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- Author, दिलीप कुमार शर्मा
- पदनाम, गुवाहाटी से बीबीसी हिंदी के लिए
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मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. रविवार शाम उन्होंने राजभवन जाकर राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाक़ात की और उन्हें अपना इस्तीफ़ा सौंपा.
मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात बीरेन सिंह के एक निजी सहायक दीपक शिजागुरुमयुम ने बीबीसी से इस बात की पुष्टि की. उन्होंने बताया,” मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह ने रविवार शाम अपना इस्तीफ़ा गवर्नर को सौंप दिया है.”
तस्वीर में देखा जा सकता है कि उनके साथ बीजेपी प्रवक्ता और सांसद संबित पात्रा के साथ प्रदेश के अन्य नेता भी राजभवन में मौजूद हैं.
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बीरेन सिंह ने रविवार को ही गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की थी.
नई दिल्ली से लौटने के बाद शाम को मुख्यमंत्री सिंह अपने कुछ विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे और राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया.
मुख्यमंत्री ने अपने इस्तीफ़े में लिखा, ”अब तक मणिपुर के लोगों की सेवा करना सम्मान की बात रही है.”
दरअसल बीरेन सिंह के खिलाफ कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बना रही थी जिसमें सत्ता पक्ष के कुछ विधायकों के समर्थन होने की खबरें भी सामने आ रही थी.
वहीं समाचार एजेंसी पीटीआई ने अधिकारियों के हवाले से बताया है कि बीरेन सिंह के साथ राजभवन में बीजेपी और एनपीएफ़ (नागा पीपुल्स फ्रंट) के 14 अन्य विधायक भी मौजूद रहे.
इस प्रतिनिधिमंडल में बीजेपी के मणिपुर प्रदेश अध्यक्ष ए शारदा और पार्टी सांसद संबित पात्रा भी मौजूद थे. इस मुलाक़ात के बाद बीरेन सिंह मुख्यमंत्री सचिवालय गए.
ऐसा माना जा रहा है कि नए मुख्यमंत्री पर फै़सला एक-दो दिन के भीतर लिया जाएगा.
विपक्ष के सवालों के घेरे में रहे
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एन बीरेन सिंह पहली बार 2017 में मणिपुर के मुख्यमंत्री बने थे. उनके नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार का राज्य में यह लगातार दूसरा कार्यकाल है.
लेकिन बीते महीनों प्रदेश में हुई व्यापक हिंसा ने उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया था.
दरअसल मणिपुर में 3 मई 2023 से मैतेई समुदाय और कुकी जनजाति के बीच शुरू हुई जातीय हिंसा के बाद से बीरेन सिंह की भूमिका पर सवाल उठ रहे थे.
विपक्ष ने बार-बार उन पर हिंसा पर नियंत्रण करने में नाकाम रहने का आरोप लगाया है. साथ ही उनके इस्तीफ़े की भी मांग की.
हिंसा शुरू होने के कुछ दिनों बाद ऐसा लगा कि बीरेन सिंह इस्तीफ़ देंगे, लेकिन बाद में उन्होंने इस्तीफ़ा देने से इनकार कर दिया था.
एन बीरेन सिंह के नाम से एक कथित त्याग पत्र की तस्वीर भी इस दौरान सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. इस तस्वीर में इस्तीफ़ा फटा हुआ नज़र आ रहा है.
इसके कुछ वक्त बाद उन्होंने ट्विटर पर कहा, “इस नाजुक मोड़ पर मैं ये स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने नहीं जा रहा हूं.”
जानिए कौन हैं एन बीरेन सिंह
किसी ज़माने में मणिपुर से फ़ुटबॉल खिलाड़ी के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले नोंगथोम्बम बीरेन सिंह साल 2017 में भारतीय जनता पार्टी की अगुआई में बनी सरकार के मुख्यमंत्री बने थे.
60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में बीजेपी को 2017 में केवल 21 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन बीरेन सिंह ने 28 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए प्रदेश में सरकार बना ली थी.
साल 1963 के बाद राज्य में 12 मुख्यमंत्री बने, जिनमें सबसे लंबा लगातार 15 साल का कार्यकाल कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे ओकराम इबोबी सिंह का रहा था.
ये वही ओकराम इबोबी सिंह हैं, जिनके साथ रहकर बीरेन सिंह न केवल राजनीति के दांव-पेंच सीखे, बल्कि मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचने के लिए अपने नेता और पार्टी दोनों से बग़ावत भी की.
बीरेन सिंह के बारे में कहा जाता है कि फ़ुटबॉल और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका जो प्रदर्शन रहा, वही जज्बा उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले गया.
मैतेई समुदाय से आने वाले बीरेन सिंह ने मणिपुर विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री लेने के बाद पत्रकारिता में डिप्लोमा भी कर रखा है.
इंफाल ईस्ट ज़िले के लुवांगसांगबाम ममांग लइकै गाँव में 1 जनवरी 1961 को जन्मे बीरेन सिंह राजनीति में आने से पहले देश के बाहर खेलने वाले मणिपुर के एकमात्र चर्चित फुटबाल खिलाड़ी थे.
लेफ़्ट बैक पोजिशन से खेलने वाले बीरेन सिंह का डिफ़ेंस कमाल का था. यही कारण रहा कि साल 1981 में डूरंड कप जीतने वाली सीमा सुरक्षा बल टीम के वे सदस्य थे.
बाद में उन्होंने बतौर संपादक नाहोरोलगी थुआदंग नामक एक अख़बार में काम करना शुरू किया. उस समय मणिपुर में सरकार और चरमपंथी संगठनों के दबाव के बीच युवाओं की भूमिका पर बतौर पत्रकार काम करना आसान नहीं हुआ करता था.
बीरेन सिंह को तत्कालीन मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह का सबसे ख़ास माना जाता था.
साल 2002 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद इबोबी सिंह के सामने एक स्थिर सरकार चलाने की चुनौतियाँ थी.
कैसे पहुंचे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक
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मणिपुर को 1972 में राज्य का दर्जा मिलने के बाद से ही राजनीतिक उथल-पुथल के कारण वहाँ 18 बार सरकारें बदली जा चुकी थी.
ऐसे दौर में इबोबी को एक ऐसी टीम की ज़रूरत थी जो उनकी गठबंधन वाली सरकार का कार्यकाल पूरा करा सके और उनकी यह तलाश 2003 में बीरेन सिंह के रूप में ख़त्म हुई.
इबोबी ने बीरेन सिंह को कांग्रेस में शामिल कर लिया और उन्हें अपने मंत्रिमंडल में जगह दी.
इस तरह वे इबोबी सरकार में पहली बार सतर्कता विभाग में राज्य मंत्री बने.
बीरेन सिंह 2002 में राजनीति में आ गए थे. मणिपुर के लोगों के बीच एक फ़ुटबॉल खिलाड़ी और बाद में एक पत्रकार के तौर पर वे काफ़ी चर्चित थे, जिसका फ़ायदा उन्हें राजनीति में प्रवेश करते समय मिला.
उन्होंने डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपुल्स पार्टी की तरफ से विधानसभा चुनाव लड़ा और पहली बार में ही हिंगांग सीट से जीत हासिल की थी.
लेकिन इबोबी ने अपने तीसरे कार्यकाल के समय बीरेन से दूरियाँ बना ली थी.
बीरेन सिंह को कांग्रेस में एक ऐसे नेता के रूप में देखा जाने लगा, जो किसी भी समय इबोबी से उनकी सत्ता छीन सकते हैं.
उस दौर में इबोबी के कामकाज पर सवाल उठाने वाले कांग्रेस में वह इकलौते नेता थे.
बाद में दोनों के बीच मतभेद बढ़ने लगा, तो पार्टी ने बीरेन सिंह को शांत करने के लिए मणिपुर कांग्रेस का उपाध्यक्ष बना दिया.
लेकिन इबोबी सिंह के साथ उनका टकराव कम नहीं हुआ. जब साल 2012 में इबोबी सिंह ने तीसरी बार प्रदेश में सरकार बनाई, तो बीरेन सिंह को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया.
साल 2016 में पहले असम और बाद में अरुणाचल प्रदेश में सरकार बनाने के बाद बीजेपी की नजर मणिपुर पर थी.
पार्टी को मणिपुर में एक ऐसे नेता की तलाश थी, जो इबोबी सिंह को मात दे सके.
बीजेपी की नज़र में मणिपुर में बीरेन सिंह ही ऐसे नेता थे, जो इबोबी की सियासी चालों को बेहतर जानते थे.
अक्तूबर 2016 में बीजेपी बीरेन सिंह को अपनी पार्टी में शामिल करने में कामयाब हो गई. बाद में साल 2017 में वो पहली बार सीएम बने.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित