
(चेतावनी: इस लेख में दी गई कुछ जानकारी विचलित कर सकती है.)
हर साल 17 दिसंबर को सेक्स वर्कर्स के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा को ख़त्म करने और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए दुनिया भर में आवाज़ उठाई जाती है, ताकि इस मुद्दे पर समाज और सरकार का ध्यान खींचा जा सके.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में 10 लाख के आसपास महिला सेक्स वर्कर्स हैं और ग़ैर लाभकारी संगठनों के अनुसार, तीस लाख.
भारत में ज़्यादातर महिलाएं सेक्स वर्क में धकेली जाती हैं.
इनकी ज़िंदगी में शोषण है, रोज़ाना की हिंसा है और कभी न ख़त्म होने वाला सामाजिक भेदभाव.
दिल्ली के जीबी रोड की गिनती भारत के सबसे बड़े रेड लाइट एरियाज़ में की जाती है.
यहां की जर्जर इमारतों में तक़रीबन ढाई हज़ार महिला सेक्सवर्कर्स रहती हैं और हर दिन के शोषण को सहती हैं.
रुख़साना की उम्र कोई 13 साल के आसपास थी. वह कहती हैं, ”मेरे पति ने मुझे जीबी रोड के एक कोठे में बेच दिया था.”
वह याद करती हैं कि शुरुआत में उन्हें कई दिनों तक एक छोटे अंधेरे कमरे में बंद कर के रखा जाता था, ताकि वह कहीं भाग न पाएं.
यह बताते हुए उनकी आवाज़ भारी और आंखें आंसुओं से भर जाती हैं.
रुख़साना कहती हैं, ”पीरियड्स में भी काम करना पड़ता था.”
‘बीस से ज़्यादा गर्भपात’

उनके मुताबिक़ शुरुआत में जब लड़कियां किसी भी पुरुष के साथ जाने से मना करती हैं, तब उनके पानी में नशे की गोली मिला दी जाती है.
नशे की भारी लत, रोज़ाना की मारपीट, बीस से ज़्यादा गर्भपात और अंतहीन शोषण – तेरह साल की रुख़साना ने अपने जीवन के अगले चौदह साल ऐसे ही काटे.
लेकिन इन सबसे गुज़रने वाली वह अकेली नहीं हैं. जीबी रोड की ज़्यादातर महिलाओं की कहानी एक जैसी ही दिखती है.

जैसे ज्योति को नौकरी का झांसा देकर उनकी ही गांव की एक महिला ने जीबी रोड की एक दलाल के हाथों बेच दिया था. उनकी उम्र तब चौदह साल थी.
वह बताती हैं कि जिस महिला ने उन्हें बेचा, उन्हीं के पति ने सबसे पहले उनका रेप किया. इसके बाद वह कई दिनों तक बीमार रहीं.
फिर उन्हें जीबी रोड की संकरी सीढ़ियों से होते हुए एक कोठे पर पहुंचा दिया गया.
वह कहती हैं, ”मैं उन दिनों को याद करती हूं तो लगता है…वैसे दिन किसी को भी न देखने पड़े. उतनी छोटी उम्र में बारह-पंद्रह कस्टमर अटेंड करवाते थे. मना करने पर पीटना, खाना नहीं देना…ये सब आम बात थी. कुछ साल गुज़रे तो बच्चे पैदा करने का दबाव बनाने लगे. प्रेग्नेंसी के आख़िरी महीने तक काम किया.”
”डिलिवरी के कुछ दिनों के भीतर ही कोठे की मालकिन बच्चे को मां से अलग कर देती है ताकि औरतें दोबारा वही सब शुरू कर दें और अपने बच्चे के लगाव में सालों साल वहीं फंसी न रह जाएं.”
जीबी रोड- शोषण का दलदल

रुख़साना और ज्योति दोनों ही आज जीबी रोड से आज़ाद हैं. लेकिन यह आज़ादी सबके हिस्से नहीं आती.
जीबी रोड में काम करने वाली एक सेक्सवर्कर पहचान ज़ाहिर न करने की शर्त पर बताती हैं कि जो महिला एक बार जीबी रोड आ गई, समझ लो उसके लिए यहां से निकलना बहुत मुश्किल है.
वह कहती हैं, ”एक तो इतने पहरे हैं कि आप बाहर निकल नहीं सकते. निकल भी गए तो इस सड़क के चप्पे-चप्पे पर दलाल बैठे हैं, जो आपको पहचानकर वापस यहां ले आएंगे. जीबी रोड का ठप्पा लग जाने के बाद परिवारवालों के लिए भी हम मर चुके होते हैं, आपके हर डॉक्यूमेंट में अड्रेस के कॉलम में जीबी रोड लिखा होता है, जिससे न केवल आपको, बल्कि आपके बच्चे को भी घृणा भरी नज़रों से देख जाता है.”
नतीजा ये कि महिलाएं साल दर साल हिंसा और शोषण के दलदल में धंसती चली जाती हैं और कई बार अपनी जान भी गंवा देती हैं.
सेक्स व्यापार और हिंसा
दो साल पहले जीबी रोड के एक कोठे के भीतर कुछ ग्राहकों ने गोलीबारी की और इस गोलीबारी में एक 30 साल की सेक्स वर्कर की जान चली गई.
वहीं इसी साल ग़ाज़ियाबाद के सैन विहार नाले में एक महिला सेक्स वर्कर का शव बरामद हुआ.
पुलिस ने बताया कि महिला की हत्या उसके ही ग्राहक ने की थी.
संयुक्त राष्ट्र की UNAIDS रिपोर्ट के मुताबिक, हर पाँच में से एक सेक्स वर्कर ने पिछले एक साल में शारीरिक या यौन हिंसा का सामना किया है.
वहीं संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (OHCHR) के एक शोध के अनुसार, भारत में 50% सेक्स वर्कर्स ने किसी न किसी रूप में कभी न कभी हिंसा का सामना किया है.
अध्ययन में यह भी पाया गया कि पुलिस छापों के दौरान पकड़ी गई कई सेक्स वर्कर महिलाओं को मारपीट और यौन शोषण का सामना करना पड़ता है.

ग़ाज़ियाबाद सिविल लाइन्स की एसीपी प्रियाश्री पाल कहती हैं, ”मेरी नज़र में पुलिस के शोषण का कोई मामला तो नहीं आया लेकिन मैं इसे सिरे से ख़ारिज भी नहीं कर सकती कि पक्षपात और पूर्वाग्रहों के कारण कई लोगों को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा होगा, लेकिन 2026 की ओर बढ़ते हुए हमें उम्मीद है कि मिशन शक्ति और ऐसे दूसरे कार्यक्रमों के ज़रिये समाज के कमज़ोर वर्गों, ख़ासकर महिलाओं के लिए हालात बेहतर होंगे.”
पर सरकार की तरफ़ से चलाई जा रही इन सारी योजनाओं और कोशिशों को स्वयंसेवी संगठन नाकाफ़ी बताते हैं.
सेक्स वर्कर के अधिकारों पर लंबे समय से काम कर रहीं मीना शेषु का कहना है, ”शक्ति मिशन से आप सेक्स वर्क को पूरी तरह ख़त्म करना चाहते हैं, न कि सेक्स वर्क में जो हिंसा है, उसे ख़त्म करना. इस मिशन के तहत आप महिलाओं को इस दलदल से निकालकर सुरक्षित जगह ले जाना चाहते हैं, लेकिन उनके बच्चों का क्या करेंगे. उनके ख़र्च कौन उठाएगा. कई महिलाएं इस पेशे में ग़रीबी के कारण भी आती हैं, तो क्या आप उन्हें नियमित रोज़गार देंगे? उनके परिवार की देखरेख की ज़िम्मेदारी उठाएंगे? महिलाओं को स्किल ट्रेनिंग दे देने भर से नहीं होता. ”
वहीं बीते लगभग एक दशक से जीबी रोड की महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा के लिए काम करने वाली संस्था कट-कथा में बतौर फ़ील्ड मैनेजर काम कर रहीं प्रज्ञा बसेरिया का कहना है, ”ऐसा नहीं है कि सरकार या एनजीओ की तरफ़ से कोशिशें नहीं हुई हैं. कोशिशें होती हैं, पर लॉन्ग टर्म पुनर्वास की योजना नहीं बनाई जाती.”

वह कहती हैं, ”आप जब सेक्स वर्कर्स को मेनस्ट्रीम से जोड़ना चाहते हैं तो उनके मानसिक स्वास्थ्य से लेकर, बच्चों की देखभाल, रोज़गार के अवसर, रहने की जगह, सबकुछ का ख़याल कराना होगा. जैसे हमने ड्रीम विलेज बनाया ताकि जो भी महिलाएं जीबी रोड छोड़कर हमारे साथ आएं, उन्हें रहने के लिए छत मिले, खाने-पीने की सुविधा हो, हम उन्हें दस हज़ार का आर्थिक सहयोग देते हैं, स्कील ट्रेनिंग से लेकर रोज़गार के अवसर दिए जाते हैं…इसके बावजूद कई दीदीयां वापस जीबी रोड चली जाती हैं क्योंकि उनके खर्चे इसमें पूरे नहीं हो पाते.”
”कोठे की मालकिन उन्हें और पैसे का लालच देकर बुला लेती हैं. उन्हें एहसास कराया जाता है कि ये दुनिया उनके लिए नहीं है. उन्हें यहां कभी भी सम्मान नहीं मिलेगा.”
भारत में ‘वेश्यावृत्ति (प्रोस्टिट्यूशन) पूरी तरह अवैध नहीं है, लेकिन अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 (ITPA) के अनुसार ‘वैश्यालय’ चलाना, दलाली करना, किसी को जबरन इसमें धकेलना, सार्वजनिक स्थानों पर ग्राहक ढूंढना और नाबालिगों को इस काम में शामिल करना अपराध है.
साथ ही, किसी से शोषण, हिंसा या तस्करी के ज़रिए देह व्यापार कराना सख्त अपराध माना जाता है.
तीन साल पहले साल 2022 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार सेक्स वर्क को एक पेशे का दर्जा दिया था और कहा था कि उन्हें भी सम्मान और स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार है.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद सम्मान और स्वाभिमान ये दो ऐसे शब्द हैं…जो अब तक सेक्स वर्कर्स के हिस्से नहीं आए.
ज्योति याद करती हैं कि दो दिन पहले वह सड़क से गुज़र रही थीं कि तभी एक शख़्स ने उन्हें पहचान लिया और पूछा, ”तू वही है न, जो कोठे पर रहती थी.”
वह कहती हैं, ”मुझे बहुत बुरा लगा.”
(एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि भारत में साल 2023 में 3,24,763 महिलाएं लापता हो गईं. साल 2023 की ही रिपोर्ट बताती है कि इसी साल 2189 महिलाओं को सेक्स ट्रेड के लिए ट्रैफ़िक किया गया. वहीं 12 नाबालिग लड़कियों को देह व्यापार के लिए बेच दिया गया. 3038 महिलाओं को रेस्क्यू किया गया. हालांकि ये सरकारी आंकड़े हैं, स्वयंसेवी संगठनों का कहना है कि असल संख्या इससे कहीं अधिक है. )
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.