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तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं. लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब विधानसभा में तेजस्वी यादव पर हमला करते हैं तो ऐसा लगता है कि वह घर के किसी बच्चे को डांट रहे हैं.
74 साल के नीतीश कुमार अपनी राजनीति का उफान देख चुके हैं लेकिन 35 साल के तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव की राजनीतिक विरासत को फिर से मज़बूत करने की कोशिश में लगे हैं.
इसी हफ़्ते बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव पर हमला करते हुए कहा, ”तुम्हारे पिता को मैंने ही बनाया था. अरे, तुम्हारी जाति वाले भी मुझसे कहते थे कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं? लेकिन फिर भी मैंने उनको बनवाया था.”
इसी तरह फ़रवरी 2021 में नीतीश कुमार ने तेजस्वी को निशाने पर लेते हुए विधानसभा में कहा था, ”अरे तुमको तो मैंने गोद में खिलाया है. तुम क्या बात करोगे. बैठ जाओ.”
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तेजस्वी यादव को लेकर नीतीश कुमार जैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उस पर सियासी हलकों में काफी बहस होती रही है.
जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता नीरज कुमार से बीबीसी हिंदी ने जब यह पूछा कि नीतीश कुमार तेजस्वी यादव को नेता प्रतिपक्ष के रूप में देखते हैं या पड़ोस के किसी बच्चे की तरह?
नीरज कुमार का जवाब था, ”इसकी शुरुआत किसने की? तेजस्वी ने नीतीश कुमार को विधानसभा में अचेत कहा. राबड़ी देवी विधान परिषद में नीतीश कुमार को लेकर क्या-क्या नहीं कहती हैं. लालू यादव भी मुख्यमंत्री की कौन सी मर्यादा का ख़्याल रखते हैं. अगर वो शुरुआत करेंगे तो जवाब तो मिलेगा ही.”
नीतीश कुमार और लालू यादव की सियासी दोस्ती-दुश्मनी का सिलसिला 90 के दशक से शुरू होता है, जो आज तक जारी है. लालू यादव अब सक्रिय राजनीति में नहीं हैं तो नीतीश कुमार अब तेजस्वी यादव से टकराते रहते हैं.
शक्ति यादव बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के मुख्य प्रवक्ता हैं. शक्ति यादव को लगता है कि नीतीश कुमार अब तक इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि तेजस्वी उनके बगल में बैठकर राजनीति कर रहे हैं.
शक्ति यादव कहते हैं, ”नीतीश कुमार को अब भी यही लगता है कि वह लालू यादव के घर आए हैं और तेजस्वी यादव बच्चा हैं. इस भाव में भी एक किस्म का अपनापन होना चाहिए था लेकिन नीतीश कुमार तो तेजस्वी यादव से चिढ़े रहते हैं. दरअसल नीतीश कुमार अचेत अवस्था में हैं.”
ऋतु जायसवाल बिहार में आरजेडी महिला मोर्चा की अध्यक्ष हैं. ऋतु को लगता है कि तेजस्वी के डर के कारण नीतीश कुमार उन्हें बच्चा साबित करने में लगे रहते हैं. ऋतु कहती हैं, ”नीतीश कुमार की राजनीति का अवसान हो चुका है. अवसान करने वाले तेजस्वी हैं. ऐसे में तेजस्वी पर उनकी चिढ़ समझ में आती है.”
मंगलवार यानी चार फ़रवरी को बिहार विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा हो रही थी.
इसी चर्चा में तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार की तीखी आलोचना करते हुए कहा था, ”20 साल शासन करने के बाद भी नीतीश कुमार पीछे की तरफ़ देख रहे हैं. समस्या आज की है और आप पीछे देख रहे हैं. समस्या आज की है और उसका दोष आप 20 साल पहले की सरकार को दे रहे हैं. हत्या आज हो रही है और दोष 20 साल की पुरानी सरकार को दे रहे हैं”.
क्या लालू यादव को नीतीश कुमार ने सीएम बनाया था?
लालू यादव और नीतीश कुमार जेपी आंदोलन की उपज हैं. दोनों छात्र राजनीति से चुनावी राजनीति में आए और बिहार की राजनीति पिछले साढ़े तीन दशक से इन दोनों के ही इर्द-गिर्द घूम रही है. नीतीश और लालू सत्ता के लिए साथ भी आते रहे तो सत्ता के लिए ही अलग भी होते रहे.
बिहार में कांग्रेस की राजनीति को चुनौती जेपी आंदोलन से ही मिली थी और इसी आंदोलन ने लालू और नीतीश को बड़ा नेता भी बनाया. 1989 में बिहार के भागलुपर में दंगों के बाद बिहार से कांग्रेस की सत्ता का अंत हुआ और 1990 में लालू यादव जनता दल से बिहार के मुख्यमंत्री बने.
क्या लालू यादव 1990 में पहली बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मदद से बने थे? संजय सिंह तब बिहार में हिन्दुस्तान टाइम्स के पत्रकार थे. उनसे पूछा कि क्या नीतीश कुमार ने लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाया था?
संजय सिंह कहते हैं, ”इस बात में सच्चाई है. तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, राम सुंदर दास को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. वहीं उप-प्रधानमंत्री देवीलाल लालू यादव के पक्ष में थे. नीतीश कुमार भी लालू यादव के पक्ष में ही थे. लेकिन जनता दल के शीर्ष नेतृत्व के ख़िलाफ़ विधायक कैसे जा सकते थे? चंद्रशेखर और विश्वनाथ प्रताप सिंह की बनती नहीं थी. ऐसे में नीतीश कुमार ने चाल चली. नीतीश कुमार ने कहा कि वीपी सिंह को रोकिए नहीं तो यहाँ अपने मन का सीएम बना देंगे. चंद्रशेखर को भी अपना दबदबा दिखाने का मौक़ा मिल गया. चंद्रशेखर ने रघुनाथ झा को आगे कर दिया.”
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संजय सिंह कहते हैं, “ऐसे में मुख्यमंत्री के तीन दावेदार हो गए. लालू यादव, राम सुंदर दास और तीसरे रघुनाथ झा. विधायकों ने वोटिंग के ज़रिए नेता चुना और सात विधायकों ने रघुनाथ झा के पक्ष में वोट कर दिया. ऐसे में लालू यादव तीन वोट से जीत गए और वीपी सिंह का दांव नाकाम रहा.”
उनके मुताबिक, ”नीतीश कुमार कई बार सच भी बोल देते हैं. इन्हीं में से एक सच यह भी है कि उन्होंने लालू यादव को पहली बार मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. लेकिन राजनीति में यह सब चलता रहता है. इन्हीं लालू यादव ने इंदर कुमार गुजराल और देवगौड़ा को प्रधानमंत्री भी बनाया.”
जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि लालू यादव को बनाने में भी और उन्हें सतह पर लाने में भी नीतीश कुमार का बड़ा योगदान रहा है.
नीतीश कुमार 1990 में लालू यादव को लेकर इतने प्रतिबद्ध क्यों थे? संजय सिंह कहते हैं, ”नीतीश कुमार तब लालू यादव की तरक़्क़ी में ही अपनी तरक़्क़ी देखते थे. पुराने समाजवादी नेता लालू और नीतीश को जगह देने के लिए तैयार नहीं थे. दूसरी बात यह भी कि नीतीश कुमार जिस कुर्मी जाति से हैं, उसकी तादाद बिहार में कम है जबकि यादव 18 फ़ीसदी हैं.”
“ऐसे में नीतीश अपनी सीमा समझते थे. नीतीश कुमार को लगता था कि उन्होंने लालू को सीएम बनाने में जिस तरह की मदद की, उसके बाद लालू उनकी हर बात सुनेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और दोनों की राह अलग हो गई.”
संजय सिंह कहते हैं, ”जब लालू यादव मुख्यमंत्री बन गए तो मुझे धनबाद के बाहुबली नेता सूर्यदेव सिंह ने कहा था कि अगर चंद्रशेखर ने मुझे पहले बताया होता तो तीन विधायक अपने पाले में कर लेते और लालू यादव को मुख्यमंत्री नहीं बनने देता.”
आरजेडी नेता ऋतु जायसवाल अलग राय रखती हैं. वह कहती हैं, ”लालू यादव 1977 में लोकसभा सांसद का चुनाव जीत गए थे. नीतीश कुमार पहली बार विधानसभा का चुनाव 1985 में जीते. ऐसे में नीतीश कुमार कह रहे हैं कि उन्होंने लालू यादव को बनाया तो कहने दीजिए.”
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लालू बनाम नीतीश
साल 1994 में नीतीश कुमार ने जॉर्ज फ़र्नान्डिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई और 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार अलग हो गए.
हालांकि 1995 चुनाव में नीतीश कुमार कुछ ख़ास नहीं कर पाए. समता पार्टी केवल सात सीटों तक ही सीमित रह गई और लालू यादव एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने.
1995 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार को लगा कि वो बिहार में लालू यादव से अकेले नहीं लड़ सकते हैं. जिसके कारण, 1996 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने हिंदूवादी पार्टी बीजेपी से गठबंधन कर लिया. वह उसी पार्टी के साथ आ गए, जिसे कभी वह मंदिर आंदोलन के दौरान आड़े हाथों लेते थे और ‘सांप्रदायिक पार्टी’ बताते थे.
साल 2000 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और बीजेपी को 121 सीटों पर कामयाबी मिली. नीतीश कुमार बिना बहुमत के मुख्यमंत्री बने. हालांकि एक हफ़्ते के भीतर ही नीतीश को इस्तीफ़ा देना पड़ गया.
इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से फिर राबड़ी देवी मु्ख्यमंत्री बनीं. आख़िरकार 2005 में नीतीश कुमार को सफलता मिली और वह बिहार के मुख्यमंत्री बन गए.
अक्तूबर 2005 में हुए इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 55 और जनता दल यूनाइटेड को 88 सीटों पर जीत मिली और पूर्ण बहुमत के साथ गठबंधन की सरकार बनी. इसके बाद से नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित