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बिहार के सीतामढ़ी ज़िले में पानी की दिक्कत ने लोगों को परेशानी में डालने के साथ ही हैरान भी कर दिया है. कुछ साल पहले तक ये इलाका बाढ़ प्रभावित हुआ करता था.
ज़िले के परिहार, बोखरा, नानपुर, बाजपट्टी, सोनबरसा, पुपरी समेत कई ब्लॉक पानी की भारी कमी का सामना कर रहे हैं. उन इलाकों में लोगों की स्थिति और भी खराब है जहां सरकारी नल जल योजना का कनेक्शन नहीं पहुंचा है.
इस मानसून सीज़न में सीतामढ़ी में 62 फ़ीसदी कम बारिश हुई है.
पानी के इस संकट से निपटने के लिए गांव-गांव में वॉटर टैंकर पहुंच रहे हैं. यहां वॉटर टैंकर सरकारी महकमे के साथ-साथ आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट की चाह रखने वाले उम्मीदवार भी भेज रहे हैं.
हमको कुछ नहीं, बस पानी दे दे सरकार
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सीतामढ़ी के परवाहा गांव के वॉर्ड नंबर 12 के सामने 2,000 लीटर का वॉटर टैंकर लगा है और उसके आसपास जमा महिलाएं पानी के लिए आपस में लड़ रही हैं.
यहां पानी भरने आई महिलाओं में समता देवी भी शामिल हैं.
उनके पति गुजरात में दर्जी का काम करते हैं. वो शिकायती लहज़े में कहती हैं, “यहां के आदमी का बस चले तो हम लोगों को चुटकी में उड़ा दें(नुकसान पहुंचा दे).”
समता देवी के गुस्से की असल वजह पानी है. चार महीने से उनकी परेशानी बढ़ती ही जा रही है.
समता की सास बीना देवी अपने घर के एक कोने में लगे चापाकल को पूरी ताकत से चलाकर दिखाती हैं. वो कहती हैं, “हम झूठ नहीं बोल रहे है. पानी की एक बूंद नहीं है. सरकार से कहिए कि हमको कुछ नहीं चाहिए, बस हमको पानी दे दे.”
उनका कहना है कि उनके पास ज़्यादा बाल्टी भी नहीं है तो ऐसे में और भी दिक्कत पेश आती है.
वहीं, अपने घर पानी ले जा रहीं रिंकू हांफते हुए कहती हैं, “घर की सारी बाल्टी, ड्रम लेकर पानी भरने आए हैं. दिन भर सड़क पर खड़े होकर इंतज़ार करती हूं कि गाड़ी (वॉटर टैंकर) वाला कब आएगा? पानी का कोई साधन नहीं है. हम लोग पानी ही तो मांग रहे हैं और क्या चीज मांग रहे हैं?”
नल जल नहीं तो वोट नहीं
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हिमालय से आने वाली नदियों के चलते उत्तर बिहार का इलाका जल संसाधन के नज़रिए से समृद्ध तो है लेकिन बाढ़ से प्रभावित भी रहता है. हालत ये है कि बाढ़ और उत्तर बिहार एक दूसरे के पर्याय से हो गए हैं.
लेकिन हाल के सालों में बारिश के पैटर्न में बदलाव देखने को मिला है. यहां बारिश कम हो रही है.
इस साल सहरसा, सुपौल, चंपारण, मधेपुरा, मधुबनी, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण सहित कई ज़िलों में 50 फ़ीसदी से कम बारिश हुई है.
सीतामढ़ी की बात करें तो यहां 62 फ़ीसदी से कम बारिश हुई है. इस कम बारिश के चलते ग्राउंड वॉटर रिचार्ज़ नहीं हुआ है जिसकी वजह से लोगों के घरों में लगे चापाकल (हैंडपंप) में पानी नहीं आ रहा है.
बुजुर्ग केशी देवी लाठी के सहारे चलकर पानी लेने आई हैं. उनके साथ एक छोटा बच्चा भी इसी काम में लगा है.
हमें देखकर वो कहती हैं, “कैसे पानी पियेंगे? बिना पानी पिये तो इंसान मर जाएगा. जब तक वोट है तब तक पानी दे रहे हैं. जब वोट नहीं रहेगा तो लोग सूखे में मर जाएंगे. लेकिन हम लोग भी कह देते हैं कि नल जल नहीं तो वोट नहीं.”
सीतामढ़ी ज़िले में सिर्फ़ परिहार ही नहीं बल्कि बोखरा, नानपुर, बाजपट्टी, सोनबरसा, पुपरी जैसे दूसरे ब्लॉक भी पानी की कमी झेल रहे हैं.
नानपुर की सगीरा ख़ातून पानी रखने के लिए कोल्ड ड्रिंक की बोतलों का इस्तेमाल करती हैं. वो मवेशी भी रखती हैं.
सगीरा बताती हैं, “हम लोग तो बोल लेते हैं, लेकिन जानवर बोल नहीं सकते हैं. इन सब को भी ठीक से ना पानी दे पाते हैं, और ना इस गर्मी में नहला पाते हैं. जानवर की तो छोड़िए हम ही लोग ठीक से नहा लें, पानी पी लें, बर्तन धो लें तो बहुत है. हम लोगों के चापाकल से बूंद-बूंद पानी गिरता है और उसी को जमा करके पीने का पानी निकालते हैं.”
‘हमारी नदियां सूख चुकी हैं, हम अपने पितरों को पानी कैसे दें?’
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लोगों की रोज़ाना की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं और छोटी दुकानें चलाने वाले भी घाटे में चल रहे हैं.
ढाबा मालिक जंग बहादुर राउत कहते हैं, “हम लोगों को पानी लाने के लिए अलग से आदमी रखना पड़ा है. ये तो खाने पीने की दुकान है, यहां तो आदमी पानी मांगेगा ही. आदमी दूर-दूर से साइकिल पर पानी ढो कर लाता है और उसको पैसे देने पड़ते हैं. ऐसे कैसे धंधा चलेगा कि कमाई अगर 500 की हो तो उसमें भी 50-100 रुपये किसी और को देने पड़े?”
ज़िले का हाल ये है कि नदियों के पास बसे गांव भी पानी की किल्लत झेल रहे हैं. सुनरई गांव जमूरा नाम की नदी के पास बसा है. लेकिन नदी में पानी इतना कम है कि पांव रखने पर कीचड़ में पांव धंस जाता है.
किसान गुणय राय बीबीसी से कहते हैं, “हम लोग नदी के किनारे बसे हुए हैं. पीने के लिए, खेती के लिए भी पानी नहीं है. ऐसा अबकी बार हुआ है. पिछले साल भी हुआ था, लेकिन तब मौसम सही हो गया था. अबकी बार तो कोई उपाय ही नहीं है. ऊपर वाला है, सरकार है. हमारे बारे में सोचें तो अच्छा. नहीं तो भूखे मरेंगे.”
बुजुर्ग कैली देवी कहती हैं कि उन्होंने पानी की ऐसी दिक्कत अपने पूरे जीवन में नहीं देखी.
वो कहती हैं, “चापाकल चलाते हैं तो उसका डंडा मुंह पर लगता है. बूढ़े हो गए हैं, मौत का वक़्त नज़दीक आ गया है. पानी की ये मुश्किल हमने पहले कभी नहीं देखी थी.”
पानी की इस दिक्कत के बीच लोगों के पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों को पानी देना भी मुश्किल हो गया है.
पितृ पक्ष वह समय है, जब हिंदू धर्म को मानने वाले अपने पूर्वजों को खाने-पीने की वस्तुएं अर्पित करते हैं. सुंदरई के ही अवधेश राय बताते हैं, “गांव में महीनों पहले एक टैंकर आया था. लेकिन फिर कोई नहीं आया. हम लोग दो किलोमीटर दूर जाते है नहाने के लिए. नदी में पानी नहीं है. अभी पितृपक्ष है, हम अपने पितरों (पूर्वजों) को पानी कैसे दें?”
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ज़िले के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) से बीबीसी को मिली जानकारी के मुताबिक, इस वक़्त विभाग की तरफ़ से 40 वॉटर टैंकर चल रहे हैं.
इन 40 वॉटर टैंकर के अलावा स्थानीय नेता अपने अपने स्तर पर भी वॉटर टैंकर चलवा रहे हैं.
आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए भी मौजूदा विधायक के साथ-साथ टिकट की चाह रखने वाले उम्मीदवार भी वॉटर टैंकर अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में चलवा रहे हैं.
गांव में अपने घरों से बाहर निकलकर लोग सड़क पर इंतज़ार करते रहते हैं कि कब कोई टैंकर गुज़रे और कब उसे अपने गांव के अंदर बुलाया जाए.
सिसौतिया गांव में भी लोग इसी इंतज़ार में हैं. जैसे ही वॉटर टैंकर लेकर आए चालक सुनील कुमार राम वहां से गुज़रते हैं, उन्हें रोक कर गांव के अंदर ले जाया गया है.
सुनील कुमार गांव वालों को ज़रूरत का पानी भर लेने और पानी बर्बाद नहीं करने की हिदायत देते हैं. उनके टैंकर के पास बड़ों के साथ-साथ स्कूल ड्रेस पहने बच्चे भी आ गए हैं जो अपनी छोटी-छोटी बोतलों में पानी भर ले जाना चाहते हैं.
सुनील कुमार राम बीबीसी से बताते हैं, “पानी की इतनी कमी है कि सुबह 6 बजे से रात के 9 बजे तक पानी पहुंचाते हैं.”
स्थानीय निवासी नाग सिंह बताते हैं, “यहां नल जल का कनेक्शन है, दरअस बिजली ही नहीं रहती तो नल जल का काम कैसे चलेगा? पानी का लेवल घट गया है. हम लोग तो पानी के लिए तरस रहे हैं.”
ज़िले के 718 टोलों तक अभी नल जल का कनेक्शन नहीं पहुंचा
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नल जल योजना, ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल पहुंचाने की योजना है.
पीएचईडी विभाग के मुताबिक, सीतामढ़ी में 718 टोलों में नल जल योजना का लाभ अब तक नहीं पहुंचा है.
बबुआन पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि विमल यादव कहते हैं, “नल जल योजना विफल साबित हो रही है. कहीं टंकी है, कहीं पाइप नहीं है. कहीं नल टूटा हुआ है. बहुत सी ऐसी बसावट भी है जहां पाइप पहुंचा ही नहीं है.”
हाल के वर्षों में उत्तर बिहार में गर्मियों में पानी की दिक्कत बढ़ी है. तालाबों के शहर कहे जाने वाले दरभंगा में टैंकर चलते हैं तो चंपारण के इलाके में मकान मालिक अपने घरों में किराएदारों को पानी कम ख़र्च करने की सलाह दे रहे हैं.
सेंटर फ़ॉर सस्टेनेबल ट्रांजिशन एंड रीजीलियंस के लीड, रिसर्चर एंड नॉलेज क्रियेटर शशिधर बीबीसी से कहते हैं, “भारत में जितना औसत तापमान बढ़ा है, उसकी तुलना में बिहार में तापमान ज़्यादा बढ़ रहा है. चूंकि तराई के इलाके में जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर होता है. तापमान बढ़ने के चलते फसलों को पानी ज्यादा चाहिए, लोगों को पानी ज्यादा चाहिए. लेकिन बोरिंग लगाकर हमने भूजल का दोहन किया है. यानी हमारे व्यवहार का और तापमान बढ़ने का असर भविष्य में और भी दिखेगा.”
इस मामले में सीतामढ़ी एडीएम संजीव कुमार ने बीबीसी से बताया, “हम लोग जल संकट से निपटने के लिए प्रयासरत हैं. सभी बीडीओ को निर्देशित किया गया है कि लोगों की मांग के अनुरूप पानी पहुंचाया जाए. कृषि विभाग ने भी लोगों से अपील की है कि पानी की किल्लत को देखते हुए पम्पिंग सेट का इस्तेमाल कम से कम करें. हम लोग नल जल योजना को प्रत्येक टोले तक पहुंचाने पर भी काम कर रहे हैं.”
राज्य के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग का दावा है कि राज्य में 92 फ़ीसदी परिवारों तक नल जल का लाभ पहुंच चुका है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित