पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नई किताब चर्चा में है. इस किताब में उन्होंने बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस पर भी निशाना साधा है.
कोलकाता पुस्तक मेले में उनकी तीन किताबों का विमोचन हुआ, लेकिन सबसे ज्यादा बहस “बांगलार निरबाचन ओ आमरा (बंगाल के चुनाव और हम)” पर हो रही है. इस किताब में 2024 लोकसभा चुनाव का विश्लेषण किया गया है.
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव में हार के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि कई राज्यों में गठबंधन की वजह से कांग्रेस को फ़ायदा हुआ, लेकिन पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने बीजेपी और वाम दलों से मिलकर तृणमूल कांग्रेस के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा.
पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी और वाम मोर्चे के नेता आपस में मिले हुए हैं.
ममता बनर्जी ने “बांगलार निरबाचन ओ आमरा” में 2024 लोकसभा चुनाव में हार के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि कांग्रेस को जितनी सीटें मिलीं, वो सिर्फ इसलिए क्योंकि गठबंधन के अन्य दलों ने उनके ख़िलाफ़ उम्मीदवार नहीं उतारे, न कि कांग्रेस की खुद की ताकत की वजह से.
उन्होंने किताब में बंगाल की चुनावी राजनीति के साथ-साथ ‘इंडिया’ गठबंधन की भी विस्तार से चर्चा की है.
वह लिखती हैं, “2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ही हमें समझ में आ गया था कि भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ अगर सभी विपक्षी दल एकजुट हो जाएं तो उसे हराया जा सकता है. इसको लेकर विपक्षी दलों की कई बैठकें दिल्ली, मुंबई और कर्नाटक में हुईं. कर्नाटक की बैठक में मैंने ही विपक्षी दलों के गठजोड़ का नाम ‘इंडिया’ रखने की पेशकश की थी.”
अपनी किताब में वह लिखती हैं कि उन्होंने गठबंधन के न्यूनतम साझा कार्यक्रम और संयुक्त बयान जारी करने का प्रस्ताव दिया था. साथ ही, उन्होंने कांग्रेस से अनुरोध किया था कि गठबंधन का संयोजक और प्रवक्ता नियुक्त किया जाए.
किताब के आखिरी अध्याय “मानुष जोखोन अकुतोभोय, औधोत्तेर पोराजोय” में वो लिखती हैं कि “जो क्षेत्रीय दल अपने-अपने क्षेत्र में मज़बूत हैं, उन इलाकों में वही दल गठबंधन की अगुवाई करें या उनकी अगुवाई में ही चुनाव लड़ा जाए.”
हालांकि, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो पाया. ममता बनर्जी का कहना है कि “ना तो न्यूनतम साझा कार्यक्रम की रूपरेखा बनी और ना ही कोई साझा बयान जारी किया गया. गठबंधन के दल आपस में ही चुनाव लड़ने लगे, जिसका फ़ायदा बीजेपी को हुआ और उसने सरकार बना ली, बावजूद इसके कि बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत नहीं था.”
कांग्रेस पर हमला जारी रखते हुए ममता बनर्जी ने ये भी स्पष्ट किया कि कांग्रेस गठबंधन का नेतृत्व करने से बचती रही, लेकिन गठबंधन सहयोगियों के समर्थन के कारण उसे कुछ राज्यों में फ़ायदा हुआ.
ममता बनर्जी ने कहा, “पश्चिम बंगाल में कांग्रेस, वाम दल और बीजेपी ने मिलकर तृणमूल कांग्रेस के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा.”
वो कहती हैं कि तमिलनाडु, झारखंड और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सीटें गठबंधन के कारण मिलीं, लेकिन बंगाल में कांग्रेस ने तृणमूल कांग्रेस को हराने के लिए बीजेपी और वाम दलों से हाथ मिला लिया.
ममता बनर्जी आगे लिखती हैं, “2024 लोकसभा चुनाव में मीडिया ने तृणमूल कांग्रेस को 12-13 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था, लेकिन हमें 29 सीटें मिलीं. बीजेपी को सिर्फ 12 सीटें और कांग्रेस को केवल 1 सीट मिली.”
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 18 सीटें और तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिली थीं, यानी दोनों दलों के बीच कांटे की टक्कर थी.
पश्चिम बंगाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शुभंकर सरकार ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उन्होंने ममता बनर्जी की किताब नहीं पढ़ी है और ना ही पढ़ने वाले हैं.
वह कहते हैं, “ममता ने अगर कांग्रेस पर कुछ कहा है तो उन्हें इस बात का भी उल्लेख करना चाहिए कि जब भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव हो रहा था, तो तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने उसका बहिष्कार क्यों किया था? वो किताबें लिखती रहती हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम पर उन किताबों को पढ़ने की कोई बाध्यता है. जहां तक पश्चिम बंगाल का सवाल है, तो तृणमूल कांग्रेस, भाजपा और वाम मोर्चे के नेता आपस में मिले हुए हैं.”
शुभंकर सरकार का कहना है कि कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में अपने संगठन को शून्य से फिर से खड़ा किया है. उनका दावा है कि ममता बनर्जी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए आम मतदाता कांग्रेस को एक नए विकल्प के रूप में देख रहा है.
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24-परगना ज़िले में बांग्लादेश की सीमा से सटा संदेशखाली लोकसभा चुनाव से पहले सुर्खियों में आ गया था. यहां महिलाओं के कथित यौन उत्पीड़न और बलात्कार के आरोपों के बाद विरोध प्रदर्शन तेज़ हो गए थे, जिससे ये मामला लगातार चर्चा में बना रहा.
ममता बनर्जी ने अपनी किताब में बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र के संदेशखाली का जिक्र किया है और आरोप लगाया है कि इन घटनाओं को तूल देने की कोशिश की गई, जबकि वे “निराधार” थीं.
उन्होंने लिखा, “लोकसभा चुनावों से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी ने ऐसी कहानी गढ़ी कि कई महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है. इस षड्यंत्र में बीजेपी, कांग्रेस और वाम दल सभी शामिल थे. लेकिन जल्द ही इसका पर्दाफाश हो गया.”
संदेशखाली को लेकर बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस आमने-सामने रहे. बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस पर इस मामले में कोई कार्रवाई न करने का आरोप लगाया, जबकि तृणमूल कांग्रेस का कहना था कि ये सब बीजेपी के इशारे पर किया गया. बशीरहाट सीट से तृणमूल कांग्रेस के हाजी नुरुल इस्लाम ने बीजेपी उम्मीदवार रेखा पात्रा को हराया था.
ममता बनर्जी ने इस मामले में शुभेंदु अधिकारी का नाम लिए बिना उन्हें “विपक्ष के नेता” कहकर संबोधित किया और कई आरोप लगाए.
उन्होंने लिखा, “संदेशखाली के पूरे मामले के निर्देशक विपक्ष के नेता ही थे.”
उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि “बीजेपी ने पश्चिम बंगाल और प्रदेश की महिलाओं की अस्मिता, स्वाभिमान और सम्मान के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की.”
ममता बनर्जी का दावा है कि उन्हें संदेशखाली की महिलाओं के लिए “बहुत दुख होता है, जिनके सम्मान को धूल में मिलाकर बीजेपी चुनाव जीतना चाहती थी.”
बीजेपी के प्रदेश महासचिव जगन्नाथ चटर्जी ने कहा कि उन्होंने ममता बनर्जी की किताब नहीं पढ़ी है, लेकिन संदेशखाली मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया है, जिसकी जांच कलकत्ता उच्च न्यायालय की देखरेख में हो रही है.
बीबीसी से बात करते हुए चटर्जी ने दावा किया कि संदेशखाली में 700 एकड़ कब्जाई गई जमीन को सरकार ने ही मुक्त कराकर उसके वास्तविक मालिकों को सौंपा है. उन्होंने कहा, “इसलिए भारतीय जनता पार्टी के आरोप मनगढ़ंत नहीं हैं.”
उनका ये भी कहना था, “जिन महिलाओं के साथ यौन अपराध किए गए थे या जिनका शोषण हुआ, उन्हीं में से एक को बीजेपी ने बशीरहाट सीट से अपना प्रत्याशी बनाया.”
ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की सत्ता में सीपीएम को हराने के बाद आईं थीं.
उनकी किताब की शुरुआत पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे के शासन काल की समीक्षा से हुई है जिसमे उन्होंने आरोप लगाया कि वाम मोर्चा ने “अपने शासनकाल में लोकतंत्र को अधीनस्थ कर रखा था.”
वो कहती हैं कि उस दौरान सरकारी अधिकारियों की बजाय वाम दलों के नेताओं का ही सिक्का चला करता था. अहम शासकीय फ़ैसले प्रशासनिक अधिकारियों की जगह वाम दलों के नेता लिया करते थे और पूरी व्यवस्था पर उनका नियंत्रण स्थापित हो गया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित