“हम किसान हैं, सिर्फ़ खेती-किसानी के मुद्दे पर वोट करेंगे. हमारे लिए उपज की कीमतें महत्वपूर्ण हैं. हम जाति के आधार पर वोट नहीं देंगे.”
विधानसभा चुनाव के दौरान जब मैं किसानों के मुद्दे पर स्टोरी करने के लिए फ़ील्ड में था तो किसान कैमरे पर यही बात बार-बार दोहरा रहे थे.
ये बात भी सही है कि कैमरे पर कोई ये नहीं कहता कि वो जाति के आधार पर वोट करेगा. इसमें भी कोई शक नहीं है कि किसानों के लिए उनकी फसल की कीमत, खेती-किसानी के मुद्दे अहम हैं. राज्य में चुनाव के दौरान किसानों को सोयाबीन और कपास का गारंटी मूल्य से कम दाम मिल रहा था.
हालांकि, चुनाव परिणाम से ये साफ है कि इस मुद्दे को चुनाव में ज़्यादा जगह नहीं मिली. महायुति गठबंधन बड़ी जीत के साथ सत्ता में वापसी कर रहा है.
यहां ये जानने की कोशिश करेंगे कि चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा क्या हुआ कि खेती-किसानी के मुद्दे क्यों पीछे रह गए.
सज्जाद नोमानी, एक हैं तो सेफ़ हैं…
मैं यहां अपने तीन अनुभव बताता हूं.
पहला अनुभव: मतदान के दिन मैं छत्रपति संभाजीनगर के वरूड गांव में था. वहां मेरी मुलाक़ात 80 साल के एक बुज़ुर्ग से हुई.
जब मैंने उनसे पूछा कि चुनाव में कौन सा मुद्दा अहम है तो उन्होंने कहा, “हमने रज़ाकारों का युग देखा है. हिंदुओं को एक होना चाहिए. अगर मुस्लिम एकजुट हो सकते हैं तो हिंदू क्यों नहीं?
दूसरा अनुभव: उसी गांव में मेरी मुलाक़ात एक बुज़ुर्ग महिला से हुई, जो किसान परिवार से आती हैं. उन्होंने कहा, ” ये सही है कि फसलों का उचित दाम नहीं मिल रहा है, लेकिन मोदी की सरकार आनी चाहिए क्योंकि उन्होंने राम मंदिर बनाया है.”
तीसरा अनुभव: संभाजीनगर के रायपुर गांव में चाय पीने के दौरान वहां बैठे एक युवक ने कहा, ” आपने सज्जाद नोमानी का वीडियो देखा है जिसे फडणवीस ने दिखाया? अगर मुसलमान वोट जिहाद कर रहे हैं तो हिंदुओं को क्यों नहीं एकजुट होना चाहिए?”
चुनाव से कुछ दिन पहले बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने एक बैठक में सज्जाद नोमानी का वीडियो दिखाया, जहां से इस पर चर्चा शुरू हो गई.
इन लोगों की बातों में एक चीज स्पष्ट थी कि इनके लिए जाति-धर्म का मुद्दा फसल की कीमतों से ज़्यादा महत्वपूर्ण था.
महायुति की रणनीति में धर्म और विकास का साझा पुट
विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद से महायुति ने हिंदुवादी नेताओं और धार्मिक गुरुओं की राज्य में बैठकें करानी शुरू की. साथ ही लोगों को तीर्थयात्राओं के लिए ले जाया जाने लगा.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा दिया और पीएम मोदी ने ‘एक हैं, तो सेफ़ हैं’ का नारा दिया. वहीं, देवेंद्र फडणवीस जोर-शोर से ‘वोट जिहाद’ को उठा रहे थे.
आरएसएस के कैडर ने घर-घर जाकर लोगों को इन बयानों का मतलब समझाया. इन सब बातों से महायुति ये संदेश देने में सफल रही कि ‘हिंदुओं’ के बेख़बर रहने की वजह से लोकसभा चुनाव में ‘वोट जिहाद’ सफल रहा था.
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इसके अलावा, लाडकी बहिन जैसी योजना, किसानों के लिए बिजली बिल माफ़ी जैसे कदम और कर्ज़ माफ़ी का वादा जैसी योजनाएं महायुति के लिए काम कर गए.
दूसरी ओर, महाविकास अघाड़ी लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से अतिआत्मविश्वास में आ गई थी.
महाविकास अघाड़ी महायुति के चुनाव प्रचार अभियान का उस तरह से जवाब नहीं दे पाई. वो चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार ये दोहरा रहे थे कि ‘बटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे महाराष्ट्र में काम नहीं करेंगे.
इसके अलावा चुनाव प्रचार अभियान में महाविकास अघाड़ी के नेता संविधान में बदलाव जैसे मुद्दे पर लगातार बातें कर रहे थे.
हालांकि, जब मैं चुनाव की रिपोर्टिंग कर रहा था तो कोई भी व्यक्ति मुझे ऐसा नहीं मिला जो ये कह रहा हो कि इस चुनाव में ये बड़ा मुद्दा है.
इसमें एक बात और ध्यान देने वाली है कि महाविकास अघाड़ी ने जो भी चुनाव पूर्व घोषणाएं की, वो बहुत ज़्यादा लोगों को पसंद नहीं आ रही थी क्योंकि इनमें से कुछ तो पहले ही महायुति सरकार लागू कर चुकी थी और लोगों को उसका लाभ भी मिलना शुरू हो गया था.
किसानों की नाराज़गी दूर करने की कोशिश
लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में किसानों की नाराज़गी को भांपते हुए महायुति ने इस पर विशेष ध्यान देना शुरू किया.
महाराष्ट्र में चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने प्याज पर 550 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य हटा दिया था.
इसके साथ ही प्याज के निर्यात पर 40 फ़ीसदी निर्यात शुल्क को भी घटाकर 20 फ़ीसदी कर दिया गया. इससे किसानों को सीधा लाभ हुआ और अक्टूबर में किसानों को प्याज की अच्छी कीमत मिली.
इसके साथ ही सरकार ने सोयाबीन-कपास उगाने वालों को प्रति हेक्टेयर 5 हज़ार रुपये की वित्तीय सहायता भी दी. क़रीब 52 लाख किसानों के खातों में चुनाव से पहले ये राशि जमा की गई.
इसके अलावा पीएम किसान सम्मान निधि योजना की पूरक ‘नमो शेतकरी महासम्मान निधि योजना’ की शुरुआत हुई. जिसके कारण महाराष्ट्र के किसानों को सालाना 6 हज़ार के अलावा 12 हज़ार रुपये मिलने लगा.
किसानों को महायुति के वादे अच्छे लगे क्योंकि…
विधानसभा चुनाव से पहले महायुति ने किसानों से तीन अहम वादे किए थे.
इसमें किसानों की ऋण माफ़ी, पीएम किसान और नमो शेतकारी योजना के जरिए 12 हज़ार की जगह किसानों को सालाना 15 हज़ार रुपये दिया जाना और भावांतर योजना के जरिए सोयाबीन किसानों को 6 हज़ार दिया जाना शामिल था.
भावांतर योजना के तहत गारंटी क़ीमत और बाज़ार में वास्तविक क़ीमत की अंतर का भुगतान सरकार किसानों को करेगी. किसानों का झुकाव इन सारी योजनाओं के लिए रहा.
चुनाव से पहले ही किसानों के बिजली बिल माफ़ कर दिए गए, इसलिए किसानों को लगा कि उनकी ऋण माफ़ी भी होगी.
किसानों को ये भी लगा कि सरकार पहले से ही ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ और ‘नमो शेतकारी योजना’ के तहत 12 हज़ार दे रही है तो आगे इसे बढ़ाकर 15 हज़ार भी करेगी.
साथ ही किसानों ने यह भी सोचा कि भावांतर योजना जारी रहेगी क्योंकि सरकार ने चुनाव से पहले इस योजना के तहत सोयाबीन-कपास उत्पादकों को वित्तीय सहायता दी थी. इस वजह से भी किसान महायुति की तरफ़ गए.
वहीं महाविकास अघाड़ी ने किसानों को 3 लाख तक की कर्ज़माफ़ी और फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा किया.
लेकिन महायुति सरकार ने कई वादों को चुनाव से पहले ही लागू कर दिया, जिसका लाभ किसानों को मिलना भी शुरू हो गया था, तो ऐसे में किसानों ने उनकी गारंटी पर ज़्यादा भरोसा किया.
कृषि से जुड़े मुद्दे पीछे रह गए क्योंकि…
चुनाव से पहले राजनीति के जानकारों का कहना था कि चुनाव में खेती-किसानी के मुद्दे हावी रहेंगे और मौजूदा सरकार को इसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ेगा. लेकिन वास्तविकता कुछ और रही.
जाति-धर्म की राजनीति और सीधे खाते में पैसे देने की नीतियां बाकी सब चीजों को पीछे छोड़ गईं और किसानों की बुनियादी दिक्कतों के मुद्दे भी बैक सीट पर चले गए. साथ ही रोजगार के मुद्दे भी इस दौरान पीछे छूटते दिखे.
महाराष्ट्र में सोयाबीन की क़ीमत अब भी गारंटी मूल्य से 700-800 रुपये कम है और कपास को गारंटी मूल्य से 500 रुपये प्रति क्विंटल कम मिल रहा है.
महायुति सरकार सत्ता में वापस आ रही है और उन्होंने सोयाबीन किसानों को प्रति क्विंटल 6000 रुपये देने का वादा किया है.
क्या किसानों को ये राशि मिलेगी? कब मिलेगी? सरकार बनने के बाद ये देखा जाना अहम रहेगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.