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भारत का आसमान एक समय ख़ूब गुलज़ार था. नई-नई एयरलाइंस आतीं और लोग सोचते कि अब उड़ानें और आसान होंगी.
कुछ ने लग्ज़री का दम दिखाया तो कुछ ने सस्ती टिकटों का सपना बेचा, लेकिन कहानी जल्द ही बदलने लगी.
बढ़ते क़र्ज़, महंगे ईंधन और ग़लत फ़ैसलों ने बड़ी-बड़ी एयरलाइंस को ग्राउंडेड कर दिया.
चाहे फिर वह किंगफिशर की शान हो या गो फ़र्स्ट की सस्ती उड़ानें. सबकी कहानी अलग है, लेकिन सीख एक है कि आसमान जीतना आसान नहीं है.
1. किंगफ़िशर एयरलाइन
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नागर विमानन मंत्रालय के मुताबिक़, साल 2003 में किंगफ़िशर एयरलाइन का एयर ऑपरेटिंग परमिट जारी हुआ था.
ईंधन की बढ़ती क़ीमतें, बहुत ज़्यादा ख़र्च और टिकटों पर कमाई कम होने से कंपनी को लगातार भारी नुक़सान हो रहा था. एयरलाइन पर हज़ारों करोड़ रुपये का क़र्ज़ चढ़ गया था.
एयर डेक्कन को ख़रीदने और अंतरराष्ट्रीय रूटों पर तेज़ी से विस्तार करने के बाद भी कंपनी मुनाफ़ा नहीं बना पाई.
हालात इतने ख़राब हो गए कि कंपनी कर्मचारियों की सैलरी और बैंकों का पैसा समय पर नहीं चुका पाई और उड़ानें रद्द होने लगीं.
आख़िर में डीजीसीए ने सुरक्षा और वित्तीय कारणों का हवाला देते हुए 20 अक्तूबर 2012 को एयर परमिट रद्द कर दिया.
लोकसभा में दिए गए जवाब के मुताबिक़, डीजीसीए प्रमुख ने 2 अक्तूबर 2012 को एयरलाइन के सीईओ के साथ बैठक की थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
इसके बाद किंगफ़िशर ने दोबारा उड़ानें शुरू करने की कई कोशिशें कीं, लेकिन उसके वित्तीय हालात इतने ख़राब थे कि कंपनी कभी वापसी नहीं कर सकी.
दुनिया भर में फैली आर्थिक मंदी को भी किंगफ़िशर की हालत के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है.
2. जेट एयरवेज़
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जेट एयरवेज़ ने 5 मई 1993 को अपनी शुरुआत एक एयर-टैक्सी सेवा के रूप में की थी. उस समय कंपनी ने चार बोइंग 737 विमान लीज़ पर लेकर उड़ानें शुरू की थीं.
जनवरी 1995 में उसे ‘शेड्यूल्ड एयरलाइन’ का दर्जा मिला. यानी अब वह नियमित यात्री उड़ानें चला सकती थी.
2000 के शुरुआती दशक में जेट एयरवेज़ तेज़ी से बढ़ी और घरेलू रूट्स के साथ अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी शुरू कर दीं.
2004 में उसने अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान चेन्नई से कोलंबो के लिए शुरू की और 2005 में कंपनी भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हुई.
नागर विमानन मंत्रालय के मुताबिक़ मार्च 2018 में कंपनी को भारी नुक़सान हुआ. लगातार चार तिमाहियों तक कंपनी को घाटा हुआ. इससे उसकी नकदी ख़त्म होने लगी और एयरलाइन को चलाना मुश्किल हो गया.
सरकार के मुताबिक़, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के नेतृत्व में बैंकों ने कंपनी को बचाने के लिए कई विकल्प तलाशे. आरबीआई के ‘प्रोजेक्ट शक्त’ के तहत एयरलाइन के लिए रेज़ोल्यूशन प्लान बनाया गया.
लेकिन जेट एयरवेज़ के पार्टनर एतिहाद और भारतीय बैंकों के बीच सहमति नहीं बन सकी. मार्च 2019 में स्थिति इतनी ख़राब हो गई कि फ़ंड की कमी के कारण कई विमान खड़े कर दिए गए.
सरकार के मुताबिक़, 10 अप्रैल 2019 को कंपनी ने अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रोक दीं और 17 अप्रैल 2019 को जेट एयरवेज़ ने अपनी सभी उड़ानें बंद कर दीं.
इसके बाद बैंकों ने नए मालिक या प्रबंधन के लिए बोलियां मंगाईं, लेकिन उन्हें कोई साफ़ और बिना शर्त वाली बोली नहीं मिली.
सरकार ने यह भी साफ़ किया कि हर एयरलाइन अपनी बिज़नेस योजना ख़ुद बनाती है. फ़ंड जुटाना और संचालन सुचारू रखना कंपनी की अपनी ज़िम्मेदारी है और वह किसी निजी एयरलाइन के लिए पैसा जुटाने में कोई भूमिका नहीं निभाती.
3. गो फ़र्स्ट
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नवंबर 2005 से गो एयर एक लो-कोस्ट एयरलाइन सेवा थी. मई 2021 में इसका नाम बदलकर गो फ़र्स्ट कर दिया गया था.
कंपनी ने मई, 2023 में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में दिवालियापन क़ानून के तहत याचिका दायर की थी. एयरलाइन का कहना था कि वह आर्थिक संकट में है और वह दिवालियापन की प्रक्रिया में जाना चाहती है.
कंपनी का दावा था कि वह भारत की तीसरी सबसे बड़ी एयरलाइन रही है. उसका कहना था कि उसने साल 2010 से जनवरी 2021 के बीच 8.38 करोड़ यात्रियों को हवाई यात्रा करवाई है. उस समय वह हर हफ़्ते 2,290 उड़ानें संचालित करती थी.
कंपनी का कहना था कि वह 2009 से 2018 तक लगातार मुनाफ़े में थी और 2019-20 में भी उसके पास बचत में पैसे थे.
एयरलाइन का कहना था कि क़रीब 7 हज़ार कर्मचारी सीधे और क़रीब 10 हज़ार लोग अप्रत्यक्ष रूप से उस पर निर्भर थे.
कंपनी ने बताया कि वह लेह और पोर्ट ब्लेयर जैसे कठिन हवाई अड्डों पर भी सेवाएं देती है और जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी एयरलाइन ऑपरेटर रही है.
कंपनी का कहना था कि 2022 से उसके भुगतान में गड़बड़ियाँ शुरू हो गईं. वह अपने वेंडर्स, एयरक्राफ्ट लीज़ पर देने वाली कंपनियों और दूसरे सप्लायर्स का भुगतान नहीं कर पाई. इसके लिए उसे कमर्शियल पार्टनर्स और लीज़र्स की तरफ़ से लगातार नोटिस मिलने लगे.
इंजन की समस्या इतनी बढ़ गई कि उनके कई विमान उड़ ही नहीं सके. कंपनी का कहना था कि उसके पास कुल 54 विमान हैं. इनमें से 28 विमान ग्राउंडेड हैं.
एयरलाइन ने इंजन बनाने वाली प्रैट एंड व्हिटनी कंपनी पर कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक़ इंजन की मरम्मत या नए इंजन नहीं देने का आरोप लगाया.
कंपनी ने बेंच को बताया कि सिर्फ़ 30 दिनों के अंदर उसे 4,118 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं, जिससे 77,500 यात्रियों को मुश्किल हुई.
फॉर्च्यून इंडिया के मुताबिक़ अगस्त 2024 में, गो फ़र्स्ट के लिए बनाई गई बचाव योजना को क़र्ज़ देने वाले बैंकों की समिति ने नामंज़ूर कर दिया.
इसके बाद 20 जनवरी 2025 को एनसीएलटी ने गो फ़र्स्ट के लिक्विडेशन का आदेश दिया. इसका मतलब था कि अब कंपनी अपनी संपत्तियाँ बेचकर क़र्ज़ चुकाने का काम करेगी.
इस आदेश के साथ ही 17 साल से ज़्यादा समय तक उड़ान भरने वाली गो फ़र्स्ट एयरलाइन की कहानी ख़त्म हो गई.
4. एयर डेक्कन
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एयर डेक्कन चलाने वाली कंपनी का नाम डेक्कन एविएशन लिमिटेड था. कंपनी ने अपना काम 1997 में एक चार्टर्ड एयरक्राफ्ट कंपनी के रूप में शुरू किया था.
शुरुआत में कंपनी सिर्फ़ हेलिकॉप्टर किराये पर देती थी. अगस्त 2003 में उसने अपनी उड़ानें शुरू कीं. शुरुआत एक छोटे एटीआर विमान के ज़रिए बेंगलुरु से हुबली रूट पर हुई.
कंपनी के मुताबिक़, मार्च 2006 तक उसने 41 लाख यात्रियों को हवाई यात्रा करवाई और उसके बेड़े में 29 विमान थे. वह रोज़ 226 उड़ानें चला रही थी और उसका नेटवर्क बढ़कर 52 हवाईअड्डों तक पहुंच गया था.
सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन के मुताबिक़, फ़रवरी 2006 में उसका मार्केट शेयर क़रीब 14 प्रतिशत था और वह 2410 कर्मचारियों के साथ भारत की दूसरी सबसे बड़ी निजी एयरलाइन बन गई थी.
एयरलाइन का मक़सद छोटे लेकिन आबादी वाले शहरों को बड़े शहरों से जोड़ना था. डीजीसीए के मुताबिक़, उस वक़्त देश में क़रीब 450 हवाई अड्डे थे, लेकिन इनमें से कम ही एयरपोर्ट बड़े जेट विमान संभाल सकते थे.
ऐसे में डेक्कन एयरलाइन ने एटीआर जैसे छोटे टर्बोप्रॉप विमान को हवाई यात्रा में इस्तेमाल किया और अपने नेटवर्क को फैलाया.
सेंटर फॉर एविएशन के मुताबिक़ 2007 में एयर डेक्कन में किंगफिशर एयरलाइंस ने 26 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीदी और इसका ब्रांड बदलकर सिंपलिफाई डेक्कन कर दिया.
साल 2008 में इसे फिर से रिब्रांड किया गया और सिंपलिफाई डेक्कन को किंगफिशर रेड में मिला दिया गया, लेकिन एयरलाइन की मुश्किलें कम नहीं हुईं.
लंबे अंतराल के बाद एयर डेक्कन ने 22 दिसंबर 2017 को सरकार की उड़ान क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना के तहत दोबारा उड़ानें शुरू कीं. इसका मकसद छोटे शहरों को बड़े शहरों से जोड़ना था.
अप्रैल 2020 में कोविड के चलते कंपनी के सीईओ अरुण कुमार सिंह ने घोषणा की कि एयरलाइन को अनिश्चितकाल के लिए बंद करना पड़ेगा.
5. पैरामाउंट एयरवेज़
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यह भारत की पहली एयरलाइन थी जिसने ‘न्यू जेनरेशन एम्ब्रेयर 170/190 सिरीज़’ के आधुनिक विमान शुरू किए थे. इसका मकसद यात्रियों को सस्ती दरों पर बिज़नेस क्लास की सेवाएं देना था.
एयरलाइन का दावा था कि वह एक ऐसे अनोखे विचार पर बनी है, जो भारतीय विमानन इतिहास में पहले कभी नहीं दिया गया था.
कंपनी ने अपने लग्ज़री विमानों को लीज़ पर लिया हुआ था, लेकिन लीज़ पेमेंट में डिफॉल्ट और विवादों के कारण एयरलाइन और लीज़ देने वाली कंपनियों के बीच क़ानूनी मामला शुरू हो गया.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक़ कंपनी पर कई बैंकों के समूह का 400 करोड़ रुपये से ज़्यादा बकाया था.
इन क़ानूनी समस्याओं की वजह से लीज़ कंपनियों ने उसके विमान ज़ब्त करवा दिए. इससे पूरी फ्लीट ग्राउंड हो गई और 2010 के दौरान कंपनी की सभी उड़ानें बंद हो गईं.
बीबीसी हिन्दी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.