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बांग्लादेश में इंकलाब मंच के छात्र नेता उस्मान हादी की मौत के बाद ढाका और आस-पास के इलाक़ों में व्यापक हिंसा फैल गई.
दो अख़बार के दफ़्तरों पर हमले, तोड़फोड़ और आगजनी के अलावा भारतीय उच्चायोग के बाहर भी भीड़ इकट्ठा हो गई और पत्थरबाज़ी की घटनाएं हुई हैं.
उस्मान हादी को पिछले हफ़्ते शुक्रवार को ढाका में गोली मारी गई थी जिसमें वो बुरी तरह घायल हो गए थे और इसी हफ़्ते उन्हें इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया था, जहां गुरुवार को उनकी मौत हो गई.
ताज़ा घटनाक्रमों के बीच बांग्लादेश और भारत के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हुए हैं. दोनों देशों की बीच तल्ख़ी तब बढ़ी जब बांग्लादेश के कुछ नेताओं ने भारत के ख़िलाफ़ विवादित बयान दिए हैं.
बीते बुधवार को बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के सदर्न चीफ़ ऑर्गेनाइजर हसनत अब्दुल्लाह ने चेतावनी देते हुए कहा था कि ‘अगर बांग्लादेश को अस्थिर किया गया तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों ‘सेवन सिस्टर्स’ को अलग-थलग कर दिया जाएगा.’
उन्होंने भारत के उच्चायुक्त को देश से बाहर निकालने की मांग भी की थी.
इस बयान ने दोनों देशों के बीच पहले से ही ‘नाज़ुक रिश्ते’ को और तनावपूर्ण बना दिया और भारत सरकार ने दिल्ली में बांग्लादेश के राजदूत को तलब कर भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा को लेकर चिंता ज़ाहिर की.
हालांकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का रुख़ भारत को लेकर बहुत नरम नहीं रहा.
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने बुधवार को भारत पर ‘1971 के मुक्ति संग्राम में बांग्लादेश के योगदान को लगातार कम करके आंकने का आरोप लगाया.’
तौहीद हुसैन ने कहा कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के बिना यह जीत संभव नहीं थी.
बुधवार को क्या हुआ जिसने पूरी सूरत बदल दी
शुभज्योति, बीबीसी बांग्ला

भारतीय राजधानी में, दिल्ली और ढाका के बीच संबंधों की पूरी सूरत, रातोंरात पूरी तरह बदल गई.
मंगलवार शाम को दिल्ली में बांग्लादेशी उच्चायुक्त के निमंत्रण पर दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक मित्रता के जश्न में वर्तमान और पूर्व भारतीय राजनयिक, सैन्य अधिकारी और थिंक टैंक के सदस्य शरीक हुए.
इसके अगले ही दिन बुधवार सुबह को दिल्ली ने बांग्लादेश के उच्चायुक्त को साउथ ब्लॉक में तलब किया.
हालांकि भारत सरकार ने कहा है कि उच्चायुक्त को तलब करने का मुख्य कारण ढाका में भारतीय उच्चायोग के आसपास मौजूद ‘कुछ चरमपंथी समूहों’ द्वारा सुरक्षा को उत्पन्न ख़तरा है, लेकिन मंत्रालय के अधिकारियों ने संकेत दिया है कि इसके पीछे एक और कारण, हाल ही में कुछ बांग्लादेशी राजनेताओं द्वारा दिए गए भारत विरोधी ‘भड़काऊ’ बयान भी थे.
मंगलवार रात को दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित बांग्लादेश उच्चायोग परिसर में आयोजित विजय दिवस समारोह में, बांग्लादेश के उच्चायुक्त रियाज़ हामिदुल्लाह ने कहा था कि भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध वास्तव में बहुत गहरे और बहुआयामी हैं और एक समृद्ध अतीत की पृष्ठभूमि में उनकी आपसी निर्भरता को समझना ज़रूरी है.
उन्होंने इस रिश्ते को ‘स्वाभाविक रिश्ता’ बताया और 1971 के युद्ध में बांग्लादेश की धरती पर सर्वोच्च बलिदान देने वाले 1,668 भारतीय सैनिकों को गहरी कृतज्ञता के साथ याद किया.
इस कार्यक्रम में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में भाग लेने वाले कई भारतीय सैनिक, भारतीय सेना के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राकेश कपूर, भारतीय विदेश मंत्रालय में बांग्लादेश-म्यांमार डिवीजन के प्रमुख बी. श्याम, पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर, ढाका में काम कर चुके चार पूर्व भारतीय राजनयिक, ओआरएफ़-ब्रूकिंग्स-आईडीएसए जैसे थिंक टैंक के कई शोधकर्ता और दिल्ली के कई शीर्ष पत्रकार मौजूद थे.
कार्यक्रम के तुरंत बाद ही रियाज़ हामिदुल्लाह ने सोशल मीडिया पर लिखा, “दोनों देशों के लोगों की शांति, स्थिरता और समृद्धि केवल आपसी विश्वास, गरिमा, प्रगति, साझा हितों और साझा मूल्यों के आधार पर ही सुनिश्चित की जा सकती है.” उन्होंने उस पोस्ट में भारतीय विदेश मंत्रालय को भी टैग किया.
लेकिन रात होते-होते विदेश मंत्रालय ने उच्चायुक्त रियाज़ हामिदुल्लाह को साउथ ब्लॉक में तलब कर लिया.
भारत सरकार ने उन्हें बताया कि भारत का मानना है कि बांग्लादेश में सुरक्षा का माहौल तेजी से बिगड़ रहा है और वे इस स्थिति से चिंतित और परेशान हैं.
ख़ासकर उनका ध्यान इस ओर दिलाया गया कि ‘किसी चरमपंथी समूह ने ढाका में भारतीय उच्चायोग के लिए सुरक्षा ख़तरा पैदा करने की योजना बनाई है.’
साउथ ब्लॉक में हुई बैठक के बाद बांग्लादेश सरकार की ओर से तत्काल कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई, लेकिन बांग्लादेश में राजनयिक सूत्रों ने बीबीसी बांग्ला को बताया है कि पिछले सप्ताहांत दिल्ली और ढाका के बीच हुई ‘बयानबाज़ी’ के बाद यह समन पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं था.
इससे पहले, रविवार को बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने ढाका में भारतीय उच्चायुक्त प्रणॉय वर्मा को तलब कर देश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के भारत में रहने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि इससे “बांग्लादेश में आतंकवादी गतिविधियों को भड़काने और आगामी राष्ट्रीय चुनावों में गड़बड़ी करने के प्रयासों का अवसर मिल सकता है.”
दरअसल, पिछले डेढ़ साल में बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार और भारत में नरेंद्र मोदी सरकार के बीच विभिन्न मुद्दों पर उच्चायुक्तों को तलब किए जाने, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाने और बयान जारी किए जाने की कई घटनाएं हुई हैं. बुधवार की घटना इसी कड़ी में है.
बांग्लादेश के उच्चायुक्त को क्यों तलब किया गया?
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बांग्लादेश में ‘जुलाई ओइक्या’ नामक एक संगठन ने बुधवार दोपहर ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग की ओर ‘भारतीय उच्चायोग तक मार्च’ निकालने का आह्वान किया था और उनका मक़सद उच्चायोग के सामने एक ‘विरोध रैली’ करना था.
हालांकि, उसी दिन स्थानीय समयानुसार दोपहर लगभग 3.30 बजे, बांग्लादेशी पुलिस ने बैरिकेड लगाकर प्रदर्शनकारियों को बीच रास्ते में ही रोक दिया.
इसके अलावा, विजय दिवस (16 दिसंबर) पर, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने घोषणा की कि ढाका की एक महत्वपूर्ण सड़क का नाम लगभग 15 साल पहले बीएसएफ द्वारा मारी गई बांग्लादेशी किशोरी फेलानी खातून की याद में ‘फेलानी एवेन्यू’ रखा जाएगा.
बांग्लादेश के ग्रामीण विकास एवं सहकारिता मंत्रालय और आवास एवं लोक निर्माण मंत्रालय के सलाहकार आदिलुर रहमान खान ने कहा, “बांग्लादेश के लोग सीमा पर होने वाली हत्याओं का अंत चाहते हैं. हमारी बहन फेलानी ने तार से लटककर अपनी जान दे दी. हमने इस सड़क का नाम फेलानी रोड रखा है ताकि भारत द्वारा किए गए इस अत्याचार की याद ताज़ा रहे.”
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एनसीपी के वरिष्ठ नेता हसनत अब्दुल्लाह ने कुछ दिन पहले ही आरोप लगाया था कि उस्मान हादी को गोली मारने वाले बंदूकधारी भारत भाग गए होंगे. इसके बाद ही उन्होंने एक और बयान दिया कि ‘अगर भारत अपनी धरती पर बांग्लादेश के दुश्मनों को पनाह देता है, तो बांग्लादेश भी भारत विरोधी ताकतों को शरण देकर ‘सेवन सिस्टर्स’ को भारत से अलग-थलग करने की कोशिश करेगा.’
भारत ने हसनत अब्दुल्लाह की टिप्पणियों को “भड़काऊ” माना, क्योंकि भारत के लिए पूर्वोत्तर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है.
विशेषकर इसलिए कि भारत का मानना है कि पूर्वोत्तर के कई सशस्त्र अलगाववादी समूहों ने पहले भी बांग्लादेश में शरण ली है और उस देश की कुछ पूर्व सरकारों ने भी उन्हें संरक्षण दिया है.
इसलिए दिल्ली के अधिकारियों का मानना है कि हसनत अब्दुल्लाह की टिप्पणियों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.
साउथ ब्लॉक के शीर्ष अधिकारियों ने बीबीसी बांग्ला को बताया कि इन्हीं कारणों के चलते बुधवार को सुबह बांग्लादेश के उच्चायुक्त को तलब किया गया.
बाद में भारत के आधिकारिक बयान में यह भी कहा गया, “कुछ चरमपंथी समूह बांग्लादेश में हाल की घटनाओं के आधार पर एक ‘झूठा नैरेटिव’ बनाने की कोशिश कर रहे हैं – जिसे भारत पूरी तरह से ख़ारिज करता है.”
बयान के अनुसार, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उस देश की अंतरिम सरकार ने इन घटनाओं की ठीक से जांच तक नहीं की और न ही उसने भारत के साथ कोई सार्थक सबूत साझा किए.”
बांग्लादेश के उच्चायुक्त रियाज़ हामिदुल्लाह को एक बार फिर बताया गया कि भारत बांग्लादेश में ‘शांति और स्थिरता’ के लिए ‘निष्पक्ष, स्वतंत्र, समावेशी और स्वीकार्य चुनाव’ चाहता है.
मुक्ति युद्ध के दौरान मित्रता का माहौल
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मंगलवार को दिल्ली, भारत-बांग्लादेश मित्रता के एक उल्लेखनीय पल का गवाह बना. यहां दोनों देशों के वक्ताओं ने 1971 की यादों को ताज़ा किया.
भारत की विदेश नीति के एक जीवंत दिग्गज, पूर्व विदेश सचिव एमके रसगोत्रा भी बांग्लादेश उच्चायोग के विजय दिवस समारोह में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित होने वाले थे.
रसगोत्रा अब 101 वर्ष के हो चुके हैं और बांग्लादेश के उच्चायुक्त रियाज़ हामिदुल्लाह ने खुद उन्हें अपने आवास पर इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया था.
रसगोत्रा ने भी आने और 16 दिसंबर, 1971 को दिल्ली में घटी घटनाओं के बारे में अपनी यादें साझा करने का वादा किया था. उस समय रसगोत्रा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबी सलाहकार थे.
हालांकि तबीयत खराब होने के कारण अंतिम समय में वो मौजूद नहीं हो पाए लेकिन उच्चायुक्त ने उनको कृतज्ञतापूर्वक याद किया.
दरअसल, भारत में कई पर्यवेक्षकों का मानना है कि पिछले डेढ़ साल से बांग्लादेश में भारत और बांग्लादेश के बीच कंधे से कंधा मिलाकर मुक्ति युद्ध में लड़ने के गौरवशाली इतिहास को मिटाने का जान-बूझकर प्रयास किया जा रहा है.
ऐसे माहौल में, पर्यवेक्षकों ने मंगलवार को बांग्लादेश उच्चायोग द्वारा आयोजित विजय दिवस समारोह को एक बहुत ही ज़रूरी पहल और द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक बहुत ही सकारात्मक संकेत के रूप में लिया.
इस कार्यक्रम में मौजूद भारत के एक पूर्व उच्चायुक्त ने बीबीसी को बताया, “जहां ढाका में अंतरिम सरकार ने लगातार दो बार विजय दिवस परेड रद्द कर दी थी, वहीं मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि यहां उनका उच्चायोग विजय दिवस को इतने धूमधाम से मनाएगा.”
लेकिन इस मित्रतापूर्ण माहौल को बिगड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा.
उस घटना के कुछ घंटों बाद, जब बुधवार को ‘साउथ ब्लॉक में बांग्लादेशी उच्चायुक्त को तत्काल तलब’ करने का संदेश सुर्खियां बना, तो सभी को फिर से एहसास हुआ कि संबंधों को सुधारने के तमाम प्रयासों के बावजूद, दिल्ली और ढाका के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.