मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क में पिछले कुछ दिनों के भीतर 10 हाथियों की मौत के कारणों को लेकर अब भी असमंजस बना हुआ है.
वन विभाग के शुरुआती निष्कर्ष के मुताबिक़, कोदो फसल में फंगस लगने की वजह से ज़हर पैदा होता है और इसे खाने से हाथियों की मौत हुई है.
बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व के डिप्टी डायरेक्टर पीके वर्मा ने बताया है, “अभी हम पूरी जांच रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहे हैं ताकि पता चल सके कि मौत का क्या कारण है. ऐसा दिख रहा है कि हाथियों ने कोदो खाया था और उसने इनके लिए ज़हर का काम कर दिया.”
इस घटना पर विपक्ष ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए इसे वन विभाग की लापरवाही का नतीजा बताया है. वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का कहना है कि दोषियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी.
तीन दिन में हुई 10 हाथियों की मौत
वन विभाग के मुताबिक, सबसे पहले 29 अक्टूबर को विभाग की टीम को 4 हाथी मृत अवस्था में मिले थे, जबकि 6 अन्य हाथी गंभीर रूप से बीमार थे. बीमार हाथियों का इलाज चल रहा था, लेकिन अगले ही दिन मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर के कारण चार और हाथियों की मौत हो गई, और 31 अक्टूबर को बाकी के दो हाथियों ने दम तोड़ दिया.
ये सभी हाथी 13 हाथियों के झुंड का हिस्सा थे. बचे हुए तीन हाथी स्वस्थ हैं और उन पर नज़र रखी जा रही है.
देश में एक साथ 10 हाथियों की मौत का ये अपनी तरह का पहला मामला है. ऐसे में राज्य से लेकर केंद्र स्तर तक इसकी गहन जांच-पड़ताल चल रही है.
इस समय बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में स्पेशल टास्क फोर्स, वाइल्डलाइफ़ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के डॉक्टर और विशेषज्ञ इन हाथियों की मौत के कारणों का पता लगाने में जुटे हैं.
जबलपुर के स्कूल ऑफ वाइल्डलाइफ़ फॉरेंसिक एंड हेल्थ के डॉक्टरों ने हाथियों का पोस्टमार्टम किया है, और विस्तृत रिपोर्ट का इंतज़ार किया जा रहा है. बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व के डिप्टी डायरेक्टर पीके वर्मा का कहना है, “इस रिपोर्ट को आने में दो-तीन दिन का समय लग सकता है. हालांकि, इसके लिए आमतौर पर अधिक समय लगता है, लेकिन कोशिश है कि ये जल्द से जल्द आ जाए.”
इस बीच शनिवार को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एक जांच टीम का गठन किया है.
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय के वाइल्ड लाइफ़ कंट्रोल ब्यूरो ने इस टीम का गठन किया है, जो स्वतंत्र जांच करेगी.
कोदो ही असली वजह या कुछ और?
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वाइल्डलाइफ़) वीएन अम्बार्ड ने पत्रकारों को शुरुआती जानकारी देते हुए बताया कि “पोस्टमार्टम के दौरान मृत हाथियों के पेट में मिले कोदो फसल (मिलेट्स) के दाने मौत का कारण हो सकते हैं. इससे पहले भी मध्य प्रदेश में दूषित मिलेट्स के कारण वन्य जीवों की मौत की छुटपुट घटनाएं हुई हैं.”
अधिकारियों का कहना है कि आईवीआरआई बरेली, डब्ल्यूआईआई देहरादून, स्टेट फॉरेंसिक साइंस लैब सागर सहित अन्य विशेषज्ञ संस्थानों के साथ बातचीत जारी है, और कोदो के ज़हरीले होने की भी जांच की जा रही है. इस बीच, वन विभाग ने इस क्षेत्र में फैली कोदो की फसल को नष्ट करना शुरू कर दिया है. विभाग ने कहा है कि फसल को दो दिनों में नष्ट कराया जाएगा और प्रभावित किसानों को मुआवज़ा दिया जाएगा.
इसके अलावा, घटना वाली जगह के 5 किलोमीटर के दायरे में जांच की जा रही है. पानी के स्रोतों की भी जांच की जा रही है कि कहीं पानी में कोई विषैला पदार्थ तो नहीं है. पूरे मामले की जांच के लिए स्टेट टाइगर स्ट्राइक फ़ोर्स, वाइल्डलाइफ़ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो और प्रदेश के वन मंत्री रामनिवास रावत ने पांच सदस्यीय एसआईटी का गठन किया है.
वहीं, स्टेट वाइल्डलाइफ़ बोर्ड के मेंबर संतोष शुक्ला ने भी इन मौतों पर हैरानी जताई है. उन्होंने कहा, “इस तरह एक साथ 10 हाथियों की मौत का मामला पहले कभी नहीं आया है. इसकी जांच होनी चाहिए क्योंकि अब तक ये स्पष्ट नहीं हुआ है कि मौत का कारण क्या है.”
संतोष शुक्ला ने ये भी कहा कि इस मामले में शिकारियों की संलिप्तता की जांच भी होनी चाहिए.
मध्य प्रदेश के वाइल्डलाइफ़ एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि कोदो परंपरागत रूप से हाथियों के भोजन में शामिल रहा है, इसलिए इससे मौत की संभावना कम है.
उन्होंने कहा, “अगर आप हाथियों के विचरण वाले इलाकों को देखेंगे, तो ज्यादातर में आदिवासी इलाकों में उगाया गया कोदो-कुटकी देखा जा सकता है. हाथी छत्तीसगढ़ से लेकर मध्य प्रदेश और झारखंड तक कोदो-कुटकी खाते हैं, इसलिए कोदो खाने से 10 हाथियों की मौत का सरकारी दावा कमज़ोर लगता है. ये मामला काफी उलझा हुआ है और इस पर उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए.”
बांधवगढ़ नेशनल पार्क और इंसान-वन्यजीव संघर्ष
मध्य प्रदेश के उमरिया ज़िले में 1536 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला बांधवगढ़ नेशनल पार्क बाघों की उच्च घनत्व वाली आबादी के लिए दुनियाभर में मशहूर है. वर्ष 2018-19 में, लगभग 40 जंगली हाथियों का एक दल ओडिशा और छत्तीसगढ़ के रास्ते यहां आ पहुंचा था. वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में मध्य प्रदेश में करीब 150 हाथी हैं, जिनमें से लगभग 70 हाथी बांधवगढ़ नेशनल पार्क में रहते हैं.
ये क्षेत्र इंसान और वन्यजीवों के बीच संघर्ष के लिए भी जाना जाता है. यहां हाथियों के साथ-साथ बाघ और भालू के कारण भी संघर्ष के कई मामले सामने आए हैं. शनिवार को ही एक जंगली हाथी ने तीन लोगों को कुचल दिया, जिसमें दो की मौत हो गई.
संतोष शुक्ला का मानना है कि इंसानों और जानवरों की बढ़ती आबादी और इसके प्रबंधन में कमी इस तरह के संघर्ष का कारण बन रहे हैं. वाइल्डलाइफ़ एक्टिविस्ट अजय दुबे कहते हैं, “आज हाथियों ने दो लोगों को मारा है. अब इसको लेकर लोग भी हिंसक होंगे. जो बांधवगढ़ में फ़ील्ड के अधिकारी हैं, उन्हें मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन की जानकारी नहीं है. ये उसी का नतीजा है जो हम देख रहे हैं.”
दुबे आगे कहते हैं, “ये भारत के लिए भी चिंता का विषय है क्योंकि देश वाइल्डलाइफ को रोज़गार का बड़ा सेक्टर मानता है. इस तरह की घटनाओं से न केवल पर्यटन प्रभावित होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हमारी छवि पर नकारात्मक असर पड़ेगा और इससे शिकारियों व तस्करों को बढ़ावा मिलेगा.”
पक्ष-विपक्ष ने क्या-क्या कहा?
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अधिकारियों की एक आपात बैठक बुलाई और निर्देश दिया कि घटना की सभी पहलुओं की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय दल तुरंत घटनास्थल पर भेजा जाए. मुख्यमंत्री ने कहा, “इस घटना में दोषी लोगों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी.”
वहीं, विपक्ष ने भी सरकार पर तीखे हमले किए हैं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश और राज्य के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सरकार की आलोचना करते हुए इसे वन विभाग की लापरवाही का परिणाम बताया है.
जयराम रमेश ने 30 अक्टूबर को सोशल मीडिया पर लिखा, “मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में 7 हाथियों की मौत और 2 या 3 की हालत गंभीर होने की ख़बर बेहद चौंकाने वाली है. इससे बांधवगढ़ में एक ही झटके में हाथियों की आबादी 10% कम हो गई है. इसकी तुरंत पूरी जांच होनी चाहिए और सुरक्षात्मक उपाय किए जाने चाहिए.”
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा, “दीपावली की पूर्व संध्या पर भगवान गणेश के प्रतीक दस हाथियों की बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में मौत होना बेहद दुखद घटना है. हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, पर मध्य प्रदेश सरकार हाथियों का संरक्षण नहीं कर सकी. इस घटना के पीछे चाहे जो भी कारण हो, सबसे बड़ी लापरवाही वन विभाग की है, जिसने छत्तीसगढ़ और कर्नाटक से विस्थापित होकर आए हाथियों का उचित इंतज़ाम नहीं किया.”
बीबीसी संवाददाता विष्णुकांत तिवारी की अतिरिक्त रिपोर्टिंग के साथ
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित