
(चेतावनी: इस कहानी में दी गई कुछ जानकारी आपको विचलित कर सकती है.)
“मैंने अपना घर छोड़ दिया था. मेरे कंधे पर दो जोड़ी कपड़े हुआ करते थे. मैं सड़कों पर रहा करता था. लोगों से भीख मांगता था और झूठ बोलता था कि मुझे घर जाना है, मेरी मदद कर दो. जैसे ही पैसे मिलते थे, मैं सीधे शराब के ठेके पर जाता था और शराब पीता था.”
ये शब्द अमित (बदला हुआ नाम) के हैं, जिन्होंने शराब की लत के कारण अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था.
शराब की लत के कारण जॉब खो दी, रिश्ते खो दिए, यहां तक कि अपनी पहचान भी खो दी.
लेकिन यह कहानी सिर्फ़ अमित की नहीं है. अमित जैसे करोड़ों लोगों की है जो हर रोज़ शराब की लत से एक अदृश्य लड़ाई लड़ रहे हैं.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद साल 2019 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 5.7 करोड़ लोगों को शराब से जुड़ी समस्याओं में मदद की ज़रूरत है.
गौतम बुद्ध नगर ज़िला अस्पताल में साइकेट्रिस्ट कंसल्टेंट डॉ. स्वाति त्यागी कहती हैं कि उनके पास 12 साल से लेकर 70 साल तक की उम्र के लोग शराब से जुड़ी समस्याओं में मदद के लिए आते हैं.
वो बताती हैं, “ज़्यादातर संख्या युवाओं की ही है. ख़ासतौर से 12 से 30 साल तक के लोगों की.”
शराब की लत और उसका असर

दिल्ली की रहने वाली कविता (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि स्कूल के समय में जब वो दूसरी लड़कियों को शराब और सिगरेट पीते देखती थीं, तो उन्हें लगता था कि वो “कुएँ का मेंढक” बनकर रह गई हैं. उन्होंने तभी तय कर लिया था कि एक दिन वो भी शराब ज़रूर पिएंगी और कॉलेज में उन्होंने पहली बार शराब पी.
कविता कहती हैं, “मैं बहुत शांत और इंट्रोवर्ट स्वभाव की हूं, जो ज़्यादा खुल नहीं पाती, लेकिन शराब ने मेरे अंदर जो बदलाव किया, वो शानदार था. मैं डांस कर रही थी, लोगों से बात कर रही थी, मैं इंजॉय कर रही थी. एक शेरनी वाला रूप आ गया था. वो एहसास बहुत एडिक्टिव था.”
वो आगे कहती हैं, “मैं सोचती थी कि मैं अपने लिए पी रही हूं. एक बग़ावत भी थी- अगर पुरुष पी सकते हैं तो महिलाएँ क्यों नहीं? मैं यह साबित करना चाहती थी कि देखो, मैं भी शराब पी सकती हूं.”
कविता कहती हैं कि शराब की लत का असर उनके बच्चों और आपसी रिश्तों पर भी पड़ा.
वो बताती हैं, “काम से लौटते हुए मैं शराब पीती थी. दिमाग में हमेशा यही चलता था कि पति सात बजे तक आ जाएंगे, उससे पहले मैं एक क्वॉर्टर पी लेती हूं. मैं ऐसा करती भी थी.”
कविता कहती हैं, “शराबी की एक इमेज होती है, सड़क किनारे गिरा होता है, कपड़े फटे होते हैं, फर्क बस इतना था कि मैं अपने घर के बिस्तर पर गिरी होती थी.”
अगर आप भी शराब की लत के शिकार हैं तो आप सहायता के लिए इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं.
नेशनल टोल फ़्री हेल्पलाइन- 1800-11-0031
नशा मुक्त भारत अभियान हेल्पलाइन नंबर: 14446
शराब की लत से बिगड़ते रिश्ते
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शराब की लत के कारण कभी अपने पिता की गिरेबान पकड़ने वाले अमित या अपनी गर्भवती पत्नी को चोट पहुंचाने वाले सतपाल (बदला हुआ नाम) जब उन दिनों को याद करते हैं, तो उनकी आंखें झुक जाती हैं.
अमित कहते हैं, “पहली बार शराब पीने के करीब तीन साल बाद मेरी हालत बद से बदतर हो चुकी थी. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपने परिवार को दुख दूंगा. लेकिन एक दिन मेरी वजह से मेरे पिता की आंखों में आंसू थे. उनके यह शब्द थे कि अगर तू पैदा होते ही मर गया होता तो अच्छा था.”
सतपाल बताते हैं, “पीने के बाद मुझे लगता था मैं हवा में उड़ रहा हूं. मुझे पीने वाली जगहें और पीने वाले दोस्त अच्छे लगते थे. जो नहीं पीते थे, वो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आते थे.”
वो आगे कहते हैं, “एक बार मेरे घर में एक फ़ंक्शन था, मेरे रिश्तेदार भी आए हुए थे, मेरी पत्नी दुकान पर बैठा करती थीं. मेरे जीजा जी ने मेरे दिमाग में डाल दिया कि तेरी पत्नी दुकान पर बैठती है, ये है, वो है… मैं आया और मैंने अपनी गर्भवती पत्नी के पेट में घूंसा मार दिया. वो 5-6 महीने की प्रेगनेंट थी… मेरा बच्चा घूम गया था. लेकिन फिर भी मुझे अहसास नहीं हुआ कि मैंने क्या किया.”
कविता, अमित और सतपाल अब शराब से दूरी बना चुके हैं, लेकिन सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अब भी करोड़ों भारतीयों को मदद की ज़रूरत है.
क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े
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सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद साल 2019 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 10 से 75 वर्ष की आयु के लगभग 16 करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं.
लगभग 5.7 करोड़ से अधिक लोग शराब से होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं.
दूसरे शब्दों में कहें तो, भारत में हर तीसरा शराब पीने वाला व्यक्ति शराब से संबंधित समस्याओं से ग्रसित है और उसे मदद की आवश्यकता है.
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में लगभग 30 प्रतिशत लोग देसी शराब और 30 प्रतिशत लोग अंग्रेजी शराब पीते हैं.
पर्वोत्तर राज्यों में लोग सबसे ज़्यादा घर में चावल से बनी राइस बीयर पीना पसंद करते हैं. वहीं बिहार में लोग सबसे ज़्यादा (30 प्रतिशत) गैर क़ानूनी रूप से बनी कच्ची शराब पीते हैं.
छत्तीसगढ़ में सबसे ज़्यादा 35.6% लोग शराब पीते हैं उसके बाद त्रिपुरा में 34.7% लोग, पंजाब में 28.5%, अरुणाचल प्रदेश में 28% और गोवा में 26% लोग शराब पीते हैं.
अगर शराब पीने वाले लोगों की कुल संख्या के आधार पर बात करें तो उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 4.2 करोड़ लोग, पश्चिम बंगाल में 1.4 करोड़ लोग और मध्य प्रदेश में 1.2 करोड़ लोग शराब पीते हैं.
अरुणाचल प्रदेश में 15.6 प्रतिशत महिलाएं और छत्तीसगढ़ में 13.7 प्रतिशत महिलाएं शराब पीती हैं. सिर्फ इन दोनों राज्यों में शराब पीने वाली महिलाओं की संख्या 10 प्रतिशत से अधिक है.
पंजाब में 6 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 3.9 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 3.8 प्रतिशत बच्चे शराब पीते हैं.
साल 2019 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ देशभर में लगभग 2.9 करोड़ लोग शराब की लत के शिकार हैं.
- ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2020 में भारत में प्रति व्यक्ति शराब की खपत 3.1 लीटर थी, जो 2023 साल में 3.2 लीटर हो गई और साल 2028 तक 3.4 लीटर हो सकती है.
- बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में शराब का मार्केट 60 अरब अमेरिकी डॉलर का है.
शराब की लत को छोड़ने में कविता, अमित, सतपाल की उनके अपनों ने मदद की. किसी ने रिहैबिलिटेशन सेंटर की मदद ली तो किसी ने सपोर्ट ग्रुप की.
रिहैबिलिटेशन सेंटर या सपोर्ट ग्रुप ज़्यादा कारगर हैं?
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डॉ. स्वाति त्यागी कहती हैं, “लंबे समय तक शराब पीने वाले लोगों में मिर्गी का दौरा, घबराहट, नींद की समस्या, हाथ-पैर कांपना सहित कई गंभीर शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं.”
“जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक शराब पीने के बाद अचानक छोड़ता है, तो उसे गफ़लत होती है, दिन-रात का होश नहीं रहता. इस स्थिति में साइकोसिस जैसी दिमागी बीमारी भी विकसित हो सकती है. लंबे समय तक शराब पीने से डिमेंशिया भी हो सकता है.”
डॉ त्यागी कहती हैं, “रिहैब सेंटर अधिक कारगर हैं, लेकिन वही सेंटर जहां विशेषज्ञ मौजूद हों. साइकेट्रिस्ट और काउंसलर मौजूद हों. रिहैब ऐसा हो, जहां मरीज़ की बात सुनी जाए न कि उसे मारा-पीटा जाए. शराब की लत मारपीट से नहीं, दवाओं और देखभाल से छूटती है. जब मरीज़ कुछ समय बाद स्थिर हो जाता है, तब सपोर्ट ग्रुप का रोल शुरू होता है”
रिहैबिलिटेशन सेंटर कैसे काम करते हैं
तपस्या फ़ाउंडेशन और रिहैबिलिटेशन सेंटर के संचालक दिनेश शर्मा बताते हैं, “जब किसी मरीज़ को रिहैब में लाया जाता है, तो सबसे पहले उसे मेडिकेशन की ज़रूरत होती है. डॉक्टर का काम होता है शराब छोड़ने के बाद आने वाले विथड्रॉल सिंप्टम्स को नियंत्रित करना. करीब 15–20 दिन तक दवाइयां दी जाती हैं. इसके बाद शुरू होता है ग्रुप सेशन.”
दिनेश बताते हैं, “इन ग्रुप सेशन्स में काउंसलर अपने अनुभव साझा करते हैं. नए मरीज़ों को एहसास होता है कि जो बातें वो सुन रहे हैं, वही उनके साथ भी होती रही हैं. धीरे-धीरे वे खुलने लगते हैं.”
“फिर आता है वन-ऑन-वन सेशन, जहां मरीज़ किसी भरोसेमंद व्यक्ति के साथ अपने जीवन की बातें साझा करता है. इससे मन का बोझ हल्का होता है और सकारात्मक सोच विकसित होती है.”
दिनेश कहते हैं, “शराब की लत कोई शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक बीमारी है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, शराब छोड़ने के 28 दिन के अंदर आदमी का शरीर डिटॉक्स हो जाता है, लेकिन असली चुनौती उसके बाद शुरू होती है क्योंकि अधिकांश लोग बाहर निकलते ही फिर से पी लेते हैं. इसलिए रिहैबिलिटेशन सेंटर ज़रूरी हो जाता है.”
उनके अनुसार, “एल्कोहॉलिक्स एनॉनिमस और अन्य संस्थाओं के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया भर में शराब की लत से ठीक होने की दर 7-8% है, जबकि भारत में यह सिर्फ़ 2-3% है.”
दिनेश कहते हैं कि रिहैब कोई स्थायी समाधान नहीं है. रिहैब से निकलने के बाद हर कोई शराब छोड़ दे यह भी ज़रूरी नहीं है.
शराब की लत से जंग में अपनों का साथ
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शराब की लत छोड़ने में रिहैबिलिटेशन सेंटर, डॉक्टर और दवाइयों के साथ-साथ एक व्यक्ति को अपनों के साथ की भी ज़रूरत होती है.
अमित कहते हैं, “शराबी को समाज में हीन दृष्टि से देखा जाता है. लोग उसके पास खड़े नहीं होते, उसे दुत्कारते हैं, उसकी भावनाओं की क़द्र नहीं करते. जबकि वो भी बस एक बीमार व्यक्ति है.”
कविता कहती हैं, “हमें भी उतने ही प्यार, उतनी ही देखभाल की ज़रूरत होती है जितनी किसी भी अन्य बीमार व्यक्ति को होती है. उतनी ही देखभाल और प्यार एक शराब की लत से जूझ रहे व्यक्ति को भी चाहिए होता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.