हाल में जब पाकिस्तान के बंदरगाह शहर कराची से कंटेनरों से लदे एक जहाज़ ने करीब 53 साल बाद बांग्लादेश के सबसे बड़े चटगांव बंदरगाह पर लंगर डाला तो इसने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ने की उम्मीदें भले बढ़ाई हों, लेकिन इसने भारत की चिंता ज़रूर बढ़ा दी है.
वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के आज़ाद होने के बाद यह पहला मौका है जब दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क कायम हुआ.
इससे पहले पाकिस्तान से बांग्लादेश को होने वाला आपसी व्यापार सिंगापुर या श्रीलंका के ज़रिए होता था.
लेकिन आख़िर अचानक पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच नज़दीकियां क्यों बढ़ने लगी हैं, इसको लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया. हालांकि इसे समझने के लिए हमें अतीत में झांकना होगा.
1971 के युद्ध और बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर उभरने के बाद पाकिस्तान के साथ उसके रिश्तों में हमेशा खटास रही है.
नौ महीने तक चले मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तान सेना के अत्याचार की यादें बांग्लादेश के लोगों के मन में गहराई तक बसी हैं.
पाकिस्तानी सेना के हाथों करीब 30 लाख लोग मारे गए और हज़ारों को अत्याचार और बलात्कार झेलना पड़ा. इससे बचने के लिए लाखों लोग देश छोड़कर पलायन कर गए थे.
‘पाकिस्तान ने नहीं मांगी है माफ़ी’
लेकिन उसके बाद से पाकिस्तान इन अत्याचारों के लिए माफ़ी मांगने की बजाय 1971 की लड़ाई में भारत की भूमिका का ही ज़िक्र करता रहा.
पाकिस्तान की दलील थी कि बांग्लादेश का मुक्ति युद्ध आम लोगों का आंदोलन नहीं बल्कि मोहम्मद अली जिन्ना के पाकिस्तान प्रोजेक्ट को तोड़ने की भारतीय साज़िश थी.
कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार पुलकेष घोष कई बार चटगांव समेत बांग्लादेश के विभिन्न इलाकों का दौरा कर चुके हैं.
वो कहते हैं, “पाकिस्तान ने 1971 के अत्याचारों के लिए कभी माफ़ी नहीं मांगी. यही बांग्लादेश के साथ उसके संबंधों को सुधारने की राह का सबसे बड़ा रोड़ा था. दूसरी ओर, सत्ता में रहने के दौरान शेख़ हसीना ने 1971 के युद्ध अपराधियों को चुन-चुन कर सज़ा दी. वर्ष 2010 में उन्होंने ऐसे लोगों को सज़ा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण का गठन किया और पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी लगा दी.”
घोष बताते हैं कि वर्ष 2013 में जमात नेता अब्दुल क़ादिर मौल्ला को युद्ध अपराध के आरोप में मौत की सज़ा सुनाई गई. उस समय पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री चौधरी निसार अली ख़ान ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा था कि अब्दुल क़ादिर को 1971 में पाकिस्तान के प्रति निष्ठा और एकजुटता दिखाने की वजह से ही फांसी पर चढ़ाया गया है.
हसीना के शासनकाल में मज़बूत हुए रिश्ते
हसीना के शासनकाल में बांग्लादेश और भारत के आपसी रिश्ते लगातार मज़बूत हुए.
मुक्ति युद्ध के दौरान भूमिका की वजह से ज़्यादातर बांग्लादेशियों के मन में भारत के लिए ख़ास जगह थी. नेहरू-गांधी परिवार से हसीना के भी रिश्ते नज़दीकी और पारिवारिक थे. शेख़ मुजीब की हत्या के बाद वर्ष 1975 में उन्हें दिल्ली में शरण दी गई थी.
लेकिन बांग्लादेश में एक तबका ऐसा भी था जिसे हसीना की भारत से बढ़ती नज़दीकियां पसंद नहीं थीं. यही आगे चलकर वहां भारत-विरोधी अभियान की वजह बनी.
बीते अगस्त में एक भीड़ ने ढाका में इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र में तोड़-फोड़ के बाद आग लगा दी थी. यह वहां करीब पांच दशकों से भारतीय सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा था.
अब हसीना के सत्ता से हटने के बाद देश में पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी की स्थिति काफ़ी मज़बूत हो गई है. यह संगठन 1971 में पाकिस्तान के साथ और अलग बांग्लादेश के ख़िलाफ़ था.
घोष कहते हैं, “यह स्थिति पाकिस्तान हुक्मरानों के लिए बांग्लादेश की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए मुफीद थी. ढाका की अंतरिम सरकार ने भी पाकिस्तान के इन प्रयासों के प्रति सकारात्मक रुख़ दिखाया है. अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस ने बीते सितंबर में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ से मुलाकात भी की थी और दोनों देशों के आपसी संबंधों को नए सिरे से मज़बूत करने और इसमें एक नया अध्याय जोड़ने पर ज़ोर दिया था. दोनों देशों के बीच ताज़ा समुद्री संपर्क को भी इसी कवायद का हिस्सा माना जाना चाहिए.”
किन मुद्दों को लेकर है चिंता
भारत की चिंता की वजह यह है कि दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क कायम होने से खासकर पूर्वोत्तर में सुरक्षा और उग्रवाद को नया ईंधन मिलने की आशंका है. इसकी वजह यह है कि बांग्लादेश का दक्षिण-पूर्वी इलाका पूर्वोत्तर से सटा है.
राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी कहती हैं, “फ़िलहाल पूरा पूर्वोत्तर उबल रहा है. भारत अपनी आंतरिक समस्याओं को संभालने में नाकाम रहा है. दूसरी ओर, शेख हसीना के सत्ता में रहते बांग्लादेश ऐसी जगह थी जहां से ख़तरा नहीं था. लेकिन अब उधर से भी ख़तरा पैदा हो रहा है. अब वहां हसीना नहीं हैं और इधर, पूर्वोत्तर में हालात बेक़ाबू हो रहे हैं.”
उनका कहना है कि मणिपुर की समस्या ‘कैंसर’ का रूप ले चुकी है. लेकिन नागालैंड के हालात उससे भी ख़तरनाक हैं. फ्रेमवर्क एग्रीमेंट के बारे में किसी को जानकारी नहीं है. अब नगा संगठनों ने अलग राज्य की मांग में दोबारा आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दी है.
शिखा का कहना है कि केंद्र सरकार की नीतियों के कारण पूर्वोत्तर में ‘डिमांड’ पैदा हो रही है और अब बांग्लादेश से ‘सप्लाई लाइन’ खुल सकती है. यह बेहद ख़तरनाक होगा.
क्या हैं आशंकाएं?
लेकिन भारत में इसे लेकर चिंता बढ़ रही है. विश्लेषकों का कहना है कि अब पाकिस्तानी जहाज़ सीधे चटगांव तक पहुंच सकते हैं. इससे उन जहाज़ों के ज़रिए अवैध हथियारों की ढुलाई और उनकी पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुटों की सप्लाई की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.
शिखा मुखर्जी कहती हैं, “यह भारत के साथ बांग्लादेश के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने कहा है कि वह पाकिस्तान से आने वाले सामानों की जांच नहीं करेगी. ऐसे में किसी को पता नहीं चलेगा कि उन पर लदे कंटेनरों में क्या भरा है. उनमें गोला-बारूद और विस्फोटक आ ही सकते हैं.”
शिखा मुखर्जी इस मामले में वर्ष 2004 में चटगांव बंदरगाह में अवैध हथियारों के ज़खीरे की सबसे बड़ी बरामदगी की घटना का ज़िक्र करती हैं. उन चीनी हथियारों को असम के उग्रवादी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम तक पहुंचना था. लेकिन खुफ़िया सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर उसे पहले ही ज़ब्त कर लिया गया था. इस पूरी साज़िश के पीछे पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी आईएसआई का हाथ बताया गया था.
पुलकेश घोष कहते हैं, “इस समुद्री संपर्क की वजह से पूर्वोत्तर को लेकर चिंता स्वाभाविक है. बांग्लादेश की मौजूदा परिस्थिति वहां पाकिस्तानी गतिविधियों के लिए एकदम मुफीद है. वहां की मौजूदा सरकार ने साफ़ कर दिया है कि वह (भारत के साथ) हसीना सरकार की तरह मित्रतापूर्ण रवैया नहीं अपनाएगी. साथ ही धीरे-धीरे वह पाकिस्तान की ओर झुकती नज़र आ रही है.”
घोष की राय में शेख़ हसीना के कार्यकाल में पूर्वोत्तर जितना सुरक्षित था, अब शायद वैसा नहीं रहेगा.
चटगांव पोर्ट सामरिक रूप से भी बेहद अहम है. पूर्वोत्तर के उग्रवादियों की शरणस्थली और हथियारों की सप्लाई के लिए कुख्यात रहा म्यांमार भी चटगांव पोर्ट से ज़्यादा दूर नहीं है. इसके अलावा यह बंगाल की खाड़ी के ज़रिए पूर्वोत्तर भारत के प्रवेश द्वार के तौर पर काम करता है. यहां तक पाकिस्तानी जहाज़ों की नियमित आवाजाही इलाके की भू-राजनीति पर असर डाल सकती है.
शिखा मुखर्जी कहती हैं, “बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सीधा समुद्री संपर्क कायम होना भारत के लिए राजनीतिक रूप से एक बेहद जटिल मुद्दा है. अतीत में भी बांग्लादेश सीमा से होकर आईएसआई और अलकायदा जैसे संगठन भारत में सक्रिय रहे हैं. इन अनुभवों से साफ है कि सुरक्षा के लिहाज़ से यह एक समस्या हो सकती है.”
बांग्लादेश सीमा से सटे उत्तर बंगाल के एक कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे सुकोमल सेनगुप्ता कहते हैं, “दोनों देशों के बीच सीधा समुद्री संपर्क इलाके की भू-राजनीति पर निश्चित तौर पर असर डालेगा. लेकिन भारत की चिंता इससे कहीं ज़्यादा है. फिलहाल पूर्वोत्तर इलाका बेहद संवेदनशील बना हुआ है. पाक खुफिया एजेंसी इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश करेगी, इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है.”
श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट (पहले कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट) के एक अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, “यह मामला बेहद चिंताजनक है. इसका इलाके की राजनीति पर गहरा असर पड़ सकता है. लेकिन सरकार को भी शायद इस ख़तरे का अहसास होगा. वह भी निश्चित तौर पर इस मामले पर नज़दीकी निगाह रख रही होगी.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित