एक साल पहले तस्वीरें दिल दहलाने वाली थीं.
इसराइल अभी भी अपने इतिहास के सबसे बुरे हमले से उबर रहा है और ग़ज़ा पहले से ही विनाशकारी बमबारी की चपेट में है. ऐसे में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ जैसा लग रहा है.
इसराइल-फ़लस्तीन संघर्ष, जो कई सालों से हमारे सामने से ग़ायब था, वह एकाएक फिर सामने आ चुका है.
ऐसा लग रहा था कि इस घटना ने लगभग सभी को चौंका दिया है. हमले से ठीक एक हफ़्ते पहले अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा था, “पिछले दो दशकों की तुलना में वर्तमान में मध्य पूर्व क्षेत्र अधिक शांत है.”
एक साल से यह क्षेत्र संघर्ष की वजह से जल रहा है.
41 हज़ार से ज़्यादा फ़लस्तीनियों की मौत हो चुकी है. ग़ज़ा के करीब बीस लाख लोग अपना घर छोड़कर दूसरी जगह पर आश्रय ले चुके हैं.
वेस्ट बैंक में अन्य छह सौ लोग मारे गए हैं. वहीं लेबनान में भी दस लाख लोग विस्थापित हुए हैं और दो हज़ार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है.
संघर्ष के पहले दिन 1200 से ज़्यादा इसराइली नागरिक मारे गए थे. तब से लेकर अब तक ग़ज़ा में इसराइल ने अपने 350 सैनिकों को गंवा दिया है.
ग़ज़ा के नज़दीक और लेबनान सीमा से सटे इलाकों में रहने वाले दो लाख इसराइली लोगों को अपने घरों को छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा है. हिज़्बुल्लाह के रॉकेट हमलों में करीब 50 सैनिकों और नागरिकों की मौत हुई है.
मध्य पूर्व क्षेत्र के दूसरे देश भी इस लड़ाई में शामिल हो गए हैं. इस संघर्ष को बढ़ने से रोकने के लिए अमेरिका के सभी प्रयास विफल साबित हुए हैं. इनमें राष्ट्रपति के कई दौरे, अनगिनत राजनयिक मिशन और विशाल सैन्य संसाधनों की तैनाती जैसे प्रयास शामिल हैं.
इराक और यमन में दूर-दूर से कई रॉकेट दागे जा चुके हैं. और दुश्मन देश ईरान और इसराइल ने भी एक-दूसरे पर हमले किए हैं. आगे भी ऐसा होना तय माना जा रहा है.
अमेरिका कभी भी इतना कम प्रभावशाली नहीं दिखा है.
जैसे-जैसे यह संघर्ष बढ़ता गया, इसकी उत्पत्ति आंखों से ओझल होती गई.
इसराइली लोगों की क्या है राय?
सात अक्तूबर से पहले और बाद में ग़ज़ा के निवासियों के जीवन के बारे में लगभग भुला दिया गया है. क्योंकि मीडिया मध्य पूर्व क्षेत्र में “खुले युद्ध” का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है.
जिन इसराइली लोगों का जीवन इस संघर्ष की शुरुआत में उलट-पुलट हो गया था, उनमें से कुछ अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.
इस संघर्ष में बंधक बने निम्रोड कोहेन के पिता येहुदा कोहेन ने पिछले सप्ताह इसराइल के कैन न्यूज से कहा, “हमें किनारे कर दिया गया है.”
वो कहते हैं कि वो इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू को “बिना किसी मतलब के युद्ध के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं. इस युद्ध ने सभी संभावित दुश्मनों को हमारे ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया है.”
कोहेन कहते हैं, “वो सात अक्तूबर की घटना को एक छोटी घटना में बदलने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं और इसमें उन्हें बड़ी सफलता भी मिल रही है.”
हालांकि, सभी इसराइली लोगों की राय कोहेन की तरह नहीं है. एक साल पहले हुए हमास के हमले को कई लोग इसराइल के दुश्मनों द्वारा यहूदी राज्य को नष्ट करने के व्यापक अभियान की शुरूआत के रूप में देखते हैं.
नेतन्याहू के बयान से क्या संकेत मिलते हैं?
यह तथ्य है कि इसराइल ने पेजर विस्फोट, लक्षित हत्याएं, लंबी दूरी की बमबारी और ख़ुफ़िया अभियानों के माध्यम से जवाबी हमला किया है.
इन हमलों ने देश में वह आत्मविश्वास वापस ला दिया है, जो उसने एक साल पहले खो दिया था. इसराइल अपने अभियानों पर लंबे समय से गर्व करता रहा है.
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने पिछले हफ़्ते आत्मविश्वास के साथ कहा था, “मध्य पूर्व क्षेत्र में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां इसराइल नहीं पहुंच सकता है.”
सात अक्तूबर के बाद से प्रधानमंत्री नेतन्याहू की पोल रेटिंग कई महीनों तक सबसे निचले स्तर पर रही. अब उन्हें लग रहा है कि यह फिर से ऊपर आ रही है. शायद यह और अधिक बड़े और साहसिक कदम उठाने का लाइसेंस है?
लेकिन यह सब किस ओर जा रहा है?
ईरान में ब्रिटेन के पूर्व राजदूत साइमन गास ने गुरुवार को बीबीसी के पॉडकास्ट में कहा, “हममें से किसी को नहीं पता कि यह संघर्ष कब बंद होगा और उस समय हर कोई कहां होगा.”
अमेरिकी सेंट्रल कमांड (सेंटकॉम) के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला की इसराइल यात्रा भले ही कूटनीतिक रास्ते तलाशने की बजाय इस संकट को संभालने की तरह देखी जा रही हो, लेकिन अमेरिका अभी भी इसमें शामिल है.
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए अब केवल एक महीने का समय बचा है और मध्य पूर्व पहले से कहीं ज़्यादा राजनीतिक रूप से विषाक्त हो चुका है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि अमेरिका कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकता.
फिलहाल वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष को रोकना है.
अमेरिका के सहयोगियों के बीच यह आम धारणा है कि पिछले हफ़्ते ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल हमले का जवाब देने का अधिकार इसराइल को है, यहां तक कि यह उसका कर्तव्य भी है.
इन हमलों में कोई भी इसराइली नागरिक नहीं मारा गया. ऐसा माना गया कि ईरान का लक्ष्य इसराइली सेना और ख़ुफ़िया ठिकानों पर हमला करना था. लेकिन फिर भी नेतन्याहू ने जवाबी कार्रवाई का वादा किया है.
कब समाप्त होगा यह संघर्ष?
कई हफ़्तों तक चली आश्चर्यजनक नीतिगत सफलता के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इसराइल के प्रधानमंत्री के मन में बड़ी महत्वाकांक्षाएं हैं.
ईरान के लोगों को सीधे संबोधित करते हुए उन्होंने संकेत दिया कि तेहरान में सरकार बदलने वाली है.
उन्होंने कहा, “जब ईरान आख़िरकार आज़ाद हो जाएगा और यह समय लोगों की सोच से कहीं ज़्यादा जल्दी आएगा. तब सबकुछ अलग होगा.”
कुछ पर्यवेक्षकों की नज़र में नेतन्याहू की बयानबाज़ी में साल 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर हुए हमले से पहले अमेरिकी नव-रूढ़िवादियों ने जो कदम उठाए थे, यह उसकी असहज झलक थी.
लेकिन इस समय सभी ख़तरों के बावजूद नाजुक स्थिति बनी हुई है.
ईरान सरकार इसराइल के बिना एक दुनिया का सपना देख सकती है, लेकिन उसे यह पता है कि वह इस इलाके की एकमात्र महाशक्ति का मुकाबला करने के लिए बहुत कमज़ोर है. ख़ासकर ऐसे समय में जब ईरान के कथित प्रॉक्सी हिज़्बुल्लाह और हमास कुचले जा रहे हैं.
और इसराइल, जो ईरान के ख़तरे से छुटकारा पाना चाहता है वह भी यह जानता है कि अपनी हालिया सफलताओं के बावजूद वह अकेले ऐसा नहीं कर सकता है.
सरकार बदलने का एजेंडा न तो जो बाइडन के एजेंडे में शामिल है और न ही उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के एजेंडे में.
जहां तक डोनाल्ड ट्रंप की बात है, जून 2019 में ईरान द्वारा अमेरिका के निगरानी ड्रोन को मार गिराने के बाद वो ईरान पर हमला करने के लिए तैयार लग रहे थे. लेकिन वो आख़िरी समय में पीछे हट गए थे.
हालांकि उन्होंने इस घटना के सात महीने बाद एक शीर्ष ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का आदेश दिया था.
एक साल पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मध्य पूर्व क्षेत्र दशकों में अपने सबसे ख़तरनाक दौर की ओर बढ़ रहा है.
लेकिन इसके पीछे के दृश्य को देखा जाए तो पिछले एक साल में एक भयानक तर्क का पालन किया गया है.
वर्तमान में सड़कों पर मलबा बिखरा हुआ है और घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. इस बीच नीति निर्माता और हममें से कई लोग तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
ग़ज़ा में जारी संघर्ष का दूसरा साल शुरू हो चुका है. “आने वाले दिनों” की सभी चर्चाएं बंद हो गई हैं, जिनमें संघर्ष के समाप्त होने पर ग़ज़ा के पुनर्वास और शासन को लेकर बातचीत होती थी. या कहें कि ये चर्चाएं व्यापक युद्ध के शोर में गुम हो गई हैं.
इसी तरह फ़लस्तीनियों के साथ इसराइल के संघर्ष के समाधान की सार्थक चर्चाएं भी बंद हो गई हैं.
वह समय जब इसराइल को लगेगा कि उसने हमास और हिज़्बुल्लाह को पर्याप्त नुकसान पहुंचा दिया है और अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हो चुके होंगे तब शायद इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए कूटनीति को एक और मौका मिल सकता है.
इसराइल और ईरान दोनों ने कहा है कि वो इस क्षेत्र को और गहरे संकट में नहीं डालेंगे.
लेकिन अभी तो ऐसा लग रहा है यह सब बहुत दूर की बात है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित