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”अगर ईरान के तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया, तो स्ट्रेट ऑफ़ होर्मुज़ से एक बूंद तेल भी नहीं गुज़र पाएगा.”
चेतावनी भरा ये संदेश ईरान के तत्कालीन उपराष्ट्रपति जनरल मोहम्मद रज़ा रहीमी ने साल 2011 में अमेरिका और यूरोपीय संघ को दिया था.
इसी साल (2011) दिसंबर के महीने में अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर कड़े आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की थी. जिनमें सबसे प्रमुख ईरान के तेल निर्यात पर रोक लगाना था.
ईरान के नेताओं ने इन प्रतिबंधों का विरोध करते हुए होर्मुज़ स्ट्रेट जलडमरूमध्य यानी स्ट्रेट बंद करने की चेतावनी दी थी. लेकिन मामला धीरे-धीरे शांत हो गया और होर्मुज़ को बंद नहीं किया गया.
गुज़रे सालों में यह इकलौता ऐसा मौक़ा नहीं था जब ईरान ने होर्मुज़ को बंद करने की चेतावनी दी. समय-समय पर ईरान इसे दोहराता गया, पर बात कभी भी उसके आगे तक नहीं पहुंची.
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एक बार फिर दुनिया के प्रमुख समुद्री मार्गों में एक कहे जाने वाले होर्मुज़ स्ट्रेट पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
ईरान के सरकारी टीवी ने बताया है कि ईरान की संसद ने होर्मुज़ स्ट्रेट को बंद करने की योजना को मंज़ूरी दे दी है.
जिसके बाद अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने चीन से अपील की है कि वो ईरान को होर्मुज़ स्ट्रेट बंद करने से रोके.
वैसे ईरान की संसद का फ़ैसला इस मामले में तब तक पूरी तरह मान्य नहीं होगा, जब तक कि देश की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल भी इस पर अपनी मुहर न लगा दे.
इसके बावजूद अभी से सवाल उठने लगे हैं कि अगर ईरान होर्मुज़ को बंद कर देता है, तो भारत समेत पूरी दुनिया पर इसका क्या असर होगा? भारत के तेल और गैस की आपूर्ति के लिए होर्मुज़ कितना अहम है और भारत की इस मार्ग पर कितनी निर्भरता है?
होर्मुज़ स्ट्रेट क्या है और क्यों अहम है?
दुनिया में तेल और गैस की आपूर्ति के लिए जिन प्रमुख समुद्री रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें होर्मुज़ स्ट्रेट एक है.
होर्मुज़ स्ट्रेट मध्य पूर्व के तेल भंडार वाले देशों को एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका समेत दुनिया के अन्य हिस्सों से जोड़ता है.
फ़ारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच मौजूद होर्मुज़ स्ट्रेट, ईरान और ओमान की समुद्री सीमा के बीच आता है. यह एक संकरा जल मार्ग है, जो एक जगह तो केवल 33 किलोमीटर ही चौड़ा है.
सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, क़ुवैत और ईरान जैसे देशों से निर्यात होने वाला कच्चा तेल इसी स्ट्रेट से होकर अन्य देशों तक पहुंचता है.
इसके अलावा, दुनिया में सबसे अधिक लिक्विफ़ाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) निर्यात करने वाला देश क़तर भी निर्यात के लिए इसी रास्ते पर निर्भर है.
अमेरिका की ऊर्जा सूचना एजेंसी (ईआईए) के एक अनुमान के मुताबिक़, साल 2023 की पहली छमाही में होर्मुज़ स्ट्रेट से हर दिन लगभग दो करोड़ बैरल तेल गुज़रा. जिसका सीधा मतलब है कि इस एक मार्ग से सालाना तक़रीबन 600 अरब डॉलर की क़ीमत वाले तेल और गैस का व्यापार होता है.
दुनिया की कुल तेल आपूर्ति का लगभग पांचवां हिस्सा इसी रास्ते से होकर गुज़रता है.
बंद हुआ तो क्या होगा असर?
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होर्मुज़ स्ट्रेट के बंद होने की आशंका मात्र से अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में तेल की क़ीमतें आसमान छूने लगती हैं.
