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- Author, शुरैह नियाज़ी
- पदनाम, भोपाल से बीबीसी हिंदी के लिए
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मध्य प्रदेश में मतदाता सूची का स्पेशल इंटेसिव रिवीज़न (एसआईआर) अभियान बूथ-स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) के लिए मुश्किल का सबब बन गया है.
प्रदेश भर में इस अभियान के शुरू होने के बाद अब तक अलग-अलग ज़िलों में कम से कम सात बीएलओ की मौत हो चुकी है.
इसके अलावा कई बीएलओ बीमार पड़ गए हैं और एक लापता है.
परिजनों का आरोप है कि इन मौतों के पीछे काम का अत्यधिक दबाव, देर रात तक ड्यूटी और टारगेट पूरा न करने की धमकियां हैं.
राज्य के रायसेन, दमोह, बालाघाट, कटनी और सीधी ज़िलों में बीते दिनों में सात बीएलओ की मौत हो चुकी है.
‘दबाव ने ले ली जान’
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रायसेन में मण्डीदीप क्षेत्र में तैनात शिक्षक रमाकांत पांडे शुक्रवार देर रात बीमार पड़ गए.
उनकी पत्नी रेखा ने बताया, “वह इस काम के शुरू होने के बाद से ही लगातार दबाव महसूस कर रहे थे. वह काम की वजह से चार रात सो भी नहीं पाए और उन्हें यह डर सता रहा था कि अगर वह टारगेट पूरा नहीं कर पाएंगे तो उन्हें सस्पेंड किया जा सकता है.”
उन्होंने बताया, “उन्हें लगातार ऑनलाइन मीटिंग और फ़ोन के ज़रिए टारगेट पूरा करने के निर्देश मिल रहे थे.”
परिवार के मुताबिक़, गुरुवार रात करीब 9:30 बजे एक ऑनलाइन मीटिंग के बाद वह बाथरूम में जाते ही गिर पड़े. उन्हें पहले भोपाल के हॉस्पिटल ले जाया गया, फिर एम्स भोपाल में ट्रांसफ़र किया गया, जहां उनकी मौत हो गई.
उनके क़रीबी लोगों का आरोप है कि जो दबाव उन पर बनाया गया था, उसी ने उनकी जान ले ली. लेकिन अधिकारी इसे एसआईआर से जुड़ा हुआ नहीं मान रहे.
भोपाल ज़िले की भोजपुर विधानसभा सीट के उप-अनुविभागीय अधिकारी चंद्रशेखर श्रीवास्तव ने उनकी मौत के बाद समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, “रमाकांत पांडे, जो सतलापुर क्षेत्र के शिक्षक थे, मंडीदीप में मतदाता सूची संशोधन अभियान पर काम कर रहे थे. शुक्रवार देर रात बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई.”
चार बीएलओ की मौत, एक लापता
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इसी तरह से दमोह ज़िले के रांजरा गांव में तैनात पचास साल के शिक्षक सीताराम गोंड भी गुरुवार शाम फॉर्म भरते समय अचानक बीमार पड़ गए. उन्हें स्थानीय अस्पताल से जबलपुर रेफ़र किया गया, लेकिन रात में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.
सीताराम के चाचा चंद्रभान सिंह के अनुसार, “जब वह काम करके घर लौटे थे, उसी समय उनकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. देर रात उनकी हालत ख़राब हो गई, जिसके बाद सुबह उन्हें ज़िला अस्पताल ले जाया गया. यहां से उन्हें जबलपुर रेफ़र किया गया. जबलपुर में उनकी स्थिति और बिगड़ गई और उन्होंने वहीं दम तोड़ दिया.”
उनके क़रीबियों ने बताया कि उनके पास 1300 से ज़्यादा मतदाताओं का काम था और वह अपने लक्ष्य से बहुत पीछे चल रहे थे. उनका आरोप है कि उन पर बहुत ज़्यादा दबाव था.
इससे पहले 6 नवंबर को दमोह में एक सड़क हादसे में श्याम शर्मा नाम के बीएलओ की मौत हो गई थी. उसके बाद 11 नवंबर को दतिया में उदयभान सिहारे नाम के बीएलओ ने आत्महत्या कर ली थी.
मंगलवार को बालाघाट की बीएलओ अनिता नागेश्वर की तबीयत ख़राब हुई और नागपुर में अस्पताल में उनकी मौत हो गई.
कटनी के गोपालपुर के रोज़गार सहायक रूपेंद्र सिंह ने फांसी लगाकर जान दे दी. परिजनों का आरोप है की उन पर एसआईआर का दबाव था.
वहीं सीधी ज़िले की आंगनबाड़ी कार्यक्रता वीणा मिश्रा की हार्ट अटैक से मौत हो गई. उनके परिवार का भी आरोप है कि बीमारी के दौरान उन पर काम करने का दबाव बनाया गया.
भोपाल में भी दो बीएलओ को पिछले हफ्ते हार्ट अटैक के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है. इसके अतिरिक्त रायसेन में एक बीएलओ नारायण सोनी पिछले सात दिनों से लापता हैं.
राज्य में अभी तक ‘सात बीएलओ की मौत’ की जानकारी सामने आई है.
हालांकि दुर्घटना में मारे गए और आत्महत्या करने वाले बीएलओ और लापता बीएलओ के एसआईआर अभियान से किसी तरह के संबंध की अब तक कोई जानकारी सामने नहीं आई है.
प्रशासन का कहना है कि मृत्यु की सही वजह के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मेडिकल रिकॉर्ड का इंतज़ार है.
प्रशासन ने यह भी कहा है कि आश्रितों को नियम के अनुसार आर्थिक मदद और अनुकंपा नियुक्ति दी जाएगी.
(आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है. अगर आप भी तनाव से गुजर रहे हैं तो भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 से मदद ले सकते हैं. आपको अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए.)
‘काम और अधिकारियों का दबाव’

इस काम में बीएलओ को घर-घर जाकर फॉर्म वितरित करने, डिजिटल डेटा अपलोड करने, पुरानी मतदाता सूची में त्रुटि सुधारने जैसे काम सौंपे गए हैं.
राज्य के फॉर्म वितरण लक्ष्य को लेकर सूचना मिली है कि कई जगह तकनीकी दिक्कतें, नेटवर्क की समस्या और देर रात तक कार्य करना सामान्य बात हो गई है.
कई बीएलओ के परिजनों का आरोप है कि इस अभियान में कार्यभार ज़्यादा है और विश्राम का समय कम, जिससे स्वास्थ्य पर असर हुआ है.
दमोह के कलेक्टर सुधीर कोचर ने पत्रकारों से कहा है कि कर्मचारी अपनी सेहत का ध्यान रखें, उन पर कोई ऐसा दबाव नहीं दिया जा रहा है कि स्वास्थ्य ख़तरे में आए.
उन्होंने कहा, “मैं लगातार सभी बीएलओ से बात कर रहा हूं.”
वहीं कई बीएलओ का दावा है कि काम ज़्यादा है और इसके लिए उन्हें उतना समय नहीं मिल रहा है. कई-कई बार घरों पर जाने के बावजूद कई जगहों पर मतदाता नहीं मिल रहे हैं.
कई बीएलओ का यह भी कहना है कि एप भी आसानी से नहीं चल रहा है. इसके बाद ऊपर वाले अधिकारियों का लगातार दबाव मुश्किल पैदा कर रहा है.
‘प्रशासनिक नहीं अमानवीय व्यवहार’
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इसे लेकर अब विपक्ष भी मुखर हो गया है. पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में बीएलओ की मौतों को लोकतंत्र के लिए गंभीर चेतावनी बताया है.
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, ” ये घटनाएं केवल संयोग नहीं बल्कि उस असहनीय दबाव का परिणाम हैं जिसमें हज़ारों सरकारी कर्मचारी बिना नींद, बिना संसाधनों और लगातार धमकियों के बीच काम करने को मजबूर हैं.”
कमलनाथ ने आगे कहा, “चुनाव आयोग ने 12 दिनों में 100% कार्य पूरा कराने का लक्ष्य दिया, जबकि ज़मीन पर इसकी व्यवहारिकता बिल्कुल नहीं है. बीएलओ सुबह से रात तक घर-घर फ़ॉर्म भर रहे हैं और अधिकारी लगातार नोटिस, कार्रवाई और सस्पेंशन का डर दिखा रहे हैं. यह व्यवहार प्रशासनिक नहीं बल्कि अमानवीय है.”
कमलनाथ ने कहा, “लोकतंत्र में आयोग को सत्ता और विपक्ष दोनों की बातें बराबरी से सुननी चाहिए. लेकिन आज हालात ये हैं कि विपक्ष की शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं और सत्ता की बातों पर तुरंत कार्रवाई होती है. यह असंतुलन लोकतंत्र की आत्मा के ख़िलाफ़ है.”
कांग्रेस ने मांग की है कि इस काम के लिए कम से कम 15 दिन का और समय दिया जाए. कांग्रेस नेता जेपी धनोपिया ने कहा, “चुनाव आयोग को चाहिए कि वह हर बूथ पर स्पेशल कैंप लगाए ताकि बीएलओ और मतदाताओं को समय मिल सके और जल्दबाज़ी की ज़रूरत न पड़े.”
‘सुविधा के बजाय सिरदर्द’

चुनाव आयोग का कहना है कि एसआईआर की प्रक्रिया मतदाता सूची में मौजूद त्रुटियों को हटाने, नई एंट्री यानी प्रविष्टियों को शामिल करने और मृत या स्थानांतरित व्यक्तियों के नाम हटाने के लिए आवश्यक है.
यह अभियान इन दिनों मध्य प्रदेश में भी ज़िला और बूथ स्तर पर चलाया जा रहा है. इसके लिए बूथ लेवल ऑफिसर, निर्वाचन रजिस्ट्रीकरण अधिकारी और स्थानीय प्रशासन साथ मिलकर सर्वे तथा सत्यापन कर रहे हैं.
अधिकारी घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी दर्ज कर रहे हैं और ज़रूरत पड़ने पर उनके पहचान, आयु और निवास प्रमाण की जांच की जा रही है. मतदाता चाहें तो ऑनलाइन भी अपने विवरण में सुधार करा सकते हैं या नया आवेदन भर सकते हैं.
इस अभियान को लेकर हो रहे विवाद पर राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर मनोज कुमार का कहना है, “यह अभियान एक तरह से सुविधा के बजाय सिरदर्द साबित हो रहा है. इसमें कुछ भी स्पष्ट नहीं है और मतदाता के साथ बीएलओ भी परेशान हो रहे हैं. बेहतर होगा कि इसे ऑनलाइन ज़्यादा प्रमोट किया जाए और मतदाता केंद्रों पर फॉर्म ऑफ़लाइन और ऑनलाइन भरने की व्यवस्था हो ताकि समय बचे और तनाव से मुक्ति मिले.”
उनका कहना है कि अभी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में समय है तो इसका समय भी बढ़ाया जाना चाहिए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.