महाराष्ट्र का 2024 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में अलग है. इस चुनाव में एमएनएस के अलावा छह प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ ही तीसरे गठबंधन के उम्मीदवार भी मैदान में हैं.
इसके साथ ही बागी भी मज़बूती के साथ दावेदारी पेश कर रहे हैं. वहीं मैदान में कुछ ऐसे लोग हैं जो अलग तरह के एजेंडे के साथ उतर रहे हैं.
इनमें से कुछ ऐसे हैं जो महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (एमपीएससी) की तैयारी कर रहे हैं, कुछ ऐसे हैं जो आईटी इंजीनियर हैं, वहीं कुछ सामाजिक आंदोलन से अब राजनीति में उतर रहे हैं.
हमने इस स्टोरी में ये जानने की कोशिश की है कि ये उम्मीदवार चुनावी मैदान में क्यों उतर रहे हैं? उनके एजेंडे क्या हैं? जानिए ऐसे ही उम्मीदवारों के बारे में.
‘मैं लॉ एंड ऑर्डर के लिए मैदान में हूं’
राज असरोंडकर एक पत्रकार हैं और वो कई मीडिया समूहों के साथ काम कर चुके हैं. वह 2002 में उल्हासनगर में नगरसेवक भी थे. वो ठाणे की अंबरनाथ सीट से चुनावी मैदान में हैं.
2009 से वह ‘कायद्यानं वागा’ (नियम का पालन करें) आंदोलन चला रहे हैं. वो लेबर राइट्स नामक संगठन के ज़रिए ठेका श्रमिकों के लिए काम करते हैं. जब उनसे ये पूछा गया कि वो चुनाव क्यों लड़ रहे हैं तो उनका कहना था कि वो क़ानून व्यवस्था लाने के लिए मैदान में हैं.
वह कहते हैं, “पिछले 15 साल से बालाजी किनिकर विधायक हैं, लेकिन न तो विकास की योजना है और न ही समस्या का समाधान. विकास के लिए योजना और समस्याओं के समाधान की आवश्यकता होती है. सीमेंट की सड़कें तो बनीं, लेकिन अंडरग्राउंड का काम पूरा नहीं हुआ. आज अंबरनाथ में कंक्रीट की सड़कें तो बनीं लेकिन भूमिगत कार्य के लिए इन सड़कों को फिर से खोद दिया गया है.”
राज असरोंडकर ने आगे कहा, “राजनीतिक दल दो मुद्दों के साथ खड़े हैं, हिंदुत्व और संविधान. उनके पास कोई ज़मीनी मुद्दा नहीं है. मैं लोगों की आजीविका के मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में उतरा हूं. मैंने 500 रुपये के स्टांप पेपर पर अपना एजेंडा लिखा है. मवाली, नशेड़ी, गंजेड़ी और गुंडे सड़क पर नज़र नहीं आएंगे.”
उन्होंने कहा कि वो श्रमिकों के उचित वेतन, सरकारी और अर्धसरकारी स्कूलों को अपडेट करने के लिए काम करेंगे.
एमपीएससी की तैयारी कर रहे छात्र क्यों लड़ रहे चुनाव?
एमपीएससी की तैयारी कर रहे अरविंद अन्नासो वलेकर पुणे के कस्बापेठ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. अरविंद वलेकर मूल रूप से सांगोलिया के रहने वाले हैं. वह एमपीएससी आंदोलन में भी सक्रिय रहे हैं.
चुनाव लड़ने के पीछे की वजह के बारे में वो कहते हैं, “हम प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विरोध प्रदर्शन करते हैं. मेरे एसोसिएशन में विरोध होता है. शरद पवार हमारे विरोध प्रदर्शन में आए थे. एमपीएससी की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स का कहना था कि इतने सारे नेताओं से हमारे प्रदर्शन में शामिल होने के लिए कहने के बदले हमें खुद ही खड़े होने की ज़रूरत है. हम लोगों के पास जाएंगे और वोट मांगेंगे. स्टूडेंट्स का कहना था कि आपको (अरविंद) चुनाव लड़ना चाहिए. इसके बाद मैंने विधानसभा चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया.”
उनका कहना है कि तीन लाख से ज़्यादा स्टूडेंट्स कस्बापेठ में रहते हैं, वहां कोयटा गैंग स्टूडेंट्स पर हमले करते हैं, इस पर कोई ध्यान नहीं देता. वो एमपीएससी में धांधली का भी आरोप लगाते हैं.
‘आदिवासियों और पर्यावरण की रक्षा के लिए मैदान में उतरे’
गढ़चिरौली के अहेरी विधानसभा क्षेत्र के लिए पहली बार ग्राम सभा ने किसी उम्मीदवार को नामांकित किया है.
गढ़चिरौली ज़िले में ग्राम सभाएं चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ग्राम सभा मिलकर निर्णय लेती है कि किसे वोट देना है.
लोकसभा चुनाव में ज़िले की ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित कर कांग्रेस प्रत्याशी नामदेव किरसन का समर्थन किया था, ताकि यहां खदानों के विस्तार को लेकर ग्रामीणों का विरोध संसद तक पहुंचे और आदिवासियों के बुनियादी मुद्दों को संसद में उठाया जाये.
अब पहली बार इन ग्राम सभाओं ने विधानसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा है. नितिन पाड़ा को ग्राम सभा ने मनोनीत किया है.
उम्मीदवार देने के लिए ग्राम सभाओं का वास्तव में उद्देश्य क्या है?
नितिन पाड़ा कहते हैं, “हम अपने आदिवासी मुद्दों को संसद में उठाने के लिए जन प्रतिनिधियों को चुनते हैं. सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के फ़ैसले हैं कि आदिवासी जंगल के मूल मालिक हैं. लेकिन, यहां पेसा अधिनियम, वन अधिकार अधिनियम लागू नहीं किया गया है.”
“ग्रामीणों के विरोध के बावजूद, यहां खदानें स्थापित की गई हैं. हमारे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. हमने इन मुद्दों को उठाने के लिए लोकसभा में नामदेव किरसन का समर्थन किया. लेकिन, उन्होंने मानसून सत्र में हमारे मुद्दों को नहीं उठाया. इसलिए अब विधानसभा में यहां का मुद्दा उठाएंगे. कुल 500 ग्राम सभा का समर्थन प्राप्त है.”
17 साल तक आईटी इंजीनियर रहा शख़्स चुनावी मैदान में क्यों?
सचिन सिधे एक आईटी इंजीनियर हैं. उनके पास 17 साल का अनुभव है और वह भी पुणे की चिंचवड़ विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरे हैं.
चुनाव लड़ने के फ़ैसले पर सचिन कहते हैं, “मैं हमारी सोसाइटी का अध्यक्ष हूं. कई सोसाइटी में वर्षों से पानी की समस्या है. वह समस्या दूर नहीं होती. सोसाइटी को टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता है. इसके लिए विधायक की ओर से कोई कदम नहीं उठाया जाता है. नगर पालिका भी कुछ नहीं कर रही है.”
”यहां हिंजेवाड़ी जैसा आईटी सेक्टर सात चरणों में बनने वाला था, लेकिन पूरा सिस्टम ही तीन चरणों में चरमरा गया. क्योंकि बुनियादी ढांचा ही नहीं है.”
सचिन ने कहा, “स्मार्ट सिटी के बजाय स्मार्ट गवर्नेंस पर सरकार को फोकस करना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति 5 करोड़ का फ्लैट खरीदता है, तो उसके बाहर भी उसको बढ़िया बुनियादी ढांचा मिलना चाहिए. टिकाऊ सड़कें नहीं हैं. उन पर गड्ढे हैं. विधायक इसके लिए कुछ नहीं कर रहे हैं.”
‘मुझे मिलने वाले वोट जीने-मरने के सवाल पर होंगे ‘
संगमनेर में बालासाहेब थोराट के खिलाफ राधाकृष्ण विखे पाटिल के कट्टर समर्थक अमोल खटाल शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
चूंकि बालासाहेब थोराट इस निर्वाचन क्षेत्र में हैं, इसलिए यह सीट हॉट सीट मानी जाती है, लेकिन इस सीट पर एक किसान का बेटा चुनावी मैदान में उतरा है.
संगमनेर से दत्ता ढगे नाम के एक युवक चुनाव लड़ रहे हैं.
इस युवक की मां दत्ता ढगे एक मज़दूर थीं. बेहद खराब हालात में पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने छात्र भारती स्टूडेंट एसोसिएशन के साथ भी काम किया.
वो अब किसानों के मुद्दे पर काम कर रहे हैं. वह पुंताम्बिया किसान आंदोलन या दूध आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हैं.
वो चुनावी मैदान में उतरने के बारे में कहते हैं, “हमारे विधानसभा क्षेत्र में कोई भी किसानों के बारे में बात नहीं कर रहा है, जिनसे सब का घर चलता है. मेरी लड़ाई किसानों की समस्याओं का समाधान करने की है. नेता जाति-धर्म की राजनीति से परे कुछ भी नहीं देख पा रहे हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, पानी के बारे में कोई बात नहीं कर रहा है. मैं नौकरी, दूध के दाम के लिए लड़ रहा हूं, मुझे जो वोट मिलेंगे, वो बताएंगे कि ये जीवन-मृत्यु के प्रश्न पर मिला वोट है.”
‘मैं महिलाओं के मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ रही हूं’
इस बुलढाणा सीट से प्रेमलता सोनोने चुनाव लड़ रही हैं. उनके परिवार की पृष्ठभूमि राजनीतिक रही है. लेकिन, ससुराल वालों की पृष्ठभूमि ऐसी नहीं है.
10वीं के बाद कम उम्र में ही उनकी शादी हो गई. लेकिन, इसके बाद भी उन्हें कई सालों तक पढ़ाई नहीं करने दी गई. शादी के 12 साल बाद प्रेमलता को पढ़ने की इजाज़त मिली.
उन्होंने एमएसडब्ल्यू किया और अब वो महिलाओं के लिए काम करती हैं. उन्होंने शराबबंदी के लिए आंदोलन किया.
प्रेमलता तीसरे गठबंधन से चुनाव लड़ रही हैं.
‘मेरी वजह से कम से कम एमआईडीसी की चर्चा तो शुरू हुई’
चांगदेव गिट्टे एक युवा एम फार्मेसी ग्रेजुएट है. उनके पिता पूर्व सैनिक हैं और फिलहाल खेती करते हैं. चांगदेव फ़्रीलांस कंटेंट राइटिंग से जीवनयापन करते हैं.
वो बीड ज़िले के आष्टी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं.
उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया? इस पर चांगदेव कहते हैं, “हमारे आष्टी विधानसभा क्षेत्र में 3 लाख 86 हज़ार मतदाता हैं. लेकिन, इनमें से डेढ़ लाख मतदाता पुणे, मुंबई और अन्य गांवों में चले गए हैं. युवा रोज़गार के लिए पुणे, मुंबई जाते हैं. गन्ना श्रमिक पश्चिमी महाराष्ट्र जाते हैं. यह हमारे आष्टी तालुका में एमआईडीसी के कारण है. यहां कोई भी इस मुद्दे पर बात नहीं कर रहा है, हम कम से कम रोज़गार के मुद्दे पर बात कर सकते हैं.”
“जब से मैं चुनाव में उतरा हूं, कम से कम एमआईडीसी (महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन) पर चर्चा हो रही है. चीनी मिल पर चर्चा हो रही है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित