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2025 का बिहार विधानसभा चुनाव ख़ास रहा. 1951 के बाद बिहार में इस बार सबसे ज़्यादा वोट पड़े.
इस बार बिहार में 67.13% मतदान हुआ जो कि पिछले विधानसभा चुनाव से 9.6% ज़्यादा है.
पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान 8.15 प्रतिशत ज़्यादा रहा है.
इस बार के मतदान में पुरुषों की हिस्सेदारी 62.98% रही और महिलाओं की 71.78 प्रतिशत. बिहार में 3.51 करोड़ महिला वोटर हैं और 3.93 करोड़ पुरुष वोटर और कुल मतदाताओं की तादाद 7.45 करोड़ है.
बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों के मतदान में संपन्न हुआ.
पहले चरण का मतदान छह नवंबर को था और दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को. 14 नवंबर को सुबह आठ बजे से मतगणना शुरू होगी और दोपहर बाद तक पूरी तस्वीर साफ़ होगी.
अगर बिहार में अतीत के ट्रेंड सही रहे तो मतदान में महिलाओं की ज़्यादा भागीदारी से नीतीश कुमार को फ़ायदा हो सकता है.
अपने क़रीब दो दशक के कार्यकाल में नीतीश कुमार ने बिहार में महिला सशक्तीकरण से जुड़ी कई योजनाएं शुरू की थीं.
चुनाव से ठीक पहले सितंबर महीने में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना शुरू की थी और पूरे बिहार में महिलाओं के खाते में 10 हज़ार रुपए ट्रांसफ़र किए गए थे.
एग्ज़िट पोल्स में एनडीए को बढ़त
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यहाँ तक कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद भी 10-10 हज़ार रुपए ट्रांसफ़र किए गए.
चुनाव आयोग के पास शिकायत भी गई लेकिन आयोग ने कहा कि यह ‘ऑनगोइंग स्कीम’ है. ऐसे में माना जा रहा है कि महिलाओं की उत्साहजनक भागीदारी नीतीश कुमार के हक़ में हो सकती है.
11 नवंबर को दूसरे चरण के मतदान ख़त्म होने के बाद एग्ज़िट पोल्स आए. एग्ज़िट पोल्स के अनुमानों में एनडीए को बढ़त मिली है.
एक्सिस माय इंडिया के एग्ज़िट पोल के अनुसार, बिहार में एनडीए महागठबंधन पर भारी पड़ेगा लेकिन राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है.
एक्सिस माय इंडिया के अनुसार, एनडीए को बिहार में 121 से 141 सीटें मिल सकती हैं और महागठबंधन को 98 से 118 सीटें मिल सकती हैं.
वहीं बिहार के चुनावी मैदान में दस्तक दे रही प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी खाता खोल सकती है.
वहीं टुडेज चाणक्य के अनुसार, बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को 160 सीटें मिल सकती हैं जबकि आरजेडी और उसके सहयोगी दलों को 77 सीटें मिल सकती हैं.

हालांकि महागठबंधन की तरफ़ से मुख्यमंत्री के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने बुधवार को एग्ज़िट पोल्स को नकार दिया था.
तेजस्वी यादव ने कहा कि 2020 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 76 लाख ज़्यादा मतदाताओं ने मतदान बदलाव के लिए किए हैं न कि नीतीश कुमार सरकार को बचाने के लिए.
तेजस्वी यादव ने कहा था, ”लोग लाइन में खड़े होकर मतदान कर रहे थे, तभी एग्ज़िट पोल्स में एनडीए को विजेता घोषित कर दिया गया. क्या ऐसे सर्वे पर भरोसा किया जा सकता है? यह मतगणना से जुड़े अधिकारियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के अलावा कुछ भी नहीं है.”
तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में 85 से ज़्यादा रैलियों को संबोधित किया है. तेजस्वी ने बिहार में सरकार बनने पर सभी परिवारों से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने का वादा किया है.
तेजस्वी ने एग्ज़िट पोल्स को ख़ारिज करते हुए चुनाव से पहले हुए सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि बिहार के केवल 16 से 18 प्रतिशत लोगों ने ही नीतीश को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया था, ऐसे में अचानक चीज़ें बदल कैसे गईं?
महागठबंधन में सीट बंटवारे पर नहीं बनी सहमति
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इस बार बिहार के दोनों महत्वपूर्ण गठबंधनों में सीटों के बँटवारे को लेकर काफ़ी उठापटक की स्थिति रही है.
हालांकि एनडीए में आख़िरकार सीटों के बँटवारे पर सहमति बन गई थी लेकिन महागठबंधन में सीटों के बँटवारे पर सहमति कुछ सीटों पर नहीं बनी.
एनडीए में सीटों की साझेदारी के तहत 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में इस बार बीजेपी को 101 और जेडीयू को भी 101 सीटें मिली थीं.
2005 से यह पहली बार है, जब जेडीयू और बीजेपी दोनों बराबर की संख्या पर चुनाव लड़ रही हैं.
एनडीए के बाक़ी सहयोगी एलजेपी (आरवी) को 29, उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मोर्चा को और जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा को छह-छह सीटें मिलीं.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 115 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और बीजेपी ने 110 सीटों पर. जीतन राम मांझी को सात सीटें मिली थीं.
तब मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी भी एनडीए का हिस्सा थी और उसे 11 सीटें मिली थीं.
वहीं चिराग पासवान अकेले मैदान में थे और उन्होंने 135 उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि चिराग की पार्टी को जीत महज एक सीट पर मिली थी.
दूसरी तरफ़ महागठबंधन ने बिहार में 251 उम्मीदवार उतारे थे. यानी बिहार विधानसभा में जितनी सीटें हैं, उनसे 8 ज़्यादा.
इसका मतलब यह हुआ कि 8 सीटों पर सहमति नहीं बनी और महागठबंधन की सहयोगी पार्टियों ने इन सीटों पर एक दूसरे के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतारे.
राष्ट्रीय जनता दल ने 142, कांग्रेस ने 60, सीपीआई (एमएल) ने 20, विकासशील इंसान पार्टी ने 10, सीपीआई ने 9, सीपीआई (एम) ने चार और आईआईपी ने दो सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं.
अगर एग्ज़िट पोल सही रहे तो नीतीश कुमार लगातार पाँचवी बार बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं. 2005 से 2020 तक उसी गठबंधन को जीत मिली है, जिसके साथ नीतीश कुमार रहे हैं.
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार आरजेडी के साथ थे और महागठबंधन को जीत मिली थी जबकि बीजेपी महज 53 सीटों पर सिमटकर रह गई थी.
हालांकि 2017 में नीतीश कुमार फिर से एनडीए के साथ आ गए थे लेकिन 2022 में एक बार फिर से पाला बदलते हुए महागठबंधन में शामिल हो गए थे.
जनवरी 2024 में नीतीश कुमार ने फिर से पाला बदलते हुए बीजेपी के अगुआई वाले एनडीए का दामन थाम लिया था.
नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से महज कुछ महीने पहले ऐसा किया था. पहली बार 2013 में नीतीश कुमार एनडीए से अलग हुए थे.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्णिया ज़िले में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा था कि यह उनका आख़िरी चुनाव है और अंत भला तो सब भला.
नीतीश कुमार ने कहा था, ”और ये जान लीजिए कि यह मेरा आख़िरी चुनाव है. अंत भला तो सब भला.”
ऐसे में एनडीए की जीत के बाद नीतीश कुमार इस बार मुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं, इसे लेकर भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.
लालू और नीतीश कभी पास कभी दूर
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1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार अलग हो चुके थे. 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार कुछ ख़ास नहीं कर पाए.
उनकी समता पार्टी सात सीटों तक ही सीमित रह गई लेकिन 2000 का विधानसभा चुनाव आते-आते लालू यादव की पकड़ कमज़ोर पड़ने लगी थी.
1995 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार को लगा कि वह बिहार में लालू यादव से अकेले नहीं लड़ सकते हैं. 1996 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने बीजेपी से गठबंधन कर लिया.
जिस बीजेपी को नीतीश कुमार मंदिर आंदोलन के दौरान आड़े हाथों लेते थे, ‘सांप्रदायिक पार्टी’ बताते थे, 1996 में लालू को हराने के लिए उसी के साथ आ गए.
2000 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और बीजेपी को 121 सीटों पर कामयाबी मिली. नीतीश कुमार बिना बहुमत के मुख्यमंत्री बने. हालाँकि एक हफ़्ते के भीतर ही नीतीश को इस्तीफ़ा देना पड़ा.
आख़िरकार नीतीश कुमार 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. अक्तूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 55 और जेडीयू को 88 सीटों पर जीत मिली और पूर्ण बहुमत के साथ गठबंधन सरकार बनी.
2010 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार को और प्रचंड जीत मिली. लालू-रामविलास का गठबंधन 25 सीटों पर ही सिमटकर रह गया जबकि एनडीए को 243 सीटों वाली विधानसभा में 206 सीटों पर जीत मिली.
जेडीयू 115 सीटें जीतने में कामयाब रही थी और बीजेपी 91.
2013 में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. नीतीश कुमार ने मोदी के आते ही ख़ुद को बीजेपी से अलग कर लिया.
नीतीश कुमार को 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से अलग होने का ख़ामियाजा भुगतना पड़ा.
नीतीश की जेडीयू महज दो सीटें ही जीत पाई जबकि बीजेपी ने 30 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 22 पर जीत दर्ज की.
नीतीश कुमार को अहसास हो गया कि वह बिहार में लालू और बीजेपी दोनों से एक साथ नहीं लड़ सकते हैं.
आख़िरकार वो 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के साथ आ गए और यह गठबंधन बीजेपी पर बहुत भारी पड़ा. बीजेपी महज़ 53 सीटों पर सिमटकर रह गई.
नीतीश कुमार आरजेडी के साथ महज 16 महीने ही रहे और फिर से बीजेपी के साथ चले गए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.