प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह की उस आख़िरी प्रेस वार्ता का हवाला अक्सर दिया जाता है, जिसमें उनसे पत्रकारों ने कड़े से कड़े सवाल पूछे थे.
जो पीएम मोदी पर निशाना साधते हैं, वो भी इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस का उल्लेख करते हैं कि मोदी ने प्रधानमंत्री रहते हुए कोई प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं की.
मनमोहन सिंह ने एक बार अपने बारे में कहा था, “लोग मुझे ‘एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ कहते हैं, लेकिन मैं ‘एक्सिडेंटल वित्त मंत्री’ भी था.”
प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह की अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस तीन जनवरी 2014 को हुई थी, जो एक घंटे से ज़्यादा समय तक चली थी.
उस दौरान कई चुनावों में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. इन चुनावों में दिल्ली के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार काफ़ी अहम थी, जहां अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में एक आंदोलन हुआ था और निशाने पर केंद्र सरकार थी.
मनमोहन सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत में ही देश के सामने आर्थिक चुनौतियों और वैश्विक आर्थिक मंदी की चर्चा की. देश में बढ़ती महंगाई को भी मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में स्वीकार किया था.
नज़र डालते हैं, प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह की अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस पर, जिनमें उन्हें कई मुश्किल सवालों का सामना करना पड़ा.
सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर सवाल
मनमोहन सिंह से पूछा गया, “यूपीए-1 से यूपीए-2 तक लगातार एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मुद्दे सामने आए हैं, आपकी मिस्टर क्लीन की जो छवि थी आपको नहीं लगता है कि जब आप कुर्सी छोड़ने वाले हैं, तो वो छवि दागदार हुई है?”
इस सवाल के जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा, “जहाँ तक भ्रष्टाचार के आरोपों का सवाल है तो इनमें से ज़्यादातर आरोप यूपीए-1 से जुड़े हैं. कोल ब्लॉक आवंटन, 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन दोनों ही यूपीए-1 के दौर के हैं. हम अपने काम के आधार पर वोटर के सामने गए और भारत की जनता ने हमें दोबारा जनादेश दिया.”
“ये मुद्दे समय-समय पर मीडिया, सीएजी और कोर्ट में उठता रहा है लेकिन भारत की जनता ने हम पर दोबारा भरोसा जताया और भ्रष्टाचार के आरोपों को मुझसे या मेरी पार्टी से नहीं जोड़ा.”
भ्रष्टाचार मुद्दे पर उनसे फिर सवाल पूछा गया, “क्या आपको नहीं लगता है कि यूपीए-1 के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण आपकी सरकार को बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी?
मनमोहन सिंह ने कहा, “मैं इस मामले में थोड़ा दुःखी महसूस करता हूं क्योंकि मैंने ही इस बात पर ज़ोर दिया था कि स्पेक्ट्रम आवंटन पारदर्शी और निष्पक्ष हो. मैं ही था जिसने ज़ोर देकर कहा था कि कोल ब्लॉक का आवंटन नीलामी के आधार पर हो, लेकिन इन तथ्यों को भूला दिया गया. इस मामले में विपक्ष का अपना स्वार्थ निहित था. कुछ मौक़ों पर मीडिया उनके हाथ का खिलौना भी बन गया.”
“इसलिए मेरे पास इसकी हर वजह है कि जब भी इस समय का इतिहास लिखा जाएगा, हम बेदाग़ बाहर आएंगे. इसका मतलब यह नहीं है कि कोई अनियमितता नहीं हुई लेकिन इस समस्या की दिशा को मीडिया, कुछ मौक़ों पर सीएजी और अन्य लोगों ने बढ़ा चढ़ाकर पेश किया.”
यह वो दौर था, जब केंद्र सरकार पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे थे. विपक्षी दल कॉमनवेल्थ गेम्स- 2010, कोल ब्लॉक आवंटन और 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे थे. केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई पर भी सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी की थी.
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उनके कई मंत्रियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. इसी पर उनसे एक सवाल किया गया कि अपने मंत्रियों पर कार्रवाई करने में नाकाम रहे हैं?
मनमोहन सिंह ने कहा, “मैं मानता हूँ कि इतिहास मेरे प्रति आज के मीडिया के मुक़ाबले ज़्यादा उदार होगा.”
कम बोलने पर सवाल
मनमोहन सिंह से एक पत्रकार ने सवाल किया, “पिछले नौ-दस साल में क्या कभी ऐसा वक़्त आया जब आपको लगा कि इस्तीफ़ा दे देना चाहिए?”
इसके जवाब में उन्होंने कहा था, “मैंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया कि मुझे इस्तीफ़ा दे देना चाहिए. मैंने अपने काम का खूब आनंद लिया. मैंने बिना किसी डर या पक्षपात के अपने काम को पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ करने की कोशिश की.”
मनमोहन सिंह को आमतौर पर काम बोलने वाले लोगों में शुमार किया जाता था.
उनसे इस मामले में भी सवाल किया गया कि पिछले दस साल में आप पर सबसे ज़्यादा चुप रहने का आरोप लगा है, ऐसी कोई कमी लगती है कि आपको वहां बोलना था और आप नहीं बोल सके?
उन्होंने इसके जवाब में कहा, “जहां तक बोलने का सवाल है, जब भी ज़रूरत पड़ी है, पार्टी फोरम में मैं बोला हूं और आगे भी बोलता रहूंगा.”
मनमोहन सिंह जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो लोग उन्हें एक ग़ैर राजनीतिक, साफ छवि वाला अर्थशास्त्री के तौर पर देख रहे थे. उनसे पूछा गया कि आगे लोग उन्हें किस रूप में देखें?
उनका कहना था, “मैं जैसे पहले था, वैसा ही आज भी हूँ. इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. मैंने पूरे समर्पण और ईमानदारी के साथ देश की सेवा करने की कोशिश की है. मैंने कभी अपने दफ़्तर का इस्तेमाल अपने मित्रों और रिश्तेदारों के फ़ायदे के लिए नहीं किया.
मनमोहन सिंह सरकार पर विपक्ष का यह आरोप भी होता था कि वो सोनिया गांधी या राहुल गांधी के इशारे पर चलती है.
इस सवाल पर मनमोहन सिंह ने कहा, “इसमें कोई नुक़सान नहीं है. पार्टी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को लगता है कि उनका कोई नज़रिया सरकार की सोच में झलकना चाहिए तो इसमें कोई बुराई नहीं है. सोनिया गांधी या राहुल गांधी सरकार की मदद के लिए ही हैं, अगर उन्हें लगता है कि सरकार में यह सुधार होना चाहिए.
छवि से जुड़े सवाल
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मनमोहन सिंह से सवाल किया गया कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी (उस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री) आप पर कमज़ोर प्रधानमंत्री होने का आरोप लगाते हैं, तो उन्होंने कहा था कि वोृ नहीं मानते कि वो एक कमज़ोर प्रधानमंत्री हैं.
उनका कहना था, “यह फ़ैसला इतिहास को करना है. बीजेपी और इसके सहयोगी को जो बोलना चाहते हैं, वो बोल सकते हैं. अगर आपके मज़बूत प्रधानमंत्री बनने का मतलब अहमदाबाद की सड़कों पर निर्दोष नागरिकों का क़त्ल है, तो मैं नहीं मानता कि देश को ऐसे मज़बूत प्रधानमंत्री की ज़रूरत है.”
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में आरटीआई, मनरेगा, ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और अन्य कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण काम हुए थे. हालांकि इस दौरान आर्थिक मंदी, महंगाई और भ्रष्टाचार के आरोपों जैसी वजहों से भी उनकी सरकार परेशान रही थी.
उनका कहना था, “दुनिया भर में आर्थिक संकट, यूरो ज़ोन के संकट और दुनिया के अन्य देशों में मौजूद संकट को देखते हुए, मैं मानता हूं कि मैंने विकास के कार्यों के लिए अच्छा काम किया, जिसे हमने पिछले दस साल से बरक़रार रखा है. मुझे नहीं लगता है कि हमारा कार्यकाल असफल कार्यकाल के तौर पर देखा जाएगा.”
प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे यह सवाल भी किया गया कि वो साफ़ छवि के साथ आए थे लेकिन दस साल के बाद इस छवि को कैसे देखते हैं? दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार कांग्रेस के कथित भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ही आई है.
मनमोहन सिंह ने इसके जवाब में कहा था, “लोगों ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताया है. मुझे लगता है कि हमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए. समय ही इस बात का जवाब देगा कि इस तरह के प्रयोग क्या आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं.”
इससे जुड़े एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था, “भ्रष्टाचार एक मुद्दा है और निश्चित तौर पर ‘आप’ पार्टी इस मुद्दे पर सफल रही है लेकिन भ्रष्टाचार को ख़त्म करने में सफल होंगे या नहीं समय इसका जवाब देगा. मुझे लगता है कि भ्रष्टाचार ने निपटना कोई आसान काम नहीं है. हमें सामूहिक रूप से इसके लिए काम करना होगा. यह काम एक पार्टी नहीं कर सकती है.
उस दौरान कई राज्यों में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार हुई थी और उनसे सवाल किया गया कि हर कोई कहता है कि मनमोहन सिंह सरकार की नकारात्मक छवि की वजह से कांग्रेस पार्टी की करारी हार हो रही है?
मनमोहन सिंह ने सीधे अपनी सरकार की छवि पर लगे आरोपों पर कहा, “यह मेरा नज़रिया नहीं है और अगर आपको लगता है कि ऐसे लोग हैं जो यह मानते हैं, तो मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता. यह फ़ैसला इतिहासकारों को करना है कि मैंने क्या किया और क्या नहीं किया.”
“जहाँ तक मेरा सवाल है तो जिन परिस्थितियों और आर्थिक मंदी के हालात में मैंने काम किया है, मैंने बेहतर काम किया है. हमने अपने नौ साल के शासनकाल में भारत की आज़ादी के बाद सबसे ज़्यादा विकास दर को बनाए रखा.”
सबसे अच्छा वक़्त कौन सा रहा?
मनमोहन सिंह ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले ही घोषणा कर दी थी कि वह कांग्रेस या यूपीए की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद का चेहरा नहीं होगे. ऐसे में उनसे अपने कार्यकाल का सबसे बेहतरीन और सबसे बुरा वक़्त बारे में भी पूछा गया.
मनमोहन सिंह ने कहा कि उन्हें इसे याद करने के लिए के लिए समय चाहिए होगा. हालांकि उन्होंने अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते को अपनी सरकार की एक बड़ी उपलब्धी के तौर पर गिनाया था.
अमेरिका से परमाणु समझौता करने के मुद्दे पर मनमोहन सिंह की यूपीए-1 की सरकार भी ख़तरे में आ गई थी, जब वाम दलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था.
मनमोहन सिंह भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री थे और उनसे साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे और पीड़ितों के इंसाफ से जुड़े सवाल भी किए गए.
उन्होंने कहा था, “हमारी सरकार ने इस मामले पर बहुत कुछ किया है और मैंने संसद में अपनी सरकार और देश की तरफ़ से सिख समुदाय से सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगी थी. कोई किसी की ज़िदगी के बदले कोई मुआवज़ा नहीं दे सकता लेकिन जहां तक संभव हुआ, हमने पीड़ित परिवारों को मदद दी है.
मनमोहन सिंह से पूछा गया कि क्यो आपको अपने कार्यकाल में किसी बात का पछतावा होता है? तो उन्होंने कहा था, “मैंने इस बारे में बहुत कुछ नहीं सोचा है, लेकिन मैं स्वास्थ्य के क्षेत्र में, महिलाओं, बच्चों के स्वास्थ्य के मामले में बहुत कुछ करना चाहता हूँ. हमने जो ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की थी उसके अच्छे नतीजे मिले हैं, लेकिन इस मामले में बहुत कुछ करने की ज़रूरत है.”
मनमोहन सिंह से पूछा गया था कि “आपके बारे में कहा जाता है कि आप एक ओवररेटेड अर्थशास्त्री और अंडर रेटेड राजनीतिज्ञ हैं, इस पर आप क्या कहेंगे?”
उन्होंने कहा, “आप या देश मेरे बारे में क्या सोचते हैं, यह ऐसी बात है, जिसकी मैं कल्पना नहीं कर सकता. मैं जब प्रधानमंत्री बना था तो यह एक सामान्य अवधारणा थी कि कांग्रेस ने कभी गठबंधन की सरकार नहीं चलाई है. लेकिन कांग्रेस ने दो कार्यकाल के लिए गठबंधन की सरकार चलाने में कामयाबी हासिल की.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.