बिहार के चर्चित मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे ब्रजेश ठाकुर को स्वाधार गृह कांड में बरी कर दिया गया है.
ब्रजेश ठाकुर के साथ साथ इस कांड में शाइस्ता परवीन उर्फ मधु और कृष्णा को भी रिहा कर दिया गया है.
एससी/एसटी कोर्ट के विशेष लोक अभियोजक जयमंगल प्रसाद ने बीबीसी को बताया, “न्यायाधीश अजय कुमार मल्ल की कोर्ट ने इस मामले में तीनों अभियुक्तों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है.”
उनका कहना था, ” इस मामले में पुलिसिया अनुसंधान में बहुत ढिलाई बरती गई. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय जा सकते हैं लेकिन अगर पुलिस अनुसंधान ही ढीला रहा, तो कोई फ़ायदा नहीं होगा.”
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क्या है पूरा मामला?
ब्रजेश ठाकुर की संस्था सेवा संकल्प एवं विकास समिति, मुज़फ़्फ़रपुर में कई होम्स चलाती थी.
उनमें से एक स्वाधार गृह भी था. मई 2018 में ब्रजेश ठाकुर का नाम ख़बरों में आया था, जब उनकी ओर से संचालित बालिका गृह को लेकर कई गंभीर आरोप लगे थे.
मुज़फ़्फ़रपुर के साहू रोड स्थित इस बालिका गृह में बच्चियों के साथ यौन शोषण का मामला सामने आया था. बालिका गृह कांड सामने आने के बाद ब्रजेश ठाकुर की संस्था की ओर से संचालित स्वाधार गृह की भी जाँच की गई.
प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की वेबसाइट के मुताबिक़, “स्वाधार गृह योजना पारिवारिक कलह, हिंसा, सामाजिक बहिष्कार के कारण बेघर हुए महिलाओं और लड़कियों के पुनर्वास के लिए संस्थागत सहायता प्रदान करती है.”
मुज़फ़्फ़रपुर में ब्रजेश ठाकुर के स्वाधार गृह की जाँच में पाया गया था कि 11 महिलाएँ और उनके चार बच्चे ग़ायब हैं.
नहीं मिला कोई सुराग
स्थानीय पत्रकार अभिषेक कुमार बताते हैं, “उस वक़्त महिला थाने में एफ़आईआर हुई थी. मई 2018 यानी बालिका गृह कांड से पहले स्वाधार गृह का निरीक्षण किया गया था, जिनमें 11 महिलाएँ और उनके चार बच्चे रह रहे थे. लेकिन बालिका गृह कांड सामने आने के बाद जून 2018 में जब दोबारा जाँच की गई, तो स्वाधार गृह में ताला बंद मिला.”
ब्रजेश ठाकुर, शाइस्ता परवीन उर्फ़ मधु, कृष्णा राम, रामानुज ठाकुर पर महिलाओं और बच्चों को लापता कर देने और उनको सुविधाएं मुहैया कराने के नाम पर सरकारी फ़ंड के गबन का आरोप था.
ये सभी महिलाएं और बच्चे अनुसूचित जाति/जनजाति से ताल्लुक रखते थे.
विशेष लोक अभियोजक जयमंगल प्रसाद बताते हैं, “इस मामले में पुलिस कोई सबूत नहीं इकठ्ठा कर पाई. पुलिस किसी भी महिला या बच्चे की रिकवरी नहीं कर पाई, वहीं दूसरी तरफ़ गबन के आरोपों को साबित करने के लिए बैंक पासबुक, निकासी को कोई सबूत नहीं जुटा पाई. अभियोजन पक्ष ने कई बार इस संबंध में प्रशासन से पत्राचार किया लेकिन गंभीर अनुसंधान नहीं हुआ.”
तिहाड़ जेल में ही रहेंगें
जयमंगल प्रसाद बताते हैं, “स्वाधार कांड मामले में सात गवाह थे, जिनमें से दो मुकर गए. सूचना देने वाला ही अपने बयान से मुकर गया. ऐसे में ठोस गवाही भी कोर्ट में नहीं हुई.”
स्थानीय दैनिक अखबार हिंदुस्तान के मुताबिक़, “पुलिस के आईओ, सूचना देने वाले और विशेष लोक अभियोजक तीनों अभियुक्तों के ख़िलाफ़ न्यायालय में पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाए. इसलिए न्यायाधीश अजय कुमार मल्ल ने तीनों को दोष मुक्त कर दिया.”
इस मामले में ब्रजेश ठाकुर सहित चार अभियुक्त थे, जिनमें से रामानुज ठाकुर की मौत जेल में ही हो गई थी. बाक़ी सभी तीनों अभियुक्त यानी ब्रजेश ठाकुर, शाइस्ता परवीन, कृष्णा राम दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल में सज़ा काट रहे हैं.
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड में दिल्ली के साकेत कोर्ट की विशेष पोक्सो अदालत ने 19 लोगों को दोषी करार देते हुए सज़ा सुनाई थी. इनमें 10 दोषियों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी. ब्रजेश ठाकुर, शाइस्ता परवीन और कृष्णा राम को आजीवन कारावास की सज़ा मिली थी.
पिछले साल दो जनवरी को स्वाधार गृह कांड में फ़ैसले के वक़्त इन तीनों को दिल्ली से जज अजय कुमार मल्ल की कोर्ट में लाया गया था.
विशेष लोक अभियोजक जयमंगल प्रसाद ने बीबीसी को बताया कि स्वाधार कांड में पुलिस किसी महिला या बच्चे की रिकवरी नहीं कर पाई.
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के मामले को सामने लाने वाले वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं, “इस मामले में पुलिस ने अनुसंधान ही ठीक से नहीं किया. ऐसे में ये शंका पैदा होती है कि यहाँ महिलाएँ रहती भी थीं या नहीं. यानी क्या ये स्वाधार गृह सिर्फ़ काग़ज़ पर चलता था और ब्रजेश ठाकुर और उनके साथियों के लिए सिर्फ़ कमाई का ज़रिया था.”
कौन हैं ब्रजेश ठाकुर?
ब्रजेश ठाकुर मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के कारण सुर्ख़ियों में आए थे.
हालाँकि मुज़फ़्फ़रपुर में वे अपने रसूख के कारण हमेशा से चर्चा में रहे.
ब्रजेश ठाकुर के पिता राधा मोहन ठाकुर ने वर्ष 1982 में प्रात: कमल अख़बार शुरू किया था.
राधा मोहन ठाकुर ऐसे व्यक्ति थे, जिनके नाम पर अकेले मुज़फ़्फ़रपुर में 22 अख़बार रजिस्टर्ड थे.
1987 में ब्रजेश ठाकुर ने रियल एस्टेट के अलावा अपना ध्यान एनजीओ सेक्टर पर फोकस किया.
उन्होनें सेवा संकल्प एवं विकास समिति नाम का एनजीओ बनाया. साल 2013 में पहली बार इस एनजीओ को बालिका गृह के रखरखाव की ज़िम्मेदारी मिली.
1995 और साल 2000 में ब्रजेश ठाकुर ने कुढ़नी विधानसभा से चुनाव भी लड़ा लेकिन उन्हें शिकस्त मिली.
प्रात: कमल के अलावा ब्रजेश ने अंग्रेज़ी अख़बार ‘न्यूज़ नेक्स्ट’ और उर्दू अख़बार ‘हालात– ए- बिहार’ भी शुरू किया था.
लेकिन बालिका गृह कांड के सामने आने और फिर इस मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण जेल में हैं.
क्या था बालिका गृह कांड
मई 2018 में बिहार के शेल्टर होम्स पर टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइसेंज़ ने एक रिपोर्ट बिहार सरकार को सौंपी थी.
ये रिपोर्ट शेल्टर होम्स चलाने वालों और वहाँ रह रहे बच्चों से बातचीत पर आधारित थी.
इस रिपोर्ट में ही मुज़फ़्फ़रपुर शेल्टर होम में बच्चियों के साथ हो रहे उत्पीड़न की बात सामने आई थी.
शेल्टर होम में रह रही बच्चियों के साथ बलात्कार, मारपीट और मानसिक प्रताड़ना के गंभीर मामले सामने आए थे.
इसके बाद 31 मई 2018 शेल्टर होम को चलाने वाले ब्रजेश ठाकुर सहित 10 अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया गया था.
बाद में ये केस सीबीआई को सौंप दिया गया. दिल्ली की साकेत कोर्ट की पोक्सो अदालत ने इस मामले में कुल 19 लोगों को दोषी क़रार देते हुए सज़ा सुनाई थी.
ब्रजेश ठाकुर पर आजीवन कारावास के अलावा 32.20 लाख रुपए का जुर्माना भी लगा था.
स्वाधार कांड के दो अन्य अभियुक्तों शाइस्ता परवीन उर्फ मधु और कृष्णा राम को भी बालिका गृह कांड में आजीवन कारावास की सज़ा मिली है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित