डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में मुहम्मद यूनुस के आने के बाद से वहां कट्टरपंथ में लगातार वृद्धि हुई है। कट्टरपंथ का बढ़ना, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और आतंकी शिविरों का तेजी से बढ़ना तय था क्योंकि यूनुस पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई-नियंत्रित जमात-ए-इस्लामी के हाथों की कठपुतली बन गए हैं।
हिंसा जहां एक ओर रोजमर्रा की बात हो गई है, वहीं देश में आईएसआई की बढ़ती मौजूदगी गंभीर चिंता का सबब बन गई है। बहरहाल, बांग्लादेश के लोगों के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि पाकिस्तान उनके देश की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहा है।
बड़ी संख्या में आतंकी शिविर बना रही है खुफिया एजेंसी आईएसआई
आइएसआइ बड़ी संख्या में आतंकी शिविर स्थापित कर रही है। इनकी निगरानी के लिए आईएसआई के अधिकारी ही इन शिविरों के प्रभारी हैं। युवाओं की भर्ती की देखरेख का काम जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेयूएमबी), अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) और हरकत-उल-जिहादी इस्लामी (हूजी) को सौंपा गया है।
ढाका में तीन शिविर स्थापित किए गए हैं। बांग्लादेशियों की सोच को अत्यधिक कट्टरपंथी बनाने के लिए आइएसआइ देश को पाकिस्तान की तरह चलाने की साजिश रच रही है। पाकिस्तान से बांग्लादेश आने वाले मौलवियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। वे चटगांव पहाड़ी इलाकों और कई अन्य स्थानों पर आईएसआई द्वारा स्थापित शिविरों में जाते हैं। इसके अलावा, आईएसआई ने ढाका में भी विशेष शिविर स्थापित किए हैं जहां ये मौलवी जाते हैं।
बांग्ला की जगह उर्दू को मुख्य भाषा बनाने के लिए उधेड़बुन
मौलवियों की यात्राओं का आयोजन पाकिस्तान द्वारा किया जाता है और जमात, हिज्ब-उत-तहरीर और बांग्लादेशी इस्लामी आंदोलन जैसे समूहों द्वारा इनका समन्वय किया जाता है। इन यात्राओं के दौरान इन संगठनों का काम बांग्लादेश के युवाओं को बड़ी संख्या में इन शिविरों तक पहुंचाना होता है। इन सत्रों के दौरान मौलवी विशुद्ध इस्लामी पहचान के महत्व और उर्दू को आधिकारिक भाषा बनाने की आवश्यकता पर उपदेश देते हैं।
इसका उद्देश्य लोगों के बीच से बांग्लादेश की सांस्कृतिक पहचान को पूरी तरह मिटाकर देश को पूरी तरह से पाकिस्तान की विचारधारा की ओर झुकाना है। बांग्लादेश की आधिकारिक भाषा बांग्ला है। कम से कम 98 प्रतिशत लोग इस भाषा में पारंगत हैं। इसके अलावा, बड़ी संख्या में लोग अंग्रेजी भी बोलते हैं। पाकिस्तान इसी बदलाव पर विचार कर रहा है और उर्दू को मुख्य भाषा के रूप में लागू करना चाहता है।
अधिक मदरसे स्थापित करने एवं बच्चों को इनमें ही भेजने पर जोर
आईएसआई जमात से और अधिक मदरसे स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह कर रही है कि बच्चे नियमित स्कूलों के बजाय इन स्थानों को प्राथमिक शिक्षा केंद्र के रूप में उपयोग करें। पाकिस्तान कई वर्षों से अपने देश में इसी तरह का प्रयास कर रहा है। बांग्लादेश में इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश पर मौलवियों का शासन हो। वह चाहता है कि बांग्लादेशी पाकिस्तानियों जैसे ही बन जाएं जिन्हें जन्म से ही भारत से नफरत करना सिखाया जाता है।
आईएसआई और जमात की यह साजिश इस क्षेत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। पूरी तरह से कट्टरपंथी बांग्लादेश का मतलब होगा कि लोग अच्छे स्कूलों में पढ़ने और नौकरी करने के बजाय आजीविका के लिए आतंकवाद के रास्ते पर चल पड़ेंगे।