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- Author, सीटू तिवारी
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता, पटना
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हाल के दिनों तक बिहार में एनडीए और महागठबंधन के दलों में जो आपसी प्यार और सामंजस्य दिख रहा था, वह सीट शेयरिंग को लेकर रस्साकशी में तब्दील होता नज़र आ रहा है.
दोनों ही गठबंधनों में सीट शेयरिंग पर पेंच फंसता दिख रहा है. सीट बंटवारे को लेकर कई दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है.
दोनों गठबंधनों में शामिल छोटे दल ‘सम्मानजनक सीटों’ के लिए अपना दावा पेश कर रहे हैं.
नीतीश कुमार की ख़राब सेहत की ख़बरों, जेडीयू में उत्तराधिकारी पर अटकलों और प्रशांत किशोर की इंट्री से चुनाव दिलचस्प होते जा रहे हैं.
ऐसे में आरजेडी और बीजेपी कोई ऐसा दांव नहीं खेलना चाहते जिससे छोटे दल उनसे दूर हों और जातीय समीकरण बिगड़ें.
लेकिन छोटे दलों के अलग-अलग सुरों से संकेत मिल रहे हैं कि दोनों गठबंधनों में सीट शेयरिंग की राह आसान नहीं है.
‘मोदी के हनुमान’ बनाम ‘स्वाभाविक सहयोगी’
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एनडीए में जेडीयू, बीजेपी, एलजेपी(आर), जीतनराम मांझी की हम (सेक्युलर) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी हैं.
ऐसे संकेत हैं कि बीजेपी और जेडीयू 100-100 सीट लड़ेंगी. यानी बाकी 43 सीटों का बंटवारा एलजेपी (आर), हम और रालोमो के बीच होना है.
इस गठबंधन में चिराग पासवान और जीतन राम मांझी दलित चेहरे हैं, जिनके बीच वार-पलटवार चलता रहता है.
साल 2023 में हुए जातिगत सर्वे के मुताबिक बिहार में दलितों की आबादी 19.65 फ़ीसदी है. इसमें सबसे ज्यादा आबादी पासवान (5.31 फ़ीसदी), रविदास (5.25 फ़ीसदी) और मुसहरों (3.08 फ़ीसदी) की है.
एलजेपी (आर) प्रमुख चिराग पासवान खुद को ‘मोदी का हनुमान’ बताते हैं, जबकि साल 2015 में बनी ‘हम’ पार्टी की वेबसाइट के मुताबिक वह एनडीए की ‘स्वाभाविक सहयोगी’ है.
कभी ‘हम’ के साथ रही और अब बीजेपी की प्रदेश उपाध्यक्ष अनामिका पासवान कहती हैं, “चिराग और मांझी जी, दोनों ही ज्यादा सीट पाने की कोशिश कर रहे हैं. ये उनका हक़ भी है. बीजेपी के लिए सबसे अहम बात यही है कि ये दोनों लीडर एनडीए के प्रति ईमानदार हैं. जातिगत सर्वे से इतर हमारा मानना है कि बिहार में दलित आबादी 22 फ़ीसदी है और ये सारा वोट एनडीए के पास है. मांझी जी और चिराग पासवान को छोड़कर कोई तीसरा दलित चेहरा नहीं है.”
20 सीट दें, वर्ना 100 पर लड़ेंगे- मांझी
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लेकिन अनामिका पासवान के इस दावे के बीच केन्द्रीय मंत्री जीतन राम मांझी का बयान आया है.
हम पार्टी के प्रमुख जीतन राम मांझी ने कहा है, ” हमें 20 सीट चाहिए. हम चाहते हैं हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा हर हालत में मान्यता प्राप्त पार्टी बन जाए. मान्यता प्राप्त करने के लिए हमें विधानसभा में आठ सीटें चाहिए. कुल मतदान का छह प्रतिशत वोट चाहिए. अगर हमें 20 सीटें नहीं मिलीं तो हम 100 सीटों पर लड़ेंगे. हर जगह हमारे दस से पन्द्रह हज़ार वोट है.”
‘हम’ ने बीते विधानसभा चुनाव में 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से 4 सीटें जीतीं और 1 पर जमानत ज़ब्त हो गई थी. चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक पार्टी को 3,75,564 वोट मिले थे जो कुल वोटों का 0.89 फ़ीसदी था.
पार्टी इस बार पूरे राज्य में अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है. ‘हम’ की नज़र पूर्णिया में कसबा, मुजफ़्फ़रपुर में कांटी, भोजपुर में बड़हरा, आरा सहित मधेपुरा और कटिहार पर है.
अगर एनडीए में हम की नहीं सुनी गई तो क्या ये पार्टी गठबंधन से अलग हो सकती है?
इस सवाल पर पार्टी के वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, “राजनीति संभावनाओं का खेल है. ये संभव है कि ‘हम’ एनडीए के साथ कुछ सीटें लड़े और बाकी सीटें स्वतंत्र रूप से अलग लड़े यानी फ्रेंडली फाइट. हमारे कार्यकर्ताओं का ये सेंटीमेंट है.”
प्रदर्शन के आधार पर मिलें सीटें
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एनडीए के दूसरे दलित चेहरे को भी साधना बीजेपी और जेडीयू के लिए आसान नहीं होगा.
एलजेपी (आर) बीते लोकसभा चुनाव में अपनी 100 फ़ीसदी स्ट्राइक रेट के आधार पर सीटें चाहती है.
पार्टी प्रवक्ता राजेश कुमार भट्ट बीबीसी से कहते हैं, “हमें अपनी परफॉर्मेंस के आधार पर सीटें मिलनी चाहिए. हम ज्यादा सीटें जीतेंगे तो इससे एनडीए ही मजबूत होगा. हम सभी 243 सीट पर तैयारी कर रहे हैं ताकि हम अपने भी उम्मीदवार जितवाएं और सहयोगी पार्टियों के भी.”
पिछले विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान, एनडीए गठबंधन से बाहर थे और उनकी पार्टी ने 135 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
पार्टी सिर्फ मटिहानी सीट पर जीती थी, जबकि 110 सीटों पर उनके उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी.
पार्टी को कुल 23,83,739 वोट मिले थे जो कुल वोट शेयर का 5.66 फ़ीसदी था. जिन सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा, वहां पर पार्टी का वोट शेयर 10.26 फ़ीसदी था.
साल 2020 के चुनाव में एलजेपी के अलग लड़ने से जेडीयू को नुकसान हुआ था और पार्टी को सिर्फ़ 43 सीट पर संतोष करना पड़ा था. उस वक़्त एलजेपी से कई उधार लिए हुए कैंडीडेट लड़े थे जिसमें ज्यादातर बीजेपी से आए थे. चुनाव हारने के बाद इनमें से कुछ बीजेपी में वापस भी लौट गए.
उषा विद्यार्थी, राजेन्द्र सिंह, रामेश्वर चौरसिया, शोभा सिन्हा, इंदु कश्यप, प्रदीप ठाकुर, अभय सिंह और राजीव ठाकुर बीजेपी से एलजेपी में आए थे.
चुनाव में हारने के बाद उषा विद्यार्थी, राजेन्द्र सिंह और रामेश्वर चौरसिया बीजेपी में वापस चले गए.
‘कंट्रीब्यूशन्स ऑफ़ महादलित इन बिहार इकोनॉमी’ किताब के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार अरुण श्रीवास्तव कहते हैं, “अगर बीजेपी का साथ इन दोनों में से कोई भी छोड़ता है तो दलित वोटों का बंटवारा होगा जिससे महागठबंधन को फ़ायदा होगा. कांग्रेस दलितों के बीच अपना पुराना जनाधार पाने की कोशिश भी कर रही है.”
एनडीए के इन दो दलित चेहरों की इस रस्साकशी से इतर आरएलएम शांत है. पार्टी सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा बीबीसी से कहते हैं, “दूसरी पार्टियां कहती रहें लेकिन हमको जब सीट शेयरिंग की टेबल पर बात रखनी होगी तभी रखेंगे.”
मुकेश सहनी पर सबकी नज़र
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सीट शेयरिंग के मसले पर महागठबंधन की राह भी आसान नहीं है.
महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, वीआईपी, तीनों वाम दल, जेएमएम और राष्ट्रीय एलजेपी शामिल हैं.
कांग्रेस जहां साल 2020 के विधानसभा चुनाव की तरह ही 70 सीट पर लड़ना चाहती है, वहीं सीपीआई-माले ने 40 और वीआईपी ने 60 सीटों पर अपना दावा ठोका है.
वीआईपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में एनडीए गठबंधन के साथ 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
निषादों की राजनीति करने वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के संस्थापक मुकेश सहनी ‘सन ऑफ़ मल्लाह’ के तौर पर पॉलिटिकल सर्किल और अपने समर्थकों में मशहूर है.
इस समय बिहार की राजनीति में सबसे ज्यादा नज़रें उन्हीं पर हैं.
बीते विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुकेश सहनी, तेजस्वी यादव के साथ एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ही महागठबंधन को छोड़कर चले गए थे.
सीटों के सवाल पर मुकेश सहनी बीबीसी से कहते हैं, “हमारे पास 11 फ़ीसदी वोट है, ऐसे में हमारा क्लेम 60 सीटों पर हैं. इसमें से 5 सीटें कम हो सकती है. बाकी मैंने ख़ुद के लिए 6 सीटें चुनी है जिसमें से किसी एक पर चुनाव लड़ूंगा.”
क्या वो एनडीए में फिर से जा सकते हैं?
इस सवाल पर मुकेश सहनी कहते हैं, “बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा आरक्षण ख़त्म करने वाली है लेकिन हमको निषादों को ओबीसी से एससी कैटेगरी में डलवाकर आरक्षण का लाभ दिलवाना है. ये बीजेपी करेगी नहीं तो हम उसके पास वापस क्यों जाएंगे? अगर किसी परिस्थिति में वो ऐसा करते हैं तो फिर विचार किया जाएगा.”
‘आरजेडी और कांग्रेस करें त्याग’
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वीआईपी ने मुजफ़्फ़रपुर, दरभंगा, चंपारण, समस्तीपुर, बेगूसराय, वैशाली, सहरसा, खगड़िया सहित कई ज़िलों की विधानसभा सीट के लिए दावेदारी पेश की है. पार्टी ने बांका, जमुई, बक्सर और किशनगंज ज़िलों में सीट नहीं मांगी है.
महागठबंधन में कांग्रेस 70 सीटों पर फिर से लड़ना चाहती है. हालांकि पार्टी इस बार स्ट्राइक रेट पर ख़ास ध्यान दे रही है.
पिछले चुनावों में कांग्रेस को 9.48 फ़ीसदी वोट मिले थे.
बिहार प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष शरवत जहां फ़ातिमा बीबीसी से कहती हैं, “हम 70 सीटों की मांग कर रहे हैं लेकिन तैयारी सभी 243 सीटों पर है. अभी बहुत कुछ तय होना बाक़ी है लेकिन जहां तक कांग्रेस के उम्मीदवारों की बात है तो इसमें भी सोशल इंजीनियरिंग का ख़ास ख़्याल रखा जाएगा ताकि दलित, पिछड़े, मुसलमानों और आदिवासियों को प्रतिनिधित्व मिले.”
आरजेडी प्रवक्ता चितरंजन गगन भी कहते हैं, “महागठबंधन के बीच अच्छा तालमेल है. दिक़्क़त की कोई बात नहीं है.”
लेकिन सीपीआई (माले) 40 सीटों पर अपनी दावेदारी कर रही है. माले ने पिछली बार 19 सीट लड़ी थी और 12 पर जीत हासिल की थी. मगध और शाहाबाद के इलाके के साथ साथ माले को सीवान, कटिहार और चंपारण में भी जीत मिली थी.
पार्टी के केन्द्रीय कमिटी के सदस्य कुमार परवेज़ बीबीसी से कहते हैं, “कांग्रेस को पिछली बार से 20 फ़ीसदी कम और राजद को 10 फ़ीसदी कम सीट लेनी चाहिए. हम गया, नालंदा, चंपारण, मिथिलांचल और सीमांचल में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहते हैं. हमारे रहने से महागठबंधन में दलित और अति पिछड़ा वोट साथ आएगा. अगर एनडीए 40 सीटें अपने दलित नेताओं को दे रही है तो महागठबंधन में ये हमें मिलें.”
मुश्किल है रास्ता
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ऐसी कई सीटें हैं जिसको पाने के लिए दोनों गठबंधनों के भीतर भी खींचतान तय मानी जाती है. इन्हीं में से एक है बेगूसराय की मटिहानी सीट. पिछली बार यहां से एलजेपी (आर) के राजकुमार सिंह ने जीत हासिल की थी. लेकिन बाद में राजकुमार जेडीयू में चले गए.
एलजेपी(आर) के लिए ये उसकी जीती हुई सीट है लेकिन राजकुमार सिंह अपनी उम्मीदवारी का दावा कर रहे हैं. वहीं महागठबंधन में इस सीट को लेकर कांग्रेस और सीपीएम के बीच खींचतान है.
पिछली बार इस सीट पर सीपीएम तीसरे नंबर पर थी.
इसी तरह खगड़िया ज़िले की अलौली सीट बीते चुनाव में राजद के रामवृक्ष सदा ने जीती थी. लेकिन ये सीट महागठबंधन में शामिल हुए पशुपति कुमार पारस अपने बेटे यशराज पासवान के लिए मांग रहे हैं.
वहीं एनडीए में भी इस सीट को लेकर जेडीयू और एलजेपी(आर) में खींचतान है. एलजेपी (आर) इसे अपनी पारंपरिक सीट मानती है लेकिन पिछले चुनाव में जेडीयू की साधना देवी यहां दूसरे नंबर पर रही थी.
बेगूसराय की बछवाड़ा सीट पर सीपीआई और कांग्रेस की कड़ी टक्कर होती रही है. बीते चुनाव में बीजेपी के सुरेन्द्र मेहता ने सिर्फ़ 464 वोट से सीपीआई के अवधेश कुमार राय को हराया था.
कांग्रेस ये सीट अबकी बार किसी भी क़ीमत पर शिव प्रकाश गरीब दास के लिए चाहती है जो कांग्रेस के दिवंगत नेता रामदेव राय के बेटे हैं. शिव प्रकाश गरीब दास इस वक़्त यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं.
तेजस्वी की बिहार अधिकार यात्रा
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सबसे ज्यादा दिलचस्प तो सिमरी बख्तियारपुर सीट है जहां से आरेजेडी के युसूफ सलाउद्दीन ने वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को सिर्फ़ 1759 वोट से हराया था.
युसूफ सलाउद्दीन, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष महबूब अली कैसर के बेटे हैं.
मुकेश सहनी क्या इस सीट पर अपना दावा कर सकते हैं? इस सवाल पर मुकेश सहनी कहते हैं, “हम यहां से भी चुनाव लड़ सकते हैं क्योंकि पिछली बार मेरी हार लोजपा के चलते हुई थी. अभी वर्तमान उम्मीदवार के प्रदर्शन की समीक्षा होगी, जिसके बाद फ़ैसला लिया जाएगा. ये भी संभव है कि हमारी पार्टी के सिंबल पर राजद का उम्मीदवार लड़े.”
इसी तरह सुगौली, मधुबनी सीट पर भी राजद जीती और वीआईपी दूसरे नंबर पर रही.
इस बीच राजद नेता तेजस्वी यादव 16 सितंबर से बिहार अधिकार यात्रा पर हैं. इस यात्रा में उनके साथ कोई सहयोगी पार्टी का प्रतिनिधि नहीं है.
बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने इस यात्रा को ‘राहुल गांधी की यात्रा का जवाब’ बताया है.
वरिष्ठ पत्रकार अरुण श्रीवास्तव भी कहते हैं, “ये एक तरह से राहुल का यात्रा का काउंटर नैरेटिव और ख़ुद को ज्यादा ताक़तवर दिखाने की कोशिश है. लेकिन वोटर अधिकार यात्रा के बाद जिस तरह की एकता महागठबंधन में दिखी थी, उस लिहाज़ से ये यात्रा अच्छी नहीं है.”
बिहार में चल रही इस उठापटक के बीच माना जा रहा है कि इस महीने के अंत तक फ़ाइनल उम्मीदवारों को अनौपचारिक तौर पर संकेत दे दिया जाएगा कि वो अपने क्षेत्र में तैयारी करें.
एक कांग्रेस नेता नाम न बताने की शर्त पर बीबीसी से कहते हैं, “ये आप जितनी यात्राएं या अन्य कार्यक्रम देख रही हैं, ये सब मीडिया कंज़म्प्शन के लिए है. पार्टियों को पता है उम्मीदवार या सीट जल्द घोषित हुई तो भगदड़ मचेगी.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित