राजस्थान के मेवाड़ में महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच चल रहा विवाद मंगलवार रात एक बार फिर खुलकर सामने आ गया, जब लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने आए.
लक्ष्यराज सिंह ने विश्वराज सिंह मेवाड़ पर गुंडागर्दी करने का आरोप लगाया और प्रशासन पर भी सवाल उठाए.
मामले की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी के विधायक और महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ के ‘राजतिलक’ के बाद हुई थी. और इसके पीछे की वजह ‘संपत्ति विवाद’ को बताया जा रहा है.
विश्वराज सिंह मेवाड़ के परिवार और उनके चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच संपत्ति को लेकर क़ानूनी लड़ाई चल रही है.
इससे पहले सोमवार शाम पांच बजे के आसपास विश्वराज सिंह मेवाड़ अपने समर्थकों के साथ उदयपुर पहुंचे और रात के दो बजे तक वहीं रहे.
इस दौरान नाथद्वारा से विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ ने सिटी पैलेस के अंदर जाने की कोशिश की.
पुलिस और उनके समर्थकों के बीच नोंकझोंक हुई और फिर हंगामा बढ़ा तो जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक बीच-बचाव करने पहुंचे.
अब मामला इतना बढ़ चुका है कि ज़िला प्रशासन ने उदयपुर सिटी पैलेस के आसपास भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 लगा दी है.
क्या है पूरा मामला?
मेवाड़ के पूर्व राजघराने के महाराणा महेंद्र सिंह मेवाड़ का निधन 10 नवंबर को हुआ था.
इसके बाद उनके इक़लौते बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का 25 नवंबर को चित्तौड़गढ़ के ऐतिहासिक फ़तह प्रकाश महल में पगड़ी दस्तूर यानी राजतिलक कार्यक्रम हुआ.
दोपहर तीन बजे तक विश्वराज सिंह चित्तौड़गढ़ में ही रहे. इस परंपरा में उदयपुर सिटी पैलेस में मौजूद धूणी और एकलिंगजी मंदिर दर्शन भी शामिल है.
इस रस्म के लिए विश्वनाथ सिंह दोपहर तीन बजे अपने समर्थकों संग चित्तौड़गढ़ से उदयपुर के लिए रवाना हुए.
मंदिर और सिटी पैलेस दोनों महेंद्र सिंह के छोटे भाई अरविंद सिंह के नियंत्रण में हैं, जो उदयपुर में श्री एकलिंगजी ट्रस्ट के अध्यक्ष और प्रबंध ट्रस्टी हैं.
25 नवंबर को ट्रस्ट की तरफ़ से स्थानीय अखबारों में महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल ट्रस्ट और एकलिंगजी ट्रस्ट ने दो सावर्जनिक नोटिस प्रकाशित करवाए.
इसके तहत किसी भी अनाधिकृत व्यक्ति को प्रवेश नहीं दिए जाने की बात कही गई. दोनों ही ट्रस्ट सिटी पैलेस और एकलिंगजी मंदिर के क़ानूनी अधिकार का दावा करते हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, राजतिलक के कुछ घंटों बाद उन्हें उदयपुर के सिटी पैलेस में प्रवेश से रोक दिया गया.
सोमवार शाम पांच बजे उनका काफ़िला उदयपुर में दाखिल होता है, लेकिन उन्हें यहां पुलिस बैरिकेडिंग का सामना करना पड़ता है.
यहां उनके समर्थक और पुलिस आमने-सामने आ गए और थोड़ी ही देर में बैरिकेडिंग तोड़कर उदयपुर सिटी पैलेस की तरफ़ बढ़ गए.
इसके बाद प्रशासन और राजघराने के बीच लंबी बातचीत चली, लेकिन बातचीत किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंची.
रात आठ बजे तक विश्वराज सिंह सिटी पैलेस से 100 मीटर पहले जगदीश चौक पहुंचे और यहां से अपनी कार से उतरकर पैलेस की तरफ़ चल दिए.
लेकिन, जब उन्हें पैलेस में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली, तो वो सिटी पैलेस के बाहर कुर्सी डालकर अपने समर्थकों संग बैठ गए.
मीडिया से बातचीत में विश्वराज सिंह ने कहा कि मंदिर जाने से उन्हें रोकना ‘अवैध’ है.
विश्वराज सिंह ने कहा, “प्रॉपर्टी का विवाद अलग है. लेकिन अभी जो हो रहा है वो ग़लत है, क़ानूनी रूप से और पारंपरिक रूप से भी. मुझे मंदिर में जाने से रोकना सही नहीं है.”
इसके बाद देर रात उन्हें धूणी के दर्शन किए बगैर समर्थकों संग वापस लौटना पड़ा.
मामले पर अरविंद सिंह मेवाड़ के बेटे लक्ष्यराज सिंह ने अपना पक्ष सामने रखा है.
लक्ष्यराज सिंह ने कहा, “हम लोग क़ानूनी रूप से अपने घर के अंदर बैठे हैं. अगर किसी को कोई समस्या है तो वो अदालत के दरवाज़े खटखटा सकता है.”
“जिस प्रकार से कल पुलिस ने कुछ चीज़ों की खुली छूट दी वो निंदनीय परिस्थिति थी और मुझे 1984 की याद दिलाती है.”
“कुछ लोग जो सरकार के पदों के ऊपर बैठे हैं और अपने निजी फ़ायदे के लिए क़ानून को मनवाने का प्रयास करेंगे. यह कहां का नियम है?”
आगे उन्होंने कहा, “एकलिंगी मंदिर सबके लिए खुला है. मंदिर बंद नहीं हुआ है लेकिन मंदिर शक्ति प्रदर्शन की जगह नहीं है. मंदिर एक प्रार्थना की जगह होती है.”
प्रशासन ने क्या कहा?
उदयपुर सिटी पैलेस के आस-पास वाले इलाक़े में अभी भारी पुलिस बल तैनात है और प्रशासन की तरफ़ से शांतिपूर्ण माहौल का दावा किया जा रहा है.
सोमवार देर रात यहां माहौल तनावपूर्ण हो गया था. सिटी पैलेस के अंदर से और विश्वराज के समर्थकों के बीच पथराव की तस्वीरें सामने आईं और मौक़े पर पुलिस प्रशासन ने पथराव रोका.
इसके बाद प्रशासन ने सिटी पैलेस के बाहर कुर्की का नोटिस चस्पा कर दिया.
देर रात मौक़े पर मौजूद ज़िलाधिकारी अरविंद पोसवाल ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, “सुबह से ही पैलेस के प्रतिनिधि और समाज के प्रतिनिधि के बीच हमारी बातचीत चल रही थी.”
“कुछ बातों को लेकर सहमति बनी है और कुछ बातों को लेकर विवाद है. फ़िलहाल बातचीत जारी है.”
पथराव की घटना के बाद प्रशासन ने सिटी पैलेस के ‘विवादास्पद’ हिस्से की निगरानी के लिए रिसीवर नियुक्त किया है.
मामले की विस्तृत जानकारी के लिए बीबीसी ने उदयपुर के एसपी योगेश गोयल से बातचीत की.
योगेश गोयल ने बताया, “फिलहाल हम किसी भी अनाधिकृत व्यक्ति को वहां प्रवेश नहीं करने देंगे.”
“कल बैरिकेडिंग तोड़ने और पत्थरबाज़ी की घटना पर थाना घंटाघर में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ दो मामले दर्ज़ किए गए हैं. देर रात प्रशासन ने सिटी पैलेस के विवाद वाले हिस्से पर कुर्की का नोटिस लगाया है.”
योगेश गोयल बताते हैं, “दोनों पक्षों के बीच प्रॉपर्टी का पुराना विवाद है.”
“एक पक्ष का कहना है कि यह चैरिटबल ट्रस्ट की प्रॉपर्टी है और अरविंद सिंह मेवाड़ इसके चेयरमैन हैं जबकि दूसरा पक्ष कहता है कि यह अर्जित की गई प्रॉपर्टी है और उनका अधिकार है कि सिटी पैलेस में धूणी दर्शन करें.”
विवाद क्या है?
मेवाड़ रियासत में साल 1930 से 1955 तक महाराणा रहे भूपाल सिंह की कोई संतान नहीं थी और इसलिए उन्होंने भगवत सिंह मेवाड़ को गोद लिया था.
भूपाल सिंह ने अप्रैल 1955 में अपने जीवन के अंतिम दिनों में एकलिंगजी ट्रस्ट की स्थापना की थी. भगवत सिंह के परिवार में दो बेटे महेंद्र सिंह और अरविंद के साथ एक बेटी योगेश्वरी भी हुईं.
संपत्ति विवाद की शुरुआत साल 1983 में हुई थी, जब महेंद्र सिंह मेवाड़ अपने पिता भगवत सिंह मेवाड़ के ख़िलाफ़ कोर्ट चले गए थे.
कहा जाता है कि भगवत सिंह मेवाड़ ने अपनी संपत्ति को बेचना और लीज़ पर देना शुरू कर दिया था. यही बात उनके बेटे महेंद्र सिंह मेवाड़ को पसंद नहीं आई और वो कोर्ट चले गए.
इससे नाराज़ होकर भगवंत सिंह ने अपनी वसीयत संभालने की ज़िम्मेदारी अपने छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ को दे दी.
इस तरह महेंद्र सिंह मेवाड़ प्रॉपर्टी और ट्रस्ट से बाहर हो गए. 3 नवंबर 1984 को भगवत सिंह दुनिया से अलविदा कह गए और तब तक संपत्ति का फ़ैसला कोर्ट में पहुंच गया था.
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ बताते हैं, “जब उत्तराधिकारी बनने का मौक़ा आया तो छोटे भाई ने कब्ज़ा कर लिया और महेंद्र सिंह बाहर हो गया.”
“राजपूत समाज के एक तबके ने बड़ा भाई होने के नाते महेंद्र सिंह को उत्तराधिकारी माना लेकिन आर्थिक साम्राज्य अरविंद सिंह के पास था.”
“समय के साथ दोनों के बीच खाई बढ़ती चली गई और महेंद्र सिंह अकेले पड़ गए. अब उनकी मृत्यु के बाद फिर से उत्तराधिकारी का सवाल खड़ा हो गया है.”
37 साल तक मामले की सुनवाई चली और 2020 में उदयपुर की ज़िला अदालत में मामले में फ़ैसला सुनाया. कोर्ट ने तब कहा था कि विवाद संपत्ति को चार हिस्सों में बांटा जाएगा.
इसमें एक हिस्सा महाराणा भगवत सिंह को और बाक़ी बचे तीन उनकी बेटे-बेटी में बांटे जाएंगे.
कोर्ट के फ़ैसले तक लगभग सारी संपत्ति अरविंद सिंह मेवाड़ के पास थी क्योंकि महेंद्र सिंह और उनकी बहन योगेश्वरी कुमारी को बहुत कम हिस्सा मिला था.
अदालत ने शंभू निवास पैलेस, बड़ी पाल और घास घर जैसी संपत्तियों की आर्थिक गतिविधियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी.
कोर्ट का कहना था कि जब तक असल बंटवारा नहीं होता, तब तक भगवत सिंह की तीनों संतानें चार-चार साल के लिए बारी-बारी से शाही संपत्ति का इस्तेमाल करेंगे.
कोर्ट का फ़ैसला लागू हो पाता उससे पहले ही मामला राजस्थान हाई कोर्ट में पहुंच गया.
2022 में हाई कोर्ट ने ज़िला अदालत के फ़ैसले पर रोक लगा दी और कहा कि अंतिम फ़ैसला आने तक तीनों ही संपत्तियों पर अरविंद सिंह मेवाड़ का अधिकार रहेगा.
इस फ़ैसले को अरविंद सिंह मेवाड़ के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा गया.
भारत में जब राजशाही का अंत हुआ
15 अगस्त 1947 से पहले दो तरह के भारत अस्तित्व में थे. पहला, ब्रिटिश, फ्रेंच और पुर्तगाली साम्राज्यों के अधीन भारत, जिस पर इन विदेशी ताक़तों का शासन चलता था.
वहीं, जो दूसरा भारत था, वो राजे-रजवाड़ों और स्थानीय शासकों के अधीन आने वाला भारत था. उस वक़्त भारत में 522 रियासतें थीं. हैदराबाद, देश की कुछ बड़ी रियासतों में से एक था.
आज़ादी के दौरान और बाद में धीरे-धीरे इन रियासतों का विलय भारत में हुआ. इससे भारत में राजशाही के अंत की शुरुआत हुई.
1950 में भारतीय संविधान लागू होने के बाद भारत ने ब्रिटिश राजशाही के अधीन अपनी राजशाही को भी ख़त्म कर दिया .
हालांकि इसके बाद भी राजा महाराजाओं को वित्तीय लाभ दिए जाते थे, जिन्हें प्रिवी पर्स कहा जाता था.
साल 1971 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 26वें संविधान संशोधन के ज़रिए, भारत में शामिल रियासतों के पूर्व शासकों को दिए जाने वाले प्रिवी पर्स को भी ख़त्म कर दिया गया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित