सरकारी पीटीवी न्यूज़ चैनल की उर्दू वेबसाइट पर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बोंडी बीच घटना के तुरंत बाद एक अभियान शुरू किया गया था, जिसका मकसद “फ़र्ज़ी सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल के ज़रिए पाकिस्तान को बदनाम करना” था.
इसमें आगे कहा गया है कि तथ्य सामने आने के बाद यह साबित हो गया कि ये पाकिस्तान को बदनाम करने की कोशिश थी, जो “बेबुनियाद” थी.
अंग्रेजी भाषा की वेबसाइट जियो न्यूज़ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बंदूकधारियों की पहचान की पुष्टि होने से भारतीय मीडिया “शर्मिंदा” हो गया है क्योंकि इससे उनके आरोपों का पर्दाफ़ाश हो गया है.
‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में 16 दिसंबर को छपी एक रिपोर्ट में कहा गया, “राजनयिक पहल ने पिछले 24 घंटों में भारतीय मीडिया के उस नैरेटिव को कमज़ोर कर दिया, जिसमें मोदी सरकार के निर्देशों के तहत हमलावरों को ग़लत तरीके से पाकिस्तानी मूल का बताया गया था.”
17 दिसंबर को ‘डॉन’ में एक संपादकीय में कहा गया, “सिडनी हमले जैसी त्रासदियों का इस्तेमाल कभी भी इस्लाम विरोधी विचारों या प्रवासी विरोधी बयानबाजी को बढ़ावा देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.”
इसमें कहा गया है, “नफ़रत के ज़रिए समाज को बांटने देना आईएस जैसे आतंकवादी समूहों के साथ-साथ पश्चिम और अन्य जगहों के धुर दक्षिणपंथी चरमपंथियों के लिए एक जीत होगी, जो मुसलमानों, प्रवासियों और अश्वेत लोगों को बदनाम करना चाहते हैं.”
पाकिस्तान में कई सोशल मीडिया यूज़र्स इस बात से ख़ुश दिखे कि बोंडी बीच घटना से पाकिस्तान का संबंध होने के भारतीय मीडिया के दावे ग़लत निकले.
एक्स यूज़र इहतिशामुल हक ने पोस्ट किया, “गोदी मीडिया हैरान है ! उन्होंने पूरी दुनिया से झूठ बोला और अपने ही लोगों को बेवकूफ़ बनाया. अब वे अपना चेहरा छुपा रहे हैं. साजिद अकरम भारतीय निकला है, और यह अब इंटरनेशनल हेडलाइन बन गई है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.