इमेज कैप्शन, बीते 18 दिसंबर को भारत में विदेशी मामलों की एक संसदीय समिति ने ‘भारत-बांग्लादेश रिश्तों के भविष्य’ पर एक रिपोर्ट लोकसभा में पेश की है
‘साल 1971 की जंग के बाद भारत को बांग्लादेश में सबसे बड़े रणनीतिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. राष्ट्रवाद के उभार, इस्लामी संगठनों की दोबारा सक्रियता और चीन, पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव ने बांग्लादेश में भारत के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. अगर समय रहते भारत ने अपनी नीति में बदलाव नहीं किए, तो वह बांग्लादेश में अप्रासंगिक हो जाएगा.’
यह बातें भारत में विदेशी मामलों की एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में रेखांकित की गई हैं. 99 पन्नों की इस रिपोर्ट में समिति ने भारत-बांग्लादेश के रिश्तों से जुड़ी उन चुनौतियों का ज़िक्र किया है, जो अगस्त 2024 के बाद खड़ी हुई हैं.
अगस्त, 2024 – यह वह महीना था, जब बांग्लादेश में व्यापक जनउभार के बाद देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी. तब से वह यहीं रह रही हैं और देश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार काम कर रही है.
संसदीय समिति की रिपोर्ट इस बारे में बात करती है कि बांग्लादेश की राजनीति में हुए इस परिवर्तन के बाद भारत के साथ उसके रिश्तों का भविष्य कैसा होगा.
रिपोर्ट को तैयार करने के लिए कांग्रेस सांसद शशि थरूर के नेतृत्व वाली इस समिति ने विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधियों से बातचीत की है और बीते 27 जून को चार विशेषज्ञों की राय भी सुनी है.
इन विशेषज्ञों में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन, विदेश मंत्रालय की पूर्व सचिव रीवा गांगुली और जेएनयू में स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के डीन और प्रोफ़ेसर डॉ अमिताभ मट्टू शामिल थे.
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इमेज कैप्शन, विशेषज्ञ मानते हैं कि बांग्लादेश में शेख़ हसीना की सरकार के जाने के बाद लंबे समय से सहयोगी रहे भारत के साथ उसके संबंधों में तनाव आया है
इन्हीं में से एक विशेषज्ञ ने बांग्लादेश के बदलते हालात को समझाते हुए रिपोर्ट में कहा है, ”1971 की आज़ादी की जंग के बाद पहली बार भारत को बांग्लादेश से जुड़ी इतनी बड़ी रणनीतिक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. 1971 में भारत के सामने चुनौती साफ़ थी…मानवीय संकट, भारत की उसमें सीधी भूमिका और फिर एक नए देश का जन्म. लेकिन आज की चुनौती अलग और कहीं ज़्यादा गहरी है.
आज के बांग्लादेश में नई पीढ़ी का उभार दिख रहा है, राजनीति का संतुलन बदल रहा है और देश धीरे-धीरे भारत से दूर होता नज़र आ रहा है. देश में अवामी लीग का लंबे समय से चले आ रहे प्रभाव के ख़त्म होने के बाद राष्ट्रवाद उभार पर है, इस्लामी संगठनों की वापसी हुई है और देश में चीन और पाकिस्तान का असर बढ़ा है. ऐसे में इन सबने मिलकर हालात को एक नए मोड़ पर ला खड़ा कर दिया है. ”
जो भारत के हित में नहीं है. भारत बांग्लादेश को एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में देखता है. व्यापार और कनेक्टिविटी के मामले में दक्षिण एशिया में बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा पार्टनर है. लेकिन अगस्त, 2024 के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में उथल-पुथल जारी है.
कट्टरपंथ और चरमपंथी गतिविधियों पर चिंता
रिपोर्ट में एक विश्लेषक के हवाले से बांग्लादेश के साथ भारत के रिश्तों में मौजूदा चुनौतियों के पीछे प्रमुख वजहें गिनाई हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश की नौजवान पीढ़ी देश की नींव रखने में भारत के योगदान को उस रूप से नहीं देखती, जैसे पहले की पीढ़ियां देखा करती थीं. नई पीढ़ी में से कई बांग्लादेश बनाने में भारत की भूमिका को संदिग्ध नज़रों से भी देखते हैं.
साल 1971 में दोनों देशों के रिश्तों को लेकर बनी साझा समझ और सहमति समय के साथ कमज़ोर पड़ी है. साथ ही नई राजनीतिक शक्तियों का उभार, बढ़ता इस्लामी कट्टरपंथ और चीन-पाकिस्तान के प्रति रणनीतिक झुकाव ने भी भारत के लिए चुनौती बढ़ाई है.
रिपोर्ट में समिति ने अगस्त 2024 के बाद बांग्लादेश में बने राजनीतिक हालात पर भी चिंता जताई है. ख़ासतौर पर राजनीतिक हिंसा और बढ़ते कट्टरपंथ को लेकर.
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इमेज कैप्शन, बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार पर आरोप लग रहा है कि वह इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रही है
समिति ने कहा है कि भारत ने हमेशा बांग्लादेश के साथ सकारात्मक रिश्तों पर ज़ोर दिया है, लेकिन इन हालात के कारण दोनों देशों के संबंधों के कुछ पहलुओं पर प्रभाव पड़ा है, ख़ासकर सुरक्षा सहयोग और आपसी संपर्क पर.
साथ ही अल्पसंख्यकों पर हमले और द्विपक्षीय रिश्तों पर हुए असर को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की गई है.
भारत-बांग्लादेश संबंधों में मौजूदा प्रमुख चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीकों पर मंत्रालय ने कहा कि दोनों देशों के रिश्तों में अवैध घुसपैठ, कट्टरपंथ और उग्रवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे और भारत की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता के ख़िलाफ़ होने वाली उग्र बयानबाज़ी भी चुनौती बनकर उभरे हैं.
मंत्रालय के अनुसार, इन चुनौतियों से निपटने के लिए बांग्लादेश सरकार के साथ सहयोग किया जा रहा है और तथ्यों को सामने रखा जा रहा है. भारत सरकार बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को लेकर भी चिंतित है और यह मुद्दा अलग-अलग स्तरों पर उठाया गया है.
इसके अलावा सीमा सुरक्षा से जुड़े मुद्दे, जैसे सीमा पार तस्करी, नशीले पदार्थों की तस्करी और मानव तस्करी, भी बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं. इनसे निपटने के लिए विशेष तंत्र बनाए गए हैं.
चीन के बढ़ते प्रभाव पर निगरानी
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इमेज कैप्शन, अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश के प्रमुख सलाहकार प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस ने चीन को अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए चुना था
समिति ने बांग्लादेश में चीन की बढ़ती मौजूदगी पर भी चिंता जताई है, खासकर बुनियादी ढांचे के विकास, बंदरगाहों के विस्तार और रक्षा सहयोग के क्षेत्र में.
इसमें मोंगला पोर्ट परियोजना और लालमोनिरहाट एयरबेस का ज़िक्र किया गया है.
समिति ने कहा है कि मार्च 2025 में बांग्लादेश ने चीन के साथ मोंगला पोर्ट के विस्तार के लिए 37 करोड़ अमेरिकी डॉलर की परियोजना को लागू करने का समझौता किया है.
समिति ने यह भी कहा कि लालमोनिरहाट एयरबेस को चीनी मदद से विकसित किया जा रहा है. हालांकि बांग्लादेशी सेना के डायरेक्टर ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस ने यह स्पष्ट किया है कि फिलहाल इस हवाई पट्टी को सैन्य उपयोग के लिए अपग्रेड करने की कोई योजना नहीं है.
समिति ने जमात-ए-इस्लामी पार्टी के नेताओं के हालिया चीन दौरे का भी ज़िक्र किया और कहा कि इससे बांग्लादेश के अलग-अलग राजनीतिक गुटों के साथ चीन की गहराती बातचीत का संकेत मिलता है, जिससे वहां उसकी मौजूदगी और मज़बूत हो रही है.
समिति ने सिफारिश की है कि सरकार बांग्लादेश में विदेशी शक्तियों की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखे, क्योंकि किसी भी वैसे देश, जिनके साथ भारत के रिश्ते अच्छे नहीं हैं (पाकिस्तान-चीन) उनका वहां सैन्य ठिकाना बनाने की कोशिश भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा हो सकती है.
हालात पूरी तरह निराशाजनक नहीं
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इमेज कैप्शन, तनाव के बीच इसी साल अप्रैल महीने में पहली बार पीएम मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की थाईलैंड में मुलाक़ात हुई थी
हालांकि रिपोर्ट में एक विशेषज्ञ के हवाले से यह भी कहा गया है कि भारत-बांग्लादेश के बीच हालात पूरी तरह निराशाजनक भी नहीं हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि बांग्लादेश के साथ हमारी पाकिस्तान जैसी स्थिति नहीं है, जहां मतभेदों को सुधारना असंभव हो चुका हो.
इसके पीछे उन्होंने तीन मुख्य कारण भी बताए हैं:
बांग्लादेश की पहचान केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि उसकी एक मज]बूत सांस्कृतिक और भाषाई बंगाली पहचान भी है.
बांग्लादेश में जनाधारित राजनीतिक दल हैं और वहां अर्द्ध-लोकतांत्रिक (सेमी-डेमोक्रेटिक) राजनीति की एक परंपरा रही है.
बांग्लादेश की सेना पाकिस्तान की सेना जैसी नहीं है और उसने अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ बंदूक उठाने से मना कर दिया है.
शेख़ हसीना पर भी सवाल
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इमेज कैप्शन, पांच अगस्त 2024 से ही शेख़ हसीना भारत में रह रही हैं और बांग्लादेश सरकार ने उनके प्रत्यर्पण की अपील की है
रिपोर्ट में शेख़ हसीना का भी ज़िक्र है.
रिपोर्ट के पेज नंबर 11 में बताया गया है कि समिति के कुछ सदस्यों ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को राजनीतिक शरण दिए जाने से जुड़े सवाल उठाए थे.
इसके जवाब में विदेश सचिव ने 11 दिसंबर 2024 को समिति के सामने सरकार का रुख स्पष्ट किया. उन्होंने कहा कि शेख़ हसीना के मामले में भारत सरकार ने वही किया है, जो उसकी परंपरा का हिस्सा रहा है.
विदेश सचिव के अनुसार, संकट की घड़ी में जिसने भी भारत से शरण मांगी है, भारत ने हमेशा उसके लिए अपने दरवाज़े खोले हैं. यह भारत की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा है.
उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने अपना यह रुख़ बांग्लादेश में अपने साझेदारों के सामने साफ़ तौर पर रखा है और सरकार यह नहीं मानती कि शेख़ हसीना का भारत में रहना बांग्लादेश के साथ भारत के रिश्तों के लिए कोई चुनौती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित