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बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले में एक अलग तरह का मामला सामने आया है.
यहां एक गुमशुदा हुए बच्चे की फ़ोटो का इस्तेमाल कर साइबर ठगों ने बच्चे के परिजनों से 50,000 रुपये की रक़म वसूल ली.
साइबर ठगी करने वालों ने तकनीक, सोशल मीडिया पर उपलब्ध सार्वजनिक सूचनाओं और अक्सर डिजिटल अरेस्ट के दौरान दिखाए जाने वाले मनोवैज्ञानिक डर का इस्तेमाल करके इस घटना को अंजाम दिया है.
मोतिहारी (पूर्वी चंपारण का मुख्यालय) के सदर डीएसपी दिलीप कुमार ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी से इस घटना की पुष्टि की है.
डीएसपी दिलीप कुमार ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी को बताया, “इस केस में परिजनों को एक तरह से डिजिटल अरेस्ट करके उनसे फ़िरौती ली है, जबकि बच्चा उनके पास था ही नहीं. हैरानी की बात ये है कि बच्चे की सकुशल बरामदगी के बाद भी साइबर ठग परिजनों को फ़ोन करते रहे.”
क्या है मामला?
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मूल रूप से पूर्वी चंपारण के ढाका चंदनबाड़ा के रहने वाले फ़िरोज़ आलम और आबू निसां के पांच बच्चे हैं. ये दंपती अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए मोतिहारी शहर में किराए पर रहते हैं. फ़िरोज़ आलम क़तर में ड्राइवर का काम करते हैं.
बीती 20 दिसंबर को फ़िरोज़ आलम और आबू निसां का 14 वर्षीय बेटा खेलने के लिए शाम 4 बजे गया लेकिन देर रात तक वापस नहीं लौटा.
बच्चे के फूफा मोहम्मद आज़म ने बीबीसी न्यूज़ हिन्दी को बताया, “हम लोगों को लगा कि बच्चा वापस आ जाएगा. लेकिन जब नहीं आया तो हम लोगों ने 21 दिसंबर की सुबह ई-रिक्शा से ‘माइकिंग’ (अनाउंटमेंट) करवाना शुरू कर दिया और थाने में अपहरण की शिकायत की.”
“जब बच्चा नहीं मिला तो हमारे परिवार के लोगों और दोस्तों ने बच्चे के गुम होने से जुड़ी एक पोस्ट फ़ेसबुक पर डाली. इस बीच हम लोगों को तीन फ़ोन आए. पहला तो किसी स्थानीय आदमी ने किया जो हम लोग रिसीव नहीं कर पाए और दो ऐसे नंबर थे जिनके आगे +44 लिखा था.”
सदर डीएसपी दिलीप कुमार बताते हैं, “बच्चे के चाचा और बच्चे की मां के नंबर पर ये फ़ोन आए थे. स्थानीय व्यक्ति जिसने इन लोगों को फ़ोन किया था, वो संभवत: बच्चे के भटकने के बाद उसे मिला और बच्चे ने उसको अपने घर फ़ोन मिलाने को कहा होगा. लेकिन वो फ़ोन रिसीव नहीं हुआ.”
“बाकी के फ़ोन साइबर ठगों के थे. ठगों ने चाचा को फ़ोन किया लेकिन चाचा ने उनकी बात पर यक़ीन नहीं किया. लेकिन मां को जब ठगों ने वीडियो कॉल किया तो वो डर गई.”
इस मामले में अब तक हुई पुलिस की जांच के मुताबिक़, बच्चा अपनी मां की पिटाई के डर से ख़ुद ही घर से चला गया था.

परिजनों ने क्या बताया?
बच्चे के फूफा मोहम्मद आज़म बताते हैं, “उन लोगों ने पहले एक वीडियो कॉल किया था जिसमें एक आदमी ने अपना पूरा चेहरा ढक रखा था. वो आदमी दिल्ली-मुंबई की तरफ़ बोली जाने वाली हिन्दी बोल रहा था. उन लोगों ने एक बच्चे को दूर से दिखाया और छुरा दिखाकर कहा कि हम बच्चे को मार देंगे.”
“बच्चे को दूर से दिखाया गया था लेकिन मां-बाप बहुत डरे हुए थे तो उन्हें लगा कि ये उनका ही बच्चा है. हम लोगों ने ठगों से कहा कि सर हम 50 हज़ार रुपये ही दे पाएंगे जिस पर उसने एक नंबर भेजा. हम लोगों ने इस पर पैसा भेजा लेकिन दो घंटे बाद तक बच्चा नहीं आया.”
मोहम्मद आज़म के मुताबिक़, “साइबर ठगों ने उन लोगों से कहा कि हमने बच्चे के कपड़े बदल दिए हैं और उसके बाल काट दिए हैं. ज़ाहिर तौर पर ये परिवार को कंफ़्यूज़ करने के लिए कहा गया था. 50 हज़ार रुपये की फिरौती देने के दो घंटे बाद भी जब बच्चा वापस नहीं लौटा तो परिवार ने दोबारा साइबर ठगों के नंबर पर संपर्क किया लेकिन साइबर ठगों ने फिर से 50 हज़ार रुपये की मांग की. इस मांग के बाद परिवार को शक हुआ और उन्होंने स्थानीय थाना जाकर पुलिस को सारी जानकारी दी.”

बच्चा मुज़फ़्फ़रपुर के ठेलेवाले के पास मिला
21 दिसंबर को हुई घटना के बाद 22 दिसंबर को बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर से बच्चे की मां आबू निसां को किसी अनजान व्यक्ति का फ़ोन आया.
ये फ़ोन मुज़फ़्फ़रपुर के एक ठेले वाले का था. बच्चा भटकते-भटकते उस ठेले वाले के पास पहुंच गया था और उसने अपनी मां का नंबर देकर ठेले वाले को फ़ोन करने को कहा.
इसके बाद परिजनों ने इसकी सूचना स्थानीय थाने में दी, जिसके बाद बच्चा परिवारवालों को मिल गया.
सदर डीएसपी दिलीप कुमार ने कहा, “इस मामले में पहले अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ अपहरण का केस दर्ज हुआ था लेकिन अब साइबर ठगी का केस दर्ज होगा. बच्चा अपने आप ही चला गया था क्योंकि उसके दोस्तों ने उसे मां से पिटाई का डर दिखाया था. साइबर ठगों ने जिस अकाउंट नंबर में रुपये लिए हैं वो हैदराबाद का है. अकाउंट होल्डर की पहचान की जा रही है और ज़रूरी कार्रवाई की जा रही है.”
वहीं मोहम्मद आज़म बताते हैं, “बच्चा वापस लौट आया, ये हमारे लिए सुकून की बात है लेकिन किसी और के साथ ऐसा नहीं हो, इसके लिए दोषी को सज़ा मिलनी चाहिए. हम लोग बहुत परेशान रहे और लोगों ने हमारी परेशानी का फ़ायदा उठाकर हमसे ठगी की.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.