वित्त मंत्री के कार्यकाल में बढ़ी जीडीपी
वित्त मंत्री के रूप में सिंह के कार्यकाल में GDP ग्रोथ करीब 5% तक ही जा सकी, लेकिन उनके पीएम कार्यकाल में 2010-11 में GDP ग्रोथ 10.03% के साथ अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर गई। उनके 10 साल के कार्यकाल में औसत ग्रोथ 7.7% रही, जिसका असर रोजी-रोजगार के मौके बढ़ने और करीब 28 करोड़ लोगों के गरीबी रेखा से ऊपर आने में दिखा। वित्त मंत्री और फिर प्रधानमंत्री के रूप में सिंह ने जो फैसले किए, उनका इसमें बड़ा योगदान रहा।
रुपये का अवमूल्यन
1991 में सिंह ने बतौर वित्त मंत्री पहली और तीसरी जुलाई को दो चरणों में रुपये का बड़ा अवमूल्यन किया। यह कदम विदेश में भारत के निर्यात को सस्ता बनाने के लिए उठाया गया। उन्होंने इंपोर्ट टैरिफ घटाने के साथ विदेशी व्यापार पर बंदिशें भी कम कीं।
लाइसेंस राज का खात्मा
अपना पहला बजट पेश करते हुए सिंह ने जो औद्योगिक नीति बनाई, उससे तमाम कामकाज के लिए उद्योगों काो सरकारी मंजूरी की जरूरत खत्म हो गई। सार्वजनिक क्षेत्र के लिए एक तरह से आरक्षित रहे सेक्टरों की संख्या एक बार में ही 17 से घटाकर 8 पर ला दी गई। इससे औद्योगिक रफ्तार बढ़ी और रोजगार के ज्यादा मौकों की राह बनी।
बैंकिंग-फाइनैंशल सेक्टर में सुधार
मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहने के दौरान बैंकों के लिए नई शाखाएं खोलने से जुड़ी शर्तें आसान की गईं, इंटरेस्ट रेट को डीरेगुलेट किया गया और जरूरी आर्थिक वृद्धि के लिए बैंक ज्यादा लोन दे सकें, इसके लिए कैश रिजर्व रेशियो और वैधानिक तरलता अनुपात में बड़ी कमी की गई।
मनरेगा
सिंह के पीएम कार्यकाल में लोगों के जीवन पर बड़ा असर डालने वाला एक फैसला महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को 2005 में लागू करने का रहा। इसने गरीब तबके के लोगों को सम्मान के साथ कमाई करने का मौका दिया। मनरेगा ने गरीबी घटाने के साथ गांवों में सामंती जकड़न को ढीला करने में भी बड़ी भूमिका निभाई। अर्थव्यवस्था के सबसे निचले हिस्से को सहारा देने में आज भी यह योजना उपयोगी साबित हो रही है।
राइट टु इन्फर्मेशन
सूचना का अधिकार कानून की राह भी 2005 में बनाई गई, जिससे नागरिकों को सरकारी कामकाज से जुड़ी जानकारी हासिल करने की शक्ति मिली।
राइट टु एजुकेशन
नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देने वाला कानून बना। इससे निर्धन परिवारों के 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए सुविधासंपन्न स्कूलों में पहुंचने की राह बनी और आर्थिक मजबूरी में बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की दर भी घटी।
खाद्य सुरक्षा कानून
2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू किया गया। पीडीएस, मिड डे मील स्कीम अैर इंटीग्रेटेड चाइल्ड डिवेलपमेंट सर्विसेज स्कीम के जरिए देश के अति निर्धन आबादी के लिए सब्सिडाइज्ड अनाज मुहैया कराने के लिए यह कदम उठाया गया।
आधार
सिंह के कार्यकाल में ही यूनीक आइडेंटिटी के रूप में आधार कार्ड का प्रोजेक्ट शुरू हुआ। आज जिस डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के जरिए तमाम सरकारी कल्याण योजनाओं का पैसा लाभार्थियों के पास पहुंचता है, उसकी बैकबोन आधार प्रोजेक्ट ही है।
फॉरेस्ट राइट्स ऐक्ट
2006 में शेड्यूल्ड ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ड्वेलर्स (रिकग्निशन ऑफ फॉरेस्ट राइट्स) एक्ट पास हुआ। इसमें वन क्षेत्र में रहने वाले समुदायों के अधिकारों को मान्यता दी गई।
भूमि अधिग्रहण कानून
भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में पास कराया गया। इसने 1894 के कानून की जगह ली। इससे अधिग्रहण के समय लोगों को उनकी जमीन के बदले शहरी इलाकों में बाजार से दोगुनी और ग्रामीण इलाकों में चार गुनी कीमत की व्यवस्था बनी। साथ ही, जोर-जबरदस्ती के बजाय कम से कम 70% प्रभावित परिवारों की सहमति से ही अधिग्रहण होने का नियम बना।
कई सवाल भी उठे
पीएम के रूप में सिंह का दूसरा कार्यकाल विवादों में घिरा रहा। गठबंधन के सहयोगी दलों के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। सिंह ने आरोपित मंत्रियों को पद से हटाने में हिचक नहीं दिखाई, लेकिन इन विवादों का बड़ा चुनावी असर सामने आया और 2014 में यूपीए सत्ता से बाहर हो गया। सिंह के दूसरे कार्यकाल में राजकोषीय घाटा बढ़ने और भुगतान संतुलन के मोर्चे पर मुश्किलें भी उभरीं। इकॉनमी की रफ्तार बढ़ाने के लिए बैंकों को जो रियायतें दी गईं, उनके कुछ दूसरे परिणाम भी दिखने लगे। कंपनियों के कर्ज समय पर नहीं चुकाने और फिर एक लोन चुकाने के लिए दूसरा लोन पास कराने जैसी शिकायतें उभरीं। बैंकों ने कंपनियों की कर्ज चुका सकने की क्षमता की अच्छी जांच-परख के बिना लोन बांटे। इससे उनका NPA बढ़ा। इससे GDP ग्रोथ पर भी असर पड़ा और इसको लेकर सिंह पर सवाल उठे।