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चुनाव आयोग ने इस सप्ताह एक बयान जारी कर कहा कि बिहार में वोटर लिस्ट में संशोधन किया जाएगा. इसके लिए घर-घर जाकर नागरिकों की जांच की जाएगी और वैध दस्तावेज़ों के आधार पर उनका रजिस्ट्रेशन किया जाएगा.
चुनाव आयोग ने कहा है कि सभी योग्य नागरिकों का रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित करने के लिए घर-घर जाकर उनका वेरिफ़िकेशन किया जाएगा और ज़रूरत के हिसाब से लिस्ट से नाम हटाए या जोड़े जाएंगे.
वोटिंग लिस्ट में ये संशोधन ऐसे वक्त किए जाने हैं जब बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में विपक्षी पार्टियां इस पर नाराज़गी जता रही हैं.
चुनाव आयोग का कहना है कि इससे पहले मतदाता लिस्ट में स्पेशल इंटेन्सिव रिविज़न साल 2003 में किया गया था.
बिहार में विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव ने इसे “संदेहास्पद और चिंताजनक” बताया है.
तेजस्वी यादव का कहना है कि इस प्रक्रिया से बीजेपी-आरएसएस बिहार के ग़रीबों के मतदान का अधिकार ख़त्म कर देना चाहती है.
एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी का भी कहना है कि “निर्वाचन आयोग बिहार में गुप्त तरीक़े से एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) लागू कर रहा है”.
एनआरसी के ज़रिए देश में प्रत्येक वैध निवासी का एक पहचान डेटाबेस तैयार करना है ताकि अवैध रूप से रह रहे नागरिकों की पहचान की जा सके.
हालांकि बीजेपी नेता और प्रदेश के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा ने तेजस्वी के आरोपों का जवाब देते हुए पार्टी की मानसिकता को संविधान विरोधी करार दिया है.
चुनाव आयोग ने क्या कहा?
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24 जून को जारी बयान में चुनाव आयोग ने कहा कि बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर स्पेशल इंटेन्सिव रिविज़न किया जाएगा.
इसके ज़रिए ये सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी योग्य नागरिकों के नाम वोटर लिस्ट में हों ताकि वो मतदान के अपने हक का इस्तेमाल कर सकें, लिस्ट में कोई ऐसा व्यक्ति न हो जो वोट देने योग्य न हो. साथ ही चुनाव आयोग ने कहा है कि इसके लिए लिस्ट में नाम जोड़े जाएंगे और जिनकी पुष्टि न हो सके, वो नाम लिस्ट से हटा दिए जाएंगे.
चुनाव आयोग का कहना है, “तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण, लगातार पलायन, युवा नागरिकों के वोट देने योग्य होने, मौतों की सूचना न देने और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होने जैसे कई कारणों से वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेन्सिव रिविज़न की ज़रूरत है. इससे वोटर लिस्ट को बेहतर बनवाया जा सकेगा जिसमें गलतियां न हों.”
चुनाव आयोग के अनुसार बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) इस दौरान घर-घर जाकर सर्वे करेंगे और योग्य वोटरों का वेरिफ़िकेशन करेंगे.”
बीएलओ के पास आंशिक रूप से भरे एक फॉर्म की दो कॉपियां होंगी,जो मतदाता को भरनी हैं. इसके बाद बीएलओ मतदाता से ज़रूरी दस्तावेज़ लेकर (जिन्हें मतदाता खुद सत्यापित करेंगे) ईसीआईनेट मोबाइल ऐप में अपलोड करेंगे. इस प्रक्रिया के दौरान बीएलओ भरा फॉर्म लेते वक्त मतदाता को उसकी प्राप्ति रसीद देंगे.
चुनाव आयोग का कहना है कि योग्य मतदाताओं की पहचान और उनके रजिस्ट्रेशन के लिए चुनाव आयोग संविधान के अनुच्छेद 326 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 16 के तहत दिए नियमों के अनुसार काम करेगा.
चुनाव आयोग ने कहा है कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान इस बात की ध्यान रखा जाएगा कि बुज़ुर्गों, विकलांगों, बीमार लोगों या कमज़ोर समूहों को परेशान न किया जाए.
इस दौरान राजनीतिक दलों की सक्रिय भागीदारी के लिए कोशिशें की जाएंगी.
आरजेडी की आपत्ति
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग द्वारा अचानक विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा अत्यंत ही संदेहास्पद और चिंताजनक है.”
उन्होंने लिखा, “निर्वाचन आयोग ने आदेश दिया है कि सभी वर्तमान मतदाता सूची को रद्द करते हुए हर नागरिक को अपने वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए नए सिरे से आवेदन देना होगा, भले ही उनका नाम पहले से ही सूची में क्यों न हो.”
तेजस्वी यादव ने चार पन्नों का एक बयान सोशल मीडिया पर साझा किया है जिसमें उन्होंने सवाल किया, “चुनाव से दो महीने पहले स्पेशल इंटेन्सिव रिविज़न कराने की क्या ज़रूरत पड़ी.”
उन्होंने पूछा कि क्या गिनती के कुछ दिनों में ये प्रक्रिया करना आसान है जबकि इससे पहले जब 2003 में इसी तरह की प्रक्रिया की गई थी उसमें दो साल का वक्त लगा था.
तेजस्वी यादव ने लिखा, “एक तरफ वोटर लिस्ट से आधार नंबर लिंक करने की कवायद हो रही है ताकि वोटर डुप्लिसिटी ख़त्म हो, तो दूसरी तरफ इस रिविज़न में आधार कार्ड को मान्य दस्तावेज़ नहीं माना जा रहा है. यह अप्रोच क्या दर्शाता है?”
आगे उन्होंने सवाल किया, “2024 में इसी मतदाता लिस्ट के आधार पर लोकसभा चुनाव कराए गए थे, अगर वो लिस्ट ग़लत थी तो जो सहायक निर्वाचन पदाधिकारी नियुक्त थे क्या उन्होंने त्रुटिपूर्ण लिस्ट तैयार की थी?”
तेजस्वी यादव ने लोगों के पास मांगे गए दस्तावेज़ों की उपलब्धता और मॉनसून के वक्त इस प्रक्रिया के किए जाने को लेकर सवाल किया, साथ ही पूछा कि चुनाव से ठीक पहले ऐसा बिहार में ही क्यों किया जा रहा है.
असदुद्दीन ओवैसी ने भी उठाए सवाल
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एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि इस प्रक्रिया का नतीजा ये होगा कि बिहार के ग़रीबों की बड़ी संख्या को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा.
उन्होंने भी तेजस्वी यादव की तरह की लोगों के पास दस्तावेज़ों की उपलब्धता को लेकर सवाल उठाए.
उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा, “वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाने के लिए अब हर नागरिक को दस्तावेज़ों के ज़रिए साबित करना होगा कि वह कब और कहाँ पैदा हुए थे और साथ ही यह भी कि उनके माता-पिता कब और कहाँ पैदा हुए थे.”
आगे ओवैसी ने लिखा, “विश्वसनीय अनुमानों के अनुसार भी केवल तीन-चौथाई जन्म ही पंजीकृत होते हैं. ज़्यादातर सरकारी कागज़ों में भारी ग़लतियां होती हैं. बाढ़ प्रभावित सीमांचल क्षेत्र के लोग सबसे ग़रीब हैं, ऐसे में उनसे यह अपेक्षा करना कि उनके पास अपने माता-पिता के दस्तावेज़ होंगे, एक क्रूर मज़ाक़ है.”
उन्होंने लिखा कि वोटर लिस्ट में अपना नाम रजिस्टर करना हर भारतीय का संवैधानिक अधिकार है.
एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा कि “सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में ऐसी मनमानी प्रक्रियाओं पर सख़्त सवाल उठाए थे. कोर्ट ने कहा था कि जो नाम पहले से वोटर लिस्ट में दर्ज है, उसे बिना सूचना और उचित प्रक्रिया के हटाया नहीं जा सकता.”
उन्होंने लिखा, “चुनाव आयोग एक महीने में हर वोटर की जानकारी घर-घर जाकर इकट्ठा करना चाहता है. बिहार जैसे राज्य में, जहां बड़ी आबादी और कम कनेक्टिविटी है, वहां इस तरह की प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके़ से करना लगभग असंभव है.”
ओवैसी ने लिखा, “चुनाव नज़दीक हैं, ऐसे में इस तरह की कार्रवाई से लोगों का निर्वाचन आयोग पर भरोसा कमज़ोर होगा.”
टीएमसी ने जताई नाराज़गी
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पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद सागरिका घोष ने कहा कि चुनाव आयोग के माध्यम से बीजेपी विपक्ष को निशाना बनाने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा कि ये मामला सबसे पहले टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उठाया था.
उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा से पहले वोटर लिस्ट में संशोधन की बात की है लेकिन असल में इसका निशाना बंगाल है.
सागरिका घोष ने कहा कि चुनाव आयोग के अधिकारी घर-घर जाकर हर वोटर की जांच करेंगे और इसके बाद सभी मतदाता लिस्ट बदल दिए जाएंगे.
एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने समझाते हुए कहा, “इसके लिए हर वोटर को अपनी जन्म तिथि और जगह का प्रमाण देना होगा (1987 से पहले जन्मे व्यक्ति), 1987 के बाद जन्मे व्यक्ति को अपने जन्म की तारीख और जगह का प्रमाण तो देना होगा साथ ही अपने माता-पिता की जन्म तिथि और जगह का प्रमाण भी देना होगा.”
उन्होंने कहा, “एक महीने के भीतर व्यक्ति को ये प्रमाण पत्र चुनाव आयोग के अधिकारी को देने होंगे नहीं तो उनका नाम वोटर लिस्ट से निकाल दिया जाएगा और वो व्यक्ति वोटर नहीं रहेंगे.”
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इसी संवाददाता सम्मेलन में टीएमसी नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि सवाल उठाए जा रहे हैं कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है और “उसे बीजेपी की ब्रांच ऑफ़िस नहीं बनना चाहिए.”
उन्होंने इस प्रक्रिया को कराने के लिए जो वक्त चुना गया है, उस बारे में कहा कि “हमारे पास सबूत हैं कि बंगाल के लिए बीजेपी के ताज़ा आंतरिक सर्वेक्षण से पता चला है कि बीजेपी को बंगाल विधानसभा चुनावों में 46 से 49 सीटें मिलेंगी. इसीलिए अभी ये अचानक किया जा रहा है. हताशा में इस तरह का कदम उठाया जा रहा है.”
डेरेक ओ’ब्रायन ने इसे भयावह कदम बताते हुए कहा कि चुनाव आयोग पीछे के रास्ते से एनआरसी को लागू करना चाहती है.
उन्होंने कहा, “नाज़ियों ने 1935 में ऐसा ही कुछ किया था जब आपको अपने पूर्वजों से जुड़े प्रमाण देने होते थे. उन्होंने सवाल किया, क्या ये उसका नया संस्करण है?”
डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि इंडिया गठबंधन में शामिल सभी पार्टियां इसका विरोध करेंगी और इसके लिए संसद के सत्र का इंतज़ार नहीं किया जाएगा.
बीजेपी की प्रतिक्रिया
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बीजेपी नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने विपक्ष के इन सवालों का उत्तर तो दिया, लेकिन विपक्ष से ही सवाल किया.
उन्होंने कहा कि राजद की मानसिकता संविधान विरोधी है. उन्होंने राजद पर संवैधानिक संस्था का अपमान करने और उसके ख़िलाफ़ भ्रम का वातावरण तैयार करने का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, “राजद और कांग्रेस पश्चिम बंगाल की राह पर चल पड़े हैं. ममता बनर्जी की संगति का असर दिखाई पड़ रहा है. ये बांग्लादेशियों की भाषा बोलने लगे हैं.”
उन्होंने सवाल किया, “जब चुनाव आयोग पारदर्शी तरीके से वोटरों की पहचान कर शत-प्रतिशत मतदान सुनिश्चित करना चाहता है तो ऐसे लोगों को बेचैनी क्यों है?”
उन्होंने कहा कि “राजद को पता है कि उनकी सरकार इस बार नहीं बनेगी इसलिए वो पहले से अपनी हार की भूमिका बना रहा है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित