भारत के वैज्ञानिकों ने आदित्य-एल1 से मिले ‘पहले अहम परिणामों’ के बारे में बताया है. आदित्य-एल1 भारत का अंतरिक्ष में पहला सौर मिशन है.
भारतीय वैज्ञानिकों के अनुसार, इस मिशन से जो जानकारियां मिली हैं, उनके ज़रिए पावर ग्रिड और कम्युनिकेशन सैटेलाइट्स को नुक़सान से बचाया जा सकता है.
इसका मतलब यह है कि यदि भविष्य में सूर्य पर ऐसी कोई घटना होती है, जिससे अंतरिक्ष या पृथ्वी पर मौजूद इन्फ्रास्ट्रक्चर को किसी तरह के ख़तरे की आशंका है, तो इस मिशन में सामने आई बातों से उन्हें बचाया जा सकता है.
16 जुलाई को आदित्य-एल1 के सात वैज्ञानिक उपकरणों में से सबसे महत्वपूर्ण वीईएलसी यानी विज़िबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ़ ने कुछ आंकड़े जुटाए.
इनकी मदद से वैज्ञानिक सीएमई यानी कोरोनल मास इजेक्शन की शुरुआत के वास्तविक समय का आकलन लगा पाए.
सीएमई दरअसल सूर्य की सबसे बाहरी परत कोरोना से निकलने वाले आग के बड़े-बड़े गोले होते हैं.
सीएमई अध्ययन ही भारत के पहले सोलर मिशन के सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उद्देश्यों में से एक है.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ एस्ट्रोफ़िजिक्स के प्रोफ़ेसर आर.रमेश ने बताया, ” ये आग के गोले ऊर्जा कणों से मिलकर बने होते हैं. उनका वज़न एक ट्रिलियन किलोग्राम तक हो सकता है. और इनकी गति 3 हज़ार किलोमीटर प्रति सेकंड हो सकती है. ये किसी भी दिशा में जा सकते हैं. मतलब, ये पृथ्वी की ओर भी आ सकते हैं.”
वीईएलसी को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ एस्ट्रोफ़िजिक्स ने डिजाइन किया है.
उन्होंने कहा, ”अब आप कल्पना कीजिए कि इतना बड़ा आग का गोला इस गति से पृथ्वी की ओर बढ़ता है, तो उसको पृथ्वी से सूर्य तक की 150 मिलियन किलोमीटर की दूरी तय करने में केवल 15 घंटे का समय लगेगा.”
प्रोफेसर रमेश वीईएलसी के प्रमुख जांचकर्ता हैं. उन्होंने एस्ट्रोफ़िजिकल जर्नल लेटर्स में सीएमई पर पेपर पब्लिश किया है.
दरअसल, वीईएलसी के सिस्टम ने छह बजकर 38 मिनट पर कोरोनल इजेक्शन का पता लगाया.
पृथ्वी पर क्या असर
प्रोफ़ेसर रमेश का कहना है कि ये पृथ्वी की ओर उत्पन्न हुआ लेकिन यात्रा के सिर्फ आधे घंटे में ही ये अपनी दिशा से भटक गया और किसी सूरज के पीछे चला गया. चूंकि ये काफी दूर था इसलिए पृथ्वी के मौसम पर इसका असर नहीं पड़ा.
हालांकि, सौर तूफान, उससे निकलने वाली ज्वाला और कोरोनल मास इजेक्शन नियमित तौर पर पृथ्वी के मौसम को प्रभावित करता है.
इसका असर अंतरिक्ष के मौसम पर भी पड़ता है. जहां करीब 7800 सैटेलाइट्स हैं, जिनमें से 50 से ज़्यादा भारत के हैं.
स्पेस डॉट कॉम के मुताबिक, इनकी वजह से मानव जीवन को ख़तरा होने की आशंका बहुत ही कम है, मगर, इनके पृथ्वी की मैग्नेटिक फ़ील्ड के साथ टकराने पर पृथ्वी पर हलचल बढ़ सकती है.
उनका सबसे सुंदर प्रभाव उत्तर और दक्षिण ध्रुव पर अरोरा लाइट्स का दिखना है.
लेकिन, यदि मजबूत कोरोनल मास इजेक्शन होता है, तो इसका प्रभाव आसमान में और भी ज्यादा रोशनी के रूप में दिखता है, जैसा- मई और अक्तूबर में लंदन और फ्रांस के आकाश में दिखा था.
हालांकि, ऐसी घटना का प्रभाव अंतरिक्ष में बहुत ही गंभीर होता है. कोरोनल मास इजेक्शन के दौरान बाहर आए चार्ज्ड पार्टिकल्स वहां मौजूद सभी इलेक्ट्रॉनिक सैटेलाइट को ख़राब कर सकते हैं.
वो पावर ग्रिड्स को ठप कर सकते हैं और मौसम और संचार सैटेलाइट्स को प्रभावित कर सकते हैं.
प्रोफ़ेसर रमेश ने बताया, “आज हमारा जीवन पूरी तरह से कम्युनिकेशन सैटेलाइट्स पर निर्भर है और सीएमई के कारण इंटरनेट, फ़ोन लाइन्स और रेडियो कम्युनिकेशन ठप हो सकता है. और इससे बहुत ज़्यादा गड़बड़ियां हो सकती हैं.”
सबसे बड़ा सौर तूफ़ान
इतिहास में दर्ज सबसे शक्तिशाली सौर तूफ़ान 1859 में आया था. इसे कैरिंगटन इवेंट कहा जाता है.
इस दौरान आकाश में सघन अरोरल लाइट्स देखने को मिली थी. इसके कारण दुनियाभर में टेलीग्राफ़ लाइन्स बंद पड़ गई थी.
नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि इतना ही बड़ा सौर तूफान साल 2012 में भी आया था. तब यह पृथ्वी के बहुत क़रीब से गुज़रा था.
उन्होंने बताया कि 23 जुलाई को एक शक्तिशाली कोरोनल मास इजेक्शन हुआ जो पृथ्वी की कक्षा को छूते हुए गुज़रा लेकिन, ‘हम बहुत सौभाग्यशाली’ थे कि ये तूफ़ान पृथ्वी से टकराने के बजाए नासा की सोलर ऑब्ज़र्वेटरी स्टीरियो-ए से टकरा गया था.
साल 1989 में, एक कोरोनल मास इजेक्शन ने क्यूबेक के पावर ग्रिड को नौ घंटों तक बंद कर दिया था. इस दौरान 60 लाख लोग बिना बिजली के रहे थे.
और 4 नवंबर 2015 को, स्वीडन समेत कुछ और यूरोपीय देशों में सौर गतिविधि के चलते एयर ट्रैफिक कंट्रोल प्रभावित हो गया था. इस कारण घंटों तक हवाई यात्राएं बाधित हुईं.
वैज्ञानिक कहते हैं कि यदि हम यह देखने में समर्थ हो जाते हैं कि सूर्य पर क्या हो रहा है और सौर तूफ़ान या कोरोनल मास इजेक्शन से जुड़ी जानकारी हमें मिल जाती है, तो हम इसे लेकर पहले ही अलर्ट जारी कर सकते हैं. पावर ग्रिड्स को बंद कर सकते हैं, ताकि उनको होने वाले नुक़सान से बचाया जा सके.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान और चीन अंतरिक्ष में अपने सौर मिशन के ज़रिए दशकों से सूर्य को देखते आ रहे हैं.
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी यानी इसरो ने एक साल पहले ही अपना पहला सौर मिशन आदित्य-एल1 लॉन्च किया है.
इस भारतीय सौर मिशन का नाम सूर्य के नाम पर रखा गया है.
आदित्य-एल1 की ख़ासियत
अंतरिक्ष में आदित्य-एल1 एक ऐसी जगह पर मौजूद है, जहां से वो लगातार सूर्य को देख सकता है. बल्कि, ग्रहण और प्रलय जैसी स्थिति में भी यह वैज्ञानिक अध्ययन जारी रख सकता है.
प्रोफ़ेसर रमेश कहते हैं कि जब हम पृथ्वी से सूर्य की तरफ देखते हैं, तो हमें आग का एक केसरिया गोला नज़र आता है, जो प्रकाशमंडल है. यह सूर्य की बाहरी सतह या तारे का सबसे चमकीला हिस्सा है.
केवल पूर्ण ग्रहण के दौरान, जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है, तो वो इस प्रकाशमंडल को ढंक लेता है. तब हमें सौर कोरोना दिखाई देता है, जो सूर्य की सबसे बाहरी सतह है.
प्रोफ़ेसर रमेश कहते हैं कि भारत का कोरोनाग्राफ़, नासा-ईएसए के संयुक्त सौर और हेलियोस्फ़ेरिक ऑब्ज़र्वेटरी में मौजूद कोरोनाग्राफ़ के मुकाबले थोड़ा बेहतर है.
उन्होंने कहा, “हमारा आकार इतना बड़ा है कि वो चंद्रमा की भूमिका की नकल कर सकता है और सूर्य के प्रकाशमंडल को कृत्रिम तौर पर छिपा सकता है. इसके चलते आदित्य-एल1 के पास बिना किसी बाधा के 24 घंटे और साल के 365 दिन कोरोना को देखने का मौका रहता है.”
कोरोनाग्राफ़ क्यों ख़ास?
नासा-ईएसए मिशन के कोरोनाग्राफ़ को लेकर वो कहते हैं कि कोरोनाग्राफ के बड़े होने से आशय यह है कि यह केवल प्रकाशमंडल ही नहीं, बल्कि कोरोना के हिस्से भी छिपा लेता है.
ऐसे में यदि कोरोना मास इजेक्शन किसी छिपे हुए इलाक़े से होता है, तो वह यह देखने में सफल नहीं हो पाएगा.
उन्होंने कहा, “लेकिन, वीईएलसी के साथ हम कोरोनल मास इजेक्शन का वास्तविक समय का अनुमान लगा सकते हैं, ताकि हमें पता लग जाए कि यह किस समय शुरू हुआ है और यह किस ओर जाने वाला है.”
भारत के पास सूर्य को देखने के लिए तीन ऑब्ज़र्वेटरी मौजूद हैं. दक्षिण में कोडाइकनाल, गौरीबिदानूर और उत्तर-पश्चिम में उदयपुर.
इसलिए, यदि हम उनको मिली जानकारियों को आदित्य-एल1 से मिली जानकारियों के साथ मिलाते हैं, तो हम सूर्य को लेकर अपनी समझ को और बेहतर कर सकते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.