हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल को 2023 का ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलेगा। वे यह सम्मान पाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले लेखक होंगे। 88 वर्षीय शुक्ल अपनी सरल भाषा और संवेदनशील लेखन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने नौकर की कमीज और दीवार में एक खिड़की रहती थी जैसी प्रसिद्ध कृतियां लिखीं।चयन समिति ने उनकी अनूठी लेखन शैली और हिंदी साहित्य में योगदान के लिए यह निर्णय लिया।
पीटीआई, नई दिल्ली। हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल को देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। वे यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले लेखक होंगे। 88 वर्षीय शुक्ल अपनी कहानियों, कविताओं और लेखों के लिए जाने जाते हैं और समकालीन हिंदी साहित्य के सबसे प्रभावशाली रचनाकारों में शुमार हैं।
यह पुरस्कार 11 लाख रुपये की राशि, मां सरस्वती की कांस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र के साथ दिया जाता है। इस सम्मान को पाकर उन्होंने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी।
“यह बहुत बड़ा सम्मान है”
अपनी सहज भाषा और संवेदनशील लेखन के लिए पहचाने जाने वाले शुक्ल ने कहा, “यह बहुत बड़ा पुरस्कार है। मैंने कभी सोचा नहीं था कि मुझे यह मिलेगा। दरअसल, मैंने कभी पुरस्कारों पर ध्यान नहीं दिया। लोग मुझसे अक्सर कहते थे कि मुझे ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना चाहिए, लेकिन मैं क्या कहता? झिझक के कारण मैं कभी सही शब्द नहीं खोज पाया।”वे आज भी लेखन में सक्रिय हैं, खासतौर पर बच्चों के लिए लिखना उन्हें पसंद है। उनका मानना है कि “लिखना एक छोटी चीज़ नहीं है, इसे निरंतर करते रहना चाहिए और पाठकों की प्रतिक्रिया पर ध्यान देना चाहिए।”
प्रसिद्ध कृतियां और सम्मान विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं में “दीवार में एक खिड़की रहती थी” (जिसके लिए उन्हें 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला), “नौकर की कमीज” (1979, जिस पर मणि कौल ने फिल्म बनाई), और कविता संग्रह “सब कुछ होना बचा रहेगा” (1992) प्रमुख हैं।ज्ञानपीठ पुरस्कार की शुरुआत 1961 में हुई थी और यह पहली बार 1965 में मलयालम कवि जी. शंकर कुरुप को दिया गया था। यह पुरस्कार केवल भारतीय लेखकों को ही प्रदान किया जाता है।
नए लेखकों को सलाह युवा और नए लेखकों के लिए विनोद कुमार शुक्ल ने कहा, “अपने ऊपर भरोसा रखिए और लिखते रहिए। लिखना एक छोटी चीज़ नहीं है, इसे गंभीरता से लें और पाठकों की प्रतिक्रिया को भी महत्व दें।”यह भी पढ़ें: Interview: ‘तमिल को हिंदी से नहीं, बल्कि अंग्रेजी से नुकसान’, खास बातचीत में बोले प्रो. चमू कृष्ण शास्त्री
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