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विदेशों में नौकरी दिलाने का झांसा देकर धोखाधड़ी करने वाले एजेंट बड़ी सावधानी से अपने जाल बिछाते हैं.
बेंगलुरु के महबूब पाशा ने ऐसे एजेंटों के काम करने के तरीके के बारे में बीबीसी हिंदी से बात की.
महबूब उन सात लोगों के समूह में शामिल हैं जिनसे बेंगलुरु की बिना लाइसेंस वाली भर्ती एजेंसियों ने पिछले एक साल में कथित रूप से लाखों रुपये ठगे हैं.
महबूब बताते हैं कि भर्ती एजेंट उन्हें वर्क परमिट दिलाने का वादा करता था और हर दो दिन में एक नया देश सुझाता था.
उन्होंने बताया, “जब मैं सुबह उसे फ़ोन करता, तो वह कहता- तुम सर्बिया चले जाओ. शाम को कहता- मैं तुम्हारा बेलारूस का वर्क परमिट करा देता हूं और फिर स्लोवाकिया का नाम लेता. अगले दिन कहता- स्पेन जाओ, वहां अपने परिवार को भी ले जा सकते हो.”
“मैंने उससे कहा- मुझे तुम पर भरोसा नहीं है. जब तक तुम वैध वर्क परमिट नहीं देते, मैं यक़ीन नहीं करूंगा.”
लेकिन महबूब पाशा और उनके साथी अकेले नहीं हैं जिन्होंने ‘प्रोटेक्टर ऑफ़ एमिग्रेंट्स’ और बेंगलुरु पुलिस से बिना लाइसेंस वाली भर्ती एजेंसियों द्वारा ठगे जाने की शिकायत की है.
बेंगलुरु के तीन थानों में कम से कम पांच ऐसी शिकायतें दर्ज हुई हैं.
नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने बीबीसी हिंदी को बताया, “एक मामले में तो एक एजेंसी के ख़िलाफ़ केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में शिकायतें थीं. मुख्य अभियुक्त दुबई में था. कुछ समय पहले उसका एक कर्मचारी जैसे ही दुबई से पहुंचा, केरल पुलिस ने उसे गिरफ़्तार कर लिया.”
बेंगलुरु में इस कंपनी ने लोगों से 25 लाख रुपये की ठगी की थी. इसी तरह की शिकायतें दो अन्य एजेंसियों के ख़िलाफ़ दो और पुलिस थानों में भी दर्ज हैं. इनमें धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और आपराधिक धमकी के मामले शामिल हैं.
यूरोप और भी आकर्षक हो गया
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इन एजेंसियों के ठगे गए अधिकतर लोग पूर्वी और पश्चिमी यूरोप या उनके पड़ोसी देशों में कम-कुशल काम की तलाश में थे.
यूरोपीय देश अब पहले से ज़्यादा आकर्षक माने जा रहे हैं क्योंकि वहां कामगारों की मांग बढ़ रही है.
एक अधिकारी ने नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर बीबीसी हिंदी को बताया, “अब लोग काम की तलाश में खाड़ी देशों की तुलना में यूरोप जाना पसंद कर रहे हैं क्योंकि वहां ज़्यादा पैसा मिलता है.”
“खाड़ी में एक लोडर या अनलोडर को महीने के लगभग 30 हज़ार रुपये मिलते हैं, जबकि यूरोप में यही काम करने पर 40 से 50 हज़ार रुपये तक मिल जाते हैं.”
जो लोग नौकरी की तलाश में हैं, उनमें ज़्यादातर दसवीं पास भी नहीं हैं और इसलिए उन्हें इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड (ईसीआर) पासपोर्ट चाहिए. कुछ दसवीं पास या डिप्लोमा धारक हैं जिन्हें इमिग्रेशन चेक नॉट रिक्वायर्ड (ईसीएनआर) पासपोर्ट चाहिए.
अगस्त 2024 तक कर्नाटक में लगभग 299 लाइसेंस प्राप्त भर्ती एजेंट थे, लेकिन कई नौकरी तलाशने वाले ऐसे लोगों के झांसे में आ गए जिन्होंने झूठा दावा किया कि उनके पास लाइसेंस है.
वीज़ा बार-बार रद्द होते रहे
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सुदर्शन भी इसी तरह की ठगी का शिकार हुए. सोशल मीडिया पर ऐसी भर्ती एजेंसियों ने लिथुआनिया, हंगरी, पोलैंड और पूर्वी यूरोप के अन्य देशों में नौकरियों के विज्ञापन दिए थे.
सुदर्शन को निर्माण क्षेत्र में सेफ़्टी सुपरवाइज़र की एक नौकरी की तलाश थी जिससे उनकी आमदनी तीन गुना हो जाए. उनके पास सेफ़्टी सुपरविज़न का डिप्लोमा था.
सुदर्शन ने बीबीसी हिंदी को बताया, “एक दिन किसी का फ़ोन आया. पता नहीं उसे मेरा नंबर कैसे मिला – उसने कहा कि एजेंसी के पास भर्ती का लाइसेंस है. उसने कहा पैसे की ज़रूरत नहीं, बस 50,000 रुपये अग्रिम देने होंगे.”
“मैंने अंग्रेज़ी में इंटरव्यू से पहले पैसे देने से मना कर दिया. बाद में कहा गया कि कुल मिलाकर करीब 4.8 लाख रुपये देने होंगे, साथ में सर्विस चार्ज भी.”
सुदर्शन जब एजेंसी के दफ़्तर पहुंचे, तो देखा कि वहां नगर निगम से मिला एक सर्टिफ़िकेट टंगा हुआ था.
वो बताते हैं, “मैंने 1.5 लाख रुपये दिए. मुझसे कहा गया कि हंगरी में नौकरी के लिए वर्क परमिट का इंतज़ार करूं. 10–15 दिन बाद फ़ोन आया कि अगर 3.58 लाख रुपये और नहीं दिए तो वह मदद नहीं कर पाएगा. जनवरी में उसने कहा कि वीज़ा रिजेक्ट हो गया, लेकिन फिर बोला कि सर्बिया का वर्क परमिट मिल जाएगा.”
वो कहते हैं, “एक महीने बाद कहा गया कि इंतज़ार करो, सर्बिया का वीज़ा भी कैंसिल हो गया है. फ़रवरी–मार्च में कुछ नहीं हुआ. फिर एजेंट ने कहा कि लिथुआनिया का वीज़ा मिल सकता है. पिछले साल नवंबर–दिसंबर तक हमें समझ आ गया कि हम सब ठगे जा रहे हैं.”
सुदर्शन बताते हैं, “तब जाकर हम 10 लोगों ने मिलकर एक ग्रुप बनाया और ‘प्रोटेक्टर ऑफ़ एमिग्रेंट्स’ अवनीश शुक्ला से शिकायत करने का फ़ैसला किया. उन्होंने हमें पुलिस में शिकायत करने को कहा.”
वह कहते हैं, “महबूब और उनके भाई अज़ीम पाशा ने 12-12 लाख रुपये दिए. हुबली के नवीन अंजुम ने 10 लाख रुपये दिए.”
जगह बदली, तो नौकरियां भी बदलती गईं
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महबूब पाशा के मामले में तो जितनी बार देश बदला, उतनी बार नौकरी भी बदल गई.
उन्होंने बताया, “पहले उसने कहा फ़्रांस जाने के लिए तैयार हो जाओ, जहाज़ पेंटिंग का काम है. मैं किसी भी तरह का काम करने को तैयार था, लेकिन मुझे पेंट के कोट्स की कोई जानकारी नहीं थी. इसके बाद वह बोला, नीदरलैंड्स चले जाओ, वहां टमाटर की खेती में अच्छा काम है. मुझे और मेरे भाई दोनों को दो-दो लाख रुपये देने पड़े.”
वो कहते हैं, “जब भी उससे बात होती, वह कहता जाने के लिए तैयार हो जाओ, तुरंत पैसे जुटाओ. हमें अपने छोटे से घर को बैंक में गिरवी रखकर कर्ज़ लेना पड़ा. इसमें समय लग गया.”
“इस बीच उसने लिथुआनिया जाने को कहा, मैंने अनमने मन से हामी भर दी. उसने वर्क परमिट तो बना दिया, लेकिन नाम ग़लत लिखा था. मैंने और भाई ने पहले दो-दो लाख फिर चार-चार लाख रुपये दिए.”
भरे हुए गले से महबूब पाशा ने कहा, “वह हर कुछ मिनट में अपना बयान बदल देता था. एक दिन बोला, तय करो, सर्बिया जाना है या बेलारूस. तब तक उस पर मेरा भरोसा पूरी तरह उठ चुका था. जब उसने स्पेन का सुझाव दिया, तब मैंने कहा- अब मुझे तुम पर कोई भरोसा नहीं है.”
बेकार के वादे

भर्ती एजेंट ने महबूब पाशा को 8.36 लाख रुपये लौटाने का वादा किया, लेकिन उनकी क़िस्मत उतनी अच्छी नहीं थी जितनी प्रणव आदित्य की.
प्रणव 3.52 लाख में से 80,000 रुपये वापस हासिल करने में क़ामयाब रहे. उन्होंने ये पैसे सितंबर से नवंबर 2024 के बीच तीन किस्तों में एजेंट को दिए थे.
प्रणव आदित्य ने बताया, “जब भी मैं उसके दफ़्तर जाता, वह कहता यह देश, वह देश. उसने कुमार अरमुगम से कहा कि उसका बुल्गारिया वीज़ा इसलिए रिजेक्ट हुआ क्योंकि उसने यह नहीं लिखा था कि वह भारत वापस नहीं आएगा. मेरी तरह कुमार ने भी उसे 3.5 लाख रुपये दिए थे.”
प्रणव वैद्य का मामला और भी दिलचस्प है, “मैं 2023 में एक और भर्ती एजेंसी को दो लाख रुपये देकर गंवा चुका हूं. उन्होंने पोलैंड का वर्क परमिट देने का वादा किया था, पर पैसे वापस करने से इनकार कर दिया.”
लेकिन प्रणव सिर्फ़ यूरोप ही क्यों जाना चाहते थे?
26 साल के प्रणव वैद्य ने कहा, “अब खाड़ी में ज़्यादा पैसे नहीं मिलते. यूरो की क़ीमत ज़्यादा है. मुझे अपनी मां की देखभाल करनी है.”
क्या कहते हैं जानकार
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अंतरराष्ट्रीय आप्रवासन और विकास संस्थान, तिरुवनंतपुरम के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर इरुदया राजन ने बीबीसी हिंदी को बताया कि केरल माइग्रेशन स्टडी 2018-2023 में यह स्पष्ट दिखा कि लोग खाड़ी की बजाय यूरोप जाना अधिक पसंद करने लगे हैं.
वो कहते हैं, “केरल के संदर्भ में यह संख्या बड़ी है. यह दो लाख है. यूरोप जाने का एक फ़ायदा है, वह यह कि कुछ देशों में उन्हें स्थायी निवास मिल सकता है, जो खाड़ी देशों में संभव नहीं है.”
प्रोफ़ेसर राजन ने कहा, “एजेंट लोगों को सपने बेच रहे हैं. इसलिए हमें स्कूल स्तर पर, ग्यारहवीं–बारहवीं कक्षा में ही प्रवासन के बारे में पढ़ाना शुरू करना चाहिए – इसके फ़ायदे, नुक़सान और ख़ास तौर पर इसके ख़तरों के बारे में.”
एमिग्रेशन एक्ट, 1983 के तहत किसी लाइसेंस प्राप्त भर्ती एजेंट का कमीशन 30,000 रुपये (+ जीएसटी) से ज़्यादा नहीं हो सकता.
मौजूदा समय में देश में केवल 2,463 लाइसेंस प्राप्त एजेंट हैं.
फ़रवरी 2025 तक देश में 3,281 अवैध एजेंटों की पहचान की जा चुकी थी. विदेश मंत्रालय के पोर्टल पर सभी के नाम मौजूद हैं.
यह जानकारी विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में दी थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.