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पिछले कुछ हफ़्तों में भारतीय टेक कंपनी ज़ोहो की ओर से डेवलप किया गया ‘अराताई’ देश में सनसनी बन गया है. कंपनी का कहना है कि पिछले हफ़्ते सात दिनों में ऐप को 70 लाख यूज़र्स डाउनलोड किया है. हालांकि, कंपनी ने ये नहीं बताया कि ये आंकड़े किन तारीखों के है.
मार्केट इंटेलिजेंस फ़र्म सेंसर टावर के मुताबिक़ अगस्त महीने में अराताई के 10 हज़ार से भी कम डाउनलोड्स थे.
अराताई का मतलब तमिल भाषा में हंसी-मज़ाक होता है. ये ऐप साल 2021 में लॉन्च हुआ था. लेकिन अब तक इसके बारे में कम ही लोग जानते थे. अब इसकी अचानक बढ़ती लोकप्रियता को केंद्र सरकार के देसी उत्पादों पर निर्भरता को बढ़ावा देने से जोड़ा जा रहा है.
अमेरिका की ओर से लगाए गए टैरिफ़ के परिणामस्वरूप भारत में स्वदेशी उत्पादों के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जा रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के मंत्री पिछले कुछ हफ़्तों में मेक इन इंडिया और स्पेंड इन इंडिया के नारे को कइयों बार दोहरा चुके हैं.
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लगभग दो हफ़्ते पहले इस ऐप के बारे में एक्स पर पोस्ट किया था और लोगों से स्वदेशी अपनाने की अपील की थी. तब से कई दूसरे केंद्रीय मंत्री और उद्योग जगत के बड़े नाम भी अराताई के समर्थन में पोस्ट कर चुके हैं.
कंपनी का कहना है कि सरकार की ओर से मिले इस समर्थन ने निश्चत तौर पर अराताई के डाउनलोड्स में अचानक हुई बढ़ोतरी में मदद की है.
ज़ोहो के सीईओ मणि वेम्बू ने बीबीसी को बताया, “सिर्फ़ तीन दिनों में, हमने देखा कि रोज़ाना साइन-अप तीन हज़ार से बढ़कर साढ़े तीन लाख हो गए. जहां तक एक्टिव यूज़र्स की बात है तो उसमें भी 100 गुणा बढ़ोतरी हुई है और ये संख्या लगातार बढ़ रही है.”
उन्होंने कहा कि ये दिखाता है कि यूज़र्स “ऐसे स्वदेशी प्रोडक्ट को लेकर उत्साहित हैं जो उनकी सभी ख़ास ज़रूरतों और उम्मीदों पर खरा उतर सकता है.”
हालांकि, कंपनी ने एक्टिव यूज़र्स की सटीक संख्या नहीं बताई है लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह संख्या अभी भी भारत में मेटा के व्हॉट्सऐप के 50 करोड़ मासिक एक्टिव यूज़र्स से काफ़ी पीछे है.
भारत व्हॉट्सऐप का सबसे बड़ा बाज़ार है और यह ऐप देश में जीवन का एक हिस्सा बन चुका है. लोग इसका इस्तेमाल ‘गुड मॉर्निंग’ मेसेज भेजने से लेकर अपने कारोबार चलाने तक के लिए करते हैं.
व्हॉट्सऐप को टक्कर देना कितना संभव?
अराताई में व्हॉट्सऐप जैसे ही फ़ीचर्स हैं, जिससे यूज़र्स मेसेज भेज सकते हैं और वॉइस तथा वीडियो कॉल कर सकते हैं. दोनों ऐप्स कई बिज़नेस टूल्स भी ऑफ़र करते हैं.
व्हॉट्सऐप की तरह ही अराताई भी ये दावा करता है कि इसे कम फ़ीचर्स वाले फ़ोन और धीमे इंटरनेट स्पीड पर भी बढ़िया से काम करने के लिए बनाया गया है.
कई यूज़र्स ने सोशल मीडिया पर अराताई की तारीफ़ की है. कुछ लोगों को इसका इंटरफ़ेस और डिज़ाइन पसंद आया है तो कुछ ने इसे इस्तेमाल के लिहाज़ से व्हॉट्सऐप के बराबर बताया है. कई लोगों को गर्व है कि यह एक भारतीय ऐप है और ये लोग दूसरों को भी ऐप डाउनलोड करने के लिए कह रहे हैं.
अराताई पहला भारतीय ऐप नहीं है जिसने बड़े अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती देने का सपना देखा हो.
पहले भी, कू और मोज जैसे भारतीय ऐप को एक्स और टिकटॉक के विकल्प के तौर पर बताया गया था. लेकिन शुरुआती सफलता के बाद ये ऐप कभी बहुत आगे नहीं बढ़ सके. यहां तक कि शेयरचैट, जिसे कभी व्हॉट्सऐप का बड़ा प्रतिद्वंद्वी माना जाता था, वह भी अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने की राह में आगे नहीं बढ़ा.
दिल्ली के टेक्नोलॉजी राइटर और ऐनालिस्ट प्रसांतो के रॉय कहते हैं कि अराताई के लिए व्हॉट्सऐप के इतने बड़े यूज़रबेस को पार करना मुश्किल होगा, ख़ासकर इसलिए क्योंकि मेटा के इस प्लेटफॉर्म पर बड़ी संख्या में बिज़नेस और सरकारी सेवाएं भी चलती हैं.
अराताई की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह न सिर्फ़ नए यूज़र्स को अपनी ओर खींचे बल्कि उन्हें बनाए भी रखे. प्रसांतो के रॉय कहते हैं कि यह सब सिर्फ़ राष्ट्रवादी भावना से संभव नहीं होगा.
उन्होंने कहा, “प्रोडक्ट अच्छा होना चाहिए, लेकिन फिर भी यह संभावना कम है कि वह ऐसे ऐप की जगह ले सके, जिसमें दुनिया भर में अरबों यूज़र्स पहले से मौजूद हैं.”
डेटा प्राइवेसी की भी चिंता
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कुछ एक्सपर्ट्स ने अराताई ऐप पर डेटा प्राइवेसी को लेकर भी चिंता जताई है. ये ऐप वीडियो और वॉइस कॉल के लिए तो एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन देता है लेकिन फिलहाल ये सुविधा मैसेज के लिए उपलब्ध नहीं है.
भारत में टेक पॉलिसी पर रिपोर्ट करने वाले वेब पोर्टल मीडियानामा के मैनेजिंग एडिटर शशिधर केजे कहते हैं, “सरकार सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए मैसेजों की ट्रेसेबिलिटी चाहती है और ये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के बग़ैर आसानी से किया जा सकता है.”
अराताई का कहना है कि वह टेक्स्ट मैसेज के लिए एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन लागू करने के लिए तेज़ी से काम कर रहा है.
मणि वेम्बू ने कहा, “हमने शुरू में यह ऐप एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के साथ लॉन्च करने की योजना बनाई थी, जो कुछ महीनों में हो जाता. हालांकि, टाइमलाइन आगे बढ़ा दी गई और हम कुछ अहम फ़ीचर्स और सपोर्ट जल्दी से जल्दी लाने की कोशिश कर रहे हैं.”
व्हॉट्सऐप मैसेज और कॉल दोनों के लिए एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन देता है, लेकिन अपनी पॉलिसी के मुताबिक मैसेज या कॉल लॉग जैसे मेटा डेटा क़ानूनी रूप से वैध परिस्थितियों में ही वह सरकारों से साझा करता है.
क्या कहता है भारत का कानून
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इंटरनेट से जुड़े भारत के कानून कुछ ख़ास परिस्थितियों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मस को सरकार के साथ यूज़र्स के डेटा साझा करने के लिए कहते हैं. लेकिन अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से ये डेटा पाना मुश्किल और काफ़ी समय लेने वाली प्रक्रिया होती है.
मेटा और एक्स जैसी बड़ी ग्लोबल कंपनियों के पास क़ानूनी और वित्तीय समर्थन होता है, जिससे वे सरकार की उन मांगों या नियमों के ख़िलाफ़ लड़ सकते हैं जो उनकी नज़र में ग़लत हैं.
साल 2021 में व्हॉट्सऐप ने भारत के नए डिजिटल रूल्स के ख़िलाफ़ मुक़दमा दायर किया था. ये नियम सोशल मीडिया और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट का नियमन करते हैं. व्हॉट्सऐप का तर्क था कि ये नियम उसके प्राइवेसी प्रोटेक्शन का उल्लंघन करते हैं. एक्स ने भी भारत सरकार की कंटेंट ब्लॉक या हटाने की शक्तियों को क़ानूनी रूप से चुनौती दी है.
इसलिए भी एक्सपर्ट्स ये सवाल उठा रहे हैं क्या भारतीय ऐप अराताई सरकार की उन मांगों का सामना कर सकेगा, जो यूज़र्स की प्राइवेसी से जुड़े अधिकारों को खतरे में डाल सकती हैं?
तकनीक से जुड़े कानून के जानकार राहुल मत्थन कहते हैं कि जब तक अराताई की प्राइवेसी से जुड़ी संरचना और ज़ोहो का सरकार के साथ यूज़र-जेनरेटेड कंटेंट साझा करने के मामले में रुख स्पष्ट नहीं होता, तब तक कई लोग इस ऐप को इस्तेमाल करने में सहज महसूस नहीं करेंगे.
वहीं, प्रसांतो के रॉय कहते हैं कि संभव है कि ज़ोहो सरकार के प्रति उत्तरदायित्व महसूस करे, ख़ासकर जब से केंद्रीय मंत्री इस ऐप का प्रचार कर रहे हैं.
वह ये भी कहते हैं कि जब देश की जांच एजेंसियों की ओर से ऐसी मांगें आती हैं, तो एक भारतीय स्टार्टअप के लिए मज़बूती से विरोध करना आसान नहीं होगा.
जब मणि वेम्बू से पूछा गया कि ऐसे रिक्वेस्ट आने पर अराताई क्या करेगा, तो उन्होंने कहा, “कंपनी चाहती है कि उसके यूज़र्स का अपने डेटा पर पूरा नियंत्रण हो, साथ ही वह देश के सूचना प्रौद्योगिकी नियमों और कानूनों का पालन भी करना चाहती है.”
उन्होंने कहा, “एक बार पूरी तरह से एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन लागू हो जाने के बाद, हमारे पास यूज़र्स की ऐप पर हुई बातचीत तक पहुंच भी नहीं होगी. हम अपने यूज़र्स के सामने किसी भी कानूनी प्रतिबद्धता के बारे में पारदर्शी रहेंगे.”
पिछले अनुभव ये इशारा करते हैं कि भारतीय ऐप्स के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं, ख़ासकर जब व्हॉट्सऐप और फ़ेसबुक जैसे आदत बन चुकी बड़ी कंपनियों का दबदबा होता है. यह देखना बाकी है कि अराताई सफल हो पाएगा या पिछले कई ऐप्स की तरह ही धीरे-धीरे इसका ख़ुमार भी फ़ीका पड़ जाएगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.