोबाइल शोरूम को आग के हवाले कर दिया गया था और एक अस्पताल में तोड़फोड़ की गई थी. ज़िले में इंटरनेट सेवाएं रोक दी गईं थीं.
हालात को काबू में करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एडीजी (कानून-व्यवस्था) अमिताभ यश और तत्कालीन गृह सचिव संजीव गुप्ता को मौके पर भेजा था.
उस समय हरदी थाना प्रभारी एसके वर्मा और महाराजगंज पुलिस चौकी प्रभारी उपनिरीक्षक शिव कुमार को लापरवाही के आरोप में निलंबित किया गया था.
अदालत को बताया गया कि इस घटना का राज्यभर में असर पड़ा. बहराइच एक महीने तक तनावग्रस्त रहा, बाज़ार और स्कूल बंद रहे, लोग घरों में कैद रहे.
तीन दिन तक इंटरनेट सेवाएं निलंबित रहीं. आरएएफ़, पीएसी और आसपास के ज़िलों से पुलिस बल तैनात किया गया. शांत ज़िला छावनी में तब्दील हो गया.
अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि हत्या ने साम्प्रदायिक सौहार्द को तोड़ा और संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया. सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों- बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980) और मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य (1983)- का हवाला देते हुए अधिकतम दंड यानी फांसी की मांग की गई.
हाल के सालों में भीड़ की हिंसा के केस में ये पहला मामला है जिसमें मौत की सज़ा दी गई है.
(अज़ीम मिर्ज़ा की अतिरिक्त रिपोर्टिंग के साथ)
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.