मध्य प्रदेश के धार ज़िले के पीथमपुर स्थित तारपुरा गांव की सुबह अभी ठीक से शुरू भी नहीं हुई है.
60 वर्षीय शिवनारायण दसाना अपने घर के सामने से गुजरते पुलिसकर्मियों की ओर देखते हैं और लंबी सांस लेते हुए कहते हैं, “सरकार को लगता है कि हम हिंसा करेंगे, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है.”
वह कहते हैं, “हमें डर है कि अगर पीथमपुर में भोपाल के यूनियन कार्बाइड का कचरा जला, तो हमारे बच्चों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा. आज नहीं तो कल पीथमपुर, भोपाल बन जाएगा.”
मध्य प्रदेश के पीथमपुर का औद्योगिक क्षेत्र ऑटोमोबाइल, दवा, डिटर्जेंट और रासायनिक कंपनियों का घर है.
स्थानीय औद्योगिक क्षेत्र के प्रदूषण के बीच जीवन जीने वाले इस शहर के कई लोगों ने मांग की है कि यूनियन कार्बाइड के कचरे का निपटान उनके क्षेत्र में नहीं किया जाना चाहिए.
भोपाल में क्या हुआ था?
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तीन दिसंबर 1984 की सुबह, अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के स्वामित्व वाली एक कीटनाशक फ़ैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक हुई थी, जिसकी वजह से लाखों लोग ज़हरीली गैस की चपेट में आ गए थे.
यह घटना दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक आपदाओं में से एक मानी जाती है.
सरकारी आँकड़ों में गैस रिसाव से 5,000 लोगों की मौत का दावा किया जाता है, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय लोग ये संख्या 10 हज़ार तक मानते हैं.
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2004 में भोपाल निवासी आलोक प्रताप सिंह की एक याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को 1984 की भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को चार सप्ताह के भीतर निपटाने का आदेश दिया था.
हादसे के करीब 40 साल बाद, 1 जनवरी 2025 को, इस स्थल से 337 मीट्रिक टन कचरा पीथमपुर में ट्रीटमेंट, स्टोरेज और डिस्पोजल फैसिलिटी (टीएसडीएफ) में भेजा गया.
यह ज़हरीला कचरा 3 जनवरी को रात के अंधेरे में और भारी पुलिस सुरक्षा के बीच, 230 किलोमीटर की यात्रा पूरी करके “ग्रीन कॉरिडोर” के ज़रिए पीथमपुर पहुंचा.
इस फर्म का स्वामित्व री सस्टेनेबिलिटी के पास है, जो एक निजी निपटान (डिस्पोजल) फर्म है, जिसे पहले रामकी एनवायरो इंजीनियर्स के नाम से जाना जाता था.
सरकार कर रही है समझाने का प्रयास
भोपाल गैस त्रासदी स्थल से आने वाले ज़हरीले कचरे के पीथमपुर में निपटान के ख़िलाफ़ 3 जनवरी 2025 को हुआ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया था.
राज्य पुलिस के अनुसार, इस मामले में हिंसक प्रदर्शनों के बाद लगभग 100 अज्ञात व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कुल 7 मामले दर्ज किए गए हैं.
विरोध के बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट से लोगों को समझाने और उन्हें विश्वास में लेकर कचरे को नष्ट करने के लिए समय मांगा था.
इस मामले पर बीबीसी से धार ज़िलाधिकारी प्रियांक मिश्रा कहते हैं कि प्रशासन कई स्तरों पर जनता को समझाने और कचरा निष्पादन से जुड़े भ्रमों को दूर करने का प्रयास कर रहा है.
प्रियांक ने बताया, “हमने कचरा निष्पादन पर नागरिकों से उनके मन में उठ रहे सवाल लिए हैं और उनके जवाब बहुत ही साधारण भाषा में तैयार किए हैं.”
“इसके अलावा हमने 100 मास्टर ट्रेनर्स तैयार किए हैं, जिन्हें कचरा निष्पादन की पूरी प्रक्रिया समझाई गई है, इसका वैज्ञानिक पहलू समझाया गया है.”
“ये लोग मुख्य तौर पर विज्ञान से जुड़े लोग हैं, जैसे कि शिक्षक या प्रोफेसर.”
प्रशासन आख़िर किन लोगों के बीच पहुंच रहा है?
इसके जवाब में प्रियांक मिश्रा कहते हैं, “लोगों के बीच से भ्रम दूर करने के लिए शासन-प्रशासन की टीमें मजदूर वर्ग, फैक्ट्री में बने समूहों से भी अलग-अलग सत्रों में बात कर रही हैं. इस दौरान उनकी शंकाएं, उनके सवालों का जवाब दिया जा रहा है.”
प्रशासन को विश्वास है कि यही लोग शंकाओं के दूर होने के बाद अन्य लोगों के बीच भी इस भ्रम को ख़त्म करने में मददगार होंगे.
औद्योगिक प्रदूषण और अविश्वास का इतिहास
हालांकि, पीथमपुर के लोगों में भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से लाए गए कचरे के ख़िलाफ़ अभी भी डर है.
लोगों का कहना है कि पीथमपुर में औद्योगिक प्रदूषण के इतिहास, कथित तौर पर खराब होता भूजल, और लोगों को हो रही बीमारियों के कारण उनके मन में अनिश्चितता घर कर गई है.
स्थानीय लोगों ने प्रशासन द्वारा बहुत कड़ी सुरक्षा में यूनियन कार्बाइड के कचरे को पीथमपुर लाने और स्थानीय लोगों से विरोध के बाद सम्पर्क साधने को भी डर का कारण बताया.
शिवनारायण, जिनका घर इस रामकी फैक्ट्री की बाउंड्री से बमुश्किल 400 मीटर दूरी पर स्थित है, उन्हें डर है कि अगर कचरे को जलाया गया तो उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ेगा.
शिवनारायण के घर के पास ही गायत्री तिवारी का घर है. मूलतः मध्य प्रदेश के सिवनी से आने वाली गायत्री शादी के बाद तारपुरा गांव आ गई थी.
पांच बच्चों की मां गायत्री तिवारी दिहाड़ी सफाई कर्मचारी का काम करती हैं.
गांववालों के मन में फैले डर को साझा करते हुए गायत्री कहती हैं, “भइया चाहे जान चली जाए, ये कचरा यहां नहीं जलने देंगे. आखिर ऐसी जिंदगी का क्या फायदा होगा, जिसमें साफ़ हवा और साफ़ पानी न मिले.”
“आने वाली पीढ़ियां अपंग पैदा होंगी. क्या इन सरकारों ने देखा नहीं है कि इस ज़हर ने भोपाल में कितने लाख लोगों को बर्बाद कर दिया है. अब यही बर्बादी हमारी किस्मत में लिखी जा रही है.”
तारपुरा गांव में ज्यादातर रहवासी गांव के पास मौजूद एक कुएं का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि कैसे औद्योगीकरण और फैक्ट्रियों ने उनके पानी के स्वच्छ स्रोतों को नष्ट कर दिया है.
इस कुएं को लोहे की मोटी जालीनुमा चादर से ढक दिया गया है और अब तारपुरा के लोग ज़िला प्रशासन द्वारा नियमित सप्लाई किए जा रहे पानी पर आश्रित हैं.
कचरा निष्पादन फैक्ट्री के दूसरे किनारे पर बसे चिराखान गांव के पंकज पटेल कहते हैं कि, बचपन से लेकर अब तक उन्होंने अपने गांव की आबोहवा को साल दर साल खराब होते देखा है.
पंकज दावा करते हैं, “अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि घरों में लगे पानी फिल्टर को हर दो महीने में बदलना पड़ता है. यहां पेयजल की गुणवत्ता बहुत ख़राब हो चुकी है.”
“ज़मीन के नीचे से निकाले जाने वाले पानी से नहाने पर शरीर में तरह-तरह के चर्मरोग और पथरी जैसी बीमारियां गांव में आम हो चली हैं”.
‘पीथमपुर को बना रहे हैं भोपाल जैसा ज़हरीला’
तीन जनवरी के विरोध प्रदर्शन में आमरण अनशन पर बैठने वाले सामाजिक कार्यकर्ता 28 साल के संदीप रघुवंशी कहते हैं, “हमें सरकार पर विश्वास नहीं है कि वह बिना पीथमपुर को ख़तरे में डाले यह कचरा निष्पादित कर सकती है.”
“अगर यह कचरा इतना ही सुरक्षित है तो फिर इसे इतनी भारी सुरक्षा के बीच रातों रात ग्रीन कॉरिडोर बनाकर यहां क्यों लाया गया?”
संदीप आरोप लगाते हैं, “सरकार बस कचरे को जलाने के नाम पर वाहवाही लूटना चाहती है. वो इस बात को अनदेखा कर रही है कि अगर यहां कचरा जलाया गया, तो पीथमपुर में भोपाल गैस त्रासदी जैसे हालात बन जाएंगे.”
इस विरोध प्रदर्शन में पीथमपुर के राज रघुवंशी और राजकुमार रघुवंशी ने आत्मदाह की भी कोशिश की थी, जिसके बाद दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
आसुखेड़ी निवासी राजकुमार रघुवंशी के घर पर उनके 93 साल के पिता बांकेलाल रघुवंशी कहते हैं कि उन्हें उनके बेटे की कोशिश पर नाज़ है.
कचरा जलाने के ख़िलाफ़ मुहिम में शामिल पीथमपुर बचाओ समिति के अध्यक्ष हेमंत हिरोले ने बीबीसी से कहा, “हम इस कचरे के बिना भी ज़हरीली सांस ले रहे हैं, ज़हरीला पानी पीने को मजबूर हैं.”
“कचरा निष्पादन फैक्ट्री ने कचरे को निष्पादन के बाद ज़मीन में गाड़ा जिससे कि जहरीले तत्व कुछ सालों में ही आसपास के भूजल को विषाक्त बना चुके हैं.”
हिरोले आरोप लगाते हैं, “कचरा फैक्ट्री के आस-पास के गांवों में लोगों को कैंसर, त्वचा की बीमारी आदि होने लगी है.”
“हमारे यहां अब फसलें नहीं होती, जो होती भी हैं उनमें बहुत सारा कीटनाशक और खाद डालना पड़ता है.”
“पहले से ही ज़हर में जी रहे लोगों को भोपाल से लाए ज़हर में धकेल देना गलत है. और इसके ख़िलाफ़ हम आवाज़ दबने नहीं देंगे, चाहे वो न्यायालय में हो या फिर सड़कों पर”.
वर्ष 2010 में, राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) और राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) द्वारा भोपाल संयंत्र के आसपास के क्षेत्र का अंतिम विस्तृत मूल्यांकन किया गया था, जिसमें पता चला था कि अनुमानतः 11 लाख टन मिट्टी दूषित हो चुकी थी और उसे ट्रीट करने की आवश्यकता थी.
इसने राज्य सरकार से अनुमानित 1,500 मीट्रिक टन जंग खा चुके संयंत्र को शुद्ध करने, बंद करने और नष्ट करने तथा पारा रिसाव और भूमिगत डंप से प्रभावित क्षेत्रों के उपचार के लिए एक योजना तैयार करने को भी कहा.
भोपाल ग्रुप ऑफ इनफार्मेशन एंड एक्शन संस्था के माध्यम से गैस पीड़ितों के साथ काम करने वाली रचना ढींगरा कहती हैं, “सरकार पीथमपुर में धीरे-धीरे भोपाल जैसे हालात निर्मित करने पर तुली हुई है.”
“इसके अलावा जितने शोर-शराबे के साथ सरकार एक जगह इकट्ठा किए गए कचरे को पीथमपुर पहुंचा रही है, वह भोपाल गैस त्रासदी के बाद प्रदूषित हो चुके फैक्ट्री के इलाक़े और आस-पास के कालोनियों में विषाक्त भूजल के माध्यम से फैल चुके ज़हर को छिपाने का प्रयास है”.
उन्होंने आरोप लगाया कि जिस संयंत्र में सरकार इस ज़हरीले कचरे के निष्पादन की बात कह रही है वह संयंत्र पहले से ही पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन कर रहा है.
उन्होंने कहा, “पीथमपुर स्थित यह संयंत्र गांव से सटा हुआ है, जबकि इसे आबादी से कम से कम 500 मीटर दूर होना चाहिए. इतने नज़दीक होने के कारण वहां के रहवासी दूषित जल का इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसे संयंत्र और सरकार पर लोग कैसे भरोसा करेंगे?”
इस मामले पर जब हमने स्वतंत्र कुमार सिंह से पूछा तो उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट में विचाराधीन मामले में साल 1984 की घटना के बाद के कुछ दिनों में जो कचरा इकट्ठा करके फ़ैक्ट्री के एक हिस्से में रखा गया था, उस पर ही आदेश दिया गया था और सिर्फ़ उसी कचरे को जलाने के लिए पीथमपुर भेजा गया है.
उन्होंने बताया, “पीथमपुर भेजे गए कचरे में 60 फ़ीसदी धूल है जो कि टॉक्सिक वेस्ट से लैस थी और 40 फ़ीसदी फ़ैक्ट्री से निकला रासायनिक कचरा है.”
“ये जो 337 मीट्रिक टन का कचरा था, ये पूरी फ़ैक्ट्री से नहीं इकट्ठा किया गया है. घटना के बाद ही जो भी केमिकल्स थे, उनको इकट्ठा करके फ़ैक्ट्री के अंदर ही एक शेड में रखा गया था.”
रचना का कहना है कि सरकार को पहले सभी मापदंडों को सही करके और लोगों को विश्वास में लेकर काम करना चाहिए था.
भोपाल में ऐसे ही विषाक्त कचरे और उसमें मौजूद जहरीले पदार्थों के भूजल में मिल जाने से 42 से ज़्यादा बस्तियों के लोग प्रभावित हैं.
ऐसी ही एक बस्ती बृज विहार कॉलोनी के रहवासी भगवती प्रसाद पांडे कहते हैं, “1984 के भयावह दृश्यों वाली फैक्ट्री से मात्र 500 मीटर दूर हम लोग आज भी साफ़ पानी को तरस रहे हैं.”
“इस फैक्ट्री के आसपास लाखों टन कचरा अभी भी विषाक्त है और साल दर साल भूजल को और विषाक्त कर रहा है.”
“सरकार हमें इस से छुटकारा नहीं दिला पा रही है, तो पीथमपुर में लोगों को समझा पाएगी यह मुश्किल लगता है?
क्या जायज़ है पीथमपुर वासियों का डर?
भोपाल से पर्यावरणविद सुभाष सी पांडेय कहते हैं, “पीथमपुर में जनता के बीच डर फैल गया है.”
“हालांकि, भोपाल से गए इस ज़हरीले कचरे के निष्पादन के लिए पीथमपुर का संयंत्र उपयुक्त है और लोगों को डरने की जरूरत नहीं है”.
जब बीबीसी ने जानना चाहा कि पीथमपुर के स्थानीय निवासियों को हो रही पानी की समस्याओं का कारण क्या है तो सुभाष कहते हैं, “पीथमपुर में पिछले 25 साल से तेजी से औद्योगीकरण हुआ है.”
“वहां की फैक्ट्रियों में बहुत सारे केमिकल पदार्थ इस्तेमाल किए जाते हैं. वहां मौजूद बहुत सी फैक्ट्रियों ने उत्पादन पश्चात पैदा हुए कचरे के सही निष्पादन पर ध्यान नहीं दिया.”
“बल्कि पैसा बचाने के लिए उन्होंने गलत रास्ते का सहारा लिया और कचरे को वहीं की जमीन के नीचे दफना दिया. जिसके कारण ये समस्याएं वहां के लोग झेल रहे हैं.”
सुभाष कहते हैं कि, “अब क्योंकि पहले से ही लोग दूषित भूजल से पीड़ित हो गए हैं, इसलिए भी भोपाल से गए कचरे के प्रति डर बढ़ा हुआ है.”
“हालांकि, इस कचरे के निष्पादन से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए बशर्ते निष्पादन प्रक्रिया में कोई ढील या लापरवाही न बर जाए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.