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भारत ने पिछले महीने 28 अक्टूबर को रूस के साथ विमानन के क्षेत्र में एक अहम समझौता किया है. इस समझौते को देश में ही अधिकतम 103 सीटों वाले रूसी एसजे-100 यात्री विमान बनाने की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है.
यह समझौता इस मायने में अहम है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाज़ार है. एक आँकड़े के मुताबिक, पिछले साल यहाँ 35 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने हवाई सफ़र किया था.
एसजे-100 दो इंजन वाला विमान है. पहले इसे सुखोई सुपरजेट (एसएसजे)-100 कहा जाता था. इसे मॉस्को की यूनाइटेड एयरक्राफ़्ट कॉरपोरेशन (यूएसी) ने बनाया है.
इस जहाज़ में अधिकतम 103 सीटें हैं. कंपनी के मुताबिक, फिलहाल इस विमान का इस्तेमाल रूस की नौ एयरलाइंस कर रही हैं.
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इस समझौते को ज़मीन पर उतारने का काम बेंगलुरु स्थित सरकारी रक्षा कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) करेगी.
एचएएल के एक अधिकारी ने बीबीसी न्यूज़ हिंदी को बताया कि इस परियोजना की समय सीमा और लागत से जुड़ी जानकारी आने वाले दिनों में साफ़ की जाएगी.
भारत में फिलहाल 163 एयरपोर्ट हैं. लगभग 50 और एयरपोर्ट बनने वाले हैं. ऐसे में यहाँ के अफसरों का मानना है कि एसजे-100 जैसे छोटे विमानों का इस्तेमाल कंपनियों और मुसाफ़िरों के लिए कई तरह के फायदे ला सकता है.
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या एसजे-100 ऐसा विमान हो सकता है जिसकी भारत को तलाश है?
यह सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि साल 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर पाबंदियाँ लगीं और पश्चिमी तकनीक तक उसकी पहुँच बंद हो गई.
यही नहीं, विशेषज्ञों की मानें तो एसजे-100 का सुरक्षा रिकॉर्ड भी चिंता का विषय रहा है.
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सवाल यह है कि भारत के अपने यात्री विमान बनाने के कार्यक्रम का क्या होगा?
पिछले कई दशकों से एचएएल ने लाइसेंस के तहत कई पश्चिमी यात्री विमानों का निर्माण या असेंबली भारत में की है.
इनमें एवरो (एवीआरओ) और डॉर्नियर विमान शामिल हैं. भारत के वैज्ञानिकों ने भी सालों तक स्वदेशी विमान के नमूने (प्रोटोटाइप) और खास तकनीक विकसित करने की कोशिश की है.
इतने सालों की मेहनत के बाद भी भारत का अपना विमान क्यों नहीं बन सका? और अब रूस के साथ साझेदारी के बाद भारत की इन कोशिशों का क्या भविष्य होगा?
एसजे-100 की अब तक की कहानी
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यूएसी ने सोवियत संघ के दौर में और आज के रूस में कई तरह के विमान बनाए हैं. इनमें लड़ाकू विमान, लंबी दूरी के बमवर्षक, हेलिकॉप्टर और यात्री विमान शामिल हैं.
साल 2008 में एसजे-100 और एसएसजे-100 विमानों ने पहली उड़ान भरी थी. कंपनी के मुताबिक, साल 2020 तक इसका 200वां विमान बन चुका था.
यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर लगी पाबंदियों की वजह से उसे पश्चिमी देशों से विमान से जुड़े स्पेयर पार्ट नहीं मिल सके. उसे एयरबस और बोइंग जैसी कंपनियों से विमान खरीदने की इजाज़त भी नहीं मिली.
इसकी वजह से यूएसी को एसजे-100 विमान के लिए ‘40 सिस्टम‘ रूस में ही बनाकर इस्तेमाल करना पड़ा. इस घरेलू रूसी तकनीक से बने एसजे-100 विमान ने साल 2023 में उड़ान भरी.
इन हालात में क्या रूस, भारत के लिए भरोसेमंद साबित हो सकता है?
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इससे जुड़े सवाल हमने यूएसी और एचएएल को भेजे थे, लेकिन अब तक उनकी तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिला है.
एचएएल के पूर्व प्रवक्ता गोपाल सुतार ने बीबीसी न्यूज़ हिंदी से बातचीत में रूस को भारत का ‘मज़बूत समर्थक’ बताया.
उन्होंने कहा, “प्रतिबंधों के कारण कुछ समस्याएँ आ सकती हैं, लेकिन मेरा मानना है कि यह सब दो देशों के बीच समझौते से पहले ध्यान में रखा गया होगा.”
एसजे-100 या सुखोई सुपरजेट (एसएसजे)-100 को 2012 में यूरोपीय विमानन सुरक्षा एजेंसी (ईएएसए) से मंजूरी मिली थी. हालाँकि, यूक्रेन पर हमले के बाद यह साफ़ नहीं है कि यह मंजूरी अब भी वैध है या नहीं.
जब यूएसी से पूछा गया कि क्या उन्हें अब भी ईएएसए की मंजूरी मिली हुई है, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
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रूसी और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के मुताबिक, एसजे-100 विमान के कई हादसे हुए हैं. इनमें 2024, 2019 और 2012 में हुई जानलेवा दुर्घटनाएँ शामिल हैं. इन घटनाओं में कई मुसाफ़िर और क्रू सदस्य मारे गए.
कैप्टन मोहन रंगनाथन भारत की सिविल एविएशन सेफ्टी एडवाइजरी काउंसिल (सीएएसएसी) के सदस्य रह चुके हैं.
उन्होंने बीबीसी न्यूज़ हिंदी को बताया कि रूस में विमान सुरक्षा का रिकॉर्ड, खासकर एसजे-100 का, ‘बहुत खराब’ रहा है.
उन्होंने कहा, “मैं इसे लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हूँ. कुछ लोग कह सकते हैं कि हाल में बोइंग के भी हादसे हुए हैं, लेकिन इन दोनों की तुलना नहीं की जा सकती.”
बात भारत की
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साल 1967 में भारत में पहली बार बने यात्री विमानों की डिलीवरी शुरू हुई थी.
ये एवीआरओ विमान उस समय की सरकारी एयरलाइन इंडियन एयरलाइंस कॉरपोरेशन को दिए गए थे. बीएई सिस्टम्स के मुताबिक, एचएएल ने ऐसे 89 विमान बनाए.
इसके बाद 1980 के दशक में पश्चिमी डिज़ाइन पर आधारित 19-सीट वाले डॉर्नियर विमान एचएएल में लाइसेंस के तहत बनने लगे.
ये विमान सैन्य उपयोग के साथ-साथ यात्री सेवाओं में भी लगाए गए. आज भी ये विमान भारत में बनाए जा रहे हैं.
लाइसेंस के तहत निर्माण से आगे बढ़ते हुए भारत के पास कुछ सार्वजनिक संस्थान भी हैं, जैसे नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज़ (एनएएल).
यह केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत आता है. इसे साल 1959 में इस उद्देश्य से बनाया गया था कि यह छोटे और मध्यम आकार के नागरिक विमानों का विकास करे.
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डॉ. अभय पाशिलकर एनएएल के निदेशक हैं. हमने उनसे पूछा कि भारत अब तक अपना यात्री विमान डिजाइन और तैयार क्यों नहीं कर पाया?
उनका जवाब था, “भारत ने नागरिक विमान डिजाइन और विकास का काम मुख्य रूप से एनएएल में किया है. इनमें दो-सीटर पायलट ट्रेनर हंसा-3, पाँच-सीटर विमान सीएनएम-5 और अपग्रेडेड इंजन व ग्लास कॉकपिट वाला टू-सीटर ट्रेनर विमान हंसा एनजी शामिल हैं.”
लेकिन भारतीय एयरलाइंस बड़े विमानों की माँग कर रही हैं.
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सरकारी अनुमान के मुताबिक, आने वाले सालों में एयरलाइंस अपने बेड़े में 1500 नए विमान शामिल कर सकती हैं. ऐसे में यह साफ़ नहीं है कि स्वदेशी निर्माण इस माँग को पूरा कर पाएगा या नहीं.
भारत ने पहले एक रीजनल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ़्ट (आरटीए) विकसित करने की घोषणा की थी. यह एसजे-100 की तरह 90-सीटों का यात्री विमान होगा.
इसके बारे में एक अध्ययन किया गया और रिपोर्ट साल 2011 में सरकार को सौंप दी गई. लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है.
डॉ. पाशिलकर ने बताया, “जब सरकार आरटीए परियोजना को मंजूरी दे देगी, उसके बाद भी विमान बनाने में सात साल लगेंगे.”
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भारत की 19-सीटों की हल्की ट्रांसपोर्ट विमान परियोजना का नाम है ‘सारस‘.
हालाँकि, इसे ‘लोगों के आने-जाने के लिए आदर्श विमान’ कहा गया, लेकिन यह साफ़ नहीं है कि इसे प्रमाणपत्र कब मिलेगा.
बताया गया है कि इस विमान के विकास के अलग-अलग चरणों में रूसी विशेषज्ञों की मदद ली गई थी.
साल 2009 में सारस के एक प्रोटोटाइप विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें क्रू की मौत हो गई थी.
डॉ. पाशिलकर के मुताबिक, भारत में विमान विकास की धीमी गति के तीन कारण हैं: घरेलू माँग में कमी, आधुनिक प्रशिक्षित मानव संसाधन का अभाव और घरेलू निर्माण का बहुत छोटा दायरा.
आगे का रास्ता
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गोपाल सुतार का मानना है कि एसजे-100 भारत के लिए आगे बढ़ने का रास्ता दिखाता है.
उन्होंने इस समझौते को ‘व्यावहारिक कदम’ बताया और कहा, “यह डील भारत की नागरिक विमानन क्षमता को बढ़ाएगी. भारत का खुद का 70 से ज़्यादा सीटों वाला आधुनिक यात्री विमान जल्द तैयार नहीं होगा, क्योंकि सारस एमके-2 ने अब तक उड़ान भी नहीं भरी है.”
हालाँकि, एनएएल के वैज्ञानिकों ने सालों तक स्वदेशी तकनीक पर काम किया है.
डॉ. पाशिलकर ने माना, “भारत को अपने सपने को पूरा करने के लिए देसी और विदेशी निर्माताओं के साथ मिलकर काम करना होगा, ताकि वह एक वैश्विक विमानन केंद्र बन सके.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित