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- Author, फणींद्र दहाल
- पदनाम, बीबीसी न्यूज़ नेपाली
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हमास ने दो साल पहले नेपाल के नागरिक बिपिन जोशी को इसराइल में बंधक बनाया था. बंधक बनाए जाने से पहले जोशी ने हमास के एक ग्रेनेड हमले से अपने दोस्त की जान बचाई थी.
जिस दोस्त धन बहादुर चौधरी की उन्होंने जान बचाई, उन्होंने बीबीसी नेपाली को इस घटना का पूरा ब्योरा दिया.
धन बहादुर चौधरी ने बीबीसी नेपाली से कहा, “अगर ग्रेनेड फट जाता तो शायद मैं ज़िंदा नहीं बचता. बिपिन ने हिम्मत दिखाई और ग्रेनेड को बाहर फेंक दिया.”
इसराइली सेना ने बिपिन के शव की पहचान उन पहले चार बंधकों में की है, जिनके शव ग़ज़ा संघर्षविराम समझौते के तहत हमास ने लौटाए हैं.
नेपाल के बिपिन 23 साल के थे और 7 अक्तूबर 2023 को 250 अन्य लोगों के साथ एक किबुत्ज़ में काम करते समय हमास की ओर से बंधक बना लिए गए थे.
यह अब तक साफ़ नहीं है कि बिपिन की मौत कब और कैसे हुई.
उनके परिवार और दोस्तों को आख़िरी पल तक उम्मीद थी कि 13 अक्तूबर को लौटाए जाने वाले जीवित बंधकों में बिपिन भी शामिल होंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
बिपिन और उनके दोस्त इसराइल क्यों गए थे?
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किबुत्ज़ अलुमीम में जब हमास का हमला हुआ तब बिपिन, धन बहादुर और 15 अन्य छात्रों को इसराइल में रहते हुए कऱीब तीन हफ़्ते हुए थे. ये लोग वहां कृषि विज्ञान पढ़ने गए थे.
धन बहादुर ने कहा, “हमें पता था कि इसराइल में कभी भी युद्ध हो सकता है, लेकिन हमें अंदाज़ा नहीं था कि इतनी बड़ी ज़मीनी कार्रवाई भी हो सकती है. हम सोचते थे कि मिसाइल हमले हो सकते हैं और अगर हम ज़मीन के नीचे बने बंकरों में रहें तो सुरक्षित रहेंगे.”
इन छात्रों को इसराइली सरकार के “अर्न एंड लर्न प्रोग्राम” के तहत आमंत्रित किया गया था. उनके लिए यह अपने और अपने परिवार के लिए बेहतर ज़िंदगी बनाने का बड़ा मौक़ा था.
धन बहादुर अपनी ज़िंदगी बचाने का श्रेय अपने दोस्त बिपिन की बहादुरी को देते हैं.
उन्होंने बताया, “हमले के समय बंकरों के नज़दीक दो ग्रेनेड फेंके गए. उन्होंने (बिपिन) उनमें से एक को उठाया और बाहर फेंक दिया. बाक़ी एक ग्रेनेड अंदर ही फटा, जिसके कारण मैं और चार अन्य घायल हो गए.”
धन बहादुर ने कहा, “बिपिन उस वक़्त सुरक्षित थे. अगर दोनों ग्रेनेड फट जाते तो शायद मैं आज आपसे बात नहीं कर पाता.”

हमले में दस नेपाली छात्रों की मौत हो गई थी. बिपिन अकेले थे जिन्हें बंधक बनाया गया.
धन बहादुर ने कहा, “हम आख़िरी बार तब मिले जब उन्हें और बाकी साथियों को दूसरे बंकर में भेजा जा रहा था, क्योंकि मैं घायल था और हिल नहीं पा रहा था, इसलिए पहले बंकर में ही रहा. बाद में पता चला कि जिस बंकर में वह गए थे, वहां दोबारा हमला हुआ और वहीं से उन्हें बंधक बना लिया गया.”
27 साल के धन बहादुर कहते हैं कि अपने साथी की मौत की ख़बर सुनकर वह बेहद दुखी हैं. वह और बिपिन, नेपाल के टीकापुर में स्थित फ़ार वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ एग्रीकल्चर में साथ पढ़ते थे.
उन्होंने कहा, “हमने अपनी तरफ़ से बिपिन की रिहाई के लिए हर संभव कोशिश की. जो कुछ हो सकता था, सब किया. लेकिन हमें यह दर्दनाक ख़बर मिली. पूरा नेपाल शोक में है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या कहूं. मेरे पास अपने दुख को बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं.”
धन बहादुर कहते हैं कि बिपिन और उनके साथी सभी का एक ही सपना था, कुछ पैसे बचाकर लौटने के बाद खुद का छोटा सा कारोबार शुरू करना.
धन बहादुर बताते हैं, “उसे फ़ुटबॉल और बास्केटबॉल खेलना बहुत पसंद था. हम घंटों अपने सपनों और लक्ष्यों के बारे में बातें करते थे. वह अपने शरीर को फिट बनाना चाहता था और एक नया मोबाइल फ़ोन खरीदने की सोच रहा था. मेरे फ़ोन में हमने दोस्ती पर एक गाना भी रिकॉर्ड किया था. वह कहता था कि किसी म्यूज़िक वीडियो में खुद को दिखाना चाहता है.”
आख़िरी सेल्फ़ी
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14 अक्तूबर को इसराइली सेना ने कहा कि उसे विश्वास है कि बिपिन जोशी की “युद्ध के शुरुआती महीनों में कै़द के दौरान हत्या कर दी गई थी.”
हालांकि इसराइली सेना के इस दावे की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी है.
धन बहादुर कहते हैं कि अगर ऐसा हुआ है तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हमास से पूछना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ.
उन्होंने कहा कि घायल होने के बाद उन्हें नेपाल सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली, लेकिन उम्मीद जताई कि इसराइल की सरकार बिपिन के परिवार की सहायता करेगी.
इस पूरे मामले पर बिपिन के परिवार ने अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है.
7 अक्तूबर की एक वीडियो फुटेज में बिपिन को ग़ज़ा सिटी के अल-शिफ़ा अस्पताल के अंदर चलते हुए देखा गया था. उसके बाद एक साल तक परिवार को उनकी कोई जानकारी नहीं मिली.
फिर इसराइली सेना ने उन्हें एक वीडियो भेजा, जिसमें बिपिन को कैद में दिखाया गया था.
यह वीडियो नवंबर 2023 के आसपास का बताया गया था. परिवार को जब यह वीडियो साझा करने की अनुमति मिली तो उन्होंने इसे पिछले हफ़्ते जारी किया.
परिजनों ने इस वीडियो को “जीवित होने का सबूत” बताया था और संघर्षविराम समझौते के एलान से कुछ घंटे पहले तक वह किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहे थे.
अब बिपिन का परिवार उनकी मौत की ख़बर सुनने के बाद शोक में डूबा है.
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?
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बिपिन के कज़न किशोर जोशी ने बीबीसी नेपाली को बताया कि उनकी मां और बहन बंधकों की रिहाई की अपील करने अमेरिका गई थीं.
उन्होंने कहा, “परिवार के पास अपने दुख को बयां करने के लिए शब्द नहीं हैं. उनकी मां और बहन गुरुवार को अमेरिका से लौट रही हैं. पिता इतने दुखी हैं कि अपने दर्द को शब्दों में बयां नहीं कर पा रहे.”
वहीं इस बीच यह साफ़ नहीं है कि बिपिन का पार्थिव शरीर परिवार को कब सौंपा जाएगा.

नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा कि इसराइल सरकार उनके अवशेषों को नेपाल लाने की तैयारी कर रही है. उसी तरह जसे उसने अन्य मारे गए छात्रों के लिए किया था.
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “हम बिपिन जोशी की मौत की ख़बर से गहरे सदमे में हैं. इस दुख की घड़ी में हम परिवार के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हैं.”
बयान में यह भी कहा गया, “बिपिन जोशी का पार्थिव शरीर नेपाल लाए जाने के बाद भी हम संबंधित सरकारी संस्थाओं और पक्षों के साथ समन्वय और सहयोग के ज़रूरी प्रयास जारी रखेंगे ताकि उनकी मौत के वास्तविक कारण और परिस्थितियों का पता चल सके.”
धन बहादुर ने कहा कि इसराइल से सुरक्षित लौटे वो और उनके साथी छात्र, बिपिन के परिवार से मिलने कंचनपुर जिला जाएंगे.
उन्होंने कहा, “हम उनकी यादों को ज़िंदा रखेंगे. उनके परिवार को अपना सहयोग, देखभाल और तसल्ली देंगे.”
धन बहादुर ने कहा, “मैं नेपाल लौट आया हूं और पढ़ाई कर रहा हूं. लेकिन बिपिन के सपने अधूरे रह गए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.