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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे देखें तो महिला वोटरों का रोल बेहद प्रभावशाली साबित हुआ.
महिलाओं ने चुनावी नतीजों को इस तरह का रूप दिया है कि राजनीतिक दल अब इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं.
बिहार में महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी कोई अचानक बदलाव नहीं है बल्कि ये पिछले 10 साल से जारी स्थिर रुझान का हिस्सा है.
साल 2010 में महिलाओं और पुरुषों के मतदान में सिर्फ़ तीन प्रतिशत का अंतर था, जो 2015 में बढ़कर सात प्रतिशत हो गया.
वहीं 2020 में ये अंतर पांच प्रतिशत था तो 2025 में ये लगभग नौ प्रतिशत हो गया.
यह दिखाता है कि बिहार के पिछले चुनावों में महिलाओं ने पुरुषों से ज़्यादा मतदान किया है.
यह वृद्धि सिर्फ़ बढ़ती लामबंदी को ही नहीं दिखाती, बल्कि यह भी बताती है कि महिलाएं अब एक अलग और प्रभावशाली वोटर समूह के रूप में उभर चुकी हैं.
वोटिंग पैटर्न और उसका प्रभाव
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बिहार विधानसभा के चुनावों में एनडीए को पुरुष और महिला दोनों वोटरों का अच्छा समर्थन मिला है लेकिन एनडीए को महिला वोटरों का जो समर्थन मिला, वह चौंकाने वाला है.
हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार एनडीए के समर्थन में 48 प्रतिशत महिलाओं ने वोट किया, वहीं 46 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया. अगर हम महागठबंधन की बात करें तो यह आंकड़े एकदम उलट हैं. महागठबंधन के समर्थन में 37 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया और 39 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया.
लोकनीति के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 की तुलना में यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है. साल 2020 में एनडीए के समर्थन में सिर्फ़ 38 प्रतिशत महिलाओं और 36 प्रतिशत पुरुषों ने ही मतदान किया था.
इसके विपरीत, महागठबंधन का वोट बैंक पिछले दोनों चुनावों में लगभग एक जैसा रहा है. महागठबंधन अतिरिक्त महिला वोटरों को अपनी ओर खींचने में नाकाम रहा, जिसका ख़ामियाज़ा उसे एक ऐसे चुनाव में भुगतना पड़ा, जिसमें महिला वोटरों की भागीदारी अपने सबसे ऊंचे स्तर पर थी.
कल्याणकारी योजनाओं का प्रभाव
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एनडीए को मिली इस बढ़त का एक कारण महिलाओं के बीच लंबे समय से चली आ रही नीतीश कुमार की लोकप्रियता भी है, जिसे 2025 के चुनाव से पहले चलाई गई नीतियों ने और मज़बूत किया.
इस रणनीति का मुख्य हिस्सा मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना रही, जिसके तहत महिलाओं को 10,000 रुपये की सीधी सहायता दी गई.
इस योजना ने उस कल्याणकारी ढांचे को और मज़बूती दी है, जिसकी वजह से नीतीश कुमार के कार्यकाल को नई पहचान मिली है. इसमें पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण, राज्य सरकार की नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण, बालिका साइकल योजना, स्कॉलरशिप और वंचित तबकों की लड़कियों को यूनिफ़ॉर्म देना शामिल है.
इन सभी क़दमों ने मिलकर महिलाओं के कल्याण के प्रति सरकार की छवि को एक नई पहचान दी.
इस योजना का राजनीतिक फ़ायदा काफ़ी बड़ा रहा. आंकड़े बताते हैं कि 62 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि या तो उन्हें या उनके परिवार के किसी सदस्य को मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना से लाभ हुआ.
इस योजना से लाभ पाने वाली लगभग तीन-चौथाई महिलाओं ने इसका श्रेय राज्य सरकार को दिया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह योजना जातिगत सीमाओं से ऊपर उठकर सभी तक पहुंची, जिससे इसके व्यापक प्रभाव का संकेत मिलता है.
इस योजना से लाभ पाने वाले 55 प्रतिशत लोगों ने एनडीए को वोट दिया, वहीं 36 प्रतिशत ग़ैर-लाभार्थी लोगों ने भी एनडीए को वोट दिया.
महागठबंधन के लिए इसका उल्टा पैटर्न दिखाई पड़ता है, जहां 46 प्रतिशत ग़ैर-लाभार्थी लोगों ने मतदान किया, वहीं इस योजना से लाभ पाने वाले सिर्फ़ 31 प्रतिशत लोगों ने ही महागठबंधन के पक्ष में मतदान किया.
ये आंकड़े बताते हैं कि सीधे लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं ने न सिर्फ़ पहले से मौजूद समर्थन को मज़बूत किया है, बल्कि उसे नया रूप भी दिया, जिसकी वजह से एनडीए के ख़ेमे को महिलाओं का अच्छा ख़ासा वोट गया.
शासन को लेकर धारणा और नेता का चुनाव
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शासन के प्रति लोगों की धारणाओं ने इस झुकाव को और मज़बूत किया. 54 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे राज्य सरकार के कामकाज से पूरी तरह संतुष्ट हैं, जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत था.
अगर पूरी तरह संतुष्ट और आंशिक रूप से संतुष्ट दोनों को मिला दिया जाए तो यह संख्या और बढ़ जाती है. तब 80 प्रतिशत महिलाएं और 73 प्रतिशत पुरुष सरकार के कार्य से संतुष्ट नज़र आते हैं.
अगर हम नेतृत्व की बात करें, वहां भी महिलाओं का झुकाव नीतीश कुमार की तरफ़ साफ़ नज़र आता है. 50 प्रतिशत महिलाओं ने नीतीश कुमार को पसंदीदा मुख्यमंत्री बताया, जबकि पुरुषों में यह संख्या 43 प्रतिशत रही.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महिलाओं ने वोटरों और उम्मीदवारों दोनों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. मतदान में उनकी बढ़ती भागीदारी और अलग वोटिंग पैटर्न ने चुनावी नतीजों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया.
हालांकि उम्मीदवार के रूप में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत सीमित रहा. इस चुनाव में 2,357 पुरुषों ने चुनाव लड़ा, वहीं सिर्फ 258 महिलाओं ने ही चुनाव लड़ा.
इस बार चुनाव जीतने वाली महिलाओं की संख्या 29 रही, जो साल 2020 (25) से थोड़ी अधिक है. फिर भी यह संख्या महिलाओं की राजनीतिक में सार्थक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए काफ़ी नहीं है.
महिलाओं से जुड़ी नीतियों ने चुनाव नतीजों में अहम भूमिका निभाई, लेकिन साथ ही नतीजे यह भी दिखाते हैं कि सरकार के कामकाज के प्रति जनता में आम तौर पर संतोष है. महिलाओं ने मतदान में जो बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, उसकी वजह से उनसे जुड़ी सरकारी नीतियां और मौजूदा नेतृत्व में उनका भरोसा है.
नोट: यह लेखकों के अपने विचार हैं. यह किसी संस्थान के विचारों को नहीं दिखाता है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.