ऐसे में अगर यह रास्ता वाकई बंद हुआ तो अंतरराष्ट्रीय तेल आपूर्ति का लगभग 20 फ़ीसदी हिस्सा प्रभावित हो सकता है. जिसका सीधा-सीधा मतलब है तेल की कीमतों और महंगाई में बेतहाशा इज़ाफ़ा.
दुनिया की कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जैसे चीन, भारत और जापान इससे ख़ासा प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि ये देश कच्चे तेल के आयात के लिए मुख्य रूप से इसी मार्ग पर निर्भर हैं.
होर्मुज़ स्ट्रेट पर भारत की कितनी निर्भरता
भारत अपनी ज़रूरत का 85 फ़ीसदी कच्चा तेल और 50 प्रतिशत से ज़्यादा गैस दूसरे देशों से आयात करता है.
वहीं तेल के अपने कुल आयात का 60 प्रतिशत हिस्सा भारत – सऊदी अरब, इराक़ और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों से पूरा करता है.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉनफ्लिक्ट रिजॉल्यूशन की फ़ैकल्टी मेंबर प्रोफ़ेसर रेशमी काज़ी बताती हैं कि ‘भारत हर दिन तक़रीबन पचास लाख से ज़्यादा बैरल कच्चा तेल आयात करता है. जिसमें तक़रीबन बीस लाख बैरल होर्मुज़ स्ट्रीट से गुज़रता है.’
उनके मुताबिक़, ”सऊदी अरब, इराक़ जैसे खाड़ी देशों से आयात होने वाला कच्चा तेल होर्मुज़ स्ट्रेट के ज़रिए ही भारत पहुंचता है. भारत की अर्थव्यवस्था के निरंतर विकास के लिए तेल बहुत अहम है इसलिए होर्मुज़ स्ट्रेट का चालू रहना ज़रूरी है.”
हालांकि, जब ये ख़बर आई कि ईरान की संसद ने होर्मुज़ स्ट्रेट को बंद करने का फ़ैसला किया है तो भारत के केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर कहा कि इसका भारत पर ज़्यादा असर नहीं होगा.
उन्होंने कहा, ”हम बीते दो हफ़्ते से मध्य पूर्व में बदल रहे भू-राजनीतिक हालात पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमने बीते कुछ साल में अपनी तेल आपूर्ति में विविधता लाई है और अब हमारी आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा होर्मुज़ स्ट्रेट से होकर नहीं आता.”
“हमारी ऑयल डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के पास इस हफ़्ते की तेल आपूर्ति है और उन्हें दूसरे मार्गों से लाया जा रहा है.”
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क्या होगा असर?
रेशमी काज़ी कहती हैं कि होर्मुज़ स्ट्रेट का ब्लॉक होना भारत के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा.
उनके मुताबिक़, ”होर्मुज़ स्ट्रेट भारत के लिए एक बहुत ही किफ़ायती मार्ग है. ऐसे में अगर ये ब्लॉक होता है तो भारत के आयात शुल्क में बड़ा इज़ाफ़ा होगा क्योंकि आप फिर किसी दूसरे रूट का इस्तेमाल करेंगे, जिससे शिपिंग कॉस्ट बढ़ेगी.”
”इन सब का प्रभाव कच्चे तेल के घरेलू दामों पर पड़ेगा. पेट्रोल डीज़ल जैसे उत्पाद महंगे होंगे. खाड़ी के देश, जिनकी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा तेल निर्यात पर निर्भर है, उन्हें भी व्यापार करने में दिक्कत आएगी.”
हालांकि, सऊदी अरब-लाल सागर, यूएई-फ़ुज़ैरा रूट और ओमान-सीधे हिंद महासागर के तट से जुड़े हैं इसलिए निर्यात के लिए ये देश इन विकल्पों को चुन सकते हैं.
लेकिन क़ुवैत, बहरीन और क़तर के पास होर्मुज़ के अलावा निर्यात का कोई दूसरा रास्ता नहीं है. यहां तक कि ईरान और इराक़ के पास भी सीधे तौर पर कोई दूसरा सहज मार्ग मौजूद नहीं है.
तलमीज़ अहमद सऊदी अरब में भारत के राजदूत रहे हैं. वो साल 2004-06 के बीच भारत के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए अतिरिक्त सचिव भी चुने गए थे.
बीबीसी ने उनसे पूछा कि बीते सालों में भारत के तेल आयात में क्या वो इतनी विविधता देख पाते हैं, जिससे होर्मुज़ स्ट्रेट के बंद होने का कोई ख़ास असर भारत पर न पड़े?
जवाब में वो कहते हैं, ”भारत अभी भी खाड़ी के देशों पर निर्भर है और आगे भी खाड़ी के देशों पर निर्भर रहेगा. खाड़ी के देश हमारे नज़दीक हैं. शिपिंग की दरें सस्ती हैं. भारत की रिफ़ाइनरी खाड़ी के देशों से आयात होने वाले तेल की आदी है और हमारे इन देशों से लॉन्ग-टर्म सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट हैं.”
“जहां तक विविधता की बात है, तो जब भी हमें मौका मिला है हमने नाइजीरिया, रूस जैसे देशों से तेल आयात किया. लेकिन बड़ी तादाद में आयात लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट के तहत होते हैं. ”
हालांकि वो यह तथ्य भी रेखांकित करते हैं कि बीते सालों में खाड़ी देशों के साथ लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट को कम किया गया है.
उन्होंने कहा, ”जैसे हम पहले 80 से 90 प्रतिशत टर्म कॉन्ट्रैक्ट का इस्तेमाल करते थे, आजकल मेरी जानकारी में ये 60-70 प्रतिशत हो गया है. पर अभी भी दूसरे देशों से ऊर्जा उत्पाद ख़रीदने की गुंजाइश 30 प्रतिशत की ही है.”
भारत के पास क्या हैं विकल्प?
भारत सरकार ने अपने तेल आयात को ज़्यादा से ज़्यादा डायवर्सिफ़ाई करने का लक्ष्य रखा है.
लेकिन इसके बावजूद भारत ने बीते कुछ सालों में खाड़ी के इतर जिन देशों से तेल आया किया है, उनमें रूस, नाइजीरिया, गुयाना, अमेरिका शामिल हैं.
रिलायंस कंपनी वेनेज़ुएला से भी तेल का आयात करती है. लेकिन इन सभी देशों से तेल आयात करने में दूरी के कारण ख़र्च बढ़ जाता है.
होर्मुज़ स्ट्रेट के अलावा जिन समुद्री मार्गों का इस्तेमाल भारत प्रमुखता से करता है, उनमें लाल सागर, स्वेज़ नहर और हिंद महासागर शामिल हैं.
क्या ईरान वाक़ई बंद करेगा होर्मुज़ स्ट्रेट?
जैसा कि हमने शुरुआत में बताया था कि पहले भी ऐसे कई मौके़ आते रहे हैं जब ईरान ने होर्मुज़ बंद करने की धमकी या चेतावनी दी है, पर कभी किया नहीं.
हमने तलमीज़ अहमद से आख़िर में यही जानना चाहा कि वो इस बार होर्मुज़ स्ट्रेट के बंद होने पर क्या सोचते हैं?
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जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसा संभव नहीं है.
उनके मुताबिक़, होर्मुज़ स्ट्रेट के क्षेत्र में अमेरिका की शक्तिशाली नेवी और अमेरिकन एयरफ़ोर्स की अच्छी खासी मौजूदगी है, वो होर्मुज़ को बंद नहीं होने देंगे.
“दूसरा ये कि ईरान को इससे कोई फ़ायदा भी नहीं होगा. ईरान वैसे भी अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों के कड़े प्रतिबंधों का सामना कर रहा है.”
”तेल के निर्यात के लिए ईरान खुद होर्मुज़ का इस्तेमाल करता है. खाड़ी के कई देश, जिनसे ईरान के अच्छे संबंध हैं, वो भी इस रूट का प्रयोग करते हैं. इस स्थिति में ईरान अपने मित्र देशों को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकता.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित